28-02-2019, 07:30 PM
छुटकी
अब तक
[i]थोड़ी देर में उन्होंने मेरे भाई को जोश दिला के मेरे ऊपर चढ़ा दिया। सुबह की तरह। सुबह धोके में हुआ था अबकी नशे में।
और सुबह की ही तरह जैसे नंदोई जी पीछे से उसके ऊपर चढ़ गए थे , वो उसके ऊपर चढ़ गए , और हचक हचक कर ली।
जब वो उतरे तो बस सुबह होने वाली थी और मेरे मायके का स्टेशन आने वाला था।
हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए। गाडी वो धीमी हो रही थी , वो फ्रेश होने बाथरूम गए तो मैंने , अपने ममेरे भाई से आँखा नचाकर पुछा ,
" हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "
मेरे कजिन का घर स्टेशन के पास ही था , इसलिए वो जाने लगा , और हम लोगो ने रिक्शा पकडा।
जाने के पहले वो इनसे गले मिला , तो ये बोले , साले ये सिर्फ सुहागरात थी. गर्मियों कि छुट्टी में आना तो पूरा हनीमून होगा। "
"एकदम जीजा जी ये कोई कहने कि पन्द्रह दिन के लिए आउंगा कम से कम। " वो बोला।
मुझसे मिलते हुए कान में बोला , " दी तेरी ससुराल में तेरी छोटी नन्द बहुत मस्त है , लेकिन सबसे मस्त हैं तुम्हारी सासु , क्या रसीला भोंसड़ा है उनका , एकदम शहद। आना तो पड़ेगा ही। "
५ मिनट में ही मैं अपने मायके में पहुँच गयी और दरवाजे पे छुटकी मिली मेरी सबसे छोटी बहन, जो ९ वें में पढ़ती थी।
[/i]
आगे
छुटकी , मेरी सबसे छोटी बहन। सबसे छोटी हम तीन बहनो में , लेकिन सबसे नटखट। मुझसे ४ साल छोटी और मंझली से डेढ़ साल। नौंवी में थी ( उमर का अंदाजा आप लगा लें , वैसे ही लड़कियों औरतों से उम्र पूछी नहीं जाती ).
एक छोटी सी पुरानी फ्राक में ( होली के दिन वैसे ही पुराने कपडे पहने जाते हैं , लेकिन उसका असर कई बार खतरनाक हो जाता है ), जो कई जगहो पे घिस भी गयी थी और टाइट भी।
उसको देख के तो उसके जीजा को जैसे मूठ मार गयी। एक दम ठिठक गए।
और बात भी तो थी।
लड़कियों पे जब जवानी आती है न तो झट से आ जाती है , बस वही छुटकी के साथ हो रहा था। चेहरा , आँखे उनमें तो भोलापन और शरारत थी लेकि देह जवानी ने दस्तक कब की दे दी है , उसकी चुगली कर रहीथी।
और उसके जीजा कि निगाहें बस वहीँ चिपकी थी।
उसके कच्चे टिकोरे , अब बड़े हो गए थे , कच्ची हरी अमिया की तरह और टाइट फ्राक से उछल , छलक रहे थे। कमर तो उसकी पतली थी ही , लेकिन अब हिप्स भरे भरे , पर तब भी छोटे , ब्वायिश।
लेकिन वो तो थे ही इस तरह के चूतड़ के शौक़ीन।
मुझे उनकी और उनके नंदोई से हुयी बात याद आगयी , जब उन्होंने बोला था कि वो छुटकी को ले आयेंगे और फिर दोनों मिल के लेंगे।
और अब उसके बड़े बड़े टिकोरों को देख के उनके इरादे पक्के हो गए थे।
"कच्चे टिकोरों को दबाने , नोचने , मसलने का मजा ही अलग है। एकदम खटमिठवा स्वाद ,…
और दूसरे , जो लौंडिया , इस उम्र में , चूंचिया उठान में दबवाने मिंजवाने लगती है , उसे के एक तो जोबन बहुत जल्दी खूब गद्दर हो जाते हैं और दूसरे , वो कभी को मसलने मिसवाने से मना नहीं करती , चाहे गाँव का मेला हो या शहर की बस हो।
और फिर सारे लौंडो के बीच सबसे पापुलर हो जाती है। और अगर इसी उमर में उसे दो तीन बार रगड़ के चोद दो न , भले बहुत परपराएगी उसकी , बिलबिलाएगी , चीखेगी , लेकिन एक बार जो लंड की आदत लग गयी न , तो फिर पूरी जिंदगी बुर में चींटे काटेंगे , वो भी लाल वाले।
कभी , किसी को मना नहीं करेगी। खुद टांग खोल देगी। "
ये बात इन्होने ही मुझे एक दिन समझायी थी।
उनकी निगाह अभी भी छुटकी के खटमिठवा टिकोरों पे ही अटकी थीं , की छुटकी ही आगे बढ़ी और उनके आँख के आगे चुटकी बजाते बोली ,
" क्या हो गया , जीजा जी , मैं वहीँ हूँ , आपकी सबसे छोटी साली , छुटकी। पहचान नहीं रहे हैं "
और छुटकी ने उन्हें खुद अंकवार में भीच लिया।
उन्होंने भी उसे खूब कस के अपनी बाहों में भीचते हुए , पहले तो गाल सहलाये , और फिर हथेली वहीँ पहुँच गयी , जहाँ थोड़ी देर पहले नदीदी निगाहें चिपकी थी। और बोले ,
" अरे तू बड़ी हो गयी है , बल्कि बड़ा हो गया है "
और हलके से फ्राक फाड़ते टिकोरों को दबा दिया।
मैं एक पल के लिए डर गयी। कहीं वो बिचक ना जाए , या कुछ उल्टा सीधा बोल न दे , होली की शुरुआत ही गड़बड़ हो जायेगी।
लेकिन छुटकी बिना उनका हाथ हटाये , बस बोली ,
" धत्त , जीजू "
उसके गोरे गुलाबी गाल शर्म से लाल हो रहे थे।
उठते उभारों को उन्होंने जोर से दबाया और उसके कान में होंठ लगा के पुछा ,
" हे सच बता , इन टिकोरों का स्वाद तो किसी ने चखा तो नहीं। "
" धत्त जीजू , उम्हह , हटिये ,… नहीं , आप भी न , छुआ भी नहीं "
और छुटकी ने खुद उनके हाथो के ऊपर अपने हाथ रख दिए।
" मैं चख लूँ , मुझे तो मना नहीं करेगी "
और उनके होंठ फ्राक के ऊपर से ही सीधे टिकोरों के नोक पे , और हलके से कचाक से उन्होंने काट लिया।
जीजा साली की होली शुरू हो गयी थी।
बिना छुड़ाने की कोशिश किये , छुटकी ने हलकी से सी सिसकारी भरी और बोली ,
" आप तो मेरे जीजा हैं , इकलौते जीजा। आप का इत्ता इंतज़ार कर रही थी मैं। "
तब तक अंदर से माँ की आवाज आयी ,
" अरे जीजा को अंदर भी घुसने देगी या बाहर ही खड़ा रखेगी। "
" अरे किसकी हिम्मत है जो मुझे अंदर घुसने से रोके, वो भी ससुराल में " .
द्विअर्थी डायलाग बोलने में तो ये सबसे आगे थे।
छुटकी ने अटैची पकड़ी , और हम तीनो अंदर आँगन में।
और ये फिर कैच कर लिए गए स्लिप में।
उनकी मझली साली के द्वारा।
अब तक
[i]थोड़ी देर में उन्होंने मेरे भाई को जोश दिला के मेरे ऊपर चढ़ा दिया। सुबह की तरह। सुबह धोके में हुआ था अबकी नशे में।
और सुबह की ही तरह जैसे नंदोई जी पीछे से उसके ऊपर चढ़ गए थे , वो उसके ऊपर चढ़ गए , और हचक हचक कर ली।
जब वो उतरे तो बस सुबह होने वाली थी और मेरे मायके का स्टेशन आने वाला था।
हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए। गाडी वो धीमी हो रही थी , वो फ्रेश होने बाथरूम गए तो मैंने , अपने ममेरे भाई से आँखा नचाकर पुछा ,
" हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "
मेरे कजिन का घर स्टेशन के पास ही था , इसलिए वो जाने लगा , और हम लोगो ने रिक्शा पकडा।
जाने के पहले वो इनसे गले मिला , तो ये बोले , साले ये सिर्फ सुहागरात थी. गर्मियों कि छुट्टी में आना तो पूरा हनीमून होगा। "
"एकदम जीजा जी ये कोई कहने कि पन्द्रह दिन के लिए आउंगा कम से कम। " वो बोला।
मुझसे मिलते हुए कान में बोला , " दी तेरी ससुराल में तेरी छोटी नन्द बहुत मस्त है , लेकिन सबसे मस्त हैं तुम्हारी सासु , क्या रसीला भोंसड़ा है उनका , एकदम शहद। आना तो पड़ेगा ही। "
५ मिनट में ही मैं अपने मायके में पहुँच गयी और दरवाजे पे छुटकी मिली मेरी सबसे छोटी बहन, जो ९ वें में पढ़ती थी।
[/i]
आगे
छुटकी , मेरी सबसे छोटी बहन। सबसे छोटी हम तीन बहनो में , लेकिन सबसे नटखट। मुझसे ४ साल छोटी और मंझली से डेढ़ साल। नौंवी में थी ( उमर का अंदाजा आप लगा लें , वैसे ही लड़कियों औरतों से उम्र पूछी नहीं जाती ).
एक छोटी सी पुरानी फ्राक में ( होली के दिन वैसे ही पुराने कपडे पहने जाते हैं , लेकिन उसका असर कई बार खतरनाक हो जाता है ), जो कई जगहो पे घिस भी गयी थी और टाइट भी।
उसको देख के तो उसके जीजा को जैसे मूठ मार गयी। एक दम ठिठक गए।
और बात भी तो थी।
लड़कियों पे जब जवानी आती है न तो झट से आ जाती है , बस वही छुटकी के साथ हो रहा था। चेहरा , आँखे उनमें तो भोलापन और शरारत थी लेकि देह जवानी ने दस्तक कब की दे दी है , उसकी चुगली कर रहीथी।
और उसके जीजा कि निगाहें बस वहीँ चिपकी थी।
उसके कच्चे टिकोरे , अब बड़े हो गए थे , कच्ची हरी अमिया की तरह और टाइट फ्राक से उछल , छलक रहे थे। कमर तो उसकी पतली थी ही , लेकिन अब हिप्स भरे भरे , पर तब भी छोटे , ब्वायिश।
लेकिन वो तो थे ही इस तरह के चूतड़ के शौक़ीन।
मुझे उनकी और उनके नंदोई से हुयी बात याद आगयी , जब उन्होंने बोला था कि वो छुटकी को ले आयेंगे और फिर दोनों मिल के लेंगे।
और अब उसके बड़े बड़े टिकोरों को देख के उनके इरादे पक्के हो गए थे।
"कच्चे टिकोरों को दबाने , नोचने , मसलने का मजा ही अलग है। एकदम खटमिठवा स्वाद ,…
और दूसरे , जो लौंडिया , इस उम्र में , चूंचिया उठान में दबवाने मिंजवाने लगती है , उसे के एक तो जोबन बहुत जल्दी खूब गद्दर हो जाते हैं और दूसरे , वो कभी को मसलने मिसवाने से मना नहीं करती , चाहे गाँव का मेला हो या शहर की बस हो।
और फिर सारे लौंडो के बीच सबसे पापुलर हो जाती है। और अगर इसी उमर में उसे दो तीन बार रगड़ के चोद दो न , भले बहुत परपराएगी उसकी , बिलबिलाएगी , चीखेगी , लेकिन एक बार जो लंड की आदत लग गयी न , तो फिर पूरी जिंदगी बुर में चींटे काटेंगे , वो भी लाल वाले।
कभी , किसी को मना नहीं करेगी। खुद टांग खोल देगी। "
ये बात इन्होने ही मुझे एक दिन समझायी थी।
उनकी निगाह अभी भी छुटकी के खटमिठवा टिकोरों पे ही अटकी थीं , की छुटकी ही आगे बढ़ी और उनके आँख के आगे चुटकी बजाते बोली ,
" क्या हो गया , जीजा जी , मैं वहीँ हूँ , आपकी सबसे छोटी साली , छुटकी। पहचान नहीं रहे हैं "
और छुटकी ने उन्हें खुद अंकवार में भीच लिया।
उन्होंने भी उसे खूब कस के अपनी बाहों में भीचते हुए , पहले तो गाल सहलाये , और फिर हथेली वहीँ पहुँच गयी , जहाँ थोड़ी देर पहले नदीदी निगाहें चिपकी थी। और बोले ,
" अरे तू बड़ी हो गयी है , बल्कि बड़ा हो गया है "
और हलके से फ्राक फाड़ते टिकोरों को दबा दिया।
मैं एक पल के लिए डर गयी। कहीं वो बिचक ना जाए , या कुछ उल्टा सीधा बोल न दे , होली की शुरुआत ही गड़बड़ हो जायेगी।
लेकिन छुटकी बिना उनका हाथ हटाये , बस बोली ,
" धत्त , जीजू "
उसके गोरे गुलाबी गाल शर्म से लाल हो रहे थे।
उठते उभारों को उन्होंने जोर से दबाया और उसके कान में होंठ लगा के पुछा ,
" हे सच बता , इन टिकोरों का स्वाद तो किसी ने चखा तो नहीं। "
" धत्त जीजू , उम्हह , हटिये ,… नहीं , आप भी न , छुआ भी नहीं "
और छुटकी ने खुद उनके हाथो के ऊपर अपने हाथ रख दिए।
" मैं चख लूँ , मुझे तो मना नहीं करेगी "
और उनके होंठ फ्राक के ऊपर से ही सीधे टिकोरों के नोक पे , और हलके से कचाक से उन्होंने काट लिया।
जीजा साली की होली शुरू हो गयी थी।
बिना छुड़ाने की कोशिश किये , छुटकी ने हलकी से सी सिसकारी भरी और बोली ,
" आप तो मेरे जीजा हैं , इकलौते जीजा। आप का इत्ता इंतज़ार कर रही थी मैं। "
तब तक अंदर से माँ की आवाज आयी ,
" अरे जीजा को अंदर भी घुसने देगी या बाहर ही खड़ा रखेगी। "
" अरे किसकी हिम्मत है जो मुझे अंदर घुसने से रोके, वो भी ससुराल में " .
द्विअर्थी डायलाग बोलने में तो ये सबसे आगे थे।
छुटकी ने अटैची पकड़ी , और हम तीनो अंदर आँगन में।
और ये फिर कैच कर लिए गए स्लिप में।
उनकी मझली साली के द्वारा।