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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
दीदी बेड पर बुरे तरीके से तड़प रही थी. अनन्त का लंड बेड के पायदान की लकड़ी पर छू कर बार-बार लग रहा था. उसके लंड में अभी वह पहले जैसा तनाव नहीं था जबकि विनय जीजू का लंड अपने पूरे उफान पर था. उनका लंड किसी डंडे की तरह तनकर कुसुम दीदी के हलक में जाकर लगता हुआ दिखाई दे रहा था. उसके बाद विनय जीजू ने अचानक ही अपने लंड को दीदी के मुंह से निकाल लिया और विनय के हटते ही अनन्त ने भी अपनी जीभ दीदी की चूत से निकाल दी.

अब विनय जीजू दीदी की चूत के पास आ गए थे और अनन्त कुसुम दीदी के मुंह की तरफ चले गए थे. अनन्त के पास जाते ही दीदी ने उसके लंड को पकड़ लिया और अपने हाथ में लेकर उसको सहलाना शुरू कर दिया. कुछ ही पलों के बाद अनन्त का लंड फिर से अपने पहले जैसे तनाव में आकर दीदी के हाथ में भर गया. अनन्त ने दीदी के दोनों तरफ अपने पैरों को रखा और अनन्त की टट्टे दीदी के होंठों के पास आ गये.

दीदी अनन्त जीजू के अंडकोषों को अपने मुंह में लेकर प्यार करने लगी. अनन्त ने अपने हाथों को पीछे लाकर दीदी के चूचों पर टिका लिया और उनको पकड़ने के साथ उनको दबाना और मसलना भी शुरू कर दिया.
नीचे की तरफ विनय जीजू ने दीदी की चूत में अपनी जीभ डाल दी और चूत में उसको अंदर बाहर करने लगे. कुछ पलों तक दीदी की चूत को चाटने के बाद विनय जीजू ने अपने लंड को दीदी की चूत पर रख दिया और उसकी चूत में अपने लंड को अंदर की तरफ धकेल दिया.

दीदी अनन्त के टट्टों के साथ ही चूमा-चाटी में लगी हुई थी. दीदी ने अनन्त के चूतड़ों को अपने हाथों से पकड़ रखा था और वह अनन्त के चूतड़ों की दरार के बीच में उगे बालों में अपनी उंगली को फिरा रही थी. उसके बाद अनन्त ने दीदी के हाथों को अपने हाथों से हटा दिया और एक तरफ आकर दीदी के मुंह में अपने लंड को पेल दिया.
दीदी के मुंह में अनन्त का लंड जाते ही दीदी का चेहरा लाल हो गया. दीदी को शायद सांस लेने में मुश्किल हो रही थी. अनन्त ने अपने लंड को दीदी के मुंह में तेजी के साथ धकेलते हुए अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.

जब अनन्त जीजू का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया तो उसके बाद अनन्त ने दीदी के चूचों को अपने हाथों में भर लिया. हाथों में दबाचकर उन्होंने दीदी के चूचों के बीच में अपने लंड को फंसा दिया और वहीं पर मैथुन करने लगे. अनन्त के चूतड़ दीदी के होंठों की तरफ थे. दीदी शायद अनन्त के चूतड़ों पर पीछे से किस करने में लगी हुई थी. दीदी के हाथ अनन्त की कमर पर थे और दीदी ने दोनों हाथों से अनन्त की कमर को संभाला हुआ था. विनय जीजू ने दीदी की चूत में लंड डालकर चुदाई शुरू कर दी थी.

उसके बाद अनन्त जीजू ने अपने लंड को दीदी के चूचों के बीच से निकाल लिया और एक तरफ हट गए. जब विनय जीजू ने देखा कि अनन्त ऊपर की तरफ से हट चुका है तो उन्होंने भी दीदी की चूत से अपने लंड को निकाल लिया.
उसके बाद अनन्त नीचे की तरफ आ गए और दीदी की टांगों को अपने हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया. मैंने सोचा कि शायद अब अनन्त दीदी की टट्टी करने वाली जगह में अपने लंड को डालने की तैयारी में है लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. अनन्त ने दीदी की टांगों को उठाकर अपने कंधों के ऊपर रख लिया और दीदी की चूत के नीचे तकिया लगा दिया.

ऊपर की तरफ विनय जीजू ने फिर से दीदी के मुंह में अपने लंड को डाल दिया जिसको दीदी ने बिना देर किए ही चूसना शुरू कर दिया. विनय के लंड का साइज ज्यादा बड़ा नहीं था इसलिए दीदी उनके लंड आराम से चूस पा रही थी.
बाहर खड़े-खड़े मेरे पैर जवाब देने लगे थे. मेरा पूरा बदन कांप रहा था. मगर फिर भी मेरा मन वहां से हिलने को नहीं कर रहा था. मैं वहीं पर खड़े रहकर देखना चाहती थी कि आगे क्या होने वाला है. दीदी विनय जीजू के लंड को चूसने में मस्त थी और अनन्त ने अपने लंड को दीदी की चूत के छेद पर लगाकर उसको ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया था.

विनय जीजू के झटके दीदी के मुंह में काफी तेज होने लगे थे. जीजू के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगी थीं. मगर वह तेजी से अपने चूतड़ों को आगे की तरफ धकेल रहे थे और पूरा लंड दीदी के गले में उतार रहे थे. कुछ देर के बाद विनय जीजू ने कुसुम दीदी के सिर को पकड़ लिया. उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह्ह … विनय के मुंह से तेज आवाज निकलने लगी. फिर विनय जीजू के लन्ड से सफेद रस निकलकर दीदी के मुंह पर गिरा और विनय जीजू अलग हट गये.

तब अनन्त और दीदी ने अगली चुदाई शुरू की. अब मुझमें वहाँ खड़े रहने की और हिम्मत नहीं रह गई थी. इसलिए मैं वहाँ से आ गई. अब शायद विनय जीजू भी कमरे से बाहर आने वाले थे. इसलिए भी वहाँ पर खड़े रहना मैंने ठीक नहीं समझा.
जब मैं वापस दीदी और जीजू के बेडरूम में आई तो मेरे पूरे बदन में आग लगी हुई थी. मैंने आते ही दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया. दरवाजे पास खड़ी होकर ही मैंने अपनी सलवार को नीचे किया और अपनी पैंटी को देखा. वह पूरी भीग चुकी थी.

मैंने अपनी पैंटी को नीचे किया और अपनी चूत को धीरे से छूकर देखा. वह फूली-फूली सी लग रही थी. मैंने धीरे से अपनी चूत के फलकों को मसाज देना शुरू कर दिया. मगर कुछ ही पल के बाद मुझे बगल वाले कमरे के दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दे गई. मैंने जल्दी से अपनी सलवार को ऊपर किया, झट से कमरे के दरवाजे की कुंडी को खोलकर बिस्तर पर जाकर लेट गई. मैंने चादर ओढ़ ली थी क्योंकि इस वक्त मैं सोने का नाटक नहीं कर पाती.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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