27-05-2020, 07:51 PM
(This post was last modified: 22-08-2021, 01:56 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न।
हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।
और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।
" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "
जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।
गुड्डी के तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था ,
मेरी जेठानी भी एकदम ,
मैंने बात सम्हालने की कोशिश की ,
" अरे गुड्डी चूत मतलब , ये तेरी दोनों जांघो के बीच वाली चीज , नीचे वाले मखमली कोरे होंठ नहीं मांग रहे है ,
बल्कि ऊपर के होंठ के बीच में फंसी सिंदूरी रसीली फांक मांग रहे हैं। अरे आम को चूत ही तो कहते हैं संस्कृत में। रसाल ,मधुर और होता भी तो है वैसे ही चिकना , रसीला।
चाटने चूसने में दोनों ही मजा है , हैं न यही बात। "
उन्होंने सर हिला के हामी भरी , जेठानी मेरी एक नम्बरी क्यों मौक़ा छोड़तीं ,बोली ,
" अरे मान लो गुड्डी से नीचे वाला होंठ मांग ही लिया तो क्या बुरा किया , अरे दे देगी ये समझा क्या है अपनी ननद को। घिस थोड़ी जायेगी "
माहौल एक बार फिर हलका हो गया था। मैंने भी मजा लेते हुए कहा ,
" अरे घिस नहीं जायेगी , फट जाएगी इनके मूसल से "
हँसते हुए मैं बोली।
" तो क्या हुआ ,अरे कोई न कोई तो फाड़ेगा ही ,अपने प्यारे प्यारे भैय्या से ही फड़वा लेगी। "
जेठानी जी ने भी अपनी छुटकी ननद को और रगड़ा।
" और क्या ,फिर ये तो कहती ही हैं , मेरे भय्या कुछ भी ,कुछ भी मांगे मैं मना नहीं करुँगी , लेकिन अभी तो जो वो मांग रहे है वो तो दे दो न बिचारे को "
और चारा भी क्या था बिचारी के पास।
अपने रस से भीगे होंठों के बीच दबे खूब चूसी हुयी फांक को गुड्डी ने निकाल के जैसे ही उनकी ओर बढ़ाया ,
उनका एक हाथ वैसे भी गुड्डी के कंधे पर ही था , बस एकदम सटे चिपके बैठे थे वो ,बस दूसरे हाथ ने झपट कर उस गुड्डी की खायी ,चूसी,चुभलाई आम की फांक को सीधे वो उन होंठों के बीच।
और अब वो उस फांक को वैसे ही चूस रहे ,चाट रहे थे, चख रहे थे जैसे थोड़ी देर पहले उनके बाएं बैठी वो एलवल वाली मजे से चूस रही थी।
मस्त गंध ,अल्फांसो के टैंगी टैंगी स्वाद के साथ , आमरस के साथ उसमें काम रस भी तो मिला था।
उनकी छुटकी बहिनिया के किशोर होंठों का रस ,उसका मुख रस।
खूब मजे से वो चूस रहे थे ,चुभला रहे थे ,कुतर रहे थे।
जैसे कुछ देर पहले गुड्डी के होंठों से आम रस की बूंदे सरक कर ठुड्डी तक पहुँच गयी थीं , वही हालत अब उनकी थी।
लेकिन मेरी निगाहें उन से ज्यादा अपनी ननद और जेठानी पर चिपकी थी जो पहले दिन से मुझे ज्ञान देने में जुटी थीं ,
मेरे भैय्या को ,मेरे देवर को ,तुम्हे कुछ मालूम नहीं ,तेरे मायके में होता है यहां नहीं , भाभी ,भइया को ये एकदम पसंद नहीं ,कित्ती बार तो आपको बोल चुकी हूँ लेकिन आपको तो समझ ही नहीं ,
जो कहते हैं न फट के हाथ में आ जाना , एकदम वही हालत थी मेरी ननद और उससे भी ज्यादा जेठानी का।
गुड्डी का तो मुँह एकदम खुला ,
शाक भी सरप्राइज भी , जो चीज वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी , उसके भैय्या ,
जिठानी की हालत तो गुड्डी से भी खराब जो चीज वो कभी सोच नहीं सकती थी ,उसी घर में ,उसी डाइनिंग टेबल पर जिस पर बैठ के घंटो वो मुझे लेक्चर देती थीं।
एकदम सन्नाटा , पिन ड्राप ,
सन्नाटा तोड़ा उन्होंने ही ,गुड्डी से बोले ,
" अच्छा है न, मस्त टैंगी , तेरे लिए तेरी भाभी ने स्पेशली मंगाया था ,मस्त स्वाद है न "
बिचारी गुड्डी क्या जवाब देती , वो सिर्फ बाजी ही नहीं हारी थी बल्कि बहुत कुछ,
और मैं मन ही मन सोच रही थी ,गुड्डी रानी ये तो सिर्फ शुरुआत है।
किसी तरह तो तुझे पटा के अपने घर ले चल पाऊं न फिर तो , अरे तेरी सील तो तेरे सीधे साधे भैय्या से तुड़वाउंगी ही ,आगे आगे देखना , मंजू बाई और गीता तो बस मौका मिलने की देर है ,
और तेरी कच्ची अमिया कुतरने वालो की कमी नहीं है।
लेकिन बोली मैं उसके सीधे साधे भैया से ,
" अरे कैसे भाई हो ,तूने तो गुड्डी की ले ली लेकिन अब उसको भी तो दो , उस बिचारी के होंठों से ,
और मेरी बात पूरा होने के पहले ही प्लेट से एक बड़ी सी रसीली खूब लम्बी फांक उठा के उन्होंने सीधे गुड्डी के रसीले होंठों के बीच ,
और अबकी गुड्डी ने गड़प लिया।
और जैसे कोहबर में नाउन से लेकर दुल्हन की भौजाइयां तक सिखाती हैं , की कैसे जब दूल्हा उसे कोहबर में खीर खिलाये तो कचाक से वो उसकी ऊँगली काट ले , बस एकदम उसी तरह गुड्डी ने ,जब उन्होंने आम की फांक अपनी ऊँगली से गुड्डी के आमरस से सिक्त मुंह में डाली तो बस ,कचाक से उस शोख ने उनकी ऊँगली काट ली।
मेरी उंगलिया तो किसी और काम में बिजी थीं ,पिंजड़े से शेर को आजाद करने के काम में ,और शार्ट का फायदा भी यही है , जरा सा सरकाओ ,शेर आजाद।
और भूखा शेर बाहर आ गया ,दहाडता ,चिग्घाड़ता। और ऊपर से मैंने अपनी कोमल कोमल मुट्ठी में , उसे पकड़कर मुठियाना शुरू कर दिया।
बस थोड़ी देर में ही वो फनफनाने लगा।
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।
हम तीनो,मैं, गुड्डी और मेरी जेठानी कान पारे सुन रहे थे ,इन्तजार कर रहे थे।
और उनके बोल फूटे , झटपट जैसे जल्दी से अपनी बात ख़तम करने के चक्कर में हों।
" गुड्डी , चूत ज़रा अपनी चूत मुझको दो न। "
जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा हो सबको ,सब लोग एकदम पत्त्थर।
गुड्डी के तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था ,
मेरी जेठानी भी एकदम ,
मैंने बात सम्हालने की कोशिश की ,
" अरे गुड्डी चूत मतलब , ये तेरी दोनों जांघो के बीच वाली चीज , नीचे वाले मखमली कोरे होंठ नहीं मांग रहे है ,
बल्कि ऊपर के होंठ के बीच में फंसी सिंदूरी रसीली फांक मांग रहे हैं। अरे आम को चूत ही तो कहते हैं संस्कृत में। रसाल ,मधुर और होता भी तो है वैसे ही चिकना , रसीला।
चाटने चूसने में दोनों ही मजा है , हैं न यही बात। "
उन्होंने सर हिला के हामी भरी , जेठानी मेरी एक नम्बरी क्यों मौक़ा छोड़तीं ,बोली ,
" अरे मान लो गुड्डी से नीचे वाला होंठ मांग ही लिया तो क्या बुरा किया , अरे दे देगी ये समझा क्या है अपनी ननद को। घिस थोड़ी जायेगी "
माहौल एक बार फिर हलका हो गया था। मैंने भी मजा लेते हुए कहा ,
" अरे घिस नहीं जायेगी , फट जाएगी इनके मूसल से "
हँसते हुए मैं बोली।
" तो क्या हुआ ,अरे कोई न कोई तो फाड़ेगा ही ,अपने प्यारे प्यारे भैय्या से ही फड़वा लेगी। "
जेठानी जी ने भी अपनी छुटकी ननद को और रगड़ा।
" और क्या ,फिर ये तो कहती ही हैं , मेरे भय्या कुछ भी ,कुछ भी मांगे मैं मना नहीं करुँगी , लेकिन अभी तो जो वो मांग रहे है वो तो दे दो न बिचारे को "
और चारा भी क्या था बिचारी के पास।
अपने रस से भीगे होंठों के बीच दबे खूब चूसी हुयी फांक को गुड्डी ने निकाल के जैसे ही उनकी ओर बढ़ाया ,
उनका एक हाथ वैसे भी गुड्डी के कंधे पर ही था , बस एकदम सटे चिपके बैठे थे वो ,बस दूसरे हाथ ने झपट कर उस गुड्डी की खायी ,चूसी,चुभलाई आम की फांक को सीधे वो उन होंठों के बीच।
और अब वो उस फांक को वैसे ही चूस रहे ,चाट रहे थे, चख रहे थे जैसे थोड़ी देर पहले उनके बाएं बैठी वो एलवल वाली मजे से चूस रही थी।
मस्त गंध ,अल्फांसो के टैंगी टैंगी स्वाद के साथ , आमरस के साथ उसमें काम रस भी तो मिला था।
उनकी छुटकी बहिनिया के किशोर होंठों का रस ,उसका मुख रस।
खूब मजे से वो चूस रहे थे ,चुभला रहे थे ,कुतर रहे थे।
जैसे कुछ देर पहले गुड्डी के होंठों से आम रस की बूंदे सरक कर ठुड्डी तक पहुँच गयी थीं , वही हालत अब उनकी थी।
लेकिन मेरी निगाहें उन से ज्यादा अपनी ननद और जेठानी पर चिपकी थी जो पहले दिन से मुझे ज्ञान देने में जुटी थीं ,
मेरे भैय्या को ,मेरे देवर को ,तुम्हे कुछ मालूम नहीं ,तेरे मायके में होता है यहां नहीं , भाभी ,भइया को ये एकदम पसंद नहीं ,कित्ती बार तो आपको बोल चुकी हूँ लेकिन आपको तो समझ ही नहीं ,
जो कहते हैं न फट के हाथ में आ जाना , एकदम वही हालत थी मेरी ननद और उससे भी ज्यादा जेठानी का।
गुड्डी का तो मुँह एकदम खुला ,
शाक भी सरप्राइज भी , जो चीज वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी , उसके भैय्या ,
जिठानी की हालत तो गुड्डी से भी खराब जो चीज वो कभी सोच नहीं सकती थी ,उसी घर में ,उसी डाइनिंग टेबल पर जिस पर बैठ के घंटो वो मुझे लेक्चर देती थीं।
एकदम सन्नाटा , पिन ड्राप ,
सन्नाटा तोड़ा उन्होंने ही ,गुड्डी से बोले ,
" अच्छा है न, मस्त टैंगी , तेरे लिए तेरी भाभी ने स्पेशली मंगाया था ,मस्त स्वाद है न "
बिचारी गुड्डी क्या जवाब देती , वो सिर्फ बाजी ही नहीं हारी थी बल्कि बहुत कुछ,
और मैं मन ही मन सोच रही थी ,गुड्डी रानी ये तो सिर्फ शुरुआत है।
किसी तरह तो तुझे पटा के अपने घर ले चल पाऊं न फिर तो , अरे तेरी सील तो तेरे सीधे साधे भैय्या से तुड़वाउंगी ही ,आगे आगे देखना , मंजू बाई और गीता तो बस मौका मिलने की देर है ,
और तेरी कच्ची अमिया कुतरने वालो की कमी नहीं है।
लेकिन बोली मैं उसके सीधे साधे भैया से ,
" अरे कैसे भाई हो ,तूने तो गुड्डी की ले ली लेकिन अब उसको भी तो दो , उस बिचारी के होंठों से ,
और मेरी बात पूरा होने के पहले ही प्लेट से एक बड़ी सी रसीली खूब लम्बी फांक उठा के उन्होंने सीधे गुड्डी के रसीले होंठों के बीच ,
और अबकी गुड्डी ने गड़प लिया।
और जैसे कोहबर में नाउन से लेकर दुल्हन की भौजाइयां तक सिखाती हैं , की कैसे जब दूल्हा उसे कोहबर में खीर खिलाये तो कचाक से वो उसकी ऊँगली काट ले , बस एकदम उसी तरह गुड्डी ने ,जब उन्होंने आम की फांक अपनी ऊँगली से गुड्डी के आमरस से सिक्त मुंह में डाली तो बस ,कचाक से उस शोख ने उनकी ऊँगली काट ली।
मेरी उंगलिया तो किसी और काम में बिजी थीं ,पिंजड़े से शेर को आजाद करने के काम में ,और शार्ट का फायदा भी यही है , जरा सा सरकाओ ,शेर आजाद।
और भूखा शेर बाहर आ गया ,दहाडता ,चिग्घाड़ता। और ऊपर से मैंने अपनी कोमल कोमल मुट्ठी में , उसे पकड़कर मुठियाना शुरू कर दिया।
बस थोड़ी देर में ही वो फनफनाने लगा।
मेरी उँगलियाँ तो उनके खड़े तन्नाए खूंटे को मुठिया रही थीं
पर कान तो फ्री थे और वो तोता मैना संवाद की एक एक बात सुन रहे थे।