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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
उसके बाद मैंने हल्के से आंख खोलकर देखा तो जीजू मेरी दीदी से लिपटते हुऐ उनको मनाने लगे। मैं चुपके-चुपके सब देख रही थी. आज ये पहली बार मुझे रोमांचक लग रहा था. अब से पहले मैंने कभी गौर ही न किया था। तभी जीजा जी ने दीदी के सब कपड़े अलग कर दिये. अब दीदी केवल पैंटी में थी। जीजू दीदी के दूध चूस रहे थे. साथ ही उनका एक हाथ दीदी की पैंटी के अन्दर चल रहा था। मैं कुछ नहीं जानती थी कि ये सब क्या हो रहा है. मगर वह सब मुझे बहुत रोमांचक लग रहा था। दीदी के दूध गोल और सख्त लग रहे थे।

जीजू की हरकतों से दीदी जल्दी ही कसमसाने लगी और पैरों को फैलाने लगी।
जीजू- जान चली जाओ न … अनन्त के कमरे में, एक बार चुदवाकर देखो, बहुत मजा आयेगा. वो गजब की चुदाई करेगा, मैंने उसका लन्ड देखा है तभी तो बुलाया है।
दीदी कुछ नहीं बोली, बस आंखें बन्द किये हुए कसमसाती रही। तभी अनन्त जीजू हमारे रूम में आ गये।

अनन्त- यार मुझे कितना इन्तजार करवा रहे हो … जब से कुसुम को देखा है लन्ड सम्भल नहीं रहा।
विनय- क्या करूं दोस्त, कुसुम से बोल तो रहा हूं पर वो तुम्हारे रूम में जा ही नहीं रही।
इतना सुनते ही अनन्त जीजू के तेवर बदल गये और अनन्त जीजू मेरी कुसुम दीदी की तरफ मुखातिब होकर बोले- साली, इतना नखरा मत कर वर्ना यहीं चोदना शुरू कर दूगां. देख मेरा लंड कितना ताव में है!
यह बोलकर अनन्त ने अपनी जाँघिया उतार दी।
बाप रे! ये क्या था, मैं देखती रह गई. आज तक मैंने किसी आदमी को नंगा नहीं देखा था. मैं कुछ डरने लगी। मैंने लंड पहली बार देखा था, बड़ा ही भयानक लम्बा, मोटा और डंडे जैसा तना हुआ काले रंग का। मेरी तो सांस थम सी गई, मैं चुप्पी साधकर सब देख रही थी पर किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं था।

अनन्त का लंड विनय जीजू ने थाम लिया और सहलाते हुऐ बोले- कितना मस्त लंड है, आज तुम अपने लंड से मेरी प्यारी कुसुम की दमदार चुदाई करो, हम दोनों कब से यही चाहते हैं।
अनन्त- तो फिर हटो एक तरफ और अपनी बीवी को मेरे हवाले करो।
इतना बोलकर अनन्त जीजू कुसुम दीदी के होंठों को चूसने लगे. साथ ही वो दोनों स्तनों को दबाने लगे। विनय जीजू थोड़ा अलग होकर लेटे रहे. कुछ ही देर में दीदी अनन्त के बदने से बुरी तरह लिपटने लगी.

तभी अनन्त ने दीदी की पैंटी खींच कर फेंक दी. जो मेरे मुंह के पास आकर गिरी. पैंटी बेहद गीली थी और उसमें अजीब सी बदबू आ रही थी। पैंटी फेंकने के बाद अनन्त ने दीदी की जांघों को फैलाया और अपना मुंह उनकी टांगों के बीच में लगा दिया.

कुसुम दीदी बुरी तरह तड़पने लगी। तब मैं नहीं समझ पाई थी कि अनन्त क्या कर रहा है. पर चपड़ चपड़ की आवाज साफ सुन रही थी मैं।
दीदी बुरी तरह तड़पकर लगभग चिल्लाने लगी- जल्दी चोदो मुझे … बर्दाश्त नहीं हो रहा.

उसके बाद विनय जीजू को मेरा ख्याल आया और उन्होंने कहा- अनन्त यार, कुसुम बहुत चुदासी हो रही है इसे कुछ होश नहीं है, इसको यहां चोदना ठीक नहीं है. अगर रचना जाग गई तो मजा खराब हो जायेगा।
इतना सुनते ही अनन्त जीजू ने कुसुम दीदी को गोद में उठा लिया. दीदी नंगी ही थी और अनन्त जीजू की गोद में बड़ी मनमोहक लग रही थी। अनन्त जीजू मेरी दीदी को अपने कमरे में ले गये, अब मेरे पास विनय जीजू शान्त लेटे थे. कमरे में बिल्कुल शांति छा गई थी. तभी अनन्त के कमरे से दीदी की चीख सुनाई दी और जीजू तुरन्त उस रूम की तरफ चले गये।

अब मैं बिल्कुल अकेली थी. कुछ देर में दीदी की कराहट भरी अवाजें आने लगीं, मुझे भी उलझन सी होने लगी। तब मैं चुपके से उठी और उस कमरे की तरफ दबे पांव चल पडी. मैं डर के मारे कांप रही थी पर न जाने कौन सी उत्सुकता थी कि कदम कमरे तक पहुंच गये। दरवाजा बन्द था पर खिड़की पर किसी का ध्यान नहीं था. मैं खिड़की से अन्दर झांकने लगी।

मैंने देखा कि अनन्त जीजू मेरी दीदी की दोनों टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रखे हुए थे और दीदी का सर पकड़े हुए होंठों को चूस रहे थे. वह अपनी कमर को दीदी की कमर पर पटक रहे थे। दीदी बिल्कुल गुडीमुडी हुई अनन्त जीजू के नीचे दबी हुई थी। अनन्त और विनय दोनों ही जीजू मेरी दीदी पर रहम नहीं कर रहे थे। मैं बुरी तरह से डरकर वापस अपने कमरे में आ गई. मेरी दिल जोर से धड़क रहा था. कुछ देर के बाद मेरी धड़कन कुछ कम हो गई.

मगर मुझे चैन नहीं आ रहा था. मैं पसीने-पसीने हो गई। मैं लेटे हुए अनन्त जीजू और विनय जीजू के नंगे जिस्मों के बारे में सोच रही थी. कुछ देर बाद मन नहीं माना और मैं फिर देखने पहुंच गई. अबकी बार तो यकीन नहीं हुआ मुझे अपनी आंखों पर. दीदी अनन्त जीजू से लिपटी हुई हर धक्के पर अपनी कमर उछालते हुऐ बोल रही थी- और तेज चोदो! आह्ह … और तेज करो मेरी जान। तब मुझे समझ आया कि दीदी को कोई तकलीफ नहीं हो रही बल्कि अच्छा लग रहा है.

अब मेरा भी डर कम होने लगा था और मैं लगातार देखने लगी कि कुछ देर बाद अनन्त जीजू और दीदी तेजी से हांफते हुऐ शान्त हो गये. दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे. फिर विनय जीजू, जो उसी बेड पर बैठे थे दीदी को चूमकर उन्होंने पूछा- कैसा लगा जान अनन्त का लन्ड?

दीदी- बहुत पसन्द आया. अनन्त जी ने तो मेरी चूत की सारी तमन्ना पूरी कर दी. मैं तो बहुत थक गई हूं।
अनन्त जीजू हँसते हुऐ बोले- नहीं जी, तुमने पूरी रात चुदवाने का वादा किया था, अभी तो रात बहुत बाकी है।

फिर अनन्त जीजू और विनय जीजू दोनों दीदी से लिपट गये. विनय ने मेरी दीदी की के चूचों को हाथ में ले लिया और उनको दबाने लगे. विनय जीजू कुसुम दीदी के चूचुकों को अपने दांतों से काटने लगे.
नीचे की तरफ अनन्त ने दीदी की चूत में अपनी उंगली डाल दी और उनको अंदर बाहर करने लगे. दीदी की टांगें बेड पर फैली हुई थीं. मैं बाहर खिड़की से खड़ी होकर यह पूरा नजारा देख रही थी.
मुझे डर भी लग रहा था मगर मेरे बदन में एक आग सी भी लगने लगी थी. मैंने अपने बदन पर वहीं खड़ी होकर हाथ फिराना शुरू कर दिया. अनन्त ने मेरी दीदी की चूत में उंगलियों की रफ्तार को तेज कर दिया.

मेरी दीदी के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलना शुरू हो गईं. दीदी अपने हाथों को पीछे बिस्तर की तरफ ले जाकर बेड के सिरहाने को पकड़े हुए थी. दीदी की टांगें अनन्त की उंगलियों की रफ्तार के साथ और ज्यादा फैल रही थीं.
जब कुछ देर के बाद मैंने अपनी सलवार के ऊपर अपनी पैंटी पर हाथ लगाया तो मेरे बदन में एक सरसरी सी दौड़ गई. मेरी चूत में पहली बार मैंने गीलापन महसूस किया था. जब अनन्त ने कमरे के अंदर दीदी की पैंटी को मेरे मुंह पर फेंक दिया था तो मुझे उस पैंटी के अंदर से अजीब सी बदबू आई थी. अब मैं समझ गई थी कि यह बदबू कामरस की होती है.

मुझे सेक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था लेकिन अनन्त और विनय जिस तरह से कुसुम दीदी को अपने नीचे लेटा कर उसके बदन को भोग रहे थे. आज मेरा ज्ञान काफी बढ़ गया था. मैंने पहली बार मर्द के लंड के दर्शन किए थे.
विनय का लंड भी काफी बड़ा था. लेकिन अनन्त के लंड के सामने अगर नापा जाए तो उससे छोटा ही लग रहा था. मेरे चूचों में वहीं पर खड़े-खड़े कुलबुलाहट सी होने लगी थी. मैंने अपनी छाती को वहीं पर दबाना शुरू कर दिया.

जब मैंने अंदर की तरफ दोबारा देखा तो विनय ने अपना लंड कुसुम दीदी के मुंह में डाल रखा था. मेरी दीदी विनय के चूतड़ों को पकड़ कर उसके लंड को अपने मुंह की तरफ धकेल रही थी. विनय ने भी दीदी के बालों को पकड़ा हुआ था और उनके मुंह को अपने लंड की तरफ धकेल रहे थे.
मेरा ध्यान अनन्त पर गया तो उसने दीदी की चूत में अपनी जीभ डाल रखी थी. दीदी अनन्त के सिर को अपनी जांघों के बीच में दबोचने की नाकाम कोशिश कर रही थी क्योंकि अनन्त ने उसकी जांघों को पकड़ कर अपने मजबूत हाथों से विपरीत दिशाओं में फैला रखा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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