02-03-2019, 12:25 PM
(This post was last modified: 02-03-2019, 12:31 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
छुटकी
औरतों का प्राइवेट रूम बेड रूम के अलावा कोई होता है तो वो उनका किचेन , जहाँ वो मन की बातें कर सकती हैं। के
मम्मी ने एक एक बात कुरेद के पूछी।
फिर मैंने मम्मी से अपने मन की बात पूछी ,
"मम्मी मैं सोच रही हूँ छुटकी को ,… "
" क्या हुआ छुटकी को। ।"
मम्मी ने इनके लिए नाश्ता निकालते पुछा।
" मैं सोच रही थी , .... "
मेरे समझ में नहीं आ रहा था की कैसे कहूं कि मम्मी हाँ कर दें और इनके मन कि मुराद और नंदोई जी से किया इनका वायदा पूरा हो जाया।
फिर मम्मी बोली ,
" कहानी मत बना बोल न "
" मैं सोच रही थी कि जब हम लौटेंगे तो छुटकी को भी अपने साथ ले चलूँ , आखिर अभी तो उस कि छुट्टियां ही हैं और वहाँ मेरा भी मन लगा रहेगा। "
मैंने रुकते रुकते बोला /
" अरे यही तो मैं भी सोच रही थी लेकिन सोच नहीं पा रही थी कैसे कहूं तेरी नयी नयी ससुराल , और फिर दामाद जी जाने क्या सोचें। बात ये है की , मंझली के बोर्ड के इम्तहान है और छुटकी है चुलबुली। उसको तंग करती रहेगी। और अगर मंझली या मैंने कुछ बोल दिया तो मुंह फुला के बैठ जायेगी। और मैं भी अपने काम में बीजी रहती हूँ , इसलिए "
" अरे मम्मी , आप भी न , मैं बोल दूंगी न इनसे। मेरी आज तक कोई बात टाली है इन्होने , और फिर उनकी सबसे छोटी साली है , १५-२० दिन के बाद मंझली के इम्तहान ख़तम हो जायेंगे तो वापस भेज दूंगी। "
अपनी खुशी छिपाते मैं बोली।
" अरे तेरी छोटी बहन है जब चाहे तब भेजना। इसका कॉलेज तो एक महीने के बाद ही खुलेगा। "
मम्मी बोली।
तब तक बाहर से जीजा सालियों की छेड़खानी , होली की शुरुआत की आवाज आ रही थी। और मेरे लिए बुलावा भी।
वो दोनों चाह रही थी की मैं भी होली के खेल में उनके साथ शामिल हो जाऊं। मैंने साफ बरज दिया।
औरतों का प्राइवेट रूम बेड रूम के अलावा कोई होता है तो वो उनका किचेन , जहाँ वो मन की बातें कर सकती हैं। के
मम्मी ने एक एक बात कुरेद के पूछी।
फिर मैंने मम्मी से अपने मन की बात पूछी ,
"मम्मी मैं सोच रही हूँ छुटकी को ,… "
" क्या हुआ छुटकी को। ।"
मम्मी ने इनके लिए नाश्ता निकालते पुछा।
" मैं सोच रही थी , .... "
मेरे समझ में नहीं आ रहा था की कैसे कहूं कि मम्मी हाँ कर दें और इनके मन कि मुराद और नंदोई जी से किया इनका वायदा पूरा हो जाया।
फिर मम्मी बोली ,
" कहानी मत बना बोल न "
" मैं सोच रही थी कि जब हम लौटेंगे तो छुटकी को भी अपने साथ ले चलूँ , आखिर अभी तो उस कि छुट्टियां ही हैं और वहाँ मेरा भी मन लगा रहेगा। "
मैंने रुकते रुकते बोला /
" अरे यही तो मैं भी सोच रही थी लेकिन सोच नहीं पा रही थी कैसे कहूं तेरी नयी नयी ससुराल , और फिर दामाद जी जाने क्या सोचें। बात ये है की , मंझली के बोर्ड के इम्तहान है और छुटकी है चुलबुली। उसको तंग करती रहेगी। और अगर मंझली या मैंने कुछ बोल दिया तो मुंह फुला के बैठ जायेगी। और मैं भी अपने काम में बीजी रहती हूँ , इसलिए "
" अरे मम्मी , आप भी न , मैं बोल दूंगी न इनसे। मेरी आज तक कोई बात टाली है इन्होने , और फिर उनकी सबसे छोटी साली है , १५-२० दिन के बाद मंझली के इम्तहान ख़तम हो जायेंगे तो वापस भेज दूंगी। "
अपनी खुशी छिपाते मैं बोली।
" अरे तेरी छोटी बहन है जब चाहे तब भेजना। इसका कॉलेज तो एक महीने के बाद ही खुलेगा। "
मम्मी बोली।
तब तक बाहर से जीजा सालियों की छेड़खानी , होली की शुरुआत की आवाज आ रही थी। और मेरे लिए बुलावा भी।
वो दोनों चाह रही थी की मैं भी होली के खेल में उनके साथ शामिल हो जाऊं। मैंने साफ बरज दिया।