30-06-2020, 12:54 PM
४.
मुझे अपने अम्मी से बात करनी चाहिए थी, और मैं वहां से डर कर भाग गया , लेकिन मैं उनसे क्या बोलता, अम्मी आप ऐसे रंडी की तरह रात को क्यों और किस से चुदवा रही थी, आप अब्बू को ऐसे धोखा क्यों दे रही है, और मैं अपना सर जोड़ जोड़ से हिला रहा था, क्युकी मेरे दिमाग में कल रात की वो तस्वीर आ गयी, जब वो बिजली चमकी थी और मेरी अम्मी का संगमरमर जैसा सरीर किसी काले आदमी के साथ लिपटा हुआ था, और बारिश से ऐसे प्रतीत हो रहा था, और वो बारिश जो उन्दोनो को भिंगो रही थी, मेरी का नशे में झूमता हुआ ऊपारी शरीर जैसे कोई नाग के सामने बिन बजा रहा हो, या उनका बड़ा गांड जो किसी तकिये की तरह उस आदमी के जांघ पे गिर रहा था, उनके लम्बे बाल,
'आआआआआह कितना खुशकिस्मत है साला वो '
'रेहान कुछ बोलै तूने '
'नहीं बस कुछ सोच रहा था, आकाश मैं घर निकालता हूँ ' आकाश मेरे तरफ देखता है, और खड़ा हो मुझे बहार छोड़ने चल देता है,
'बाई, फिर मिलते हैं '
मैं अपने मित्र के घर से निकल अपने अब्बू के यहाँ गया, यहाँ पे अभी भी एक अजीब सा मनहूस सा माहौल बना हुआ था, मैं घर के अंदर जा अपने लिए खाने के लिए ब्रेड पे बटर लगाने लगा,
'रेहान कल कहाँ चले गए थे तुम ' मैं चंक जाता हूँ, यहाँ मेरे अब्बू खड़े थे, उनका आंख बिलकुल कला था, और लग रहा था जैसे इन्होने भी नशा किया हो, वो अपने सर को जोड़ जोड़ से दबा रहे थे,
'अब्बू आकाश के घर था,' मेरे अब्बू मेरे दोस्त का नाम सुन उनका चेहरा थोड़ा सामान्य होता है, और वो पानी का गिलास में पानी लेने लगते हैं,
'अच्छा ' और मेरे अब्बू वापस जाने लगते हैं, उन्हें देख लग रहा था जैसे उनके अंदर कोई जान ही नहीं हो, मेरे अब्बू किचन से निकलने ही वाले थे की मैं पूछता हूँ,
'अब्बू आप दूसरा निकाह करोगे अम्मी के होते हुए' मेरे अब्बू घूम मुझे घूरने लगते हैं ,
'हाँ ' मेरे अब्बू इतना बोल के वापस बहार चले जाते हैं और मैं वहीँ पे बैठ जाता हूँ, मेरी अम्मी सब जानती थी, मेरा मन किया अम्मी का कारस्तानी अब्बू को बताने को लेकिन मैं रुक गया, मुझे नहीं मॉम की ऐसा मैंने क्यों किया, सायद मेरे अंदर अब्बू के प्रति गुस्सा भर गया था, और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे अम्मी के साथ धोका हुआ है, जो भी वजह हो, मैंने अब्बू को कुछ नहीं बताया और वापस अपने कमरे में चला गया.
-----------------------------
लेकिन उस रात ने मेरे ऊपर बहुत गहरा असर डाला, मेरी अम्मी जिन्हे आजतक मैंने हमेशा कपड़ो में लिपटा देखा था, उन्हें मैंने ना सिर्फ नंगा देखा बल्कि किसी पागल रांड की तरह, किसी अय्याश की तरह दारू के नशे में, किसी गैर मर्द के गोद में देखा, मेरी आंखें जब भी बंद होती मेरी अम्मी का तन बदन मेरे सामने आ जाता,
और मेरा लण्ड न चाहते हुए भी खड़ा होने लगता, मेरी हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, और मैं उस रात अपने अम्मी को सोच सोच रात भर अपने लुंड पे हाँथ चलाया, मेरी इस बर्बरता से मेरा लुंड बुरी तरह से चील गया लेकिन मेरा हवस ख़तम होने का नाम नहीं ले रहा था, मुझे वो या आते ही मेरा लुंड तनने लगता , और ऐसे ही मैंने वो रात बिता दिए|
मेरी अम्मी अभी भी वापस घर नहीं आयी थी, और हमारा घर सुना सुना लगाने लगा था, मुझे मालूम था मेरी अम्मी अभी तो बिलकुल नहीं आएगी, और खासकर मेरे अब्बू का दूसरा निकाह का तारीख नज़दीक आ रहा था, और वो अभी अपने गरूर पे लत मरने कतई नहीं आती, और मेरी अम्मी वहा मेरे अब्बू के पीठ पीछे क्या गुल खिलरहि होगी, उसका मैं सिर्फ अंदाज़ा ही लगा सकता था, लेकिन रात भर मेरी कल्पना मेरे पे हावी हो जाती और मैं अपने अम्मी को सोच सोच अपने लुंड को मसल मसल के घायल कर देता था,
मैंने अपने अंदर मान लिया था की मेरी अम्मी एक बहुत गन्दी खातून है, लेकिन मेरे दिन में ये ख्याल आया की क्या मेरी अम्मी सही में एक अपने मन से ये कर रही है, या अब्बू के दिया धोखे से बहक गयी है, मेरे अंदर ये ख्याल मंडराते रहता, और मेरे अंदर उनके प्रति बहुत गन्दगी भर गया था, और मैं अपने अम्मी पे ही फ़िदा हो गया था, मेरी कल्पना पागल होते जा रही थी, और मैं सचाई जानना चाहता था,
--------------------------------
मुझे उज़्मा से नफरत उस से मिलाने से पहले से ही हो गया था, और वो मेरी नयी अम्मी बन कर आने वाली थी, उसकी उम्र खुद सिर्फ २३-२४ थी और वो मेरी नयी अम्मी बनाने वाली थी, एक १७ साल के लडके की, वो खुद मेरे अब्बू से २१ साल छोटी थी, मैं ये सोच सोच कर ही अपना सर पकड़े हुआ था, मेरे अब्बू कैसे इतनी काम उम्र की लड़की को पेट से कर सकता है, क्या उन्हें समझ का कोई फ़िक्र नहीं, क्या उन्हें मेरी अम्मी का कोई फर्क नहीं|
और इसी तरह निकाह का दिन आ गया और चारो और दुनिया से बच्चा के एक छोटे से मस्जिद में ये निकाह हो रहा था, जिस में जाने का कोई इरादा नहीं था, मैं काफी दुखी था, और मेरी जिंदगी जहन्नुम बन गयी थी, मेरे और मेरे अम्मी और मेरे अब्बू में अब बातें भी नहीं होती थी, मैं अपने अम्मी को कॉल करता लेकिन हमेशा मामा उठा के फ़ोन पटक देता, ऊपर से मेरे अपनी अम्मी के लिए हवस, यही सोचते मैं फैसला करता हूँ की मैं यहाँ अपने नयी 'अम्मी' की स्वागत तो नहीं करूँगा, और मैं एक छोटा बैग बना के अपने अम्मी के पास जाने लगता हूँ|
मैं घर से निकल जाता हूँ और बस स्टैंड पहुँच अपने अम्मी के सहर का बस का इंतजार करने लगता हूँ, मेरी नजर थोड़ी दूर जाता है, जहा एक आदमी एक बड़े से गाड़ी का चक्का बदलने की कोसिस कर रहा था, मैं लोगो की मदद करने में सरमाता नहीं था, इसलिए मैं आगे बढ़ जाता हूँ,
'क्या हुआ बाबा इधर मुझे दीजिये मैं चक्का ढीला कर देता हूँ ' वो बूढ़ा आदमी थक गया था, और मुझे दे देता है,
'भला हो आपका बीटा ' और मैं तैयार के पेच ढीला करने लगता हूँ,
'कहा जा रही है ये गाड़ी बाबा, कखघ सहर जा रहे जो तो मुझे भी छोड़ते चलो,'
'बाबू हम उधर ही जायेंगे, लेकिन पहले हमें एक निकाह में मैडम को पहुँचाना है '
'वाह बाबा, इसमें दुल्हन है '
'है बाबू, कोई बहुत अमीर ख़ानदान की है, मैं ये सुन थोड़ा रूचि लने लगा , और चुप कर गाड़ी के अंदर झाँका लेकिन परदे लगे होने के कारन मुझे कुछ नहीं दिखा | लेकिन तभी दरवाजा खुलता है, और मेरी नज़र एक निहायती भोली और दिलकस दुल्हन पे जाती है और उसे देख मेरा दिल मरोर खा जाता है,,
'चाचा और कितना देर लगेगा '
'दो मिनट और बिटिया , आप अंदर बैठी, आपको गरमी लगेगी,' मैं उसे तब तक घूरता रहा जब तक गेट बंद करते वक़्त हम दोनों की ऑंखें एक नहीं हुई, और वो ऐसे सरमाइये जैसे वो किसी फिल्म की हेरोइन हो मेरा दिल बागबान हो गया,
'सुक्रिया बाबू ' मैंने उस चाचा को धन्यवाद किया और वह से वापस बस स्टैंड पे खड़ा हो गया,
'इसका सौहार बहुत खुशकिस्मत होगा, खुदा करे इसे मेरे अब्बू जैसे धोकेबाज़ सौहार न मिले'
मुझे अपने अम्मी से बात करनी चाहिए थी, और मैं वहां से डर कर भाग गया , लेकिन मैं उनसे क्या बोलता, अम्मी आप ऐसे रंडी की तरह रात को क्यों और किस से चुदवा रही थी, आप अब्बू को ऐसे धोखा क्यों दे रही है, और मैं अपना सर जोड़ जोड़ से हिला रहा था, क्युकी मेरे दिमाग में कल रात की वो तस्वीर आ गयी, जब वो बिजली चमकी थी और मेरी अम्मी का संगमरमर जैसा सरीर किसी काले आदमी के साथ लिपटा हुआ था, और बारिश से ऐसे प्रतीत हो रहा था, और वो बारिश जो उन्दोनो को भिंगो रही थी, मेरी का नशे में झूमता हुआ ऊपारी शरीर जैसे कोई नाग के सामने बिन बजा रहा हो, या उनका बड़ा गांड जो किसी तकिये की तरह उस आदमी के जांघ पे गिर रहा था, उनके लम्बे बाल,
'आआआआआह कितना खुशकिस्मत है साला वो '
'रेहान कुछ बोलै तूने '
'नहीं बस कुछ सोच रहा था, आकाश मैं घर निकालता हूँ ' आकाश मेरे तरफ देखता है, और खड़ा हो मुझे बहार छोड़ने चल देता है,
'बाई, फिर मिलते हैं '
मैं अपने मित्र के घर से निकल अपने अब्बू के यहाँ गया, यहाँ पे अभी भी एक अजीब सा मनहूस सा माहौल बना हुआ था, मैं घर के अंदर जा अपने लिए खाने के लिए ब्रेड पे बटर लगाने लगा,
'रेहान कल कहाँ चले गए थे तुम ' मैं चंक जाता हूँ, यहाँ मेरे अब्बू खड़े थे, उनका आंख बिलकुल कला था, और लग रहा था जैसे इन्होने भी नशा किया हो, वो अपने सर को जोड़ जोड़ से दबा रहे थे,
'अब्बू आकाश के घर था,' मेरे अब्बू मेरे दोस्त का नाम सुन उनका चेहरा थोड़ा सामान्य होता है, और वो पानी का गिलास में पानी लेने लगते हैं,
'अच्छा ' और मेरे अब्बू वापस जाने लगते हैं, उन्हें देख लग रहा था जैसे उनके अंदर कोई जान ही नहीं हो, मेरे अब्बू किचन से निकलने ही वाले थे की मैं पूछता हूँ,
'अब्बू आप दूसरा निकाह करोगे अम्मी के होते हुए' मेरे अब्बू घूम मुझे घूरने लगते हैं ,
'हाँ ' मेरे अब्बू इतना बोल के वापस बहार चले जाते हैं और मैं वहीँ पे बैठ जाता हूँ, मेरी अम्मी सब जानती थी, मेरा मन किया अम्मी का कारस्तानी अब्बू को बताने को लेकिन मैं रुक गया, मुझे नहीं मॉम की ऐसा मैंने क्यों किया, सायद मेरे अंदर अब्बू के प्रति गुस्सा भर गया था, और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे अम्मी के साथ धोका हुआ है, जो भी वजह हो, मैंने अब्बू को कुछ नहीं बताया और वापस अपने कमरे में चला गया.
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लेकिन उस रात ने मेरे ऊपर बहुत गहरा असर डाला, मेरी अम्मी जिन्हे आजतक मैंने हमेशा कपड़ो में लिपटा देखा था, उन्हें मैंने ना सिर्फ नंगा देखा बल्कि किसी पागल रांड की तरह, किसी अय्याश की तरह दारू के नशे में, किसी गैर मर्द के गोद में देखा, मेरी आंखें जब भी बंद होती मेरी अम्मी का तन बदन मेरे सामने आ जाता,
और मेरा लण्ड न चाहते हुए भी खड़ा होने लगता, मेरी हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, और मैं उस रात अपने अम्मी को सोच सोच रात भर अपने लुंड पे हाँथ चलाया, मेरी इस बर्बरता से मेरा लुंड बुरी तरह से चील गया लेकिन मेरा हवस ख़तम होने का नाम नहीं ले रहा था, मुझे वो या आते ही मेरा लुंड तनने लगता , और ऐसे ही मैंने वो रात बिता दिए|
मेरी अम्मी अभी भी वापस घर नहीं आयी थी, और हमारा घर सुना सुना लगाने लगा था, मुझे मालूम था मेरी अम्मी अभी तो बिलकुल नहीं आएगी, और खासकर मेरे अब्बू का दूसरा निकाह का तारीख नज़दीक आ रहा था, और वो अभी अपने गरूर पे लत मरने कतई नहीं आती, और मेरी अम्मी वहा मेरे अब्बू के पीठ पीछे क्या गुल खिलरहि होगी, उसका मैं सिर्फ अंदाज़ा ही लगा सकता था, लेकिन रात भर मेरी कल्पना मेरे पे हावी हो जाती और मैं अपने अम्मी को सोच सोच अपने लुंड को मसल मसल के घायल कर देता था,
मैंने अपने अंदर मान लिया था की मेरी अम्मी एक बहुत गन्दी खातून है, लेकिन मेरे दिन में ये ख्याल आया की क्या मेरी अम्मी सही में एक अपने मन से ये कर रही है, या अब्बू के दिया धोखे से बहक गयी है, मेरे अंदर ये ख्याल मंडराते रहता, और मेरे अंदर उनके प्रति बहुत गन्दगी भर गया था, और मैं अपने अम्मी पे ही फ़िदा हो गया था, मेरी कल्पना पागल होते जा रही थी, और मैं सचाई जानना चाहता था,
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मुझे उज़्मा से नफरत उस से मिलाने से पहले से ही हो गया था, और वो मेरी नयी अम्मी बन कर आने वाली थी, उसकी उम्र खुद सिर्फ २३-२४ थी और वो मेरी नयी अम्मी बनाने वाली थी, एक १७ साल के लडके की, वो खुद मेरे अब्बू से २१ साल छोटी थी, मैं ये सोच सोच कर ही अपना सर पकड़े हुआ था, मेरे अब्बू कैसे इतनी काम उम्र की लड़की को पेट से कर सकता है, क्या उन्हें समझ का कोई फ़िक्र नहीं, क्या उन्हें मेरी अम्मी का कोई फर्क नहीं|
और इसी तरह निकाह का दिन आ गया और चारो और दुनिया से बच्चा के एक छोटे से मस्जिद में ये निकाह हो रहा था, जिस में जाने का कोई इरादा नहीं था, मैं काफी दुखी था, और मेरी जिंदगी जहन्नुम बन गयी थी, मेरे और मेरे अम्मी और मेरे अब्बू में अब बातें भी नहीं होती थी, मैं अपने अम्मी को कॉल करता लेकिन हमेशा मामा उठा के फ़ोन पटक देता, ऊपर से मेरे अपनी अम्मी के लिए हवस, यही सोचते मैं फैसला करता हूँ की मैं यहाँ अपने नयी 'अम्मी' की स्वागत तो नहीं करूँगा, और मैं एक छोटा बैग बना के अपने अम्मी के पास जाने लगता हूँ|
मैं घर से निकल जाता हूँ और बस स्टैंड पहुँच अपने अम्मी के सहर का बस का इंतजार करने लगता हूँ, मेरी नजर थोड़ी दूर जाता है, जहा एक आदमी एक बड़े से गाड़ी का चक्का बदलने की कोसिस कर रहा था, मैं लोगो की मदद करने में सरमाता नहीं था, इसलिए मैं आगे बढ़ जाता हूँ,
'क्या हुआ बाबा इधर मुझे दीजिये मैं चक्का ढीला कर देता हूँ ' वो बूढ़ा आदमी थक गया था, और मुझे दे देता है,
'भला हो आपका बीटा ' और मैं तैयार के पेच ढीला करने लगता हूँ,
'कहा जा रही है ये गाड़ी बाबा, कखघ सहर जा रहे जो तो मुझे भी छोड़ते चलो,'
'बाबू हम उधर ही जायेंगे, लेकिन पहले हमें एक निकाह में मैडम को पहुँचाना है '
'वाह बाबा, इसमें दुल्हन है '
'है बाबू, कोई बहुत अमीर ख़ानदान की है, मैं ये सुन थोड़ा रूचि लने लगा , और चुप कर गाड़ी के अंदर झाँका लेकिन परदे लगे होने के कारन मुझे कुछ नहीं दिखा | लेकिन तभी दरवाजा खुलता है, और मेरी नज़र एक निहायती भोली और दिलकस दुल्हन पे जाती है और उसे देख मेरा दिल मरोर खा जाता है,,
'चाचा और कितना देर लगेगा '
'दो मिनट और बिटिया , आप अंदर बैठी, आपको गरमी लगेगी,' मैं उसे तब तक घूरता रहा जब तक गेट बंद करते वक़्त हम दोनों की ऑंखें एक नहीं हुई, और वो ऐसे सरमाइये जैसे वो किसी फिल्म की हेरोइन हो मेरा दिल बागबान हो गया,
'सुक्रिया बाबू ' मैंने उस चाचा को धन्यवाद किया और वह से वापस बस स्टैंड पे खड़ा हो गया,
'इसका सौहार बहुत खुशकिस्मत होगा, खुदा करे इसे मेरे अब्बू जैसे धोकेबाज़ सौहार न मिले'