05-08-2020, 02:38 PM
अंत में सिर्फ इतना बोले, “तुम्हें मेरे निजी कागजों को हाथ लगाने की क्या जरूरत थी? दूसरे की चिट्ठी नहीं पढ़नी चाहिए।”
मैं अवाक रह गई। अगले आने वाले झंझावातों के क्रम में धीरे धीरे वास्तविकता की और इनके सोच और व्यवहार की कड़ियाँ जुड़ीं, मैं लगभग सदमे में रही, फिर हैरानी में। हँसी भी आती यह आदमी इतना भुलक्कड़ और सीधा है कि अपनी चिट्ठी तक मुझसे नहीं छिपा सका और इसकी हिम्मत देखो, कितना बड़ा ख्वााब!
मैं अवाक रह गई। अगले आने वाले झंझावातों के क्रम में धीरे धीरे वास्तविकता की और इनके सोच और व्यवहार की कड़ियाँ जुड़ीं, मैं लगभग सदमे में रही, फिर हैरानी में। हँसी भी आती यह आदमी इतना भुलक्कड़ और सीधा है कि अपनी चिट्ठी तक मुझसे नहीं छिपा सका और इसकी हिम्मत देखो, कितना बड़ा ख्वााब!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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