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Misc. Erotica मजा पहली होली का ससुराल में ,
#66
छुटकी के टिकोरे 



[Image: Tits-young-19721744.jpg]


चररररर चरररररर,.... फ्राक का ऊपरी हिस्सा फट गया। 

और छुटकी के टिकोरे , … एक टिकोरा आलमोस्ट बाहर ,



इसी के लिए तो वो तड़प रहे थे ,और सिर्फ वही क्यों , मेरे नंदोई भी.

भोर की लालिमा की तरह , ललछौहाँ , बस एक गुलाबी सी आभा। 


[Image: tits-teen-3.jpg]
लेकिन उभार आ चुके थे , अच्छे खासे , वही चूंचिया उठान के दिलकश उभार जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते है। 

और उठती चूंचियो की घुन्डियाँ भी,



एक पल तो उन्हें लगा की कही छुटकी नाराज न हो जाय , लेकिन फिर सामने एक किशोरी की जवानी के दस्तक दे रहे जोबन दिख जायं तो फिर तो सब डर निकल जाता है। 

और वहीँ आंगन में , उन्होंने उन मस्त टिकोरों का रस लेना शुरु कर दिया। पहले ओ झिझक के हलके हलके सहलाया , दबाया फिर जोर जोर से मसलने रगड़ने लगे। 


[Image: holi-js.jpg]
छुटकी कुछ सिसकी , कुछ चीखी , कुछ हाथ पैर चलाये , लेकिन उनके पकड़ के आगे मैं नहीं बची , मेरा भाई नहीं बचा , मझली नहीं बची , तो उस कि क्या बिसात थी। 

उनकी शैतान उँगलियों ने अब उसके छोटे छोटे निपल्स से खेलना शुरू कर दिया और दूसरा हाथ फ्राक उठा के सीधे , उस कच्ची कली के भरते हुए नितम्बो पे मसलने , मजे लेने लगा.

और आगे से जैसे ही हाथ दोनों जांघो के बीच में पहुंचा , छुटकी कि सिसकियाँ तेज हो गयीं। 




[Image: holi-girl-wallpaper-1.jpg]

और मंझली भी दोनों हाथों में पेंट पोते, अपनी स्कर्ट में रंगो के पाउच लटकाये , फिर से रंग स्थल पे पहुँच गयी थी। लेकिन जीजू तो छुटकी के साथ ,


उसने मुड़ के मेरी ओर देखा , 
मैं चौखट पे बैठ के अपने 'उन की ' सालियों के साथ होली का नजारा ले रही थी। 

मैंने मंझली को उसके जीजू के कमर के नीचे की ओर इशारा किया , उसने हामी में सर हिलाया , मुस्करायी और चालु हो गयी। 

" इनके 'दोनों हाथ तो फंसे थे ही , एक छुटकी के टिकोरों पे और दूसरा उसकी रेशमी जाँघों के बीच। बस मंझली को मौका मिल गया। उसके दोनों हाथ जीजू के पिछवाड़े , पैंट में घुस गए। आखिर थी तो मेरी ही बहन। 


उसे कौन सिखाने की जरूरत थी। थोड़ी देर तक तो उसने नितम्बो पे हाथ रगड़ा , रनग लगाया और फिर एक ऊँगली , पिछवाड़े के सेंटर में। 

अब दोनों सालियाँ आगे पीछे और वो सैंडविच बने ,

छुटकी को भी मौका मिला गया और उसने अपने छोटे छोटे हाथो से उनके हाथों को अपने उरोजों और जांघो के बीच दबोच लिया। बस। अब वो मंझली के हाथ हटा भी नहीं सकते थे। 


मंझली के दोनों हाथ उनके पैंट के अंदर थे। आखिर थोड़ी ही देर पहले तो उसकी जीजू पैंटी के अंदर हाथ डाल के उसकी चुनमुनिया रगड़ रहे थे , कच्ची चूत में ऊँगली कर रहे थे , वो भला क्यों मौका छोड़ देती। 
बस उसका एक हाथ जीजा के गोल मटोल नितम्बो की हाल ले रहा था तो दूसरे ने आगे खूंटे को रंगना रगड़ना शुरू किया। 

खूंटा तो पहले ही तना था , छुटकी के छोटे छोटे चूतड़ो पे रगड़ते हुए ,और अब जब साली का हाथ पड़ा तो एकदम फुंफकारने लगा। पूरे बित्ते भर का हो गया। मंझली ने एक और शरारत की , आखिर शरारत पे सिर्फ उसके जीजू कि ही मोनोपोली तो थी नही। 

उसने एक झटके से चमड़ा पकड़ के खीच दिया और , सुपाड़ा बाहर। 

पता नहीं जिपर उन्होंने खोला , छुटकी से खुलवाया या मंझली ने मस्ती की। 

रंग पेंट में लीपा पुता चरम दंड बाहर था और मंझली अब खुल के उसके बेस पे पकड़ के रंग लगा रही थी , कभी मुठिया रही थी। 

उन्होंने छुटकी का हाथ पकड़ के उसपे लगाया , थोड़ी देर तक वो झिझकती रही , न न करती रही , फिर उसने भी अपने जीजू के लंड को ,
आब आगे से छुटकी हलके सुपाड़े को दबा रही थी अपनी नाजुक उँगलियों से और पीछे से मंझली। 

किसी भी जीजा के औजार को होली के दिन उसकी दो किशोर सालियाँ मिल के एक साथ रंग लगाएं तो कैसा लगेगा ?

उनकी तो होली हो गयी , लेकिन टिकोरे का मजा लेना उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा। 

पर रंग में भंग पड़ा , या कहूं मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का। 
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RE: मजा पहली होली का ससुराल में , - by komaalrani - 02-03-2019, 01:00 PM



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