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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
Heart  सना  Heart



मेरा नाम सना है और फिलहाल मैं दिल्ली में ओखला इलाके में रहती हूँ। शादीशुदा हूँ और ओखला में ससुराल है। अब तक जिंदगी दिल्ली में ही गुजरी है और जो भी मजे लिये जा सकते हैं एक जवान जिस्म और उफनती जवानी के साथ … वे सारे ही मैंने लिये हैं।

पहली बार अठारह की उम्र में सेक्स किया जब अपने शरीर में मौजूद उन नशीली तरंगों से परिचित हुई जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। आज मेरी उम्र चौबीस साल है और इस बीच मैंने लगभग हर तरह से अपने शरीर का मजा लिया है।
पहला ब्वायफ्रेंड तो कॉलेज से ही बन गया था और अकेले में दूध दबाने मसलने का सिलसिला शुरू हो गया था। यहां मैं एक बात यह बता दूँ कि मुझे जो सबसे ज्यादा चीजें पसंद हैं, उनमें से एक तो अपने बदन को सहलवाना मसलवाना है और दूसरा लंड को हाथ से धीरे-धीरे सहलाते हुए चूसने का।
यह शौक इस हद तक है कि किसी भी मर्द को देखते ही मेरी कुत्सित निगाहें उसके पैंट में छुपे लंड तक चली जाती हैं और दिमाग इस कल्पना में डूब जाता है कि इसका कैसा होगा और चूसने में कितना मजा आयेगा।
फर्स्ट इयर तक आते-आते बात मेरे जिस्म की सहलाहट मसलाहट से कहीं आगे बढ़ कर सलवार के ऊपर से मेरी चूत रगड़ने मसलने, उंगली करने और मेरे हाथ से मूठ मरवाने तक पहुंच गयी थी जो अपनी पहली चुदाई से ठीक पहले तक लंड चूसने चाटने तक जा पहुंची थी।
मैंने बहुत पोर्न साहित्य पढ़ा था और फिल्में देखी थीं जिससे उनका असर मेरे दिल दिमाग पर बड़े गहरे तौर पर पड़ा था, जिससे मैं सबकुछ वैसे ही करना चाहती थी। एक बार चुद गयी तो जैसे एक नये आनन्द का द्वार खुल गया।
अब कालेज से बंक कर कर के ब्वायफ्रेंड बदल बदल के पार्क में चली जाती थी जहां ज्यादातर वक्त में चुदाई की तो नौबत नहीं आ पाती थी लेकिन दबाई मसलाई और चूत में उंगली तक के खेल के साथ मेरा मनपसंद ओरल जरूर होता था।
यहां तक कि शुरू शुरू में अटपटाने के बाद मैं मुंह में ही झड़वा लेती थी, क्योंकि वहां पौंछने पाछने का कोई इंतजाम भी नहीं होता था।

इक्कीस तक शादी होने की नौबत आई. तब सात सात ब्वायफ्रेंड बदल कर सात लंडों के मजे चख चुकी थी लेकिन शादी के बाद इस सिलसिले पर ब्रेक लग गया था और शौहर पर ही सब्र करना पड़ गया था।
लेकिन हाय री मेरी किस्मत … शौहर भी मिला तो गल्फ वाला। चार महीने यहां तो पौने दो साल कतर में। आये तो अंधाधुँध चुदाई और जाये तो चूत एक लंड को भी तरस के रह जाये।
जिस कहानी का मैं जिक्र कर रही हूँ वह इसी ईद से पहले वाली चांद रात की है। उन दिनों मैं अपनी चुदास के चलते बहुत तपी हुई थी। साल भर हो चुका था उन्हें गये … चुदाई के लिहाज से देखें तो चूत सूख चुकी थी।
मुंह अलग तरसा हुआ था एक अदद लंड के लिये।

इधर अपनी चुल मिटाने के लिये मैं अक्सर एक काम करती थी कि बाजार के दिन नकाब पहन के अकेली ही खरीदारी करने बाजार चली जाती थी। दिल तो करता था कि बिना अंदर कोई और कपड़ा पहने सिर्फ नकाब पहन कर ही बाजार चली जाऊ और हर तरह के मर्दाने स्पर्श का मजा ले आऊं लेकिन ससुराल में यह काम थोड़ा ज्यादा रिस्क वाला था।
आप दिल्ली के हैं तो आपको पता होगा कि हफ्ते के अलग-अलग दिन में अलग-अलग इलाकों में बाजार लगती है जहां काफी भीड़ भाड़ होती है और यहां हाथ और लंड सेंकने के चक्कर में काफी चालू लौंडे भी हर हाल में पहुंचते ही पहुंचते हैं।
तो मेरे इलाके में बटला हाऊस में संडे को बाजार लगती है और मैं खास इसी इरादे से बाजार चली जाती थी कि शौकीन लौंडों के हाथों से दूध और चूतड़ सहलवा दबवा और रगड़वा लेती थी जिससे थोड़ी चुल तो शांत हो जाती थी … बाकी गर्मी रात को उंगली कर के निकाल लेती थी। खास इस मौके पर न मैं ब्रा ही पहनती थी और न ही पैंटी, जिससे भरपूर टच मिल सके।
तो चांद रात को भी यही हुआ था … उस दिन बाजार में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि एकदम सट-सट के चलना पड़ रहा था। किसका हाथ टच हो रहा, किसका लंड … ठीक से अहसास ही नहीं हो पा रहा था।
मैं उस वक्त एक दुकान पे कुछ देख कर हटी ही थी कि पीछे से किसी हाथ का अहसास हुआ जो कमर पर था। अंदाज ऐसा ही था जैसे चलते-चलते लोगों के अनजाने में लोगों के पड़ जाते हैं और लगा कि कमर पे हाथ रखने वाला जगह बना के आगे निकल जायेगा।
लेकिन वह सट कर कंधे से कंधा रगड़ता चलने लगा। मैंने कनखियों से देखने की कोशिश की लेकिन बस इतना ही देख पाई कि कोई जवान युवक था।
एक बार तो मेरा रियेक्शन जांचने के लिये उसने हाथ कुछ सेकेंड रखने के बाद हटा लिया था लेकिन मेरे कोई नोटिस न लेने पर उसने हाथ फिर टिका दिया था और भीड़ में लगभग सरकते हुए साथ ही चलने लगा था।
फिर उसका हाथ कमर से नीचे सरकते हुए चूतड़ों तक पहुंच गया। पहले तो एकदम अजीब सा लगा लेकिन अगले पल में जैसे ही मन ने उस स्पर्श को स्वीकार किया, एकदम से मादक सी सनसनाहट पूरे शरीर में फैल गयी।
उस सरसराहट को उसने भी महसूस किया होगा … शायद इसीलिये कुछ सेकेंड थमा था कि मैं पलट के कुछ रियेक्ट करूँगी लेकिन मैंने कुछ रियेक्ट नहीं किया। भले मेरी सांसें भारी हो गयी हों।
इससे उसने मेरी मौन सहमति का अंदाजा लगा लिया और जैसे उसकी मुंह मांगी मुराद मिल गयी हो। वह चूतड़ों को दबाने रगड़ने लगा और अपनी उंगलियां चूतड़ों की दरार में धंसाने लगा। उसे अहसास हो चुका था कि मैंने पैंटी नहीं पहनी।
मैं गनगना उठी।
वह मेरी गांड के छेद पर टच कर रहा था और अपनी उंगलियों को चूत के निचले हिस्से तक पहुंचा रहा था। यहां मैं एक बात यह भी बता दूँ कि मुझे अपने दोनों छेदों से मजा लेने का शौक है तो पीछे के छेद पर कोई स्पर्श भी मुझे उतना ही गर्म कर देता है जितना आगे के छेद पर और मैं गीली हो जाती हूँ।
मेरी मूक सहमति जान कर वह मेरे पीछे हो गया और मेरे चिपक कर चलने लगा।
इतना तो मैंने देख लिया था कि उसने कॉटन का पजामा पहना हुआ था और शायद मेरे जैसे शिकार का मजा लेने ही आता था तो नीचे अंडरवियर भी नहीं पहने था क्योंकि जब उसने खुद को मुझसे सटाया था तो मुझे उसके खड़े, कड़े और गर्म लंड का बिल्कुल साफ अहसास हुआ था।
मैंने सलवार कुरता और ऊपर से बुर्का पहना हुआ था जिससे चेहरा भी कवर कर के रखा हुआ था … बस मेरी आंखें ही देखी जा सकती थीं।
थोड़ी देर बुर्के के ऊपर से ही मेरे चूतड़ों की दरार में अपना लंड सटाये भीड़ में मुझे आगे ठेलता रहा। फिर नीचे से बुर्के को चूतड़ तक ऊपर उठा दिया और फिर सलवार के ऊपर से दोनों चूतड़ों के बीच अपना लंड गड़ा दिया।
इस पल में मुझे थोड़ा डर जरूर लगा कि कहीं सलवार ही न नीचे कर दे और भरी बाजार मेरे चांद जैसे चूतड़ अनावृत हो जायें लेकिन जब उसने ऐसा नहीं किया तो मेरी जान में जान आई।
इससे उसकी हिम्मत थोड़ी और बढ़ गयी और उसने लंड मेरे चूतड़ों पर दबाये एक हाथ से आगे मेरी जांघ पर दबाव बना लिया और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को दबाना मसलना शुरू कर दिया।
हाय …. कब से तरसी हुई थी मैं। दिल किया कि वहीं वह मुझे चोद दे। मैं महसूस कर सकती थी कि मेरी चूत बुरी तरह गीली हो कर बहने लगी थी।
“मजा आ रहा है न जानेमन?” उसने अपना मुंह मेरे कान से सटाते हुए फुसफुसा कर कहा।
तब पहली बार मैंने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा। सिग्रेट की महक मेरे नथुनों तक पहुंची जो मुझे हमेशा अच्छी लगती थी। कोई खास अच्छा तो नहीं पर कबूल सूरत युवक था।

नकाब के पीछे बंद मेरे होंठ मुस्कराये थे जो वह नहीं देख पाया होगा लेकिन होंठ के साथ मेरी आंखें भी मुस्कराई थीं जो उसने अवश्य महसूस कर ली होंगी। तभी नीचे वाले हाथ से उसने मेरी चूत दबाई थी।
मेरे शरीर का समर्पण, मेरी भावभंगिमा उसे संदेश दे रही थी कि मैं क्या चाहती थी और उसे वह संदेश कैच करने में कोई अड़चन नहीं थी।
वह मुझे अपने हिसाब से ठेलता हुआ बाजार से सट कर अंदर जाती एक छोटी, संकरी गली में ले आया जो एक दुकान का पिछवाड़ा भी था। उधर अंधेरा ही था और दुकान के पार होती बाजार की रोशनी की वजह से ही बस देख पाने की गुंजाइश भर थी।
देखकर लगता नहीं था कि उधर कोई आम रास्ता था कि लोग गुजरें लेकिन फिर भी रिस्क तो थी ही … फिर भी दिमाग पर इस हद तक गर्मी चढ़ी थी कि मैं वहां भी चुदने के लिये तैयार थी और मेरी हालत यह हो रही थी कि मैंने सोच लिया था कि और कोई भी आ गया तो उससे भी चुदवा लूंगी।
उसने एकदम कोने में मुझे दीवार से सटा लिया कि दूर से कोई देख भी न सके और बड़ी बेरहमी से मुझे चूमने रगड़ने लगा। होंठ चुसाने के लिये मैंने चेहरे से ढाटा खिसका कर नीचे कर लिया था और वह बुरी तरह मेरे होंठों को चूसते एक हाथ से मेरे छत्तीस साईज के दूध मसलने लगा तो दूसरे हाथ से मेरी चूत को ऊपर से ही रगड़ने लगा।
उसने टीशर्ट और पजामा पहन रखा था … मैंने भी एक हाथ उसके पजामे के अंदर डाल दिया और उसके कड़े तनतनाये लंड को पकड़ कर रगड़ने लगी। साईज अच्छा था लेकिन झांटे काफी बढ़ा रखी थीं उसने जो मुझे पसंद नहीं लेकिन फिलहाल उनकी तरफ ध्यान देने का वक्त नहीं था।
उसने नकाब के ऊपर से ही गले के अंदर साथ डाल दिया था और घुंडियों समेत दोनों दूधों को मसलने लगा था। उसका तो पता नहीं पर मैं समझ सकती थी कि हमारे पास बहुत कम वक्त था और कभी भी कोई उधर आ सकता था। मैंने खुद से नीचे होना शुरू किया और उसका हाथ गले से बाहर निकल गया।
पहले शायद वह समझ न सका कि मैं क्या चाहती थी इसलिये वह भी साथ झुका लेकिन मैंने उसे रोकते हुए दोनों हाथों से उसके पजामे को सामने की तरफ से इतना नीचे खींचा कि उसका लंड अंडकोषों समेत बाहर आ गया।
उफ यह नियामत …. कम रोशनी में भी लंड देखते ही मेरे मुंह में पानी आ गया और मैंने उसे लेने में देर नहीं लगाई। वह भी पानी छोड़ रहा था। मस्त स्वाद था … मैं किसी पोर्न स्टार की तरह उसका लंड चूसने लगी। बीच बीच में उसके टट्टों भी मुंह में ले लेती थी। हालाँकि उसके बढ़े हुए बाल भी मुंह में आ रहे थे जो मुझे खराब लग रहे थे लेकिन उस वक्त उत्तेजना इस कदर हावी थी कि मैं उन्हें नोटिस ही नहीं करना चाहती थी।
वह भी मेरी तरह पहले से ही काफी गर्म था और इस तरह की जबरदस्त लंडचुसाई से उसकी हालत खराब हो गयी। “बस कर … निकलने वाला है।” वह मेरे सर को दूर करने की कोशिश करता हुआ कसमसाया।
लेकिन मैंने दोनों हाथों से उसके चूतड़ दबोच लिये थे जिससे वह मेरे सर को दूर न कर सका और उसके लंड ने एकदम से फूल कर ढेर सा वीर्य उगल दिया।

यह मेरे लिये कोई नयी बात नहीं थी। पहले शुरुआती दौर में भले खराब लगता रहा हो पर अब तो वीर्य का टेस्ट अच्छा ही लगता था। मैंने उसे मुंह मे लिये तब तक चपड़-चपड़ करती रही, जब तक आखिरी बूंद भी मेरे गले न उतर गयी। वह खुद झड़ने के टाईम एकदम तन कर फिर ढीला पड़ गया था।
तभी ऐसा लगा जैसे कुछ लोग बातें करते उधर आ रहे हों। मैं तो बैठी ही रही और वह मेरे सामने ऐसे खड़ा हो गया जैसे कोने में पेशाब कर रहा हो।
कुछ लोग उधर से गुजरे थे और शायद उन्होंने उसे देखा भी हो लेकिन रोशनी इतनी पर्याप्त नहीं थी कि सही से सब देख सकते … या देख भी लिया हो पर कुछ कहने की हिम्मत न पड़ी हो, कहा नहीं जा सकता।
बहरहाल … वे गुजर गये तो सन्नाटा फिर छा गया।

मैं फिर उसके मुर्झा चुके लंड को चूसने लगी और साथ ही उसकी गोलियों को सहलाने दबाने लगी। नया बदन था, नया स्पर्श था … कोई खास टाईम नहीं लगा और वह लकड़ी की तरह फिर तन गया।
अब मुझे अपना पानी निकालना था तो मैं खड़ी हो गयी। नीचे से नकाब को उठाते हुए नाड़ा खोला और दीवार की तरफ मुंह किये झुक गयी। कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं थी।

ऐसे मौके और ऐसी जगह यही इकलौती सुविधा थी, जिसे समझने में उसे भी देर न लगी और उसने पीछे से नकाब को उठा कर कमर पर कर दिया और सलवार नीचे खिसका दी कि पीछे से चूत खुल जाये।
फिर मैंने मेरे थूक से गीला उसका कड़ा लंड अपनी चूत की दीवारों पर दबाव डालते अंदर घुसते महसूस किया। वह पहले से ही इतनी गीली थी कि ज्यादा अवरोध न कर सकी और आगले पल में ही समूचे लंड को अंदर निगल लिया। मैंने खुद से चूतड़ पीछे धकेलते उसे धक्के लगाने का संकेत किया और वह दोनों हाथ से मेरी कमर पकड़ कर धक्के लगाने लगा। उस जगह में दूर होते बेतरह शोर के बावजूद भी फच फच मेरे कानों में रस घोलने लगी।
यहां चूँकि मैं पहले से काफी गर्म थी तो लंड के यूं ताबड़तोड़ घर्षण ने मुझे तीन मिनट में ही झड़ा दिया लेकिन वह एक तो झड़ चुका था और दूसरे जगह ऐसी कि किसी के भी आ जाने का डर था जो अब उसकी उत्तेजना पर हावी हो रहा था। वह धक्के लगाता रहा और मैं फिर से गर्म होने लगी।
गनीमत यह रही कि इस बीच उधर कोई आया नहीं और फिर वह टाईम भी आया जब उसके लंड ने फूल कर चूत के अंदर ही वीर्य उगल दिया।

मुझे फिलहाल अंदर झड़वाने से प्राब्लम नहीं थी। वह झड़ चुका तो उसने लंड बाहर निकाल लिया और मेरी सलवार में ही पौंछ दिया।
मौके की नजाकत देखते हुए मैंने भी कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा और सीधे खड़े होते सलवार का नाड़ा बांधते नकाब नीचे गिरा लिया। मेरी चूत में भरा उसका वीर्य बह कर मेरी जांघों पर आ रहा था पर मुझे उसकी परवाह नहीं थी। मैं अब जल्दी से जल्दी वहां से हट जाना चाहती थी।

उसने मोबाइल निकाल कर मेरा नंबर मांगा … मैंने एक गलत नंबर थमा दिया। इस टाईप के मनोरंजन घर से दूर रहें, वही ठीक है। मेरी पर्सनल लाईफ है और मैं इस सब से किसी भी तरह उसे नहीं इफेक्ट करना चाहती।
उससे पीछा छुड़ा कर मैं बाजार में घुसी और पंद्रह मिनट बाद वापस घर पहुँच गयी। जो मकसद था मेरा … वह हल हो गया था।
ईद कल थी लेकिन मेरी ईद आज ही हो गयी थी … मेरी चूत में उस लंड का अहसास पूरी रात बना रहा। बस यहीं मेरी चांद रात की कहानी खत्म होती है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Pahli bar bahan k sath picnic - by neerathemall - 14-02-2019, 03:18 AM
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