22-06-2020, 02:58 PM
मेरे सास ससुर के जल्दी गुजर जाने के बाद मेरे जेठ ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर मिल में काम करने लगे थे. उन्होंने बहुत मेहनत करके मेरे पति को पढ़ाया, मेरे पति की पढ़ाई के लिए जेठ जी ने शादी तक नहीं की. मेरे पति उनकी बहुत इज्जत करते थे. अच्छी पढ़ाई की वजह से मेरे पति की अच्छी नौकरी लग गयी. मेरे पति ने हम जहां रह रहे थे, वहीं के पास की बिल्डिंग में फ्लैट खरीद लिया था और हम वहां पर रहने लगे थे. मेरे जेठ अभी भी उसी चॉल में ही रहते थे. मिल में काम करने की वजह से जेठ जी की तीनों शिफ्ट में जॉब रहती थी, इसलिए जब भी उनको समय मिलता, वह खाने के लिए यहीं हमारे फ्लैट में आ जाते थे.
मेरे पति ने शादी की पहली ही रात में मुझे उनके भाई के बारे में बता दिया था. उनको अपने बड़े भाई के त्याग का अहसास था, हमारी जितनी भी प्रगति हुई थी, जेठ जी के वजह से ही हुई थी. वो हमेशा जेठ जी का ख्याल रखते थे और उनकी यही इच्छा थी कि मैं भी उनका उतना ही ख्याल रखूँ.
मेरे मायके की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी, इसलिए अच्छा कमाने वाला पति मिलना, मैं अपना भाग्य समझती थी. इन सभी वजहों से भी मैं उनकी इच्छा का अनादर नहीं करना चाहती थी.
शादी के कुछ दिन तक तो सब ठीक था, जेठ जी हमारे घर खाना खाने आते, मेरे पति से बात करते और चले जाते, पर थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया.
मैं घर में साड़ी ही पहनती थी, गाउन पहनना मेरे पति को पसन्द नहीं था. घर के काम करते वक्त कभी कभी पल्लू अपनी जगह पर नहीं रहता था, कभी पेट खुला पड़ जाता, तो कभी ब्लाउज में से स्तन दिखने लगते थे. मेरे जेठ जी की नजर मेरे पर ही रहती थी. उनको इस बात का इन्तजार रहता था कि कब मेरा पल्लू सरके और मेरी जवानी का खजाना उन्हें देखने को मिले. पर अभी तक जेठ जी ने मुझे गंदे इरादों से छुआ नहीं था, पर आगे चल छुएंगे नहीं, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी. मैं मेरे पति को भी नहीं बोल सकती थी, कहीं उनको ऐसा ना लगे कि मैं उन दोनों के बीच में गलतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रही हूँ. उस स्थिति में तो मेरे पति मुझे घर से भी निकाल सकते थे.
आजकल दो तीन दिन से मेरे पति ऑफिस के काम से दूसरे शहर गए थे, तब से मैं डर डर कर ही रह रही थी. पर जिस बात का मुझे डर था, वही अभी मेरे साथ हो रहा था.
जेठ जी कह रहे थे- आज मैं तुम्हें जबरदस्त चोदूंगा और तुम्हें सब सहन करना पड़ेगा.
ये कहकर मेरे जेठ मेरे कपड़ों की तरफ बढ़े, उन्होंने मेरा पल्लू मेरे सीने से पहले ही अलग कर दिया था. अब वो मेरे गोरे सपाट पेट पर हाथ घुमा रहे थे. मेरे हाथ पैर बंधे होने के कारण न तो मैं विरोध कर सकती थी और ना ही मैं चिल्ला सकती थी. बस आँखों से उनसे मुझे छोड़ देने की विनती कर रही थी.
कुछ देर के बाद मेरे जेठ ने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा, कुछ देर मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरे मम्मे मसलने के बाद उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोलना शुरू कर दिए. दो तीन हुक खोलने के बाद उन्होंने ब्लाउज के हुक खोल कर सामने से उसे मेरे स्तनों के ऊपर से हटा दिया और मेरी ब्रा ऊपर कर दी. मेरे गोरे गोरे गोल गोल स्तन उनके सामने नंगे हो गए, पूरा खजाना उनके सामने खुल ही गया था. मेरे दोनों स्तनों को अच्छे से चूसने दबाने के बाद उनका हाथ फिर से मेरे पेट पर बंधी साड़ी पर गया.
मेरे पति दूसरे शहर गए थे, तो दो तीन दिन से मेरी भी चुदाई नहीं हुई थी और उनकी कामुक हरक़तों की वजह से मेरी कामवासना भी जागृत होने लगी थी.
जेठ जी ने मेरी साड़ी खींच खींच कर मेरी बदन से अलग की, फिर पेटीकोट का नाड़ा ढीला करके पेटीकोट भी सरकाकर नीचे कर दिया. अब मेरा एकमात्र वस्त्र मेरी पैंटी मेरी इज्जत ढके हुए थी. जेठ जी उठकर ड्रेसिंग टेबल के पास गए, वहां से एक कैंची उठाकर ले आए. फिर मेरे पास बैठकर मेरा पेटीकोट और मेरी पैंटी दोनों को काट कर मेरी शरीर से अलग कर दिए.
थोड़ी देर मेरे नंगे बदन को आंखें फाड़ कर देखने के बाद मेरे जेठ मेरे पैरों की ओर बढ़े, उन्होंने मेरे पैरों की उंगलियों को अपने मुँह में लेकर के चूसना शुरू कर दिया. अब तो मेरी चुत में गुदगुदी होने लगी. जेठ जी धीरे धीरे ऊपर सरकते हुए मेरे पैरों को सहलाने और चूमने लगे. इसके बाद वे मेरी जांघों तक पहुंच कर मेरी जांघों को चूमने सहलाने लगे. मेरे पूरे शरीर में कामुक लहरें दौड़ रही थीं, पर मुँह में कपड़ा होने के कारण मेरे मुँह से सिसकारियां नहीं निकल पा रही थीं.
अब उन्होंने अपने हाथ मेरे त्रिकोणीय क्षेत्र पे ले जाते हुए, मेरी चुत को छेड़ना शुरू कर दिया. उनकी उंगलियों के उस खुरदरे स्पर्श से मेरी चुत पानी छोड़ने लगी. जेठ जी अपनी एक उंगली मेरी चुत में डालकर अन्दर बाहर करने लगे, साथ में मेरी चुत के दाने को भी उंगलियों से छेड़ने लगे. जेठ जी अपनी उंगली को गोलाकार घुमाते हुए मेरी चुत के अन्दर बाहर करने लगे.
मेरे पति ने शादी की पहली ही रात में मुझे उनके भाई के बारे में बता दिया था. उनको अपने बड़े भाई के त्याग का अहसास था, हमारी जितनी भी प्रगति हुई थी, जेठ जी के वजह से ही हुई थी. वो हमेशा जेठ जी का ख्याल रखते थे और उनकी यही इच्छा थी कि मैं भी उनका उतना ही ख्याल रखूँ.
मेरे मायके की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी, इसलिए अच्छा कमाने वाला पति मिलना, मैं अपना भाग्य समझती थी. इन सभी वजहों से भी मैं उनकी इच्छा का अनादर नहीं करना चाहती थी.
शादी के कुछ दिन तक तो सब ठीक था, जेठ जी हमारे घर खाना खाने आते, मेरे पति से बात करते और चले जाते, पर थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया.
मैं घर में साड़ी ही पहनती थी, गाउन पहनना मेरे पति को पसन्द नहीं था. घर के काम करते वक्त कभी कभी पल्लू अपनी जगह पर नहीं रहता था, कभी पेट खुला पड़ जाता, तो कभी ब्लाउज में से स्तन दिखने लगते थे. मेरे जेठ जी की नजर मेरे पर ही रहती थी. उनको इस बात का इन्तजार रहता था कि कब मेरा पल्लू सरके और मेरी जवानी का खजाना उन्हें देखने को मिले. पर अभी तक जेठ जी ने मुझे गंदे इरादों से छुआ नहीं था, पर आगे चल छुएंगे नहीं, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी. मैं मेरे पति को भी नहीं बोल सकती थी, कहीं उनको ऐसा ना लगे कि मैं उन दोनों के बीच में गलतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रही हूँ. उस स्थिति में तो मेरे पति मुझे घर से भी निकाल सकते थे.
आजकल दो तीन दिन से मेरे पति ऑफिस के काम से दूसरे शहर गए थे, तब से मैं डर डर कर ही रह रही थी. पर जिस बात का मुझे डर था, वही अभी मेरे साथ हो रहा था.
जेठ जी कह रहे थे- आज मैं तुम्हें जबरदस्त चोदूंगा और तुम्हें सब सहन करना पड़ेगा.
ये कहकर मेरे जेठ मेरे कपड़ों की तरफ बढ़े, उन्होंने मेरा पल्लू मेरे सीने से पहले ही अलग कर दिया था. अब वो मेरे गोरे सपाट पेट पर हाथ घुमा रहे थे. मेरे हाथ पैर बंधे होने के कारण न तो मैं विरोध कर सकती थी और ना ही मैं चिल्ला सकती थी. बस आँखों से उनसे मुझे छोड़ देने की विनती कर रही थी.
कुछ देर के बाद मेरे जेठ ने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा, कुछ देर मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरे मम्मे मसलने के बाद उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोलना शुरू कर दिए. दो तीन हुक खोलने के बाद उन्होंने ब्लाउज के हुक खोल कर सामने से उसे मेरे स्तनों के ऊपर से हटा दिया और मेरी ब्रा ऊपर कर दी. मेरे गोरे गोरे गोल गोल स्तन उनके सामने नंगे हो गए, पूरा खजाना उनके सामने खुल ही गया था. मेरे दोनों स्तनों को अच्छे से चूसने दबाने के बाद उनका हाथ फिर से मेरे पेट पर बंधी साड़ी पर गया.
मेरे पति दूसरे शहर गए थे, तो दो तीन दिन से मेरी भी चुदाई नहीं हुई थी और उनकी कामुक हरक़तों की वजह से मेरी कामवासना भी जागृत होने लगी थी.
जेठ जी ने मेरी साड़ी खींच खींच कर मेरी बदन से अलग की, फिर पेटीकोट का नाड़ा ढीला करके पेटीकोट भी सरकाकर नीचे कर दिया. अब मेरा एकमात्र वस्त्र मेरी पैंटी मेरी इज्जत ढके हुए थी. जेठ जी उठकर ड्रेसिंग टेबल के पास गए, वहां से एक कैंची उठाकर ले आए. फिर मेरे पास बैठकर मेरा पेटीकोट और मेरी पैंटी दोनों को काट कर मेरी शरीर से अलग कर दिए.
थोड़ी देर मेरे नंगे बदन को आंखें फाड़ कर देखने के बाद मेरे जेठ मेरे पैरों की ओर बढ़े, उन्होंने मेरे पैरों की उंगलियों को अपने मुँह में लेकर के चूसना शुरू कर दिया. अब तो मेरी चुत में गुदगुदी होने लगी. जेठ जी धीरे धीरे ऊपर सरकते हुए मेरे पैरों को सहलाने और चूमने लगे. इसके बाद वे मेरी जांघों तक पहुंच कर मेरी जांघों को चूमने सहलाने लगे. मेरे पूरे शरीर में कामुक लहरें दौड़ रही थीं, पर मुँह में कपड़ा होने के कारण मेरे मुँह से सिसकारियां नहीं निकल पा रही थीं.
अब उन्होंने अपने हाथ मेरे त्रिकोणीय क्षेत्र पे ले जाते हुए, मेरी चुत को छेड़ना शुरू कर दिया. उनकी उंगलियों के उस खुरदरे स्पर्श से मेरी चुत पानी छोड़ने लगी. जेठ जी अपनी एक उंगली मेरी चुत में डालकर अन्दर बाहर करने लगे, साथ में मेरी चुत के दाने को भी उंगलियों से छेड़ने लगे. जेठ जी अपनी उंगली को गोलाकार घुमाते हुए मेरी चुत के अन्दर बाहर करने लगे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.