29-05-2020, 11:53 AM
(This post was last modified: 16-06-2020, 11:40 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
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‘‘तुमतो काफी छोटी लगती हो विवान से,’’ उस की मम्मी ने कहा.
‘‘नहीं आंटी, हम तो एक ही…’’ मेरी बात काट कर विवान बीच में ही बोला, ‘‘एक ही औफिस में काम करते हैं, एक ही बैच के हैं.’’ अच्छा हुआ उस ने संभाल लिया. मेरे मुंह से निकलने वाला था कि हम एक ही क्लास में थे.
‘‘फिर भी छोटी लगती है,’’ कह कर वे फुसफुसा कर उस के पापा के कान में कुछ कहने लगीं. मुझे पता था कि वे मेरी हाइट के बारे में बात कर रही होंगी. बचपन से सुनती आई थी ऐसी बातें लोगों के मुंह से, अब तो आदत हो चुकी थी. उन की बात भी सही थी. विवान मुझ से एक फीट से भी ज्यादा लंबा था.
‘‘तो बेटा, तुम यहां अकेली रहती हो?’’ उस के पापा ने पूछा.
‘‘जी. जौब यहीं है और मम्मापापा का जयपुर में अपनाअपना काम है, इसलिए अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘शादी की बात करने तो वे आएंगे न?’’ उन्होंने आगे पूछा.
‘‘जी…’’ मैं ने झिझक कर विवान की ओर देखा.
‘‘पापा, अभी जयपुर में इन के घर का काम चल रहा है और फिर उन की जौब भी है, तो अभी नहीं आ सकते,’’ उस ने कहा.
‘‘तो हम जयपुर चले चलते हैं,’’ अंकलआंटी दोनों ने एक स्वर में कहा.
‘‘अरे इतनी भी क्या जल्दी है? वैसे भी अगले महीने मुझे प्रमोशन मिलने वाली है. तब तक अंकलआंटी भी फ्री हो जाएंगे,’’ विवान जल्दी से बोला.
‘‘अभी अगर सगाई ही हो जाती तो…’’ आंटी ने उम्मीद भरे स्वर में कहा.
‘‘मां मुझे पता है आप को मेरी शादी की बहुत जल्दी है. इतने दिन रुकी हो, तो अब थोड़े दिन और रुक जाओ,’’ उस ने मां को समझाते हुए कहा.
घर से बाहर आ कर कार में बैठ कर मैं ने चैन की सांस ली. विवान ने कार स्टार्ट की ही
थी कि मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा, ‘‘मुझे एक बात बताओ विवान. तुम ने अपने घर वालों को सीधासीधा यह क्यों नहीं बता दिया कि साक्षी अभी यहां नहीं है, 6 महीने बाद आएगी?’’
मेरी बात सुन कर वह कुछ परेशान हो गया. फिर बोला, ‘‘मेरी मौसी की बेटी की सगाई एक लड़के से हुई थी. उस के बाद वह विदेश चला गया. उन लोगों ने 1 साल तक उस का इंतजार किया, लेकिन वह वापस नहीं आया. यहां उस के परिवार को भी उस की कोई खबर नहीं थी. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि वह वहां आराम से लिव इन में रह रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई, लेकिन सगाई में हुए खर्चे और परिवार की इज्जत को हुए नुकसान की तो कोई भरपाई नहीं हुई.’’
‘‘लेकिन साक्षी तो कंपनी की तरफ से गई है न, उसे तो वापस आना ही पड़ेगा 6 महीने बाद?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हां, लेकिन मां यह बात नहीं समझ सकतीं न. उन्हें तो लगता है कि विदेश जाने वाला हर इनसान धोखेबाज हो जाता है,’’ उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.
‘‘और जब साक्षी वापस आ जाएगी तब उन से क्या कहोगे? अपने ही बेटे से मिले धोखे को वे बरदाश्त कर पाएंगी?’’ मुझे सब कुछ बिलकुल घालमेल सा लग रहा था.
‘‘मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता पाशी. वह जब होगा तब मैं संभाल लूंगा. अभी बस मुझे मम्मीपापा को किसी तरह 6 महीने तक रोकना है. इस के अलावा मुझे अभी कुछ नहीं सूझ रहा.’’ उस ने कार रोक दी. मेरा घर आ चुका था.
‘‘तुम्हें लगता है कि तुम सही कर रहे हो विवान?’’ मैं ने इन दिनों में पहली बार उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
‘‘नहीं, लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं है अपने प्यार को पाने का,’’ उस ने मेरी आंखों में आंखें डालते हुए कहा. एक पल को लगा जैसे दुनिया ठहर गई हो पर फिर ध्यान आया उस का प्यार यानी साक्षी. मैं चुपचाप कार से उतर गई. वह चला गया.
अगले कुछ दिनों तक न तो उस का कोई काल आया और न ही वह कहीं नजर आया. मैं जानती थी कि वह मेरे पास सिर्फ काम से आया था पर फिर भी मुझे बुरा लगा. ऐसा नहीं था कि मैं ने उस से कोई उम्मीद की थी, लेकिन शायद फिर से उसे सामने देख कर दिल एक बार फिर ख्वाब संजोने लगा था. कई बार काफी दुखी हो जाती, उसे काल करने की भी सोचती. कई बार जी में आया कि मना कर दूं कि मुझे नहीं करनी किसी भी तरह की कोई भी मदद. लेकिन उस से जो मांगना था, उस के लालच में खुद को मना लेती. इस बार मैं कुछ भी भावनाओं में बह कर नहीं कर रही थी. इस में मेरा भी स्वार्थ था. एक रात इन्हीं विचारों में डूबी मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं चौंक कर उठ बैठी. इतनी रात को कौन हो सकता है? घड़ी में देखा, पौने 12 बज रहे थे. वैसे तो जिस प्रोफैशन में मैं थी मुझे डरना नहीं चाहिए था, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेली लड़की का फ्लैट में रहना आसान नहीं था. आज तक कोई खास परेशानी तो नहीं हुई थी पर आज इस घंटी की आवाज सुन कर दिल जोरजोर से धड़कने लगा. पिछले कुछ समय में लड़कियों के साथ हुए सारे हादसे याद आने लगे.
पलंग से उतर कर धीमे कदमों से मैं दरवाजे तक पहुंची. डोर व्यूवर में देखा तो बाहर विवान खड़ा था.
‘‘तुम इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो?’’ दरवाजा खोलते ही मैं ने पूछा.
उस ने जवाब दिए बिना ही कहा, ‘‘अंदर आ जाऊं? मैं किनारे हो गई. अंदर जा कर वह कुरसी पर बैठ गया. मैं भी दरवाजा बंद कर के अंदर आ गई.
‘‘एक गिलास पानी पिलाओगी?’’ वह बोला, तो पानी पिला कर उस के पास ही कुरसी पर बैठ कर मैं उस के बोलने का इंतजार करने लगी. मुझे अपनी तरफ घूरते देख वह बोला, ‘‘सौरी, तुम्हें इतनी रात को परेशान किया. मैं अपने घर की चाबी न जाने कहां भूल गया. मम्मीपापा जयपुर गए हैं, तो समझ नहीं आया क्या करूं. इसलिए यहां आ गया.’’
‘‘जयपुर क्यों?’’ मैं ने परेशान हो कर पूछा.
‘‘अरे ऐसे ही कुछ काम था. तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो?’’
‘‘नहीं, मुझे लगा कि…’’
‘‘कि?’’
‘‘कुछ नहीं…’’ लेकिन मेरे बिना बोले ही वह समझ गया.
‘‘चिंता मत करो. मैं ने मम्मीपापा को मना कर दिया है कि वे तुम्हारे मम्मीपापा से न मिलें,’’ उस ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अच्छा 1 कप कौफी पिलाओगी?’’ उस की बात सुन कर मेरा ध्यान टूटा.
‘‘हां क्यों नहीं. अभी लाती हूं,’’ कह कर मैं उठ कर किचन में चली गयी. 2 मिनट बाद ही बाहर से विवान जोरजोर से आवाज लगाने लगा. मैं दौड़ कर बाहर आई तो देखा हौल में बिलकुल अंधेरा था, विवान वहां नहीं था. तभी फिर से उस की आवाज आई, ‘‘हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू डियर पाशी…,’’ वह हाथ में केक लिए मेरे पास आ रहा था. उसे याद था पर कैसे और क्यों? इस बार तो मुझे भी याद नहीं था.
‘‘थैंक्यू विवान. पर यह सब किसलिए?’’ मेरे स्वर में हैरानी थी.
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‘‘तुमतो काफी छोटी लगती हो विवान से,’’ उस की मम्मी ने कहा.
‘‘नहीं आंटी, हम तो एक ही…’’ मेरी बात काट कर विवान बीच में ही बोला, ‘‘एक ही औफिस में काम करते हैं, एक ही बैच के हैं.’’ अच्छा हुआ उस ने संभाल लिया. मेरे मुंह से निकलने वाला था कि हम एक ही क्लास में थे.
‘‘फिर भी छोटी लगती है,’’ कह कर वे फुसफुसा कर उस के पापा के कान में कुछ कहने लगीं. मुझे पता था कि वे मेरी हाइट के बारे में बात कर रही होंगी. बचपन से सुनती आई थी ऐसी बातें लोगों के मुंह से, अब तो आदत हो चुकी थी. उन की बात भी सही थी. विवान मुझ से एक फीट से भी ज्यादा लंबा था.
‘‘तो बेटा, तुम यहां अकेली रहती हो?’’ उस के पापा ने पूछा.
‘‘जी. जौब यहीं है और मम्मापापा का जयपुर में अपनाअपना काम है, इसलिए अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘शादी की बात करने तो वे आएंगे न?’’ उन्होंने आगे पूछा.
‘‘जी…’’ मैं ने झिझक कर विवान की ओर देखा.
‘‘पापा, अभी जयपुर में इन के घर का काम चल रहा है और फिर उन की जौब भी है, तो अभी नहीं आ सकते,’’ उस ने कहा.
‘‘तो हम जयपुर चले चलते हैं,’’ अंकलआंटी दोनों ने एक स्वर में कहा.
‘‘अरे इतनी भी क्या जल्दी है? वैसे भी अगले महीने मुझे प्रमोशन मिलने वाली है. तब तक अंकलआंटी भी फ्री हो जाएंगे,’’ विवान जल्दी से बोला.
‘‘अभी अगर सगाई ही हो जाती तो…’’ आंटी ने उम्मीद भरे स्वर में कहा.
‘‘मां मुझे पता है आप को मेरी शादी की बहुत जल्दी है. इतने दिन रुकी हो, तो अब थोड़े दिन और रुक जाओ,’’ उस ने मां को समझाते हुए कहा.
घर से बाहर आ कर कार में बैठ कर मैं ने चैन की सांस ली. विवान ने कार स्टार्ट की ही
थी कि मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा, ‘‘मुझे एक बात बताओ विवान. तुम ने अपने घर वालों को सीधासीधा यह क्यों नहीं बता दिया कि साक्षी अभी यहां नहीं है, 6 महीने बाद आएगी?’’
मेरी बात सुन कर वह कुछ परेशान हो गया. फिर बोला, ‘‘मेरी मौसी की बेटी की सगाई एक लड़के से हुई थी. उस के बाद वह विदेश चला गया. उन लोगों ने 1 साल तक उस का इंतजार किया, लेकिन वह वापस नहीं आया. यहां उस के परिवार को भी उस की कोई खबर नहीं थी. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि वह वहां आराम से लिव इन में रह रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हुई, लेकिन सगाई में हुए खर्चे और परिवार की इज्जत को हुए नुकसान की तो कोई भरपाई नहीं हुई.’’
‘‘लेकिन साक्षी तो कंपनी की तरफ से गई है न, उसे तो वापस आना ही पड़ेगा 6 महीने बाद?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हां, लेकिन मां यह बात नहीं समझ सकतीं न. उन्हें तो लगता है कि विदेश जाने वाला हर इनसान धोखेबाज हो जाता है,’’ उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.
‘‘और जब साक्षी वापस आ जाएगी तब उन से क्या कहोगे? अपने ही बेटे से मिले धोखे को वे बरदाश्त कर पाएंगी?’’ मुझे सब कुछ बिलकुल घालमेल सा लग रहा था.
‘‘मैं इस बारे में नहीं सोचना चाहता पाशी. वह जब होगा तब मैं संभाल लूंगा. अभी बस मुझे मम्मीपापा को किसी तरह 6 महीने तक रोकना है. इस के अलावा मुझे अभी कुछ नहीं सूझ रहा.’’ उस ने कार रोक दी. मेरा घर आ चुका था.
‘‘तुम्हें लगता है कि तुम सही कर रहे हो विवान?’’ मैं ने इन दिनों में पहली बार उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
‘‘नहीं, लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं है अपने प्यार को पाने का,’’ उस ने मेरी आंखों में आंखें डालते हुए कहा. एक पल को लगा जैसे दुनिया ठहर गई हो पर फिर ध्यान आया उस का प्यार यानी साक्षी. मैं चुपचाप कार से उतर गई. वह चला गया.
अगले कुछ दिनों तक न तो उस का कोई काल आया और न ही वह कहीं नजर आया. मैं जानती थी कि वह मेरे पास सिर्फ काम से आया था पर फिर भी मुझे बुरा लगा. ऐसा नहीं था कि मैं ने उस से कोई उम्मीद की थी, लेकिन शायद फिर से उसे सामने देख कर दिल एक बार फिर ख्वाब संजोने लगा था. कई बार काफी दुखी हो जाती, उसे काल करने की भी सोचती. कई बार जी में आया कि मना कर दूं कि मुझे नहीं करनी किसी भी तरह की कोई भी मदद. लेकिन उस से जो मांगना था, उस के लालच में खुद को मना लेती. इस बार मैं कुछ भी भावनाओं में बह कर नहीं कर रही थी. इस में मेरा भी स्वार्थ था. एक रात इन्हीं विचारों में डूबी मैं बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं चौंक कर उठ बैठी. इतनी रात को कौन हो सकता है? घड़ी में देखा, पौने 12 बज रहे थे. वैसे तो जिस प्रोफैशन में मैं थी मुझे डरना नहीं चाहिए था, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेली लड़की का फ्लैट में रहना आसान नहीं था. आज तक कोई खास परेशानी तो नहीं हुई थी पर आज इस घंटी की आवाज सुन कर दिल जोरजोर से धड़कने लगा. पिछले कुछ समय में लड़कियों के साथ हुए सारे हादसे याद आने लगे.
पलंग से उतर कर धीमे कदमों से मैं दरवाजे तक पहुंची. डोर व्यूवर में देखा तो बाहर विवान खड़ा था.
‘‘तुम इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो?’’ दरवाजा खोलते ही मैं ने पूछा.
उस ने जवाब दिए बिना ही कहा, ‘‘अंदर आ जाऊं? मैं किनारे हो गई. अंदर जा कर वह कुरसी पर बैठ गया. मैं भी दरवाजा बंद कर के अंदर आ गई.
‘‘एक गिलास पानी पिलाओगी?’’ वह बोला, तो पानी पिला कर उस के पास ही कुरसी पर बैठ कर मैं उस के बोलने का इंतजार करने लगी. मुझे अपनी तरफ घूरते देख वह बोला, ‘‘सौरी, तुम्हें इतनी रात को परेशान किया. मैं अपने घर की चाबी न जाने कहां भूल गया. मम्मीपापा जयपुर गए हैं, तो समझ नहीं आया क्या करूं. इसलिए यहां आ गया.’’
‘‘जयपुर क्यों?’’ मैं ने परेशान हो कर पूछा.
‘‘अरे ऐसे ही कुछ काम था. तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो?’’
‘‘नहीं, मुझे लगा कि…’’
‘‘कि?’’
‘‘कुछ नहीं…’’ लेकिन मेरे बिना बोले ही वह समझ गया.
‘‘चिंता मत करो. मैं ने मम्मीपापा को मना कर दिया है कि वे तुम्हारे मम्मीपापा से न मिलें,’’ उस ने तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अच्छा 1 कप कौफी पिलाओगी?’’ उस की बात सुन कर मेरा ध्यान टूटा.
‘‘हां क्यों नहीं. अभी लाती हूं,’’ कह कर मैं उठ कर किचन में चली गयी. 2 मिनट बाद ही बाहर से विवान जोरजोर से आवाज लगाने लगा. मैं दौड़ कर बाहर आई तो देखा हौल में बिलकुल अंधेरा था, विवान वहां नहीं था. तभी फिर से उस की आवाज आई, ‘‘हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू यू…हैपी बर्थडे टू डियर पाशी…,’’ वह हाथ में केक लिए मेरे पास आ रहा था. उसे याद था पर कैसे और क्यों? इस बार तो मुझे भी याद नहीं था.
‘‘थैंक्यू विवान. पर यह सब किसलिए?’’ मेरे स्वर में हैरानी थी.
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.