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Romance टेढ़ा है पर मेरा है
#23
‘‘अंजलि, तुम आज भी पहले जैसी ही स्वार्थी हो. मैं मानता हूं नेहा से शादी मेरे लिए एक समझौता था, अपनी सारी भावनाएं तो तुम्हें सौंप चुका था… लगता था नेहा को कभी वह प्यार नहीं दे पाऊंगा, जो उस का हक है, लेकिन धीरेधीरे यह विश्वास भ्रम साबित हुआ. उस के प्यार और समर्पण ने मेरा मन जीत लिया. हमारे घर का कोनाकोना उस ने सुखशांति और आनंद से भर दिया. अब नेहा के बिना जीने की सोच भी नहीं सकता. जैसेजैसे वह मेरे पास आती गई, मेरी शिकायतें, गुस्सा, दर्द जो तुम्हारे लिए मेरे दिल में था, सब कुछ खत्म हो गया. अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. मैं नेहा के साथ बहुत खुश हूं.’’

गेट से कान लगाए नेहा को अनिल की आवाज में सुख और संतोष साफसाफ महसूस हुआ.

अनिल आगे कह रहा था, ‘‘तुम भाभी की बहन की हैसियत से तो यहां आराम से रह सकती हो लेकिन मुझ से किसी भी रिश्ते की गलतफहमी दिमाग में रख कर यहां मत रहना… मेरे खयाल में तुम्हारा यहां न रहना ही ठीक होगा… नेहा का मन तुम्हारी किसी हरकत पर आहत हो, यह मैं बरदाश्त नहीं करूंगा. अगर यहां रहना है तो अपनी सीमा में रहना…’’

इस के आगे नेहा को कुछ सुनने की जरूरत महसूस नहीं हुई. उसे अपना मन पंख जैसा हलका लगा. आंखों में नमी सी महसूस हुई. फिर वह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए मन ही मन यह सोच कर मुसकराने लगी कि टेढ़ा है पर मेरा है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: टेढ़ा है पर मेरा है - by neerathemall - 15-06-2020, 04:39 PM



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