01-06-2020, 04:32 PM
राज मेरी कमर के नीचे से निकल कर मेरे ऊपर झुक गया और मेरे होंठ उसके होंठों की गिरफ़्त में आ गए। वो मुझे पूरे जोर से चूम-चाट रहा था। सुनीता मेरी सलवार मेरी टांगों से अलग करने में लगी थी। राज मुझे चूमते चूमते मेरी चुचूक को चूसने लगा और दूसरी चूची को मसलने लगा। अब चूंकि मेरा चेहरा राज की जांघों के पास था तो मुझे उसकी जांघों के बीच से उसके पसीने, वीर्य और पेशाब की सी मिलीजुली गन्ध आ रही थी जिससे मुझे और ज्यादा उत्तेजना होने लगी। मेरे मन में यह विचार भी आ रहा था कि मैं इनका विरोध क्यों नहीं कर रही हूँ।
सुनीता मेरी सलवार उतारने के बाद मेरी गोरी, नर्म, मक्खन सी जांघों को चूम रही थी और जीभ से चाट भी रही थी। मेरी योनि से जैसे रिसाव सा हो रहा था बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसे मासिक धर्म में होता है। मैं बिल्कुल बेजान गुड़िया की भान्ति बिस्तर पर पड़ी थी और राज और सुनीता मेरे बदन से मनचाहे ढंग से खेल रहे थे, पैंटी के अतिरिक्त मेरे शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था।
राज मेरी चूचियों को चूसते चूसते मेरे नंगे पेट की और बढ़ा और मेरी नाभि छिद्र में अपनी जीभ घुसा दी। उसका एक हाथ पैंटी के ऊपर से ही मेरी योनि का जायजा लेने लगा था। अब सुनीता ने मेरे बदन को पूर्णतया राज के हवाले कर दिया और उसने बिस्तर से उठ कर राज के अन्डरवीयर को उसकी टांगों से सरका कर उतार दिया। राज का उत्थित लिंग मेरे गालों पर टकरा रहा था और उसकी गंध मुझे कभी अच्छी लगती तो कभी बुरी।
सुनीता मेरी सलवार उतारने के बाद मेरी गोरी, नर्म, मक्खन सी जांघों को चूम रही थी और जीभ से चाट भी रही थी। मेरी योनि से जैसे रिसाव सा हो रहा था बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसे मासिक धर्म में होता है। मैं बिल्कुल बेजान गुड़िया की भान्ति बिस्तर पर पड़ी थी और राज और सुनीता मेरे बदन से मनचाहे ढंग से खेल रहे थे, पैंटी के अतिरिक्त मेरे शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था।
राज मेरी चूचियों को चूसते चूसते मेरे नंगे पेट की और बढ़ा और मेरी नाभि छिद्र में अपनी जीभ घुसा दी। उसका एक हाथ पैंटी के ऊपर से ही मेरी योनि का जायजा लेने लगा था। अब सुनीता ने मेरे बदन को पूर्णतया राज के हवाले कर दिया और उसने बिस्तर से उठ कर राज के अन्डरवीयर को उसकी टांगों से सरका कर उतार दिया। राज का उत्थित लिंग मेरे गालों पर टकरा रहा था और उसकी गंध मुझे कभी अच्छी लगती तो कभी बुरी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.