03-08-2020, 01:24 PM
लग गया फागुन
" दीदी , फागुन का पहला दिन कब है " और उन्होंने बोला पता चल जाएगा तुझे खुद ही ,...
और सच में पता चल ... गया।
मैंने बताया था न की सुबह की चाय मुझे बेड रूम में ही मिलती थी , और बनाता कौन था , ...ये और कौन ,... मुझे तो रात भर रगड़ के रख देते थे , एकदम कचर कर और मैं उठने की हालत में नहीं रहती थी , ...
लेकिन ये भी बात है , चाय अच्छी बनाते थे ,
पर जब ये ट्रेनिंग के लिए गए तो ये काम शिफ्ट हो गया , ...
मेरी जेठानी , ...
रात तो बस ऐसी ही गुजर जाती , कभी थोड़ी बहुत नींद आती कभी वो भी नहीं , ... और सुबह उठ कर , फ्रेश हो कर सीधे नीचे किचेन में , जहां मेरी जेठानी चाय बनाती रहतीं , ...
तो जब ट्रेनिंग ख़तम कर के ये आये तो भी सुबह का मेरे चाय का सिलसिला नीचे ही चलता रहा , ये तो रात भर दंड बैठक लगा कर सुबह घोड़े ( मेरा मतलब मेरी ननदें ) बेच कर सोते रहते , ...
और मैं नीचे जेठानी जी के साथ , दस मिनट की चाय कम से कम डेढ़ घंटे में पूरी होती ,
और अक्सर ये भी नीचे आ जाते ,
कभी इनके आने के पहले रात के नोट्स हम लोग कम्पेयर करते तो कभी , बल्कि अक्सर हम लोगों की की ननद , इनके एलवल वाले माल की बात होती और इनके आने के बाद तो एकदम , बस वही एक बात , ... इनकी हम दोनों मिल के खिंचाई करते ,
बस इनकी ममेरी बहन का नाम इनसे जोड़ जोड़ के ,
उस दिन भी , मैं नीचे आगयी थी , फ्रेश भी वहीँ हुयी , ब्रश किया , ... रात से ऊपर हम लोगों के बाथरूम में पानी नहीं आ रहा था। और जेठानी जी ने मुझसे कहा की वो थोड़ी देर में आ रही हैं , कुछ अपने आँचल में छुपाये हुए थीं
चाय मैं आज बना लूँ ,...
बीस पचीस मिनट में आ गयीं वो ,
और उसके बीस पचीस मिनट के बाद उनके देवर और आते ही बरामदे में लगे वाश बेसिन के पास , ब्रश करने के लिए ,
और बड़ी तेजी से कम्मो की हंसी सुनाई पड़ी ,
कम्मो बताया तो था , मेरे ससुराल में जो काम वाली काम करती थी , उसकी बहु , एकदम घर की तरह , ... काम वाली तो महीने भर के तीरथ पर , तो रिश्ते से इनकी भौजी लगती , मुझसे खूब पटती थी उसकी , ...
ननदों की रगड़ाई करने के मामले में , 'असली ' वाली गारी गाने के लिए और सब बढ़ कर इन्हे छेड़ने के लिए ,
उसकी शादी के चार पांच साल हो गए थे , लेकिन मरद पंजाब कमाने गया था , डेढ़ दो साल में एक बार आता था ,
कभी कभी मैं और जेठानी जी उसे चिढ़ाती थीं की तेरा काम कैसे चलता है ,
तो वो हंस के बोलती , अरे इतने देवर हैं , क्या खाली ननदों के साथ कबड्डी खेलने के लिए बने हैं , ... और इनसे भी उसका रिश्ता देवर भौजाई का ही था ,...
एकदम खुल के इन्हे छेड़ती भी थी ,
तो वो जोर जोर से हंस रही थी और ये शीशे में अपने को देख रहे थे ,
मैं भी बाहर निकली तो इन्हे देख कर हंस हंस कर , ...
मेरे साथ जेठानी जी भी , लेकिन वो ज़रा भी नहीं हंसी , खाली मुझसे बोली ,
" आज फागुन लग गया "
और इन्हे जोर से हड़काया , ... खबरदार जो ज़रा सा भी छुड़ाया , ... इत्ते मुश्किल से आधे घंटे में लगाया है ,...
सच में जेठानी ने उनकी मस्त धजा बनाई थी , ...
खूब चौड़ी सीधी मांग में भरा छलकता हुआ , खूब भरा सिन्दूर , ... नाक पे झरता
( मुझे अपनी पहली दिन की बात याद आयी , जब सुहागरात के लिए मैं जा रही थी कर सासू जी का पैर छू रही थी , मेरी मांग में खूब कस के सिन्दूर भरा था , ... वो बोलीं , नयी नयी दुल्हिन की पहचान यही है , मांग में सिंदूर दमकता रहे , झड़ता रहे , ...और साथ में बैठी मेरी बुआ सास ने जोड़ा , एकदम नयी दुल्हिन की मांग से सिन्दूर झरे और बुर से सड़का , यही असली पहचान है )
और माथे पे एक चौड़ी से टिकुली , खूब लाल लाल , ... आँखों में काजल और गाल
एक गाल अच्छी तरह से कालिख से रगड़ रगड़ कर एकदम उनका गोरा गोरा गाल काला उनकी भौजाई ने कर दिया था और दूसरा गाल व्हाइट पेण्ट से बार्निश ,
अब मैं समझी रोज रात को कढ़ाही और भगोने की कालिख क्यों वो रोज रोज के छुड़ाती थीं ,
होंठों पर मेरी ही लाल लिपस्टिक ,
दीदी ( मेरी जेठानी ) मुझसे मुस्करा के बोलीं ,
" पता चल गया न फागुन का पहला दिन , ... "
" एकदम दीदी , शुरुआत ऐसी है तो ,... "
लेकिन मेरी बात ख़तम होने के पहले ही उनकी तेज निगाह अपने देवर पर पड़ी , जो वाश बेसिन के सामने मुंह धोने की कोशिश कर रहे थे ,
" खबरदार जो रंग छुड़ाने की कोशिश की , इत्ती मेहनत से रगड़ रगड़ के लगाया है पूरे आधे घंटे। "
उन्होंने अपने देवर को हड़काया।
" दीदी , फागुन का पहला दिन कब है " और उन्होंने बोला पता चल जाएगा तुझे खुद ही ,...
और सच में पता चल ... गया।
मैंने बताया था न की सुबह की चाय मुझे बेड रूम में ही मिलती थी , और बनाता कौन था , ...ये और कौन ,... मुझे तो रात भर रगड़ के रख देते थे , एकदम कचर कर और मैं उठने की हालत में नहीं रहती थी , ...
लेकिन ये भी बात है , चाय अच्छी बनाते थे ,
पर जब ये ट्रेनिंग के लिए गए तो ये काम शिफ्ट हो गया , ...
मेरी जेठानी , ...
रात तो बस ऐसी ही गुजर जाती , कभी थोड़ी बहुत नींद आती कभी वो भी नहीं , ... और सुबह उठ कर , फ्रेश हो कर सीधे नीचे किचेन में , जहां मेरी जेठानी चाय बनाती रहतीं , ...
तो जब ट्रेनिंग ख़तम कर के ये आये तो भी सुबह का मेरे चाय का सिलसिला नीचे ही चलता रहा , ये तो रात भर दंड बैठक लगा कर सुबह घोड़े ( मेरा मतलब मेरी ननदें ) बेच कर सोते रहते , ...
और मैं नीचे जेठानी जी के साथ , दस मिनट की चाय कम से कम डेढ़ घंटे में पूरी होती ,
और अक्सर ये भी नीचे आ जाते ,
कभी इनके आने के पहले रात के नोट्स हम लोग कम्पेयर करते तो कभी , बल्कि अक्सर हम लोगों की की ननद , इनके एलवल वाले माल की बात होती और इनके आने के बाद तो एकदम , बस वही एक बात , ... इनकी हम दोनों मिल के खिंचाई करते ,
बस इनकी ममेरी बहन का नाम इनसे जोड़ जोड़ के ,
उस दिन भी , मैं नीचे आगयी थी , फ्रेश भी वहीँ हुयी , ब्रश किया , ... रात से ऊपर हम लोगों के बाथरूम में पानी नहीं आ रहा था। और जेठानी जी ने मुझसे कहा की वो थोड़ी देर में आ रही हैं , कुछ अपने आँचल में छुपाये हुए थीं
चाय मैं आज बना लूँ ,...
बीस पचीस मिनट में आ गयीं वो ,
और उसके बीस पचीस मिनट के बाद उनके देवर और आते ही बरामदे में लगे वाश बेसिन के पास , ब्रश करने के लिए ,
और बड़ी तेजी से कम्मो की हंसी सुनाई पड़ी ,
कम्मो बताया तो था , मेरे ससुराल में जो काम वाली काम करती थी , उसकी बहु , एकदम घर की तरह , ... काम वाली तो महीने भर के तीरथ पर , तो रिश्ते से इनकी भौजी लगती , मुझसे खूब पटती थी उसकी , ...
ननदों की रगड़ाई करने के मामले में , 'असली ' वाली गारी गाने के लिए और सब बढ़ कर इन्हे छेड़ने के लिए ,
उसकी शादी के चार पांच साल हो गए थे , लेकिन मरद पंजाब कमाने गया था , डेढ़ दो साल में एक बार आता था ,
कभी कभी मैं और जेठानी जी उसे चिढ़ाती थीं की तेरा काम कैसे चलता है ,
तो वो हंस के बोलती , अरे इतने देवर हैं , क्या खाली ननदों के साथ कबड्डी खेलने के लिए बने हैं , ... और इनसे भी उसका रिश्ता देवर भौजाई का ही था ,...
एकदम खुल के इन्हे छेड़ती भी थी ,
तो वो जोर जोर से हंस रही थी और ये शीशे में अपने को देख रहे थे ,
मैं भी बाहर निकली तो इन्हे देख कर हंस हंस कर , ...
मेरे साथ जेठानी जी भी , लेकिन वो ज़रा भी नहीं हंसी , खाली मुझसे बोली ,
" आज फागुन लग गया "
और इन्हे जोर से हड़काया , ... खबरदार जो ज़रा सा भी छुड़ाया , ... इत्ते मुश्किल से आधे घंटे में लगाया है ,...
सच में जेठानी ने उनकी मस्त धजा बनाई थी , ...
खूब चौड़ी सीधी मांग में भरा छलकता हुआ , खूब भरा सिन्दूर , ... नाक पे झरता
( मुझे अपनी पहली दिन की बात याद आयी , जब सुहागरात के लिए मैं जा रही थी कर सासू जी का पैर छू रही थी , मेरी मांग में खूब कस के सिन्दूर भरा था , ... वो बोलीं , नयी नयी दुल्हिन की पहचान यही है , मांग में सिंदूर दमकता रहे , झड़ता रहे , ...और साथ में बैठी मेरी बुआ सास ने जोड़ा , एकदम नयी दुल्हिन की मांग से सिन्दूर झरे और बुर से सड़का , यही असली पहचान है )
और माथे पे एक चौड़ी से टिकुली , खूब लाल लाल , ... आँखों में काजल और गाल
एक गाल अच्छी तरह से कालिख से रगड़ रगड़ कर एकदम उनका गोरा गोरा गाल काला उनकी भौजाई ने कर दिया था और दूसरा गाल व्हाइट पेण्ट से बार्निश ,
अब मैं समझी रोज रात को कढ़ाही और भगोने की कालिख क्यों वो रोज रोज के छुड़ाती थीं ,
होंठों पर मेरी ही लाल लिपस्टिक ,
दीदी ( मेरी जेठानी ) मुझसे मुस्करा के बोलीं ,
" पता चल गया न फागुन का पहला दिन , ... "
" एकदम दीदी , शुरुआत ऐसी है तो ,... "
लेकिन मेरी बात ख़तम होने के पहले ही उनकी तेज निगाह अपने देवर पर पड़ी , जो वाश बेसिन के सामने मुंह धोने की कोशिश कर रहे थे ,
" खबरदार जो रंग छुड़ाने की कोशिश की , इत्ती मेहनत से रगड़ रगड़ के लगाया है पूरे आधे घंटे। "
उन्होंने अपने देवर को हड़काया।