17-06-2020, 01:37 PM
मेरा भी कोई अपना कहने वाला नहीं था. भाई कब का न जाने कहां छोड़ गया था. मांबाप गुजर चुके थे. चाचाताऊ थे, पर कभी साल दो साल में कोई खबर मिलती.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.