03-07-2020, 07:46 PM
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मे – चल रूचि.. अपना चलते हैं.. यहाँ तो कोई दिख नही रहा.. तो फिर अपन भी यहाँ बैठ के क्या करेंगे…
वो मेरी बात सुनकर और ज़्यादा खीज गयी और पीछे से मेरे गले को अपने एक बाजू से लपेट लिया… और बोली – कमीने तुझे मे इतनी बड़ी यहाँ बैठी दिखाई नही दी.. जो कह रहा है कि यहाँ कोई नही है..
मे – आप तो कोई जबाब ही नही दे रही तीन मेरी बात का.. तो मे और किसके साथ बात करूँ?
वो – तू तो अब बड़ा आदमी हो गया है.. हम जैसे छोटे लोगों के साथ तो बैठना भी अपनी बेइज़्ज़ती समझता है… और ये कह कर उन्होने अपने स्तनों को मेरी पीठ पर रगड़ दिया…
मे – आपको ऐसा क्यों लगा कि मे आपके साथ बैठ कर बात नही करना चाहता..?
वो – तो फिर रात उठकर क्यों चला गया था, मेने तुझे रुकने के लिया कितना बोला.
मे – रात मुझे सच में बहुत नींद आ रही थी…
फिर उन्होने पीछे से ही मेरी गोद में बैठी रूचि को खिलाने लगी जिससे उनकी दोनो चुचियाँ मेरे शरीर में गढ़ रही थी..
रूचि के साथ खेलने के बहाने उनका हाथ मेरे लंड की तरफ बढ़ने लगा…
मेने मन ही मन सोचा… ये साली कितनी गरम है.. अपने छोटे भाई का ही लॉडा लेने के चक्कर में है.. अगर मेने भाभी से प्रॉमिस नही किया होता तो इसे यहीं पटक कर चोद डालता.. लेकिन क्या करूँ..
कुच्छ देर जब मेरी सहन शक्ति जबाब देने लगी तो मेने बहाना बनाया… दीदी अब मे चलता हूँ.. रूचि को भूख लग रही होगी.. और मे चारपाई से खड़ा हो गया..
वो मुँह लटका के बैठी रह गयी, एक बार फिरसे मे उसको केएलपीडी करके वहाँ से चला आया…..
…………………………………………………………………………………..
शाम को मेरा मन किया कि आज खेतों की तरफ चला जाए, वैसे भी गर्मी बहुत थी, तो शायद खेतों में या बगीचे घूम-घूम कर कुच्छ राहत मिले…
शाम के 5 बज चुके थे, लेकिन गर्मी और धूप ऐसी थी मानो अभी भी दोपहर ही हो…
मे थोड़ी देर आम के पेड़ों के नीचे इधर उधर घूमता रहा… कुच्छ पके आम दिखे तो उन्हें तोड़ने की कोशिश की, और उन्हें पत्थर मार कर तोड़ने लगा..
एक-दो आम हाथ भी आए… अभी में और आम तोड़ता कि तभी वहाँ आशा दीदी आगयि… और मुझे देखते ही चहकते हुए बोली – और हीरो… आज इधर कैसे..?
मे – बस ऐसे ही चला आया… आज कुच्छ गर्मी ज़्यादा है ना दीदी…!
वो – हां यार मेरा तो पसीना ही नही सूख रहा आज… मेने उसके उपर नज़र डाली.. वाकाई में उसका कुर्ता पसीने से तर हो रहा था.. और वो उसके बदन से चिपका पड़ा था…
उसकी ब्रा का इंप्रेशन साफ-साफ दिखाई दे रहा था.. हम दोनो एक पेड़ के नीचे बैठ कर तोड़े हुए आम खाने लगे.. फिर कुच्छ देर बैठने के बाद वो बोली..
चल छोटू.. ट्यूबिवेल की तरफ चलते हैं… मेने कहा हां ! चलो चलते हैं..
हम दोनो ट्यूबिवेल पर आगाय… वहाँ कोई नही था.. और ट्यूबिवेल चल रहा था.
मेने कहा – दीदी ! यहाँ तो कोई नही है… और ट्यूबिवेल चल रहा है… पानी कहाँ जा रहा है..?
वो – हमारे खेतों में मूँग लगा रखी है ना उसमें… वही देखने मे आई थी.. फिर वो मुझसे बोली… छोटू चल नहले.. यार बड़ी गर्मी है.. थोड़ा ठंडे-2 पानी में नहा कर राहत मिल जाएगी…
मे – मन तो है, पर दूसरे कपड़े नही लाया..
वो – अरे यार ! कपड़े उतार और कूद जा हौदी में.. अंडरवेर तो पहना होगा ना..
मे – हां वो तो पहना है.. फिर मेने अपने शर्ट और पाजामा को उतार कर पास में पड़ी चारपाई पर रखा और कूद गया पानी में….
ट्यूबिवेल का ताज़ा ठंडा पानी शरीर पर पड़ते ही राहत मिली… खड़े होने पर हौदी का पानी मेरे पेट तक ही आरहा था….
उपर से पीपे की धार.. पड़ रही थी जिसमें मे बीच-2 में उसके नीचे अपना सर लगा देता…तो और ज़्यादा मज़ा आ जाता….
अभी मे धार के नीचे से अपना सर हटा कर सीधा खड़ा ही हुआ था… कि मेरे पीछे छपाक की आवाज़ हुई……!
मेने जैसे ही अपने पीछे मुड़कर देखा… तो आशा दीदी भी हौदी में कूद पड़ी थी…
पानी में कूदते ही उसने अंदर डुबकी लगा दी… जब वो बाहर आई और खड़ी हुई… मेरी आँखें उसके शरीर पर चिपक गयीं…
उसका पतले से कपड़े का कुर्ता उसके बदन से चिपक गया था और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई दे रही थी… शरीर के सारे कटाव एकदम उजागर हो गये थे…
आज मुझे पता चला कि उसका बदन भी कम मादक नही था, 33-26-34 का एक मस्त कर देने वाला गोरा बदन..
मुझे अपनी ओर देखते पाकर वो हँसने लगी और अपने हाथों में पानी भर भरके मेरे उपर उच्छलने लगी.. जो सीधा मेरी आँखों पर भी पड़ने लगा…
मेने भी उसके उपर पानी उच्छालना शुरू कर दिया….मेरी पानी उच्छालने की गति ज़्यादा तेज थी.. सो वो मेरी ओर देख भी नही पा रही थी…
वो चिल्लाने लगी – मान जा.. छोटू… मेरी आँखों मे पानी जा रहा है…
मे बोला – शुरू तो आपने ही किया था ना… अब भुग्तो…और पानी उच्छालना जारी रखा..
वो – अच्छा तो ऐसे नही मानेगा तू.. ,और इतना कह कर उसने मेरे उपर छलान्ग लगा दी.. छपाक से मे पानी के अंदर डूब गया और वो मेरे उपर आ पड़ी…
उसके अमरूद मेरे सीने से टकराए… पानी के अंदर ही उसने मेरे गले में अपनी एक बाजू लपेट दी…
मेने पलटी लेकर पानी से बाहर अपना सर निकाला, तो वो भी मेरे साथ ही बाहर आगयि…
वो मेरे गले से अपनी बाजू कसते हुए बोली – अब बोल… मानेगा… बोल…! मे हँसते हुए.. उनसे छूटने की कोशिस कर रहा था.. लेकिन वो मेरे से और ज़्यादा चिपकती जा रही थी..
मेरा पप्पू छोटी सी फ्रेंची अंडरवेर को फाडे दे रहा था…
मेने उसकी बगलों में एकदम उसकी चुचियों के साइड में गुदगुदी करने लगा…. वो खिल खिलाकर हँसते हुए मुझसे और ज़ोर्से चिपक गयी…
उसकी चुचियाँ मेरे सीने से दबी हुई थी.. , उसकी मुनिया और मेरे पप्पू में मात्र कुच्छ ही सेंटिमेटेर का फासला था…
अपनी सखी की खुसबु लगते ही पप्पू और फन-फ़ना उठा… मेने उसके कठोर किंतु रूई जैसे गोल – गोल चुतड़ों को अपनी मुत्ठियों में कस कर भींच दिया…तो वो फासला भी ख़तम हो गया और मेरा बबुआ ने…ठीक उसके भग्नासा के उपर अटॅक कर दिया….!
उसने मेरे कंधे में दाँत गढ़ा दिए और ज़ोर्से काट लिया… मेरी चीख निकल पड़ी..
मेने कहा दीदी… छोड़ो ना.. काट क्यों रही हो….
वो बोली – क्यों निकल गयी सारी हेकड़ी… कह कर उसने अपनी एक टाँग मेरी जाँघ पर लपेट दी और पप्पू की सीधी ठोकर उसकी मुनिया के ठीक होठों पर पड़ी….
सीईईईईईईई….अह्ह्ह्ह… छोटू … कह कर उसने मेरे होठों पर किस कर लिया…और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को ज़ोर्से मसल डाला….
ना चाहते हुए भी मेरे हाथ उसके गोल-मटोल चुतड़ों पर फिरसे चले गये और मेने उन्हें अपनी मुट्ठी में कस कर मसल दिया….
उसने अपनी कमर को ज़ोर का झटका देकर अपनी मुनिया को मेरे पप्पू पर रगड़ दिया.. और मेरे होठ चूसने लगी…!
मे – चल रूचि.. अपना चलते हैं.. यहाँ तो कोई दिख नही रहा.. तो फिर अपन भी यहाँ बैठ के क्या करेंगे…
वो मेरी बात सुनकर और ज़्यादा खीज गयी और पीछे से मेरे गले को अपने एक बाजू से लपेट लिया… और बोली – कमीने तुझे मे इतनी बड़ी यहाँ बैठी दिखाई नही दी.. जो कह रहा है कि यहाँ कोई नही है..
मे – आप तो कोई जबाब ही नही दे रही तीन मेरी बात का.. तो मे और किसके साथ बात करूँ?
वो – तू तो अब बड़ा आदमी हो गया है.. हम जैसे छोटे लोगों के साथ तो बैठना भी अपनी बेइज़्ज़ती समझता है… और ये कह कर उन्होने अपने स्तनों को मेरी पीठ पर रगड़ दिया…
मे – आपको ऐसा क्यों लगा कि मे आपके साथ बैठ कर बात नही करना चाहता..?
वो – तो फिर रात उठकर क्यों चला गया था, मेने तुझे रुकने के लिया कितना बोला.
मे – रात मुझे सच में बहुत नींद आ रही थी…
फिर उन्होने पीछे से ही मेरी गोद में बैठी रूचि को खिलाने लगी जिससे उनकी दोनो चुचियाँ मेरे शरीर में गढ़ रही थी..
रूचि के साथ खेलने के बहाने उनका हाथ मेरे लंड की तरफ बढ़ने लगा…
मेने मन ही मन सोचा… ये साली कितनी गरम है.. अपने छोटे भाई का ही लॉडा लेने के चक्कर में है.. अगर मेने भाभी से प्रॉमिस नही किया होता तो इसे यहीं पटक कर चोद डालता.. लेकिन क्या करूँ..
कुच्छ देर जब मेरी सहन शक्ति जबाब देने लगी तो मेने बहाना बनाया… दीदी अब मे चलता हूँ.. रूचि को भूख लग रही होगी.. और मे चारपाई से खड़ा हो गया..
वो मुँह लटका के बैठी रह गयी, एक बार फिरसे मे उसको केएलपीडी करके वहाँ से चला आया…..
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शाम को मेरा मन किया कि आज खेतों की तरफ चला जाए, वैसे भी गर्मी बहुत थी, तो शायद खेतों में या बगीचे घूम-घूम कर कुच्छ राहत मिले…
शाम के 5 बज चुके थे, लेकिन गर्मी और धूप ऐसी थी मानो अभी भी दोपहर ही हो…
मे थोड़ी देर आम के पेड़ों के नीचे इधर उधर घूमता रहा… कुच्छ पके आम दिखे तो उन्हें तोड़ने की कोशिश की, और उन्हें पत्थर मार कर तोड़ने लगा..
एक-दो आम हाथ भी आए… अभी में और आम तोड़ता कि तभी वहाँ आशा दीदी आगयि… और मुझे देखते ही चहकते हुए बोली – और हीरो… आज इधर कैसे..?
मे – बस ऐसे ही चला आया… आज कुच्छ गर्मी ज़्यादा है ना दीदी…!
वो – हां यार मेरा तो पसीना ही नही सूख रहा आज… मेने उसके उपर नज़र डाली.. वाकाई में उसका कुर्ता पसीने से तर हो रहा था.. और वो उसके बदन से चिपका पड़ा था…
उसकी ब्रा का इंप्रेशन साफ-साफ दिखाई दे रहा था.. हम दोनो एक पेड़ के नीचे बैठ कर तोड़े हुए आम खाने लगे.. फिर कुच्छ देर बैठने के बाद वो बोली..
चल छोटू.. ट्यूबिवेल की तरफ चलते हैं… मेने कहा हां ! चलो चलते हैं..
हम दोनो ट्यूबिवेल पर आगाय… वहाँ कोई नही था.. और ट्यूबिवेल चल रहा था.
मेने कहा – दीदी ! यहाँ तो कोई नही है… और ट्यूबिवेल चल रहा है… पानी कहाँ जा रहा है..?
वो – हमारे खेतों में मूँग लगा रखी है ना उसमें… वही देखने मे आई थी.. फिर वो मुझसे बोली… छोटू चल नहले.. यार बड़ी गर्मी है.. थोड़ा ठंडे-2 पानी में नहा कर राहत मिल जाएगी…
मे – मन तो है, पर दूसरे कपड़े नही लाया..
वो – अरे यार ! कपड़े उतार और कूद जा हौदी में.. अंडरवेर तो पहना होगा ना..
मे – हां वो तो पहना है.. फिर मेने अपने शर्ट और पाजामा को उतार कर पास में पड़ी चारपाई पर रखा और कूद गया पानी में….
ट्यूबिवेल का ताज़ा ठंडा पानी शरीर पर पड़ते ही राहत मिली… खड़े होने पर हौदी का पानी मेरे पेट तक ही आरहा था….
उपर से पीपे की धार.. पड़ रही थी जिसमें मे बीच-2 में उसके नीचे अपना सर लगा देता…तो और ज़्यादा मज़ा आ जाता….
अभी मे धार के नीचे से अपना सर हटा कर सीधा खड़ा ही हुआ था… कि मेरे पीछे छपाक की आवाज़ हुई……!
मेने जैसे ही अपने पीछे मुड़कर देखा… तो आशा दीदी भी हौदी में कूद पड़ी थी…
पानी में कूदते ही उसने अंदर डुबकी लगा दी… जब वो बाहर आई और खड़ी हुई… मेरी आँखें उसके शरीर पर चिपक गयीं…
उसका पतले से कपड़े का कुर्ता उसके बदन से चिपक गया था और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई दे रही थी… शरीर के सारे कटाव एकदम उजागर हो गये थे…
आज मुझे पता चला कि उसका बदन भी कम मादक नही था, 33-26-34 का एक मस्त कर देने वाला गोरा बदन..
मुझे अपनी ओर देखते पाकर वो हँसने लगी और अपने हाथों में पानी भर भरके मेरे उपर उच्छलने लगी.. जो सीधा मेरी आँखों पर भी पड़ने लगा…
मेने भी उसके उपर पानी उच्छालना शुरू कर दिया….मेरी पानी उच्छालने की गति ज़्यादा तेज थी.. सो वो मेरी ओर देख भी नही पा रही थी…
वो चिल्लाने लगी – मान जा.. छोटू… मेरी आँखों मे पानी जा रहा है…
मे बोला – शुरू तो आपने ही किया था ना… अब भुग्तो…और पानी उच्छालना जारी रखा..
वो – अच्छा तो ऐसे नही मानेगा तू.. ,और इतना कह कर उसने मेरे उपर छलान्ग लगा दी.. छपाक से मे पानी के अंदर डूब गया और वो मेरे उपर आ पड़ी…
उसके अमरूद मेरे सीने से टकराए… पानी के अंदर ही उसने मेरे गले में अपनी एक बाजू लपेट दी…
मेने पलटी लेकर पानी से बाहर अपना सर निकाला, तो वो भी मेरे साथ ही बाहर आगयि…
वो मेरे गले से अपनी बाजू कसते हुए बोली – अब बोल… मानेगा… बोल…! मे हँसते हुए.. उनसे छूटने की कोशिस कर रहा था.. लेकिन वो मेरे से और ज़्यादा चिपकती जा रही थी..
मेरा पप्पू छोटी सी फ्रेंची अंडरवेर को फाडे दे रहा था…
मेने उसकी बगलों में एकदम उसकी चुचियों के साइड में गुदगुदी करने लगा…. वो खिल खिलाकर हँसते हुए मुझसे और ज़ोर्से चिपक गयी…
उसकी चुचियाँ मेरे सीने से दबी हुई थी.. , उसकी मुनिया और मेरे पप्पू में मात्र कुच्छ ही सेंटिमेटेर का फासला था…
अपनी सखी की खुसबु लगते ही पप्पू और फन-फ़ना उठा… मेने उसके कठोर किंतु रूई जैसे गोल – गोल चुतड़ों को अपनी मुत्ठियों में कस कर भींच दिया…तो वो फासला भी ख़तम हो गया और मेरा बबुआ ने…ठीक उसके भग्नासा के उपर अटॅक कर दिया….!
उसने मेरे कंधे में दाँत गढ़ा दिए और ज़ोर्से काट लिया… मेरी चीख निकल पड़ी..
मेने कहा दीदी… छोड़ो ना.. काट क्यों रही हो….
वो बोली – क्यों निकल गयी सारी हेकड़ी… कह कर उसने अपनी एक टाँग मेरी जाँघ पर लपेट दी और पप्पू की सीधी ठोकर उसकी मुनिया के ठीक होठों पर पड़ी….
सीईईईईईईई….अह्ह्ह्ह… छोटू … कह कर उसने मेरे होठों पर किस कर लिया…और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को ज़ोर्से मसल डाला….
ना चाहते हुए भी मेरे हाथ उसके गोल-मटोल चुतड़ों पर फिरसे चले गये और मेने उन्हें अपनी मुट्ठी में कस कर मसल दिया….
उसने अपनी कमर को ज़ोर का झटका देकर अपनी मुनिया को मेरे पप्पू पर रगड़ दिया.. और मेरे होठ चूसने लगी…!