29-05-2020, 12:37 PM
(This post was last modified: 23-08-2021, 08:35 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
दो न गुड्डी , ...
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
गुड्डी की जोर से उनकी ऊँगली काटने के बाद , उईईईई की तीखी आवाज उनके मुंह से निकली ,
फिर वो उस एलवल वाली से फुसफुसा कर बोले ,
" सुन जब मैं काटूंगा न तो तेरी ,... "
उन की बात काटती , वो शोख अदा से इतराती बोली ,
" तो काट लेना न डरती हूँ क्या तेरे से , मौके का फायदा उठाने की बात है। मैंने उठा लिया। "
वो भी एकदम अपनी चिरैया से सटे चिपके, एक हाथ उसके कं.धे पर पकड़ कर गुड्डी को जोर से अपनी ओर खींचे ,भींचे ,
गाल से गाल रगड़ खा रहे थे.
इस छेड़ छाड़ का असर मेरी जेठानी पर भी हो रहा था ,बर्दाश्त नहीं हो कर पा रही थीं , उनका वजीर भी मैंने पीट दिया था।
वो उठने की कोशिश कर रही थीं।
बस मैं मन ही मन सोच रही थी ,ये तो शुरुआत है ,
अभी तो बस दस बारह दिन में सास को लिटाऊंगी इनके नीचे तो बस ,शह और मात।
जेठानी जी को रोकने के लिए मैंने प्लेट में से निकालकर दो खूब मोटी रसीली अल्फांसो की सिन्दूरी फांके जेठानी जी की प्लेट में रख दीं और हँसते हुए बोला ,
" दीदी ,सामने इत्ती रसीली आम की फ़ांके हो और कोई उसे छोड़ दे तो , ... "
अल्फांसो और जेठानी जी क्या कोई भी ,... उसे चूसते हुए उन्होंने मेरी बात को आगे बढ़ाया और बोलीं ,,
" एकदम रसीली आम की फांके हो या कच्ची खट्टी मीठी अमिया , दोनों को ,... "
और अब उनकी बात गुड्डी ने पूरी की ,एकदम मेरी आँख में आंख डाल कर ,शरारत से ,शोखी से मुस्कराते ,
" भाभी मैं जानती हूँ ऐसे लोगों को क्या कहेंगे , पक्का,एकदम से बुध्धु,"
और फिर खिलखिलाते हुए ,अपने उभार इनकी ओर उचकाके वो शोख इन्हे चिढ़ाते बोली ,
क्यों भय्या है न , बुध्धु,
और इस छेड़छाड़ का सबसे ज्यादा असर इनके खूंटे पर पड़ रहा था ,ठुनक रहा था , फनफना रहा था।
और मैंने भी अब मुठियाने की रफ़्तार एकदम तेज कर दी , और साथ में मेरी एक ऊँगली इनके पिछवाड़े के छेद पर भी
इनको जल्द झाड़ने की सारी ट्रिक मुझे मालूम थीं।
और ये भी अपने लॉलीपॉप को देखकर बावले हो रहे थे ,
इनके हाथों का जोर उसके खुले गोरे गोरे कंधो पर बढ़ गया था , उंगलियां एकदम खुले टॉप से झांकती,उनको ललचाती गोलाइयों पर ,
पर गुड्डी तो एकदम शोला जो भड़के हो रही थी , और आग में घी डाल रही थी।
चुनकर उसने अल्फांसो की एक सबसे मोटी रसीली फांक उठायी , रस छलक रहा था उससे और फिर आम रस से गीले भीगे होंठों रगड़ती,
उन्हें ललचाती रिझाती बोली ,
" क्यों भैय्या ,चहिये ये "
जिस तरह से वो अपने छोटे छोटे उभार उचका कर उन्हें ललचा रही थी ,साफ़ था वो क्या देने की बात कर रही थी।
" दो न गुड्डी , ... "
बोले वो , उनकी आँखों की प्यास साफ़ झलक रही थी।
और गुड्डी ने ने आम की उस मोटी रसीली फांक की टिप गड़प कर ली और उसपे हलके से दांत गड़ाते बोली ,
" न न ,ऊँहुँ ,ऐसे थोड़ी , अरे कम से कम तीन बार मांगो , थोड़ा गिड़गिड़ाओ ,रिक्वेस्ट करो ,ऐसे थोड़े ही कोई लड़की दे देगी ,सिर्फ एक बार मांगने पर। "
" दो न गुड्डी ,प्लीज , मेरी अच्छी गुड्डी ,दो न , बहुत मन कर रहा है दे दो न। "
" दे दूँ बोल ,सच्ची में "
गुड्डी ने उन्हें और तड़पाया।
गुड्डी के रसीले होंठ , होंठों में फंसी वो रस से टपकती आम की फांक अब उनके प्यासे होंठो से मुश्किल से दो इंच दूर।
" हाँ ,दो न , दो न ,दो न ,"
तीन तिरबाचा भरते वो बोले।
" चल भैय्या तुम भी क्या याद करोगे ,कोई दिलदार बहिना मिली थी "
वो हलके से बोली ,
और अब गुड्डी ने अपने ऱस से भीगे होंठ , होंठों में फंसी आम की फांक एकदम उनके पास कर दी ,मुश्किल से आधे इंच की दूरी ,
और जब इन्होने अपने होंठ बढाए आम की फांक लेने के लिए तो ,
उस शोख शरीर ने , मुस्कराते हुए ,झट से अपने होंठों के अंदर वो फांक ,गप्प।
पर उस रसीली के होंठ तो इनके होंठों से अभी भी आधे इंच ही दूर थे।
और अब ये भी , एक हाथ से कस के मेरी शोख शोला ननद के सर को पकड़ कर इन्होने अपनी ओर खींचा।
इनके होंठ उस बांकी टीनेजर के रस भरे होंठों पर , और फिर इनके होंठ ,
आम रस से गीले , भीगे उस किशोरी के होंठ , ठुड्डी , चिकने गाल , चाटने चूसने ,...
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
गुड्डी की जोर से उनकी ऊँगली काटने के बाद , उईईईई की तीखी आवाज उनके मुंह से निकली ,
फिर वो उस एलवल वाली से फुसफुसा कर बोले ,
" सुन जब मैं काटूंगा न तो तेरी ,... "
उन की बात काटती , वो शोख अदा से इतराती बोली ,
" तो काट लेना न डरती हूँ क्या तेरे से , मौके का फायदा उठाने की बात है। मैंने उठा लिया। "
वो भी एकदम अपनी चिरैया से सटे चिपके, एक हाथ उसके कं.धे पर पकड़ कर गुड्डी को जोर से अपनी ओर खींचे ,भींचे ,
गाल से गाल रगड़ खा रहे थे.
इस छेड़ छाड़ का असर मेरी जेठानी पर भी हो रहा था ,बर्दाश्त नहीं हो कर पा रही थीं , उनका वजीर भी मैंने पीट दिया था।
वो उठने की कोशिश कर रही थीं।
बस मैं मन ही मन सोच रही थी ,ये तो शुरुआत है ,
अभी तो बस दस बारह दिन में सास को लिटाऊंगी इनके नीचे तो बस ,शह और मात।
जेठानी जी को रोकने के लिए मैंने प्लेट में से निकालकर दो खूब मोटी रसीली अल्फांसो की सिन्दूरी फांके जेठानी जी की प्लेट में रख दीं और हँसते हुए बोला ,
" दीदी ,सामने इत्ती रसीली आम की फ़ांके हो और कोई उसे छोड़ दे तो , ... "
अल्फांसो और जेठानी जी क्या कोई भी ,... उसे चूसते हुए उन्होंने मेरी बात को आगे बढ़ाया और बोलीं ,,
" एकदम रसीली आम की फांके हो या कच्ची खट्टी मीठी अमिया , दोनों को ,... "
और अब उनकी बात गुड्डी ने पूरी की ,एकदम मेरी आँख में आंख डाल कर ,शरारत से ,शोखी से मुस्कराते ,
" भाभी मैं जानती हूँ ऐसे लोगों को क्या कहेंगे , पक्का,एकदम से बुध्धु,"
और फिर खिलखिलाते हुए ,अपने उभार इनकी ओर उचकाके वो शोख इन्हे चिढ़ाते बोली ,
क्यों भय्या है न , बुध्धु,
और इस छेड़छाड़ का सबसे ज्यादा असर इनके खूंटे पर पड़ रहा था ,ठुनक रहा था , फनफना रहा था।
और मैंने भी अब मुठियाने की रफ़्तार एकदम तेज कर दी , और साथ में मेरी एक ऊँगली इनके पिछवाड़े के छेद पर भी
इनको जल्द झाड़ने की सारी ट्रिक मुझे मालूम थीं।
और ये भी अपने लॉलीपॉप को देखकर बावले हो रहे थे ,
इनके हाथों का जोर उसके खुले गोरे गोरे कंधो पर बढ़ गया था , उंगलियां एकदम खुले टॉप से झांकती,उनको ललचाती गोलाइयों पर ,
पर गुड्डी तो एकदम शोला जो भड़के हो रही थी , और आग में घी डाल रही थी।
चुनकर उसने अल्फांसो की एक सबसे मोटी रसीली फांक उठायी , रस छलक रहा था उससे और फिर आम रस से गीले भीगे होंठों रगड़ती,
उन्हें ललचाती रिझाती बोली ,
" क्यों भैय्या ,चहिये ये "
जिस तरह से वो अपने छोटे छोटे उभार उचका कर उन्हें ललचा रही थी ,साफ़ था वो क्या देने की बात कर रही थी।
" दो न गुड्डी , ... "
बोले वो , उनकी आँखों की प्यास साफ़ झलक रही थी।
और गुड्डी ने ने आम की उस मोटी रसीली फांक की टिप गड़प कर ली और उसपे हलके से दांत गड़ाते बोली ,
" न न ,ऊँहुँ ,ऐसे थोड़ी , अरे कम से कम तीन बार मांगो , थोड़ा गिड़गिड़ाओ ,रिक्वेस्ट करो ,ऐसे थोड़े ही कोई लड़की दे देगी ,सिर्फ एक बार मांगने पर। "
" दो न गुड्डी ,प्लीज , मेरी अच्छी गुड्डी ,दो न , बहुत मन कर रहा है दे दो न। "
" दे दूँ बोल ,सच्ची में "
गुड्डी ने उन्हें और तड़पाया।
गुड्डी के रसीले होंठ , होंठों में फंसी वो रस से टपकती आम की फांक अब उनके प्यासे होंठो से मुश्किल से दो इंच दूर।
" हाँ ,दो न , दो न ,दो न ,"
तीन तिरबाचा भरते वो बोले।
" चल भैय्या तुम भी क्या याद करोगे ,कोई दिलदार बहिना मिली थी "
वो हलके से बोली ,
और अब गुड्डी ने अपने ऱस से भीगे होंठ , होंठों में फंसी आम की फांक एकदम उनके पास कर दी ,मुश्किल से आधे इंच की दूरी ,
और जब इन्होने अपने होंठ बढाए आम की फांक लेने के लिए तो ,
उस शोख शरीर ने , मुस्कराते हुए ,झट से अपने होंठों के अंदर वो फांक ,गप्प।
पर उस रसीली के होंठ तो इनके होंठों से अभी भी आधे इंच ही दूर थे।
और अब ये भी , एक हाथ से कस के मेरी शोख शोला ननद के सर को पकड़ कर इन्होने अपनी ओर खींचा।
इनके होंठ उस बांकी टीनेजर के रस भरे होंठों पर , और फिर इनके होंठ ,
आम रस से गीले , भीगे उस किशोरी के होंठ , ठुड्डी , चिकने गाल , चाटने चूसने ,...