04-08-2020, 11:25 AM
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एक साथ हम दोनो के मूह से मस्ती भारी आहह…. फुट पड़ी…
उफफफफफफफफफफफ्फ़…. इतना मज़ा…. ! भाभी आधे लंड को लेकर अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगी मानो वो उसे मथकर उसमें से रस निकालना चाहती हो…..
मेरे सब्र का बाँध टूट गया , और मेने उन्हें पलग पर लिटा दिया, टाँगे हवा में उठाकर एक भरपूर ताक़तवर धक्का जड़ दिया…
एक बार फिर एक दर्द की लहर सी मेरे लंड से उठी, जो मज़े के आलम में कन्हि खो गयी, उधर भाभी भी अपने होठों को कसकर दवाए अपने दर्द को पी गयी..
हम दोनो ही मस्ती के ऊडन खटोले में बैठ कर दूर आसमानों में उड़ चले…
कमरे में हमारी जांघों की थप सुनाई दे रही थी… मेरे ताक़तवर धक्कों के बावजूद भी भाभी कुच्छ ना कुच्छ बोलकर मुझे और उत्साहित कर रही थी..
जब एक ही मुद्रा में हमें काफ़ी देर हो गयी.. तो भाभी ने हाथ के इशारे से रुकने को कहा…
फिर मुझे अपने उपर से उठा कर वो पलट गयी और अपने घुटने जोड़ कर पलंग पर घोड़ी की तरह निहुर गयी…
अब उनकी मस्त 38” की गद्देदार कसी हुई गांद मेरे सामने थी, जिसे देखकर मे अपना आपा खो बैठा और उनके एक चूतड़ को काट लिया…
आअहह…..काटो मत…जानुउऊ…, वो दर्द से तडपी..तो मेने उस जगह को चूमा और फिर उनके दोनो चुतड़ों को बारी-बारी से चाटने लगा…
अपना मूह उनकी मोटी गांद में डाल दिया और उनकी चूत और गांद के छेद को चाटने लगा…....
आह्ह्ह्ह… अब अपना मूसल डालो मेरे रजाआा… क्यों तड़पाते हूओ…
भाभी की हालत मुझसे देखी नही गयी और मेने पीछे से अपना लंड उनकी चूत में पेल दिया…
ईईीीइसस्स्स्स्शह……हइईईईई….रामम्म्मममम….अब छोड़ूऊ…लल्लाआ….. आराम सीईए….उफफफफफफफफफफफ्फ़….. कितना मज़ाअ देतीई हूऊ…तुम… मुझे अपना गुलामम्म्म.. बनाआ.. लियाअ…
जी करता है, इसे हर समय अपनी मुनिया में ही डाले रहूं….डालोगे नाआ….!
ये अब आपका ही है….भाभिईीईई….जब चाहो…पकड़ के डाल लएनाअ….हुउन्न्ह…
मेरी जांघे तपाक से उनके भारी चुतड़ों पर पड़ने लगी… कभी-2 मे उनकी गांद मसल देता, तो कभी उनके चुतड़ों पर थप्पड़ जड़ देता…
भाभी और ज़ोर्से चोदने को बोलती…मेरे शरीर से पसीना निकलने लगा… लेकिन चुदाई…चरम…पर पहुँचती जा रही थी…
आधे घंटे की धुँआधार चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ ही झड़ने लगे…भाभी की यौनी से लगातार कामरस बरस रहा था…
झड़ने के बाद वो पलंग पर औंधी पसर गयी और में उनकी पीठ पर लड़ गया..
10-15 मिनिट हम ऐसे ही बेसूध पड़े रहे और अपनी उखड़ी हुई साँसों को इकट्ठा करते रहे…
हमारा मस्ती भरा ये खेल सुबह के 4 बजे तक यूँही चलता रहा, फिर थक कर चूर हम एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर सो गये…
सुबह 7 बजे रामा दीदी ने दवाजा खटखटाया… तब जाकर भाभी की नींद खुली..उन्होने अंदर से ही आवाज़ देकर कहा…
अभी थोड़ी देर में आती हूँ, रूचि को दूध पिलाकर….!
फिर भाभी ने अपने कपड़े पहने, मुझे झकज़ोर कर जगाया.. जब में जाग गया तो वो बोली –
लल्ला.. तुम कपड़े पहनो, में बाहर निकल कर देखती हूँ, रास्ता साफ देख कर बाहर निकल जाना …
रामा पुच्छे तो कह देना कि जल्दी जाग कर वॉक पर गया था.. ओके..
इस तरह से भाभी ने मेरे जन्म दिन का ये अनौखा तोहफा देकर मुझे जिंदगी भर के लिए अपना बना लिया…
वैसे तो वो मेरा हर तरह का ख्याल रखती ही थी, बस यही काम वाकी था, सो वो भी पूरा हो गया था..
अब वो मेरे लिए मेरी मा से भी बढ़कर मेरी ज़रूरत बन चुकी थी..
मेने अपने नये खुले डिग्री कॉलेज में ही अड्मिशन ले लिया था, जिससे अब मे हमेशा भाभी के पास ही रह सकता था…
एक दिन छुट्टी का दिन दोनो भाई आए हुए थे मेने भाभी को अपनी एक डिमॅंड पहले ही बता दी थी…
सो जब रात को सभी एक साथ बैठ कर खाना खा रहे थे कि भाभी ने भूमिका बनाते हुए बात शुरू की..,
भाभी, भैया से बोली - सुनो जी..! मे क्या कह रही थी.. कि यहाँ घर पर एक बाइक और होनी चाहिए…,
स्कूटी तो रामा के लायक ही है.. छोटू लल्ला अब बड़े हो गये है.. कॉलेज भी जाते हैं.. तो मे चाहती हूँ उनके लिए एक मोटर बाइक ले देते तो…
भाभी की बात से सभी खाना रोक कर उनकी ओर देखने लगे…! सबको यूँ अपनी ओर देखते पा, भाभी कुच्छ हड़बड़ा गयी…
फिर कुच्छ संभाल कर बोली – क्या मेने कुच्छ ग़लत कह दिया..?
बड़े भैया – तुम्हें लगता है कि ये बाइक चला लेगा.. स्कूटी तो ढंग से आती नही अभी तक…..
तभी तपाक से रामा दीदी बोल पड़ी – क्या फ़र्राटे से स्कूटी चलाता है छोटू… और आपको पता है भैया, एक दिन तो अपने दोस्त की बुलेट लेके घर आया था..
दोनो भैया जो शायद अभी तक मुझे बच्चा ही समझ रहे थे… चोंक पड़े…और दोनो के मूह से एक साथ निकला… क्या बुलेट..चला लेता है ये..?
मे – हां भैया.. उसमें क्या है.. वो तो और आसान है चलाने में..
बड़े भैया – तो मोहिनी तुमने बाबूजी से पुछ लिया है..?
भाभी – बाबूजी मेरी बात कभी नही टालते.. उनकी गॅरेंटी मे लेती हूँ.. पर देखो ना…,
जिसका एक भाई असिस्टेंट प्रोफेसर, और दूसरा डीएसपी, उनका छोटा भाई लड़कियों वाली स्कूटी से कॉलेज जाए.. अच्छा नही लगता ना…!
छोटे भैया ताव में आकर बोले – तो ठीक है भाभी.. मेरी तरफ से छोटू के लिए बाइक तय… बोल भाई कोन्सि चाहिए…?
भाभी तपाक से बोली – बुलेट… !
बड़े भैया – क्या..? मोहिनी तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है.. जानती हो बुलेट की कितनी कीमत है..!
भाभी – अब डीएसपी साब दिलवा रहे हैं… तो इससे कम क्या होनी चाहिए.. क्यों बड़े देवर जी… मे सही कह रही हूँ ना..!
छोटे भैया – अब भाभी का हुकुम सर आँखों पर…
ठीक है छोटू, कल मेरे साथ चलना, अपने शहर से तुझे एक नयी बुलेट डेलक्स दिलवा देता हूँ… अब खुश..?
मे भैया के गले लग गया और उन्हें थॅंक्स बोला..
जब मे उनके गले लगा तब उन्हें पता चला कि मे उनसे भी 2” लंबा हो गया हूँ.. तो भैया हँस कर बोले.. सच में तू बुलेट चलाने लायक हो गया है..!
तभी रामा दीदी बोल पड़ी… भैया मे भी चलूं आपके साथ.. ? मुझे भी कुच्छ शॉपिंग करवा दीजिए ना .. प्लीज़..!
भाभी – हां देवेर्जी.. बेचारी का मन भी बहाल जाएगा.. एक-दो दिन दोनो बेहन भाई शहर घूम लेंगे.. और उसे भी कुच्छ दिलवा देना..
भैया ने हामी भर दी.. और भाभी ने शाम को बाबूजी से भी पर्मिशन ले ली.
अकेले में मेने भाभी को गोद में उठाकर पूरे घर का चक्कर लगा डाला…
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
एक साथ हम दोनो के मूह से मस्ती भारी आहह…. फुट पड़ी…
उफफफफफफफफफफफ्फ़…. इतना मज़ा…. ! भाभी आधे लंड को लेकर अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगी मानो वो उसे मथकर उसमें से रस निकालना चाहती हो…..
मेरे सब्र का बाँध टूट गया , और मेने उन्हें पलग पर लिटा दिया, टाँगे हवा में उठाकर एक भरपूर ताक़तवर धक्का जड़ दिया…
एक बार फिर एक दर्द की लहर सी मेरे लंड से उठी, जो मज़े के आलम में कन्हि खो गयी, उधर भाभी भी अपने होठों को कसकर दवाए अपने दर्द को पी गयी..
हम दोनो ही मस्ती के ऊडन खटोले में बैठ कर दूर आसमानों में उड़ चले…
कमरे में हमारी जांघों की थप सुनाई दे रही थी… मेरे ताक़तवर धक्कों के बावजूद भी भाभी कुच्छ ना कुच्छ बोलकर मुझे और उत्साहित कर रही थी..
जब एक ही मुद्रा में हमें काफ़ी देर हो गयी.. तो भाभी ने हाथ के इशारे से रुकने को कहा…
फिर मुझे अपने उपर से उठा कर वो पलट गयी और अपने घुटने जोड़ कर पलंग पर घोड़ी की तरह निहुर गयी…
अब उनकी मस्त 38” की गद्देदार कसी हुई गांद मेरे सामने थी, जिसे देखकर मे अपना आपा खो बैठा और उनके एक चूतड़ को काट लिया…
आअहह…..काटो मत…जानुउऊ…, वो दर्द से तडपी..तो मेने उस जगह को चूमा और फिर उनके दोनो चुतड़ों को बारी-बारी से चाटने लगा…
अपना मूह उनकी मोटी गांद में डाल दिया और उनकी चूत और गांद के छेद को चाटने लगा…....
आह्ह्ह्ह… अब अपना मूसल डालो मेरे रजाआा… क्यों तड़पाते हूओ…
भाभी की हालत मुझसे देखी नही गयी और मेने पीछे से अपना लंड उनकी चूत में पेल दिया…
ईईीीइसस्स्स्स्शह……हइईईईई….रामम्म्मममम….अब छोड़ूऊ…लल्लाआ….. आराम सीईए….उफफफफफफफफफफफ्फ़….. कितना मज़ाअ देतीई हूऊ…तुम… मुझे अपना गुलामम्म्म.. बनाआ.. लियाअ…
जी करता है, इसे हर समय अपनी मुनिया में ही डाले रहूं….डालोगे नाआ….!
ये अब आपका ही है….भाभिईीईई….जब चाहो…पकड़ के डाल लएनाअ….हुउन्न्ह…
मेरी जांघे तपाक से उनके भारी चुतड़ों पर पड़ने लगी… कभी-2 मे उनकी गांद मसल देता, तो कभी उनके चुतड़ों पर थप्पड़ जड़ देता…
भाभी और ज़ोर्से चोदने को बोलती…मेरे शरीर से पसीना निकलने लगा… लेकिन चुदाई…चरम…पर पहुँचती जा रही थी…
आधे घंटे की धुँआधार चुदाई के बाद हम दोनो एक साथ ही झड़ने लगे…भाभी की यौनी से लगातार कामरस बरस रहा था…
झड़ने के बाद वो पलंग पर औंधी पसर गयी और में उनकी पीठ पर लड़ गया..
10-15 मिनिट हम ऐसे ही बेसूध पड़े रहे और अपनी उखड़ी हुई साँसों को इकट्ठा करते रहे…
हमारा मस्ती भरा ये खेल सुबह के 4 बजे तक यूँही चलता रहा, फिर थक कर चूर हम एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर सो गये…
सुबह 7 बजे रामा दीदी ने दवाजा खटखटाया… तब जाकर भाभी की नींद खुली..उन्होने अंदर से ही आवाज़ देकर कहा…
अभी थोड़ी देर में आती हूँ, रूचि को दूध पिलाकर….!
फिर भाभी ने अपने कपड़े पहने, मुझे झकज़ोर कर जगाया.. जब में जाग गया तो वो बोली –
लल्ला.. तुम कपड़े पहनो, में बाहर निकल कर देखती हूँ, रास्ता साफ देख कर बाहर निकल जाना …
रामा पुच्छे तो कह देना कि जल्दी जाग कर वॉक पर गया था.. ओके..
इस तरह से भाभी ने मेरे जन्म दिन का ये अनौखा तोहफा देकर मुझे जिंदगी भर के लिए अपना बना लिया…
वैसे तो वो मेरा हर तरह का ख्याल रखती ही थी, बस यही काम वाकी था, सो वो भी पूरा हो गया था..
अब वो मेरे लिए मेरी मा से भी बढ़कर मेरी ज़रूरत बन चुकी थी..
मेने अपने नये खुले डिग्री कॉलेज में ही अड्मिशन ले लिया था, जिससे अब मे हमेशा भाभी के पास ही रह सकता था…
एक दिन छुट्टी का दिन दोनो भाई आए हुए थे मेने भाभी को अपनी एक डिमॅंड पहले ही बता दी थी…
सो जब रात को सभी एक साथ बैठ कर खाना खा रहे थे कि भाभी ने भूमिका बनाते हुए बात शुरू की..,
भाभी, भैया से बोली - सुनो जी..! मे क्या कह रही थी.. कि यहाँ घर पर एक बाइक और होनी चाहिए…,
स्कूटी तो रामा के लायक ही है.. छोटू लल्ला अब बड़े हो गये है.. कॉलेज भी जाते हैं.. तो मे चाहती हूँ उनके लिए एक मोटर बाइक ले देते तो…
भाभी की बात से सभी खाना रोक कर उनकी ओर देखने लगे…! सबको यूँ अपनी ओर देखते पा, भाभी कुच्छ हड़बड़ा गयी…
फिर कुच्छ संभाल कर बोली – क्या मेने कुच्छ ग़लत कह दिया..?
बड़े भैया – तुम्हें लगता है कि ये बाइक चला लेगा.. स्कूटी तो ढंग से आती नही अभी तक…..
तभी तपाक से रामा दीदी बोल पड़ी – क्या फ़र्राटे से स्कूटी चलाता है छोटू… और आपको पता है भैया, एक दिन तो अपने दोस्त की बुलेट लेके घर आया था..
दोनो भैया जो शायद अभी तक मुझे बच्चा ही समझ रहे थे… चोंक पड़े…और दोनो के मूह से एक साथ निकला… क्या बुलेट..चला लेता है ये..?
मे – हां भैया.. उसमें क्या है.. वो तो और आसान है चलाने में..
बड़े भैया – तो मोहिनी तुमने बाबूजी से पुछ लिया है..?
भाभी – बाबूजी मेरी बात कभी नही टालते.. उनकी गॅरेंटी मे लेती हूँ.. पर देखो ना…,
जिसका एक भाई असिस्टेंट प्रोफेसर, और दूसरा डीएसपी, उनका छोटा भाई लड़कियों वाली स्कूटी से कॉलेज जाए.. अच्छा नही लगता ना…!
छोटे भैया ताव में आकर बोले – तो ठीक है भाभी.. मेरी तरफ से छोटू के लिए बाइक तय… बोल भाई कोन्सि चाहिए…?
भाभी तपाक से बोली – बुलेट… !
बड़े भैया – क्या..? मोहिनी तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है.. जानती हो बुलेट की कितनी कीमत है..!
भाभी – अब डीएसपी साब दिलवा रहे हैं… तो इससे कम क्या होनी चाहिए.. क्यों बड़े देवर जी… मे सही कह रही हूँ ना..!
छोटे भैया – अब भाभी का हुकुम सर आँखों पर…
ठीक है छोटू, कल मेरे साथ चलना, अपने शहर से तुझे एक नयी बुलेट डेलक्स दिलवा देता हूँ… अब खुश..?
मे भैया के गले लग गया और उन्हें थॅंक्स बोला..
जब मे उनके गले लगा तब उन्हें पता चला कि मे उनसे भी 2” लंबा हो गया हूँ.. तो भैया हँस कर बोले.. सच में तू बुलेट चलाने लायक हो गया है..!
तभी रामा दीदी बोल पड़ी… भैया मे भी चलूं आपके साथ.. ? मुझे भी कुच्छ शॉपिंग करवा दीजिए ना .. प्लीज़..!
भाभी – हां देवेर्जी.. बेचारी का मन भी बहाल जाएगा.. एक-दो दिन दोनो बेहन भाई शहर घूम लेंगे.. और उसे भी कुच्छ दिलवा देना..
भैया ने हामी भर दी.. और भाभी ने शाम को बाबूजी से भी पर्मिशन ले ली.
अकेले में मेने भाभी को गोद में उठाकर पूरे घर का चक्कर लगा डाला…
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…