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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
मेरी सारी बातें जानने के वजह से उन्होंने मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहा, बस इतना बताया कि तुम्हारे जेठ इस तरह की किताबें पढ़ते हैं और हर रात तुम्हारी भाभी को अलग-अलग आसनों से चोदते हैं।

यह सब सुनकर मेरी चूत गीली होने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं अपने रूम में चली आई और सोचने लगी कि कितनी धन्य होंगी वो औरतें जिन्हें बढ़िया से चोदने वाले पति मिले होंगे।

कुछ दिनों के बाद मेरे यहाँ दो लोग किराये पर रहने के लिए आए जो कि स्टूडेंट थे।

एक का नाम यश और दूसरे का राज। दोनों ही शरीर से स्वस्थ और मांसल थे।

दोनों ही स्वभाव से अच्छे थे। धीर-धीरे हमसे मेल-जोल बढ़ने लगी तथा हम लोग खुल कर बातें करने लगे।

मेरे अन्दर की आग शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

मेरी नजरें बातें करते हुए अक्सर उनके लण्ड को ऊपर से ही पढ़ने की कोशिशें करने लगतीं।

मेरा बातों-बातों में अक्सर मुस्कुराना, मेरी पहाड़ की तरह उठी हुई चूचियों और पीछे की तरफ उठे हुए नितम्ब की तरफ धीरे-धीरे उनका भी ध्यान होने लगा तथा मेरी ओर उनकी रूचि बढ़ने लगी।

एक दिन जब मैं किसी काम से उनके रूम में गई तो देखा कि जय सिर्फ कच्छे में ही सोया था और बीच वाले कटे हुए जगह से उसका मोटा और लम्बा लण्ड बाहर की तरफ निकला हुआ था और वो नींद में था।

मैं शरमाकर जल्दी ही बाहर चली आई, लेकिन उसका लम्बा और मोटा लण्ड मुझे भूल नहीं रहा था। मैं सोचने लगी, काश मेरे पति के पास भी ऐसा ही होता तो मेरी जवानी कितनी तृप्त होती।

अब जब भी वो मिलता मैं उसे चाह भरी नज़रों से देखने लगी, वह भी मेरी नज़रों को पहचान गया था।

एक दिन जब घर में कोई नहीं था और लाइट चली गई। वो कुछ माँगने के बहाने मेरे रूम में आया। मैं उस समय सिर्फ साये और ब्रा में थी।

उसने मुझे देखा तो उसका लण्ड खड़ा हो गया, फिर भी उसने बाहर जाने की कोशिश कि तो मैंने सही समय समझकर उसे टोका, “यहाँ आओ अपना काम तो बताओ।”

यह कहकर जैसे ही मैं उसकी और बढ़ी उसकी नजरें मेरी बड़ी-बड़ी चूचियों पर जाकर टिक गईं।

मैं उसके पैंट के अन्दर से उफान मार रहे लण्ड की तरफ देखने लगी।

हम दोनों एक दूसरे में खोने लगे।

शादी न होने के वजह से उसकी भूख भी साफ़ दिखाई दे रही थी।

उसने मेरी चूचियों को पीछे से आकर पकड़ लिया।

मैंने भी छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं कि उसका लिंग अभी भी मुझे याद था, इसलिए चूत के घायल होने की चिंता भी थी।

लेकिन चुदाई की इच्छा सब पर भारी पड़ रही थी। एक हाथ उसका मेरी चूचियों पर तथा एक मेरी चूत की तरफ था।

मैंने भी साहस कर के उसका तम्बू की तरह उभरा लिंग पकड़ किया।

अब सब कुछ साफ़ था, वह भी अब समझ चुका था कि अब मेरी तरफ से कोई बाधा नहीं

है।

मेरी चूत गीली होने लगी।

उसने मेरा साया ऊपर की तरफ उठा दिया जिससे मेरी चूत जो कि काले झांटों से ढकी हुई थी, उसके सामने आ गई।

अब उसने आव देखा न ताव, झट से मुझे अपनी और खींचते हुए अपने पैंट के ऊपर ही मुझे बैठा लिया।

उसका उभरा हुआ लण्ड मुझे नीचे से स्पष्ट अनुभव हो रहा था।

मैंने भी यह सोच लिया था कि आज सारी शर्म छोड़ कर जम कर चुदूँगी, मैंने उससे कहा- मेरी चूत तो तुमने देख ली, अब अपना तो दिखाओ।

यह सुनकर उसने अपनी पैंट का जिप खोलकर अपना मूसल जैसा लण्ड बाहर निकाला, जो कि मेरी चूत को फाड़ने के लिए एकदम उतावला था।

उसने मुझे एक मंजे हुए आदमी की तरह से घोड़ी बनाया और पीछे से मेरी चूत को सहलाते हुए अपना लिंग लाकर उस पर टिका दिया।

मेरी चूत पहले से ही गीली होने के वजह से उसके सामने तैयार थी, उसको अपने अन्दर लेने के लिए।

जब उसने सटाकर जोरदार धक्का लगाया तो मेरी तो 'आह' निकल गई।

मैंने उससे कहा- धीरे से डालो न ! यह तुम्हारे लण्ड को झेलने में अभी नाकाबिल है, धीरे-धीरे ही करना, कोई जल्दी नहीं है। जब तक मेरे यहाँ हो, मेरी चूत हमेशा तुमसे चुदाने के लिए तैयार मिलेगी।

उसने मेरी चूत में धीरे-धीरे अपना पूरा लण्ड सरका दिया।

पहले से चुदने के लिए मानसिक रूप से इसके लिए पूरी तरह से तैयार थी। अब अंदर-बाहर कर के उसने मुझे चोदना शुरू कर दिया।

मैं भी उसका साथ देने लगी।

आज मुझे असली लण्ड की मार का पता चला।

मेरी चूचियाँ भी उससे हो रही चुदाई को उछल-उछल कर सलाम कर रही थीं।

लगभग 20 मिनट तक उसने मुझे कुतिया बना कर हचक कर चोदा। मेरी चूचियों को वो अपने हाथों से ऐसे मसल रहा था जैसे वे रसीले आम हों।

उससे चुद कर मुझे वास्तव में चुदाई के आनन्द का अनुभव हुआ। मैं उससे चुदते समय एक बार झड़ चुकी थी पर उस के लंड को तो मानो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।

अचानक उसने मुझसे चिपकते हुए जोर-जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।

उसके मुँह से बड़बड़ाने की आवाजें निकलने लगीं, “हा हा आई मैं जा जा रहा हूँ भाभी ई ई ले मेरा पूरा माल पी ले।”

और वो झड़ गया। मेरी पीठ से चिपक कर उसने अपने वीर्य की आखिरी बूँद तक मेरी चूत में छोड़ दी।

फिर हम दोनों अलग हुए।

सच में बहुत मज़ा आया उस दिन ...
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Pahli bar bahan k sath picnic - by neerathemall - 14-02-2019, 03:18 AM
RE: पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ - by neerathemall - 05-03-2019, 01:10 AM
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