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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
रेखा कमला के गालों को चूमते हुए बोली "अब तू मन भर के चिल्ला सकती है कमला बहन पर कोई तेरी पुकार सुन नहीं पायेगा क्योंकि मैं अपनी चूची से तेरा मुंह बंद कर दूंगी. पर जब दर्द हो तो चिलाना जरूर, तेरी घिघियाने की आवाज से तेरे भैया की मस्ती और बढ़ेगी." फ़िर उसने अपनी एक मांसल चूची उस कमसिन किशोरी के मुंह में ठूंस दी और कस के उसका सिर अपनी छाती पर दबाती हुई अपने पति से बोली "चलो, अब देर मत करो, मुझ से नहीं रह जाता"

गांड मारने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. बड़ी बेसब्री से अमर अपनी टांगें अपनी बहन के शरीर के दोनों बाजू में जमा कर बैठ गया और अपना मोटे सेब जैसा सुपाड़ा उस कोमल गांड पर रख कर पेलने लगा. अपने लंड को उसने भाले की तरह अपने दाहिने हाथ से पकड़ा हुआ था ताकि फ़िसल ना जाये. पहले तो कुछ नही हुआ क्योंकि इतने जरा से छेद में इतना मोटा गोला जाना असम्भव था. अमर ने फ़िर बड़ी बेसब्री से अपने बांये हाथ से कमला के नितम्ब फ़ैलाये और फ़िर जोर से अपने पूरे वजन के साथ लौड़े को उस गुदा के छेद में पेला. गांड खुल कर चौड़ी होने लगी और धीरे धीरे वह विशाल लाल लाल सुपाड़ा उस कोमल गांड के अन्दर जाने लगा.

कमला अब छटपटाने लगी. उसकी आंखो से आंसू बह रहे थे. इतना दर्द उसे कभी नहीं हुआ था. उसका गुदा द्वार चौड़ा होता जा रहा था और ऐसा लगता था कि बस फ़टने की वाला है. अमर ने पहले सोचा था कि बहुत धीरे धीरे कमला की गांड मारेगा पर उससे रहा नहीं गया और जबर्दस्त जोर लगा कर उसने एकदम अपना सुपाड़ा उस कोमल किशोरी के गुदा के छल्ले के नीचे उतार दिया. कमला इस तरह उछली जैसे कि पानी से निकाली मछली हो. वह अपने बंद मुंह में से घिघियाने लगी और उसका नाजुक शरीर इस तरह कांपने लगा जैसे बिजली का शॉक लगा हो.

अमर को ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी मुलायम हाथ ने उसके सुपाड़े को जोर से दबोच लिया हो, क्योंकि उसकी प्यारी बहन की टाइट गांड इस जोर से उसे भींच रही थी. वह इस सुख का आनन्द लेते हुए कुछ देर रुका. फ़िर जब कमला का तड़पना कुछ कम हुआ तो अब वह अपना बचा डण्डा उसकी गांड में धीरे धीरे उतारने लगा. इंच इंच कर के उसका शक्तिशाली लौड़ा कमला की सकरी गांड में गड़ता गया.

कमला का कोमल कमसिन शरीर बार बार ऐसे ऐंठ जाता जैसे कोई उसका गला दबा रहा हो. उसके चूची भरे हुए मुंह से सिसकने और कराहने की दबी दबी आवाजें निकल रही थीं जिन्हें सुन सुन के अमर और मस्त हो रहा था. करीब ६ इम्च लंड अन्दर जाने पर वह फ़ंस कर रुक गया क्योंकि उसके बाद कमला की आंत बहुत सकरी थी.

रेखा बोली "रुक क्यों गये, मारो गांड, पूरा लंड जड़ तक उतार दो, साली की गांड फ़ट जाये तो फ़ट जाने दो, अपनी डाक्टर दीदी से सिलवा लेंगे. वह मुझ पर मरती है इसलिये कुछ नहीं पूछेगी, चुपचाप सी देगी. हाय मुझे इतना मजा आ रहा है जैसा तुमसे पहली बार मराते हुए भी नहीं आया था. काश मैं मर्द होती तो इस लौंडया की गांड खुद मार सकती"

अमर कुछ देर रुका पर अन्त में उससे रहा नहीं गया, उसने निश्चय किया कि कुछ भी हो जाये वह रेखा के कहने के अनुसार जड़ तक अपना शिश्न घुसेड़ कर रहेगा. उसने कचकचा के एक जोर का धक्का लगाया और पूरा लंड एक झटके में जड़ तक कमला की कोमल गांड में समा गया. अमर को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका सुपाड़ा कमला के पेट में घुस गया हो. कमला ने एक दबी चीख मारी और अति यातना से तड़प कर बेहोश हो गई.

अमर अब सातवें आसमान पर था. कमला की पीड़ा की अब उसे कोई परवाह नहीं थी. मुश्कें बन्धी हुई लड़की तो अब उसके लिये जैसे एक रबर की सुंदर गुड़िया थी जिससे वह मन भर कर खेलना चाहता था. हां, टटोल कर उसने यह देख लिया कि उस कमसिन कली की गांड सच में फ़ट तो नहीं गई. गुदा के बुरी तरह से खिंचे हुए मुंह को सकुशल पाकर उसने एक चैन की सांस ली.

अब बेहिचक वह अपनी बीवी की बाहों में जकड़े उस पट पड़े बेहोश कोमल शरीर पर चढ़ गया. अपनी बाहों में भर के वह पटापट कमला के कोमल गाल चूमने लगा. कमला का मुंह रेखा के स्तन से भरा होने से वह उसके होंठों को नहीं चूम सकता था इसलिये बेतहाशा उसके गालो, कानों और आंखो को चूमते हुए उसने आखिर अपने प्यारे शिकार की गांड मारना शुरू की.

रेखा ने पूछा "कैसा लग रहा है डार्लिंग?" अमर सिर्फ़ मुस्कराया और उसकी आंखो मे झलकते सुख से रेखा को जवाब मिल गया. उसकी भी बुर अब इतनी चू रही थी कि कमला के शरीर पर बुर रगड़ते हुए वह स्वमैथुन करने लगी. "मारो जी, गांड मारो, खूब हचक हचक कर मारो, अब क्या सोचना, अपनी तमन्ना पूरी कर लो" और अमर बीवी के कहे अनुसार मजा ले ले कर अपनी बहन की गांड चोदने लगा.

पहले तो वह अपना लंड सिर्फ़ एक दो इंच बाहर निकालता और फ़िर घुसेड़ देता. मक्खन भरी गांड में से 'पुच पुच पुच' की आवाज आ रही थी. इतनी टाइट होने पर भी उसका लंड मस्ती से फ़िसल फ़िसल कर अन्दर बाहर हो रहा था. इसलिये उसने अब और लम्बे धक्के लगाने शुरू किये. करीब ६ इम्च लंड अन्दर बाहर करने लगा. अब आवाज 'पुचुक, पुचुक, पुचुक' ऐसी आने लगी. अमर को ऐसा लग रहा था मानों वह एक गरम गरम चिकनी बड़ी सकरी मखमली म्यान को चोद रहा है. उसके धैर्य का बांध आखिर टूट गया और वह उछल उछल कर पूरे जोर से कमला की गांड मारने लगा.

अब तो 'पचाक, पचाक पचाक' आवाज के साथ बच्ची मस्त चुदने लगी. अमर ने अब अपना मुंह अपनी पत्नी के दहकते होंठों पर रख दिया और बेतहाशा चूंमा चाटी करते हुए वे दोनों अपने शरीरों के बीच दबी उस किशोरी को भोगने लगे.

अमर को बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे कि वह किसी नरम नरम रबर की गुड़िया की गांड मार रहा है. वह अपने आनन्द की चरम सीमा पर कुछ ही मिनटों में पहुंच गया और इतनी जोर से स्खलित हुआ जैसा वह जिन्दगी में कभी नहीं झड़ा था. झड़ते समय वह मस्ती से घोड़े जैसा चिल्लाया. फ़िर लस्त पड़कर कमला की गांड की गहराई में अपने वीर्यपतन का मजा लेने लगा. रेखा भी कमला के चिकने शरीर को अपनी बुर से रगड़ कर झड़ चुकी थी. अमर का उछलता लंड करीब पांच मिनट अपना उबलता हुआ गाढ़ा गाढ़ा वीर्य कमला की आंतो में उगलता रहा.

झड़ कर अमर रेखा को चूंमता हुआ तब तक आराम से पड़ा रहा जब तक कमला को होश नहीं आ गया. लंड उसने बालिका की गांड में ही रहने दिया. कुछ ही देर में कराह कर उस मासूम लड़की ने आंखे खोली. अमर का लंड अब सिकुड़ गया था पर फ़िर भी कमला दर्द से सिसक सिसक कर रोने लगी क्योंकि उसकी पूरी गांड ऐसे दुख रही थी जैसे किसी ने एक बड़ी ककड़ी से चोदी दी हो.

उसके रोने से अमर की वासना फ़िर से जागृत हो गई. पर अब वह कमला का मुंह चूमना चाहता था. रेखा उस के मन की बात समझ कर कमला से बोली "मेरी ननद बहना, उठ गई? अगर तू वादा करेगी कि चीखेगी नहीं तो तेरे मुंह में से मैं अपनी चूची निकाल लेती हूं." कमला ने रोते रोते सिर हिलाकर वादा किया कि कम से कम उसके ठूंसे हुए मुंह को कुछ तो आराम मिले.

रेखा ने अपना उरोज उसके मुंह से निकाला. वह देख कर हैरान रह गई कि वासना के जोश में करीब करीब पूरी पपीते जितनी बड़ी चूची उसने कमला के मुंह में ठूंस दी थी. "मजा आया मेरी चूची चूस कर?" रेखा ने उसे प्यार से पूछा. घबराये हुई कमला ने मरी सी आवाज में कहा "हां, भाभी" असल में उसे रेखा के स्तन बहुत अच्छे लगते थे और इतने दर्द के बावजूद उसे चूची चूसने में काफ़ी आनन्द मिला था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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