17-06-2020, 01:36 PM
मेरे घर की तरह दड़बेनुमा मकान था. एक बिल्डिंग में 30-40 परिवार होंगे. सचमुच कभीकभी जिंदगी भी क्या खूब मजाक करती है. वह 2 बूढ़ों को पालते हुए खुद बूढ़ी हो रही थी. उस की मां की आंखों में एक चमक उठी. कुछ अपना रोना रोया, कुछ नीना का.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.