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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
किसी तरह रात निकल गई और मैं सुबह तक सोती रही, मुझे भैया ने जगाया तब मैं ज़गी.
भाबी बोलीं- आज संडे है… ऋतु जाओ तुम नहा कर आओ और सुनो, आज तुमको कल ली हुई नई वाली ड्रेस ही पहननी है.

मैं शर्माते हुए नहाने चली गई. भाबी ने कपड़े निकाले और मुझे दे दिए. एक बहुत छोटा सा स्कर्ट और ट्रांसपेरेंट टॉप उसके साथ ब्लैक ब्रा पेंटी थी. मैंने भाबी से कहा- भाबी, घर में भैया हैं… मैं इनको नहीं पहन सकती हूँ.
भाबी बोलीं- ये तो कपड़े हैं इनमें इतनी क्यों परेशान हो रही हैं.
मैं बोली- भाबी, मुझे भैया के सामने इनको पहनने में शर्म आती है.
भाबी बोली- जब तेरी शादी होगी तो जब नहीं पहनेगी क्या?
मैं बोली- तब की बात और है.
भाभी बोलीं- जा मैं तेरे से बात नहीं करती.

मुझे लगा कि भाबी नाराज़ हो गईं, तो मैंने भाबी को हग किया और बोली- अच्छा जैसा आप कहोगी मैं वैसे ही कपड़े पहन लूँगी… बस आप नाराज़ मत होना.
भाबी हंस कर बोलीं- जा तू अपने भैया को पानी देके आ.
मैं भैया के रूम में गई तो भैया मुझे देखने लगे. भैया की निगाहों में एक अजीब सा भाव था. मुझे उनके देखने के अंदाज से अन्दर तक गुदगुदी सी होने लगी.

उसके बाद सबने खाना खाया और आराम करने लगे. सारा दिन यूं ही चुहलबाजी में बीत गया.

जब रात को हम सोने गए तो भाबी ने मुझे बीच में खिसका दिया और खुद साइड में सो गईं. थोड़ी देर में भैया का हाथ मेरे सीने पर घूमने लगा था. भाबी ना जाग जाएं, मुझे तो यही डर लग रहा था. मैं इसलिए चुपचाप लेटी रही. इसका नतीजा ये हुआ कि भैया की हरकतें बढ़ती गईं.

एक तो रूम में अंधेरा था और दूसरा भैया के हाथों की हरकतों से मुझे भी मस्ती छाने लगी. भैया ने मेरे दोनों मम्मों ऊपर से खूब दबाए फिर मेरे टॉप में हाथ डाल दिया. वो अपना काम करने लगे तो मैंने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मजा लेने लगीं. भैया ब्रा के ऊपर से मेरे मम्मों को दबाते रहे.

मुझे सबसे ज्यादा अजीब तब लगा, जब भैया मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे होंठ चूसने लगे. मैं भी वासना में भर उठी थी… सो मैं भी उनका साथ देने लगी.

हम दोनों की जीभें आपस में लड़ रही थीं. तभी मुझे फिर से याद आया कि भाबी बगल में ही सो रही हैं, तो मैंने भैया को साइड किया और उठ कर बाथरूम में चली गई. उधर देखा कि पूरी पेंटी गीली हो गई थी. मैंने पेशाब की, चुत धोई और फिर से रूम में आ गई. मैंने भाबी को उनकी जगह पर सरका दिया और खुद किनारे लेट गई.

मुझे लगा कि भैया को पता नहीं है कि उनके नीचे में थी, शायद वो मुझे भाबी समझ कर चोदने के मूड में थे कि इतने में भाबी जाग गई थीं. उन्होंने मुझे हिलाया, मैं तो अब तक गर्म थी सो जाग ही रही थी. भैया भी जागे हुए ही थे.

तभी बिजली चली गई और चूंकि गर्मी का मौसम था तो बेचैनी होने लगी.
भाबी बोलीं- चलो, बाहर आँगन में चलते हैं.

भैया तो कुछ कहने की जगह सीधे उठ कर ही बाहर आँगन में चले गए. उनको ज्यादा गर्मी लग रही थी तो वे आँगन में बैठ कर नहाने लगे.

इसके बाद भाबी भी पानी में भैया के साथ मस्ती करने लगीं और बोलीं कि चलो एक गेम खेलते हैं, हम में से किसी एक इंसान की आँखों में ब्लैक पट्टी बाँधते हैं और उस इंसान को दूसरे इंसान को छू कर बताना है कि वो कौन है. जिसको वो छुएगा उसको नहीं बोलना है… कोई भी नहीं बोलेगा.

गेम स्टार्ट हुआ, भाबी ने मुझे भी पानी में खींच लिया. हम सब लोग पानी में भीग गए, सबने एक दूसरे को पानी में खूब भिगोया.

पहले भाबी की आँखों पर पट्टी बंधी और भाबी ने मुझे ही पकड़ लिया और मेरा टॉप जानबूझ कर खींचते हुए फाड़ दिया. अब मैं ब्रा और स्कर्ट में रह गई थी. मैंने बोला- भाबी ये क्या किया आपने… मेरा टॉप फाड़ दिया?
भाबी बोलीं- कोई बात नहीं, ये तो गेम है.
इसके बाद भाबी ने भैया को पकड़ा. वे अपने हाथ से उनके अन्डरवियर को पकड़ने लगीं और उनका लंड दबाने लगीं. मैं ये सब देख रही थी.

भैया कुछ नहीं बोले और अपना लंड भाबी के हाथ से मसलवाने लगे.

अब भैया की बारी थी, भैया ने भाबी को पकड़ा और भाबी का भी टॉप फाड़ कर भैया उनके मम्मों को दबाने लगे. उसके बाद भैया ने मुझे पकड़ा और मेरे मम्मों को दबाने लगे, मैं भी सिसकारी लेने लगी क्योंकि मुझे तो बहुत मजा आ रहा था. भाभी भी मुझे मम्मे मसलवाते हुए देख रही थीं और मुस्कुरा रही थीं मेरा डर भी खत्म हो गया था. इसी तरह हम 2 से 3 घंटे पानी में ही खेलते रहे.

बाद में भाबी मजाक करते हुए मुझसे बोलीं- क्या बात ऋतु, आज तो तू अपने भैया से ही अपने मम्मों को मसलवा रही थी… गेम अच्छा लगा या नहीं.
मैं बोली- भाबी गेम तो अच्छा था, मैं क्या मजा ले रही थी, वो तो गेम था, जिसमें आप भी तो अपने फुकने दबवा कर मजा ले रही थीं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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