01-03-2019, 06:11 PM
सजनी -साजन --- रात भर
आधे घंटे भी शायद ही गुजरे होंगे और ,इस बार शुरआत उन्होंने ही की ,मैं सिर्फ लेटे लेटेमुस्कराती रही ,उन्हें उकसाती रही ,मजे लेती रही।
उनके होंठ अब डाकू हो गए थे।
पहले मेरे रसीले गालों पे ,और उसके बाद उनका जो असली टारगेट था , मेरे गददर जोबन , जीभ उनकी मेरे कांच के कंचे ऐसे कड़े कड़े गोल गोल निपल फ्लिककरती ,कभी नीचे से ऊपर तक चाटती तो कभी वो उसे होंठों में ले के चूस लेते , हलके से बाइट कर लेते।
मेरी हालत खराब हो रही थी , मस्ती से आँखे मुंद गयी थी , सिसकियाँ निकल रही थी लेकिन सबसे ज्यादा निचले होंठ , फड़क रहे थे , गीले हो रहे थे और मैं बसजोर जोर से उन्हें कस के भींचे ,सिकोड़े , ....
लेकिन अब उन्हें सारे मंतर आ गए थे।
उनके होंठ सीधे मेरे निचले होंठों पे,
जवानी का खजाना खुल गया , अपने आप दोनों दरवाजे ,मेरे रसीले गुलाबी भगोष्ठ , मेरे बस में नहीं थे।
और उनकी जीभ ने सेंध लगा दी , कुठरिया में , जहाँ उनकी थोड़ी देर पहले की उनकी गाढ़ी मलाई जमा थी।
किसी नदीदे बच्चे की तरह , आम की फांक तरह फैला के , लपर लपर वो चाट रहे थे , चूस रहे ,
और एकदम अंदर तक
ओह्ह हाँ हाँ हाँ और चाट चाट ,पूरा , ओह्ह्ह उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह प्लीज ,
मैं चूतड़ उठा उठा के सिसक रही थी , मस्ती से गांड पटक रही थी ,
प्लीज बस बस , अब और नहीं , बस ,
मैं बेबस थी लेकिन वो , मेरे साजन आज बस नहीं करने वाले थे।
उनका खूंटा भी पागल हो रहा था।
और जब मैं एकदम झड़ने के कगार पे थी , उन्होंने मेरी दोनों लम्बी टाँगे उठा के सीधे अपने कंधो पे , दोनों हाथ मेरे उठे बड़े बड़े चूतड़ पे ,
और पूरी ताकत से पहला धक्का ,
पहले धक्के में उनके मोटे पहाड़ी आलू ऐसे सुपाड़े ने मेरी बच्चे दानी पे ऐसी चोट मारी की मेरा कलेजा काँप गया और मैं झड़ने लगी ,देर तक झड़ती रही , कांपती रही, जैसे बारिश बंद होने के बाद भी पत्तों से ,अटारी से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं , रस मेरी चूत से टपकता रहा ,टप टप।
पहली बार चुदाई शुरू होने के साथ मैं झड़ी थी।
मेरे साजन यही तो मैं चाहती थी।
धक्के उन्होंने रोक दिए थे , जब तक मैं झड़ रही थी लेकिन लंड का जोर , मेरी बच्चेदानी पे ज़रा भी कम नहीं हुआ था।
और मेरा झड़ना रुका भी नहीं था दरेरते ,रगड़ते ,मेरी कसी ,संकरी चूत की दीवाल से रगड़ते उन्होंने पहले हलके हलके फिर हचक हचक के चोदना शुरू किया।
थोड़ी देर में उनका तिहरा हमला चालू हो गया था , एक हाथ चूंची दबाता ,कभी निपल मसलता तो दूसरा , क्लिट सहलाता रगड़ता , और होंठ कभी गाल पे तो कभीजुबना पे।
और साथ में लंड उनका तूफान मेल हो रहा था।
धक्के के बाद जिस तरह से लंड का बेस जिस तरह से मेरे क्लिट को रगड़ता मैं सिसकियाँ भरने लगती।
इस बार मैं सिर्फ चुदवा रही थी नीचे लेटे मजा ले रही थी।
और बीच बीच में चूतड़ उठा उठा के उनके धक्कों का जवाब दे रही थी।
और अब जब मैं झड़ी , तो बाहर आसमान में हलकी लाली हो रही थी।
रात कब की जा चुकी थी।
हम दोनों साथ साथ झड़ते रहे। देर तक।
फिर मैं उन्हें अपनी बाहों में बांधे बांधे सो गयी ,
और देर तक सोती रही।
आधे घंटे भी शायद ही गुजरे होंगे और ,इस बार शुरआत उन्होंने ही की ,मैं सिर्फ लेटे लेटेमुस्कराती रही ,उन्हें उकसाती रही ,मजे लेती रही।
उनके होंठ अब डाकू हो गए थे।
पहले मेरे रसीले गालों पे ,और उसके बाद उनका जो असली टारगेट था , मेरे गददर जोबन , जीभ उनकी मेरे कांच के कंचे ऐसे कड़े कड़े गोल गोल निपल फ्लिककरती ,कभी नीचे से ऊपर तक चाटती तो कभी वो उसे होंठों में ले के चूस लेते , हलके से बाइट कर लेते।
मेरी हालत खराब हो रही थी , मस्ती से आँखे मुंद गयी थी , सिसकियाँ निकल रही थी लेकिन सबसे ज्यादा निचले होंठ , फड़क रहे थे , गीले हो रहे थे और मैं बसजोर जोर से उन्हें कस के भींचे ,सिकोड़े , ....
लेकिन अब उन्हें सारे मंतर आ गए थे।
उनके होंठ सीधे मेरे निचले होंठों पे,
जवानी का खजाना खुल गया , अपने आप दोनों दरवाजे ,मेरे रसीले गुलाबी भगोष्ठ , मेरे बस में नहीं थे।
और उनकी जीभ ने सेंध लगा दी , कुठरिया में , जहाँ उनकी थोड़ी देर पहले की उनकी गाढ़ी मलाई जमा थी।
किसी नदीदे बच्चे की तरह , आम की फांक तरह फैला के , लपर लपर वो चाट रहे थे , चूस रहे ,
और एकदम अंदर तक
ओह्ह हाँ हाँ हाँ और चाट चाट ,पूरा , ओह्ह्ह उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह प्लीज ,
मैं चूतड़ उठा उठा के सिसक रही थी , मस्ती से गांड पटक रही थी ,
प्लीज बस बस , अब और नहीं , बस ,
मैं बेबस थी लेकिन वो , मेरे साजन आज बस नहीं करने वाले थे।
उनका खूंटा भी पागल हो रहा था।
और जब मैं एकदम झड़ने के कगार पे थी , उन्होंने मेरी दोनों लम्बी टाँगे उठा के सीधे अपने कंधो पे , दोनों हाथ मेरे उठे बड़े बड़े चूतड़ पे ,
और पूरी ताकत से पहला धक्का ,
पहले धक्के में उनके मोटे पहाड़ी आलू ऐसे सुपाड़े ने मेरी बच्चे दानी पे ऐसी चोट मारी की मेरा कलेजा काँप गया और मैं झड़ने लगी ,देर तक झड़ती रही , कांपती रही, जैसे बारिश बंद होने के बाद भी पत्तों से ,अटारी से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं , रस मेरी चूत से टपकता रहा ,टप टप।
पहली बार चुदाई शुरू होने के साथ मैं झड़ी थी।
मेरे साजन यही तो मैं चाहती थी।
धक्के उन्होंने रोक दिए थे , जब तक मैं झड़ रही थी लेकिन लंड का जोर , मेरी बच्चेदानी पे ज़रा भी कम नहीं हुआ था।
और मेरा झड़ना रुका भी नहीं था दरेरते ,रगड़ते ,मेरी कसी ,संकरी चूत की दीवाल से रगड़ते उन्होंने पहले हलके हलके फिर हचक हचक के चोदना शुरू किया।
थोड़ी देर में उनका तिहरा हमला चालू हो गया था , एक हाथ चूंची दबाता ,कभी निपल मसलता तो दूसरा , क्लिट सहलाता रगड़ता , और होंठ कभी गाल पे तो कभीजुबना पे।
और साथ में लंड उनका तूफान मेल हो रहा था।
धक्के के बाद जिस तरह से लंड का बेस जिस तरह से मेरे क्लिट को रगड़ता मैं सिसकियाँ भरने लगती।
इस बार मैं सिर्फ चुदवा रही थी नीचे लेटे मजा ले रही थी।
और बीच बीच में चूतड़ उठा उठा के उनके धक्कों का जवाब दे रही थी।
और अब जब मैं झड़ी , तो बाहर आसमान में हलकी लाली हो रही थी।
रात कब की जा चुकी थी।
हम दोनों साथ साथ झड़ते रहे। देर तक।
फिर मैं उन्हें अपनी बाहों में बांधे बांधे सो गयी ,
और देर तक सोती रही।