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Romance टेढ़ा है पर मेरा है
#4
सुनील और अनिल अपनेअपने औफिस चले गए. केशवचंद पेपर पढ़ने लगे. सुभद्रादेवी तीनों से बातें करते हुए आराम से बाकी काम में मीना और नेहा का हाथ बंटाने लगीं.

नेहा को थोड़ा चुप देख कर अंजलि हंसते हुए बोली, ‘‘नेहा, क्या तुम हमेशा इतनी सीरियस रहती हो?’’

मीना ने कहा, ‘‘अरे नहीं, वह तुम से पहली बार मिली है… घुलनेमिलने में थोड़ा समय तो लगता ही है न…’’

अंजलि ने कहा, ‘‘फिर तो ठीक है वरना मैं ने तो सोचा अगर ऐसे ही सीरियस रहती होगी तो बेचारा अनिल तो बोर हो जाता होगा. वह तो बहुत हंसमुख है… दीदी, अनिल अब भी वैसा ही है शरारती, मस्तमौला या फिर कुछ बदल गया है? आज तो ज्यादा बात नहीं हो पाई.’’

मीना हंसी, ‘‘शाम को देख लेना.’’

नेहा मन ही मन बुझती जा रही थी. लंच के बाद अपने कमरे में थोड़ा आराम करने लेटी तो विवाह के शुरुआती दिन याद आ गए. अनिल काफी सीरियस रहता था, कभी हंसताबोलता नहीं था. चुपचाप अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर देता था. नवविवाहितों वाली कोई बात नेहा ने महसूस नहीं की थी. फिर जब मीना ने अनिल और अंजलि के बार में उसे बताया तो उस ने अपने दिल को मजबूत कर सब को प्यार और सम्मान दे कर सब के दिल में अपना स्थान बना लिया. अब कुल मिला कर उस की गृहस्थी सामान्य चल रही थी, तो अब अंजलि आ गई.

नेहा यश और समृद्धि को होमवर्क करवा रही थी कि अंजलि उस के रूम में आ गई.

नेहा ने जबरदस्ती मुसकराते हुए उसे बैठने के लिए कहा, तो वह सीधे बैड पर लेट गई. बोली, ‘‘नेहा, अनिल कब तक आएगा?’’

‘‘7 बजे तक,’’ नेहा ने संयत स्वर में कहा.

‘‘उफ, अभी तो 1 घंटा बाकी है… बहुत बोर हो रही हूं.’’

‘‘चाय पीओगी?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘नहीं, अनिल को आने दो, उस के साथ ही पीऊंगी.’’

नेहा को अंजलि का अनिल के बारे में बात करने का ढंग अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन करती भी क्या. कुछ कह नहीं सकती थी.

अनिल आया, तो अंजलि चहक उठी फिर ड्राइंगरूम में सोफे पर अनिल के बराबर मे बैठ कर ही चाय पी. घर के बाकी सभी सदस्य वहीं बैठे हुए थे. अंजलि ने पता नहीं कितनी पुरानी बातें छेड़ दी थीं.

नेहा का उतरा चेहरा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘नेहा, तबीयत तो ठीक है न? बड़ी सुस्त लग रही हो?’’

‘‘नहीं, ठीक हूं.’’

यह सुन कर अंजलि ने ठहाका लगाया. बोली, ‘‘वाह अनिल, तुम तो बहुत केयरिंग पति बन चुके हो… इतनी चिंता पत्नी की? वह दिन भूल गए जब मुझे जाता देख कर आंहें भर रहे थे?’’

यह सुन कर सभी घर वाले एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

तब मीना ने बात संभाली, ‘‘क्या कह रही हो अंजलि… कभी तो कुछ सोचसमझ कर बोला कर.’’

‘‘अरे दीदी, सच ही तो बोल रही हूं.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: टेढ़ा है पर मेरा है - by neerathemall - 29-05-2020, 11:08 AM



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