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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
मेरा नाम रचना है. हम दो बहनें हैं, मेरी बड़ी बहन कुसुम जो मुझसे 7 साल बड़ी है। मैं घर में सबसे छोटी हूं और शुरू से सबकी बहुत दुलारी रही हूँ।
बात उस वक्त की है जब मैं 18 साल की थी। हमारे यहाँ एक मुंहबोली बुआ जी का आना जाना था. बुआजी का हम सबके साथ बहुत लगाव था, उनका घर हमारे घर से आगे कुछ दूरी पर था, बुआ जी का एक ही लड़का था जिसका नाम था विनय. जिसकी उम्र उस वक्त शायद 21 की रही होगी। फूफा जी का निधन पहले ही हो चुका था। विनय की एक गारमेंट की दुकान थी और बुआजी को पेंशन मिलती थी। बुआ जी और विनय अक्सर घर आते रहते थे. हम सबसे उनकी खूब बनती थी।

मैं दीदी के साथ हमेशा रहती थी. दीदी भी मुझे बहुत प्यार करती थी। मैं देखा करती थी कि जब बुआ जी और विनय घर आते तो विनय भैया हमारे ही रूम में आ जाते और बातें करते रहते थे, गेम खेलते रहते थे. अक्सर विनय भैया मेरी नजर बचाकर दीदी से कुछ छेड़छाड़ भी करते रहते थे और दीदी मेरी नज़र बचाकर मुस्करा देती, अगर कभी मैं देख लेती तो दोनों मुझे फुसलाने लगते।
उस वक्त मैं इन बातों को नहीं समझती थी। मैंने कई बार विनय भैया को दीदी से लिपटते देखा था.

एक बार विनय भैया हमारे साथ टीवी देख रहे थे. दीदी विनय भैया से बिल्कुल सटकर बैठी थी. मैं टीवी में मशगूल थी. मगर वो दोनों कुछ खुसर-फुसर बातों में लगे थे.
तभी मैं पेशाब करने के लिए बाथरूम चली गई. जब मैं वापस कमरे में आई तो दीदी विनय भैया के सीने से लिपटी थी और विनय भैया दीदी के होंठ चूस रहे थे. मुझे अचानक आया देखकर दोनों घबरा कर अलग हो गये और फिर मुझे दोनों ने अपने पास बुला लिया.
मुझे प्यार से बैठाकर बोले- तुम किसी से कुछ कहना मत!
फिर मुझे एक हजार रूपये भी दिये. मेरा तो लड़कपन था. रूपये पाकर मैं खुश हो गई.

फिर तो मुझे अक्सर कभी दीदी से कभी विनय भैया से पैसे मिलने लगे. मैं खुद में मस्त रहती और वे दोनों मेरे सामने भी सब बातें करते रहते। पर जल्दी ही दोनों के चक्कर के बारे में सबको मालूम हो गया।

दीदी और विनय भैया घबराने लगे. मैं भी न जाने क्यों नर्वस हो रही थी. खैर बुआजी का व्यवहार और पापा व मम्मी की सूझ-बूझ से दीदी की सगाई विनय भैया के साथ कर दी गई। अब विनय भैया विनय जीजू बन गये थे. दीदी की ससुराल तो पास में ही थी और मेरा लगाव तो था ही दीदी और विनय जीजू से तो मैं अक्सर दीदी के घर जाती रहती थी।

धीरे-धीरे एक साल बीत गया. इस दौरान बुआ जी का भी लम्बी बीमारी के बाद स्वर्गवास हो गया।

एक दिन शाम को मैं दीदी के घर गई तो वहाँ जीजू की ही हमउम्र गठीले बदन का एक युवक जीजू के साथ बैठा हुआ था. मुझे देखते ही दोनों ठिठके, अगले ही पल जीजू मुस्कराते हुए बोले- आओ रचना, बैठो!
मैं उनके साथ बैठ गई.
फिर जीजू ने बताया- यह मेरा दोस्त अनन्त है. तुम इसे भी जीजू बोल सकती हो।

तभी दीदी चाय लेकर आ गई और मुझे देखकर हड़बड़ा गई. मुझे देखकर सबका हड़बड़ा जाना मुझे अजीब लगा. खैर उसके बाद सबने चाय पी. फिर दीदी खाना बनाने लगी और हम लोग टीवी देखने लगे। मैंने देखा वे सब मुझसे छुपाकर कुछ बात कर रहे थे. फिर सबने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे।

अभी तक मैं जब भी दीदी के यहां जाती थी तो दीदी जीजू के साथ बेड पर ही सोती थी इसलिए मैं बेड पर ही सोने लगी. अनन्त जीजू को बगल के रूम में लिटाकर दीदी, जीजू और मैं हमेशा की तरह लेट गये। जीजू दीदी से कुछ बात कर रहे थे।

फिर मैं सोने लगी, दीदी ने गौर से मेरी तरफ देखा और उनको ये लगा कि मैं गहरी नींद में सो गई तब वे बेफिक्र होकर बात करने लगे.
दीदी ने जीजू से कहा- यार आज कुछ करना ठीक नहीं रहेगा, रचना यहीं है।
जीजू- अरे यार, आज पहली बार तो तुमने हां बोली, अब इन्कार मत करो. अनन्त भी आ गया है।
दीदी- क्या करूं, रचना यहीं है।
जीजू- रचना सो गई है. तुम अनन्त के रूम में चली जाओ।
दीदी- नहीं, मैं नहीं जाऊंगी, तुमको जो करना हो करो बाकी सब कैंसिल।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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