17-06-2020, 01:35 PM
रात काफी हो गई थी. मोहन उठ कर चला गया.
सवेरे मेरी नींद देर से खुली, मगर फैक्टरी मैं समय से पहुंच गया. मुझे वहीं पता चला कि रात अस्पताल में उस ने तकरीबन 3 बजे दम तोड़ दिया. मैनेजर ने एक मुआवजे का चेक दिखा कर सहानुभूति बटोरने के बाद फैक्टरी में चालाकी से छुट्टी कर दी.
मैं वापस लौटने ही वाला था कि नीना का फोन आया. चौरंगी बाजार में एक जगह वह मेरा इंतजार कर रही थी.
‘‘क्या बात है?” मैं ने पूछा
‘‘कुछ नहीं,” वह हंसी.
‘‘बुलाया क्यों?”
‘‘गुस्से में हो?”
‘‘किस बात के लिए?”
‘‘अरे बोलो भी.”
‘‘बोलूं?”
‘‘हां.”
‘‘झूठ क्यों बोली?”
सवेरे मेरी नींद देर से खुली, मगर फैक्टरी मैं समय से पहुंच गया. मुझे वहीं पता चला कि रात अस्पताल में उस ने तकरीबन 3 बजे दम तोड़ दिया. मैनेजर ने एक मुआवजे का चेक दिखा कर सहानुभूति बटोरने के बाद फैक्टरी में चालाकी से छुट्टी कर दी.
मैं वापस लौटने ही वाला था कि नीना का फोन आया. चौरंगी बाजार में एक जगह वह मेरा इंतजार कर रही थी.
‘‘क्या बात है?” मैं ने पूछा
‘‘कुछ नहीं,” वह हंसी.
‘‘बुलाया क्यों?”
‘‘गुस्से में हो?”
‘‘किस बात के लिए?”
‘‘अरे बोलो भी.”
‘‘बोलूं?”
‘‘हां.”
‘‘झूठ क्यों बोली?”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.