01-06-2020, 04:21 PM
मैंने मोबाइल एक तरफ रखा और दीदी की कुर्ती को ऊपर किया. अब दीदी की जांघ पूरी तरह साफ दिख रही थी. टीवी चालू ही था तो दीदी की बॉडी पर रोशनी आ रही थी. मैं दीदी की नंगी जांघ देख कर मदहोश हुए जा रहा था. मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी. फिर मैंने टीवी का वॉल्यूम एकदम से फुल किया और फिर म्यूट कर दिया, इस कारण से वो हल्का सा जग गईं. शायद वो भी कुछ चाहती हों तो मैंने रिस्क लिया.
मैंने पैरों से पैरों को मिलाया, सहलाया. फिर हाथों से दीदी की कमर को सहलाया, उनकी गर्दन पर हाथ फिराया, होंठों को टच किया. अब शायद मेरा रुक पाना मुश्किल था, मंजिल भी दूर नहीं थी. मैंने हिम्मत करके दीदी की जाँघों पर हाथ रखा और मसला लेकिन कोई हरकत नहीं थी. मैंने कुर्ती के पीछे की ज़िप खोलना चालू की, लेकिन टाइट थी तो थोड़े झटके लगे लेकिन ज़िप खुल गई.
मैंने पैरों से पैरों को मिलाया, सहलाया. फिर हाथों से दीदी की कमर को सहलाया, उनकी गर्दन पर हाथ फिराया, होंठों को टच किया. अब शायद मेरा रुक पाना मुश्किल था, मंजिल भी दूर नहीं थी. मैंने हिम्मत करके दीदी की जाँघों पर हाथ रखा और मसला लेकिन कोई हरकत नहीं थी. मैंने कुर्ती के पीछे की ज़िप खोलना चालू की, लेकिन टाइट थी तो थोड़े झटके लगे लेकिन ज़िप खुल गई.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.