28-06-2020, 06:00 AM
० १.
'सही से बॉल डाल साले, स्कोर बहुत काम है', मैंने अपने दोस्त आकाश को बोला , अभी हमलोग क्रिकेट खेल रहे थे की पीछे से कोई मुझे आवाज़ लगता है,
'रेहान रेहान' मैं पीछे मुड के देखता हूँ, वहा पीछे मेरे घर का माली मुझे आवाज़ दे राहा था,
'क्या हुआ पठान बाबा , जरुरी काम है क्या अभी थोड़ा बिजी ' मेरे घर का काम करने वाला पठान बाबा मेरे करीब आ जाता है और मेरा हाथ पकड़ लेता हैं,
'आप घर जल्दी चलिए बाबा', पठान बाबा के सर पे आये पसीने को देख मैं आगे कुछ नहीं बोलता हूँ, मुझे समझ में आ गया था की घर में कुछ गड़बड़ है,
'आकाश भाई मुझे अभी तुरंत घर जाना पड़ेगा, तू आगे संभाल ' और मैं पठान बाबा के साथ निकल जाता हूँ, मैं पठान बाबा के तरफ देखता हूँ, वो काफी चिंतित दिख रहे थे, लेकिन मुझे डर से पूछने की हिम्मत नहीं हुई, घर पहुंचता हूँ तो चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, और मैं इस से और डर गया, वहा कोई नहीं था ,
'बाबा बाकि लोग कहाँ हैं, यहाँ तो बिल्कुन सन्नाटा है, कुछ बहुत ख़राब तो नहीं हो गया है,' और मेरे अंदर का डर बढ़ाते जा रहा था,
'रेहान बाबा आपके वालिद और वालिदा में बहुत बड़ा लड़ाई हो गया है, '
'क्यू कैसे ' और मैं घर के कुर्सी पे बैठ जाता हूँ,
'रहन बाबा, वो आपके वालिद साहब दूसरा निकाह की बात लेके आये थे उसी से लड़ाई सुरू हुई हैं, मैं आपको लाने गया तब तक ये लोग सायद कहीं बहार चले गए हैं ' मुझे ये सुन बहुत हैरानी होती हैं, मेरे अम्मी अब्बू और दूसरा निकाह ऐसा नहीं हो सकता, मेरे अब्बू तो मेरे अम्मी से काफी मोहब्बत करते हैं, फिर ये दूसरा निकाह की बात ,
'बाबा ये दूसरा निकाह का क्या चक्कर है , अचानक ये सब '
'रेहान बाबा आपके दादी जान ने रिस्ता लेके आये हैं, बाकि तो मुझे भी नहीं मालूम ' और पठान बाबा उठ के अपने काम को चला जाता है, और वही मैं बैठ के सोचने लगता हूँ की आखिर मेरी अम्मी और अब्बू गए कहाँ, और मैं अपने फ़ोन से अब्बू अम्मी का नंबर लगाता हूँ, लेकिन कोई जवाब नहीं देता, और दादी जान से बात करने का मन नहीं कर रहा था, और मैं वही पे सर पीछे कर सोने लगा, और वही मुझे नींद सी आने लगी,
'भाई मैच जीत गए, चल पार्टी करते हैं ' ये आवाज़ मेरे कानो में जाती है, और मेरा आँख खुल जाता है, वहा पे मेरे साथ क्रिकेट खेलेने वाले कुछ साथी थे, और उन्हें देख मेरे अंदर का डर और गुस्सा थोड़ा कम हुआ,
'चल चलते हैं ' और हम तीनो दोस्त कुछ चिनी खाने के लिए निकलते हैं, और मैं अपने दोस्तों के बातो में मसगुल हो जाता हूँ, लेकिन मेरे दिमाग घर में हुए इस परेशानी पे अटका हुआ था, और बार बार मैं उसी चिंता में खो जा रहा था,
'रेहान तेरा तबियत सही है न, कहा ध्यान है तेरा ' मैं अपना सर उठा के देखता हूँ,
'भाई लोग मैं चलता हूँ मेरा आज दिल ही नहीं लग रहा है ' और मैं वहा से अपने घर के तरफ ये उम्मीद लगाए की सब लोग घर काम से काम पहुँच गए होंगे , मैं जैसे ही वह से निकालता हूँ मेरा एक और दोस्त पीछे से मेरे पास अत है, और मुझे पकड़ लेता है,
'भाई तुझे क्या हुआ है, तेरा मुँह इतना क्यों लटका हुआ है, खेलते वक़्त भी तुम अचानक चले गए थे ' और मुझसे बातें करने की कोसिस करने लगता है, लेकिन मेरा मन बहुत ख़राब लग रहा था और मैं घर जाना चाहता था,
'कुछ नहीं हुआ है ' और मैं अपने घर के तरफ जाने लगता हूँ, मेरा दिल बहुत ख़राब था और मेरे अंदर मेरे अब्बा पे भी बहुत गुस्सा आ रहा था, इतना उम्र में दूसरा निकाह, और मैं घर पहुँच गया, घर पहुंचा तो वह पे मेरे दादा दादी और अब्बू मौजूद थे, और उन्हें देख मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया, लेकिन मैं उस गुस्से को पी गया, लेकिन मैं वहा चल रहे बातों को सुन रहा था, और उसी से मुझे मालूम पड़ा की मेरे अब्बू निकाह नहीं करना चाह रहे थे और उन्होंने मेरी अम्मी की काफी दलील दी, लेकिन उनके वालिद ये निकाह से पीछे नहीं हैट रहे था, मुझे समझ में नहीं आ रहा था की मेरे अब्बू के वालिद इस दूसरे निकाह के लिए इतना जिद्द क्यों कर रहे हैं, और घर पे उसी वक़्त मेरे अम्मी के वालिद ,वलिदान और कुछ रिस्तेदार पहुंचे और मामला देखते ही देखते काफी गरम हो गया और पठान बाबा मुझे वह से बहार जाने लिए बोल दिए, घर का माहौल काफी ख़राब हो गया था, और मुझे समझ में नहीं आ रहा था की आखिर हमारे घर में ऐसी स्थिति कैसे हो गयी, मुझे लगा था सायद मेरा परिवार मिल जल के रहने वाला होगा लेकिन सायद सचाई काफी अलग निकल रहा था, और अभीतक अम्मी का कोई आता पता नहीं चला था, और मुझे काफी चिंता होने लगी, मैं वही बहार खड़ा हो घर का बहस बेहसि से दूर जाने की कोसिस कर रहा था, बहार मोहल्ले के भी काफी लोग तमाशा देखने जुटे हुए थे, और मेरा दिमाग ख़राब हो गया,
'तुम लोगो को और कोई काम नहीं है, घर संभाला नहीं है , जाओ यहाँ से ' और मैंने वहा से सबको भगा दिया, और वही पे दीवाल पे बैज गया ताकि और भीड़ जमा न हो, लेकिन घर में सोर भढ़ता ही जा रहा था, और मैं उठ के अपने दोस्त के घर जाने लगा, लेकिन सरे दोस्त मेरे कही न कही व्यस्त थे, और मुझे बहुत अकेला अकेला महसूस हो रहा था, और मैं बाजार में इधर उधर घूमने लगा, मुझे आंटी ताड़ना बहुत पसंद था, लेकिन आज उसमे भी मन नहीं लग रहा था, और कुछ घंटे में दुकान बंद होने लगे और बहुत भरी पेअर से मैं अपने घर के तरफ जाने लगा, वहा पे सब सांत पड़ा हुआ था, और मेरी अम्मी का परिवार वापस चला गया था, लेकिन उनका खु कुछ आता पता नहीं लग रहा था, और मुझे खुद गुस्से और डर से घर वालो से पूछने का मन नहीं कर रहा था, वह पे मेरे अब्बू अपना सर झुकाये बैठे हुए थे और मैं उनके पास गया,
'अब्बू ये क्या सब है, दूसरा निकाह आपको क्या हो गया हैँ ' मेरे अब्बू अपना सर ऊपर करते हैं,
'माँ बीटा जी, लेकिन यहाँ कोई दूसरा निकाह नहीं कर रहा , मैं आपकी अम्मी नहीं संभल पाटा हूँ, दूसरा कहाँ से सम्भालूंगा' और हँसाने लगते हैं, उनका ये बात सुनके मुझे भी सुकून मिलता है,
'अब्बू अम्मी कहाँ हैं, और कब वापस आएँगी '
'बीटा जी अभी अम्मी आपकी मायके में हैं और कुछ ही दिनों में वापस आ जाएगी '
'जब आपने आपने मना कर दिया दूसरा निकाह का तो वो क्यों नहीं आ रही है, अब्बू मैं उनसे बात करूँ '
'नहीं बीटा जी, आप अपना काम कीजिये वो कुछ दिनों में वापस आ जाएगी' मैं वहा से उठ अपने कमरे में चला जाता हूँ, अपने अब्बू की बात सुनकर मुझे थोड़ी राहत मिली, और मैं अगले दिन अपने अम्मी को खुद वापस लाने का फैसला करता हूँ, मुझे रात को सुकून भरा नींद आया,
अगले दिन मैं घर से बस पकड़ के अपने अम्मी को वापस लेने अपने ननिहाल जाता हूँ, और सफर लगभग तीन घंटे का था, मैं बस में अपना हैडफ़ोन लगा के खिड़की के पास बैठ जाता हूँ, और बस निकल पड़ती हैं मेरे ननिहाल के तरफ जो करीब १०० मिल का रास्ता था , मुझे नींद आ जाता है, और मेरा नींद खुलता है, जब बस का तेज झटका लगता है, मैं अपने ननिहाल वाले छोटे से सहर पहुंच गया था, और मेरा सफर करीब २० मिनट का बचा हुआ था, और मैं खिड़की से बहार झांकने लगा, और मेरी नजर पड़ती है, मेरी अम्मी पे जो एक मिठाई के दुकान पे खड़ी थी, और मैं झट से बस रुकवा के उतर जाता हूँ, और अपने अम्मी के पास जाने लगता हूँ, मैं आवाज़ देने ही वाला था की, मेरी अम्मी के पास एक अनजान आदमी आ जाता है, और अम्मी उसके साथ एक कार में बैठ जाती है, मैंने उस आदमी को पहले कभी नहीं देखा था, और मैं वह से एक ऑटो पकड़ उस गाड़ी का पीछे करने लगता हूँ, वो गाड़ी एक पतली सड़क पे घूम जाता है, जिसपे ऑटो वाला जाने से मन कर देता है, लेकिन मैं झट से उतर जाता हूँ, और उस रस्ते से आगे पैदल ही बढ़ने लगता हूँ, मुझे अबदार से ऐसा लगाने लगा था की वो कोई और है, मेरी अम्मी नहीं, लेकिन मुझे अंदर से ये भी डर था की, वो असली में मेरी अम्मी न हो, कुछ दूर आगे बढ़ने पे वह पे कार लगा मिलता है, और मैं चिप के वहा पे जाता हूँ, और अंदर मुझे एक नक़ाब पॉश औरत और एक आदमी दिखता है, और वो नक़ाब वाली आंटी उस आदमी को चुम रही थी, मैं खिड़की के सामने डायरेक्ट ना जाके बगल में से सुनने लगता हूँ, अंदर से चप चप बहुत आवाज़ आ रही थी, और मेरा सरीर ऐसे जकाँम्प रहा था जैसे किसी सम्प ने काट लिया हो, तभी अचानक से आवाज़ आता है,
'सोफ़िया लुंड मुँह में ले न ' और ये सुन मेरा दिमाग चलता है, मेरी अम्मी का नाम सोफ़िया तो है ही नहीं, और मैं हिम्मत कर के सर उठा के अंदर देखता हूँ, वो आदमी अपने सर को पीछे कर आहें भर रहा था, और सोफ़िया नमक खातून उसका लुंड चूस रही थी, लेकिन वो मेरी अम्मी नहीं थी, मुझे ग़लतफ़हमी हो गयी थी, मेरा लेकिन ये देख लण्ड खड़ा हो गया था, और मैं वही कार के पास बैठ मुठ मरने लगा, कुछ पल के लिए मेरे अंदर से डर भी निकल गया था, और अपना माल वही गिरा के मैं वापस सड़क पे गाड़ी ढूंढने और अपनी अम्मी को वापस लाने के मुहीम पे वापस निकल गया.
'सही से बॉल डाल साले, स्कोर बहुत काम है', मैंने अपने दोस्त आकाश को बोला , अभी हमलोग क्रिकेट खेल रहे थे की पीछे से कोई मुझे आवाज़ लगता है,
'रेहान रेहान' मैं पीछे मुड के देखता हूँ, वहा पीछे मेरे घर का माली मुझे आवाज़ दे राहा था,
'क्या हुआ पठान बाबा , जरुरी काम है क्या अभी थोड़ा बिजी ' मेरे घर का काम करने वाला पठान बाबा मेरे करीब आ जाता है और मेरा हाथ पकड़ लेता हैं,
'आप घर जल्दी चलिए बाबा', पठान बाबा के सर पे आये पसीने को देख मैं आगे कुछ नहीं बोलता हूँ, मुझे समझ में आ गया था की घर में कुछ गड़बड़ है,
'आकाश भाई मुझे अभी तुरंत घर जाना पड़ेगा, तू आगे संभाल ' और मैं पठान बाबा के साथ निकल जाता हूँ, मैं पठान बाबा के तरफ देखता हूँ, वो काफी चिंतित दिख रहे थे, लेकिन मुझे डर से पूछने की हिम्मत नहीं हुई, घर पहुंचता हूँ तो चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, और मैं इस से और डर गया, वहा कोई नहीं था ,
'बाबा बाकि लोग कहाँ हैं, यहाँ तो बिल्कुन सन्नाटा है, कुछ बहुत ख़राब तो नहीं हो गया है,' और मेरे अंदर का डर बढ़ाते जा रहा था,
'रेहान बाबा आपके वालिद और वालिदा में बहुत बड़ा लड़ाई हो गया है, '
'क्यू कैसे ' और मैं घर के कुर्सी पे बैठ जाता हूँ,
'रहन बाबा, वो आपके वालिद साहब दूसरा निकाह की बात लेके आये थे उसी से लड़ाई सुरू हुई हैं, मैं आपको लाने गया तब तक ये लोग सायद कहीं बहार चले गए हैं ' मुझे ये सुन बहुत हैरानी होती हैं, मेरे अम्मी अब्बू और दूसरा निकाह ऐसा नहीं हो सकता, मेरे अब्बू तो मेरे अम्मी से काफी मोहब्बत करते हैं, फिर ये दूसरा निकाह की बात ,
'बाबा ये दूसरा निकाह का क्या चक्कर है , अचानक ये सब '
'रेहान बाबा आपके दादी जान ने रिस्ता लेके आये हैं, बाकि तो मुझे भी नहीं मालूम ' और पठान बाबा उठ के अपने काम को चला जाता है, और वही मैं बैठ के सोचने लगता हूँ की आखिर मेरी अम्मी और अब्बू गए कहाँ, और मैं अपने फ़ोन से अब्बू अम्मी का नंबर लगाता हूँ, लेकिन कोई जवाब नहीं देता, और दादी जान से बात करने का मन नहीं कर रहा था, और मैं वही पे सर पीछे कर सोने लगा, और वही मुझे नींद सी आने लगी,
'भाई मैच जीत गए, चल पार्टी करते हैं ' ये आवाज़ मेरे कानो में जाती है, और मेरा आँख खुल जाता है, वहा पे मेरे साथ क्रिकेट खेलेने वाले कुछ साथी थे, और उन्हें देख मेरे अंदर का डर और गुस्सा थोड़ा कम हुआ,
'चल चलते हैं ' और हम तीनो दोस्त कुछ चिनी खाने के लिए निकलते हैं, और मैं अपने दोस्तों के बातो में मसगुल हो जाता हूँ, लेकिन मेरे दिमाग घर में हुए इस परेशानी पे अटका हुआ था, और बार बार मैं उसी चिंता में खो जा रहा था,
'रेहान तेरा तबियत सही है न, कहा ध्यान है तेरा ' मैं अपना सर उठा के देखता हूँ,
'भाई लोग मैं चलता हूँ मेरा आज दिल ही नहीं लग रहा है ' और मैं वहा से अपने घर के तरफ ये उम्मीद लगाए की सब लोग घर काम से काम पहुँच गए होंगे , मैं जैसे ही वह से निकालता हूँ मेरा एक और दोस्त पीछे से मेरे पास अत है, और मुझे पकड़ लेता है,
'भाई तुझे क्या हुआ है, तेरा मुँह इतना क्यों लटका हुआ है, खेलते वक़्त भी तुम अचानक चले गए थे ' और मुझसे बातें करने की कोसिस करने लगता है, लेकिन मेरा मन बहुत ख़राब लग रहा था और मैं घर जाना चाहता था,
'कुछ नहीं हुआ है ' और मैं अपने घर के तरफ जाने लगता हूँ, मेरा दिल बहुत ख़राब था और मेरे अंदर मेरे अब्बा पे भी बहुत गुस्सा आ रहा था, इतना उम्र में दूसरा निकाह, और मैं घर पहुँच गया, घर पहुंचा तो वह पे मेरे दादा दादी और अब्बू मौजूद थे, और उन्हें देख मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया, लेकिन मैं उस गुस्से को पी गया, लेकिन मैं वहा चल रहे बातों को सुन रहा था, और उसी से मुझे मालूम पड़ा की मेरे अब्बू निकाह नहीं करना चाह रहे थे और उन्होंने मेरी अम्मी की काफी दलील दी, लेकिन उनके वालिद ये निकाह से पीछे नहीं हैट रहे था, मुझे समझ में नहीं आ रहा था की मेरे अब्बू के वालिद इस दूसरे निकाह के लिए इतना जिद्द क्यों कर रहे हैं, और घर पे उसी वक़्त मेरे अम्मी के वालिद ,वलिदान और कुछ रिस्तेदार पहुंचे और मामला देखते ही देखते काफी गरम हो गया और पठान बाबा मुझे वह से बहार जाने लिए बोल दिए, घर का माहौल काफी ख़राब हो गया था, और मुझे समझ में नहीं आ रहा था की आखिर हमारे घर में ऐसी स्थिति कैसे हो गयी, मुझे लगा था सायद मेरा परिवार मिल जल के रहने वाला होगा लेकिन सायद सचाई काफी अलग निकल रहा था, और अभीतक अम्मी का कोई आता पता नहीं चला था, और मुझे काफी चिंता होने लगी, मैं वही बहार खड़ा हो घर का बहस बेहसि से दूर जाने की कोसिस कर रहा था, बहार मोहल्ले के भी काफी लोग तमाशा देखने जुटे हुए थे, और मेरा दिमाग ख़राब हो गया,
'तुम लोगो को और कोई काम नहीं है, घर संभाला नहीं है , जाओ यहाँ से ' और मैंने वहा से सबको भगा दिया, और वही पे दीवाल पे बैज गया ताकि और भीड़ जमा न हो, लेकिन घर में सोर भढ़ता ही जा रहा था, और मैं उठ के अपने दोस्त के घर जाने लगा, लेकिन सरे दोस्त मेरे कही न कही व्यस्त थे, और मुझे बहुत अकेला अकेला महसूस हो रहा था, और मैं बाजार में इधर उधर घूमने लगा, मुझे आंटी ताड़ना बहुत पसंद था, लेकिन आज उसमे भी मन नहीं लग रहा था, और कुछ घंटे में दुकान बंद होने लगे और बहुत भरी पेअर से मैं अपने घर के तरफ जाने लगा, वहा पे सब सांत पड़ा हुआ था, और मेरी अम्मी का परिवार वापस चला गया था, लेकिन उनका खु कुछ आता पता नहीं लग रहा था, और मुझे खुद गुस्से और डर से घर वालो से पूछने का मन नहीं कर रहा था, वह पे मेरे अब्बू अपना सर झुकाये बैठे हुए थे और मैं उनके पास गया,
'अब्बू ये क्या सब है, दूसरा निकाह आपको क्या हो गया हैँ ' मेरे अब्बू अपना सर ऊपर करते हैं,
'माँ बीटा जी, लेकिन यहाँ कोई दूसरा निकाह नहीं कर रहा , मैं आपकी अम्मी नहीं संभल पाटा हूँ, दूसरा कहाँ से सम्भालूंगा' और हँसाने लगते हैं, उनका ये बात सुनके मुझे भी सुकून मिलता है,
'अब्बू अम्मी कहाँ हैं, और कब वापस आएँगी '
'बीटा जी अभी अम्मी आपकी मायके में हैं और कुछ ही दिनों में वापस आ जाएगी '
'जब आपने आपने मना कर दिया दूसरा निकाह का तो वो क्यों नहीं आ रही है, अब्बू मैं उनसे बात करूँ '
'नहीं बीटा जी, आप अपना काम कीजिये वो कुछ दिनों में वापस आ जाएगी' मैं वहा से उठ अपने कमरे में चला जाता हूँ, अपने अब्बू की बात सुनकर मुझे थोड़ी राहत मिली, और मैं अगले दिन अपने अम्मी को खुद वापस लाने का फैसला करता हूँ, मुझे रात को सुकून भरा नींद आया,
अगले दिन मैं घर से बस पकड़ के अपने अम्मी को वापस लेने अपने ननिहाल जाता हूँ, और सफर लगभग तीन घंटे का था, मैं बस में अपना हैडफ़ोन लगा के खिड़की के पास बैठ जाता हूँ, और बस निकल पड़ती हैं मेरे ननिहाल के तरफ जो करीब १०० मिल का रास्ता था , मुझे नींद आ जाता है, और मेरा नींद खुलता है, जब बस का तेज झटका लगता है, मैं अपने ननिहाल वाले छोटे से सहर पहुंच गया था, और मेरा सफर करीब २० मिनट का बचा हुआ था, और मैं खिड़की से बहार झांकने लगा, और मेरी नजर पड़ती है, मेरी अम्मी पे जो एक मिठाई के दुकान पे खड़ी थी, और मैं झट से बस रुकवा के उतर जाता हूँ, और अपने अम्मी के पास जाने लगता हूँ, मैं आवाज़ देने ही वाला था की, मेरी अम्मी के पास एक अनजान आदमी आ जाता है, और अम्मी उसके साथ एक कार में बैठ जाती है, मैंने उस आदमी को पहले कभी नहीं देखा था, और मैं वह से एक ऑटो पकड़ उस गाड़ी का पीछे करने लगता हूँ, वो गाड़ी एक पतली सड़क पे घूम जाता है, जिसपे ऑटो वाला जाने से मन कर देता है, लेकिन मैं झट से उतर जाता हूँ, और उस रस्ते से आगे पैदल ही बढ़ने लगता हूँ, मुझे अबदार से ऐसा लगाने लगा था की वो कोई और है, मेरी अम्मी नहीं, लेकिन मुझे अंदर से ये भी डर था की, वो असली में मेरी अम्मी न हो, कुछ दूर आगे बढ़ने पे वह पे कार लगा मिलता है, और मैं चिप के वहा पे जाता हूँ, और अंदर मुझे एक नक़ाब पॉश औरत और एक आदमी दिखता है, और वो नक़ाब वाली आंटी उस आदमी को चुम रही थी, मैं खिड़की के सामने डायरेक्ट ना जाके बगल में से सुनने लगता हूँ, अंदर से चप चप बहुत आवाज़ आ रही थी, और मेरा सरीर ऐसे जकाँम्प रहा था जैसे किसी सम्प ने काट लिया हो, तभी अचानक से आवाज़ आता है,
'सोफ़िया लुंड मुँह में ले न ' और ये सुन मेरा दिमाग चलता है, मेरी अम्मी का नाम सोफ़िया तो है ही नहीं, और मैं हिम्मत कर के सर उठा के अंदर देखता हूँ, वो आदमी अपने सर को पीछे कर आहें भर रहा था, और सोफ़िया नमक खातून उसका लुंड चूस रही थी, लेकिन वो मेरी अम्मी नहीं थी, मुझे ग़लतफ़हमी हो गयी थी, मेरा लेकिन ये देख लण्ड खड़ा हो गया था, और मैं वही कार के पास बैठ मुठ मरने लगा, कुछ पल के लिए मेरे अंदर से डर भी निकल गया था, और अपना माल वही गिरा के मैं वापस सड़क पे गाड़ी ढूंढने और अपनी अम्मी को वापस लाने के मुहीम पे वापस निकल गया.