29-05-2020, 05:09 PM
जैसे दीदी पास आ गयी और अपने हाथों से दीदी को और पास खीच लिया। अब दीदी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी। मैंने अपना हाथ दीदी की चूची पर टिका दिया। दीदी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं दीदी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी दीदी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े का था, और उनमे से मुझे दीदी की निपपले तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था। मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से दीदी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।
मैं जितने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था। तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, धीरे दबा, लगता मैं तब धीरे धीरे करने लगा.
मैं और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैं और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे। लेकिन असल में मैं दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था। थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।
मैं रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा.
एक दिन शाम को मैं हाल में बैठ कर टी वी देख रहा था। मां और दीदी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल में आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी। दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी। मेरा पैर दीदी को छू रहा था। मैंने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था।
मैं दीदी की पीठ को देख रहा था। दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था। मैं धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया।
दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नहीं हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी”, दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली। “मा कैसे देख लेगी?” मैंने दीदी से कहा। “क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी। “मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी.” मैंने दीदी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी। मैं भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया। जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गयी मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।
थॉरी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नहीं उठ रही थी। मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नहीं हुआ। दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया। दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का।
मैं धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी।
फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था। मैं तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपल खिचने लगा.
मा अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर में मौजूद हैं। मैं तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा।
दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया।
दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन में से हाल में आ गयी मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। मां हल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी। दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी। मां को हमारे कारनामो का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गयी
जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा “क्या? मैं यह हूक नहीं लगा पाउंगा,” मैं दीदी से बोला
। “क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली। “नही, यह बात नहीं है दीदी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर दीदी से कहा।
दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे.” दीदी नाराज़ होती बोली।
“लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं दीदी से पूछा। ” बुधू, मैं नहीं लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा। जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैंने हूक लगाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था।
मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा.” मैं बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.
मैं पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने में दिक्कत हो रही थी। आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया। जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे में फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी। मैं उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मैं और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे। मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नहीं लगा” मैंने दीदी से कहा।
दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने में बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैंने दीदी से धीरे से पूछा। दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद में अपने आप समझ जाएगा.
फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा, मैं तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.
“दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नहीं पहनती, मैंने दीदी से पूछा। दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मैं तपाक से दीदी से कहा, कोइ बात नही। तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा।
मैं जितने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था। तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, धीरे दबा, लगता मैं तब धीरे धीरे करने लगा.
मैं और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैं और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे। लेकिन असल में मैं दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था। थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।
मैं रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा.
एक दिन शाम को मैं हाल में बैठ कर टी वी देख रहा था। मां और दीदी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल में आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी। दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी। मेरा पैर दीदी को छू रहा था। मैंने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था।
मैं दीदी की पीठ को देख रहा था। दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था। मैं धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया।
दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नहीं हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी”, दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली। “मा कैसे देख लेगी?” मैंने दीदी से कहा। “क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी। “मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी.” मैंने दीदी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी। मैं भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया। जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गयी मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।
थॉरी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नहीं उठ रही थी। मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नहीं हुआ। दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया। दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का।
मैं धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी।
फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था। मैं तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपल खिचने लगा.
मा अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर में मौजूद हैं। मैं तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा।
दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया।
दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन में से हाल में आ गयी मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। मां हल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी। दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी। मां को हमारे कारनामो का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गयी
जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा “क्या? मैं यह हूक नहीं लगा पाउंगा,” मैं दीदी से बोला
। “क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली। “नही, यह बात नहीं है दीदी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर दीदी से कहा।
दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे.” दीदी नाराज़ होती बोली।
“लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं दीदी से पूछा। ” बुधू, मैं नहीं लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा। जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैंने हूक लगाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था।
मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा.” मैं बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.
मैं पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने में दिक्कत हो रही थी। आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया। जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे में फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी। मैं उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मैं और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे। मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नहीं लगा” मैंने दीदी से कहा।
दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने में बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैंने दीदी से धीरे से पूछा। दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद में अपने आप समझ जाएगा.
फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा, मैं तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.
“दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नहीं पहनती, मैंने दीदी से पूछा। दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मैं तपाक से दीदी से कहा, कोइ बात नही। तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.