17-06-2020, 01:33 PM
मोहन एक दवा दुकान पर सेल्समैन था. पूरा कंजूस और मजबूर आदमी. अकसर उसे घर से फोन आता था, जिस में पैसे की मांग होती थी. इस कबूतरखाने में इसी तरह के लोग किराएदार थे, जो दूर कहीं गांवघर में अपने परिवार को छोड़ कर अपना सलीब उठाए चले आए थे. अलबत्ता, नीचे वाले कमरे में कुछ परिवार वाले लोग भी थे, लेकिन वे भी अच्छी आय वाले नहीं थे, अपनी रीना, नीना के साथ किसी तरह रह रहे थे…
“मैं ने थाली उस की ओर खिसकाई,” बिना चूंचूं किए वह खाने लगा.
“मैं ने थाली उस की ओर खिसकाई,” बिना चूंचूं किए वह खाने लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.