29-05-2020, 11:07 AM
नेहा चुपचाप अनिल की असफल प्रेमकहानी सुनती रही थी. रात को ही अंजलि का फोन आया था. उस का लखनऊ तबादला हो गया था. वह सीधे यहीं आ रही थी. नेहा जानती थी कि अंजलि ने अभी तक विवाह नहीं किया है.
मीना ने तो रात से ही चहकना शुरू कर दिया था, ‘‘अंजलि अब यहीं रहेगी, तो कितना मजा आएगा नेहा, तुम तो पहली बार मिलोगी उस से… देखना, कितनी स्मार्ट है मेरी बहन.’’
नेहा औपचारिकतावश मुसकराती रही. अनिल पर नजरें जमाए थी. लेकिन अंदाजा नहीं लगा पाई कि अनिल खुश है या नहीं. नेहा व अनिल और उन के
2 बच्चे यश और समृद्धि, जेठजेठानी व उन के बेटे सार्थक और वीर, सास सुभद्रादेवी और ससुर केशवचंद सब लखनऊ में एक ही घर में रहते थे और सब
की आपस में अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी. सब खुश थे, लेकिन अंजलि के आने की खबर से नेहा कुछ बेचैन थी.
अंजलि सुबह अपने काम में लग गई. मीना बेहद खुश थी. बोली, ‘‘नेहा, आज अंजलि की पसंद का नाश्ता और खाना बना लेते हैं.’’
नेहा ने हां में सिर हिलाया. फिर दोनों किचन में व्यस्त हो गईं. टैक्सी गेट पर रुकी, तो मीना ने पति सुनील से कहा, ‘‘शायद अंजलि आ गई, आप थोड़ी देर बाद औफिस जाना.’’
‘‘मुझे आज कोई जल्दी नहीं है… भई, इकलौती साली साहिबा जो आ रही हैं,’’ सुनील हंसा.
अंजलि ने घर में प्रवेश कर सब का अभिवादन किया. मीना उस के गले लग गई. फिर नेहा से परिचय करवाया. अंजलि ने जिस तरह से उसे ऊपर से नीचे तक देखा वह नेहा को पसंद नहीं आया. फिर भी वह उस से खुशीखुशी मिली.
ये भी पढ़ें-Short story: कितने दिल-रमन जी क्यों इतनी मेहनत कर रहे थें?
जब अंजलि सब से बातें कर रही थी, तो नेहा ने उस का जायजा लिया… सुंदर, स्मार्ट, पोनीटेल बनाए हुए, छोटा सा टौप और जींस पहने छरहरी अंजलि काफी आकर्षक थी.
जब अनिल फ्रैश हो कर आया, तो अंजलि ने फौरन अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’
अनिल ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसी हो?’’
‘‘कैसी लग रही हूं?’’
‘‘बिलकुल वैसी जैसे पहले थी.’’
नेहा के दिल को कुछ हुआ, लेकिन प्रत्यक्षतया सामान्य बनी रही. सुभद्रादेवी और केशवचंद उस से दिल्ली के हालचाल पूछते रहे. मीना व अंजलि के मातापिता मेरठ में रहते हैं. नेहा के मातापिता नहीं हैं. एक भाई है जो विदेश में रहता है.
नाश्ता हंसीमजाक के माहौल में हुआ. सब अंजलि की बातों का मजा ले रहे थे. बच्चे भी उस से चिपके हुए थे. यश और समृद्धि थोड़ी देर तो संकोच में रहे, फिर उस से हिलमिल गए. नेहा की बेचैनी बढ़ रही थी. तभी अंजलि ने कहा, ‘‘दीदी, अब मेरे लिए एक फ्लैट ढूंढ़ दो.’’
मीना ने कहा, ‘‘चुप कर, अब हमारे साथ ही रहेगी तू.’’
सुनील ने भी कहा, ‘‘अकेले कहीं रहने की क्या जरूरत है? यहीं रहो.’’
मीना ने तो रात से ही चहकना शुरू कर दिया था, ‘‘अंजलि अब यहीं रहेगी, तो कितना मजा आएगा नेहा, तुम तो पहली बार मिलोगी उस से… देखना, कितनी स्मार्ट है मेरी बहन.’’
नेहा औपचारिकतावश मुसकराती रही. अनिल पर नजरें जमाए थी. लेकिन अंदाजा नहीं लगा पाई कि अनिल खुश है या नहीं. नेहा व अनिल और उन के
2 बच्चे यश और समृद्धि, जेठजेठानी व उन के बेटे सार्थक और वीर, सास सुभद्रादेवी और ससुर केशवचंद सब लखनऊ में एक ही घर में रहते थे और सब
की आपस में अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी. सब खुश थे, लेकिन अंजलि के आने की खबर से नेहा कुछ बेचैन थी.
अंजलि सुबह अपने काम में लग गई. मीना बेहद खुश थी. बोली, ‘‘नेहा, आज अंजलि की पसंद का नाश्ता और खाना बना लेते हैं.’’
नेहा ने हां में सिर हिलाया. फिर दोनों किचन में व्यस्त हो गईं. टैक्सी गेट पर रुकी, तो मीना ने पति सुनील से कहा, ‘‘शायद अंजलि आ गई, आप थोड़ी देर बाद औफिस जाना.’’
‘‘मुझे आज कोई जल्दी नहीं है… भई, इकलौती साली साहिबा जो आ रही हैं,’’ सुनील हंसा.
अंजलि ने घर में प्रवेश कर सब का अभिवादन किया. मीना उस के गले लग गई. फिर नेहा से परिचय करवाया. अंजलि ने जिस तरह से उसे ऊपर से नीचे तक देखा वह नेहा को पसंद नहीं आया. फिर भी वह उस से खुशीखुशी मिली.
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जब अंजलि सब से बातें कर रही थी, तो नेहा ने उस का जायजा लिया… सुंदर, स्मार्ट, पोनीटेल बनाए हुए, छोटा सा टौप और जींस पहने छरहरी अंजलि काफी आकर्षक थी.
जब अनिल फ्रैश हो कर आया, तो अंजलि ने फौरन अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’
अनिल ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसी हो?’’
‘‘कैसी लग रही हूं?’’
‘‘बिलकुल वैसी जैसे पहले थी.’’
नेहा के दिल को कुछ हुआ, लेकिन प्रत्यक्षतया सामान्य बनी रही. सुभद्रादेवी और केशवचंद उस से दिल्ली के हालचाल पूछते रहे. मीना व अंजलि के मातापिता मेरठ में रहते हैं. नेहा के मातापिता नहीं हैं. एक भाई है जो विदेश में रहता है.
नाश्ता हंसीमजाक के माहौल में हुआ. सब अंजलि की बातों का मजा ले रहे थे. बच्चे भी उस से चिपके हुए थे. यश और समृद्धि थोड़ी देर तो संकोच में रहे, फिर उस से हिलमिल गए. नेहा की बेचैनी बढ़ रही थी. तभी अंजलि ने कहा, ‘‘दीदी, अब मेरे लिए एक फ्लैट ढूंढ़ दो.’’
मीना ने कहा, ‘‘चुप कर, अब हमारे साथ ही रहेगी तू.’’
सुनील ने भी कहा, ‘‘अकेले कहीं रहने की क्या जरूरत है? यहीं रहो.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
