25-05-2020, 05:55 PM
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अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…
मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे..
मेने एक लंबी सी छलान्ग लगाई और इससे पहले कि वो संभाल कर भाग पाती मेने पीछे से उनकी कमर में लपेटा मार दिया.
वो नीचे को झुकती चली गयी, मे उनके उपर था.. पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी, मेने उनको अपनी बाजुओं में कस कर उठा लिया.. वो खिल-खिला रही थी, और मुझसे छोड़ने के लिए बोलती जा रही थी.
उनके हाथ मेरे हाथों के उपर थे, लेकिन उनसे वो मेरे हाथों पर दबाब डाले थी, उन्हें छुड़ाने का कोई प्रयास नही था.
मेरी हाइट दीदी से कुच्छ ज़्यादा ही थी, उनको उपर उठाते हुए मेरे हाथ उनके पेट से सरक कर थोड़ा उपर को हो गये और उनके अमरूद के निचले हिस्से को टच होने लगे.
दीदी लगातार खिल-खिलाए जा रही थी और अपने हाथों से मेरे हाथों को और उपर को खिसकने की कोशिश कर रही थी, अब उनकी कमर का उपरी हिस्सा मेरे ठीक पप्पू के सामने था जो कमर के दबाब से फूलने लगा था.
दीदी ने अब अपने को छुड़ाने के बहाने अपने को और झुकाया और मेरी बाजुओं पर झूल गयी, अपने दोनो पैर हवा में उठा लिए और उन्हें मेरे घुटनों पर जमा लिया.
उसके बाद उन्होने अपनी कमर को और उपर की ओर उच्छला… अब उनके गोल-मटोल चुतड़ों की दरार ठीक मेरे अकड़ चुके पप्पू के सामने थी, वो लगातार मुझसे छोड़ने के लिए बोल रही थी और साथ ही अपने गांद को मेरे बाबू के उपर रगड़ रही थी.
हम दोनो के ही मुँह लाल पड़ गये थे… अभी कुच्छ और आगे होता उसके पहले बाहर के दरवाजे से एक और खिल-खिलाहट की आवाज़ सुनाई दी…
मेने दीदी को छोड़ दिया और हम दोनो ने ही पीछे मुड़कर देखा, दरवाजे पर आशा दीदी खड़ी ताली बजा-बजा कर हमारा खेल देखते हुए हंस रही थी.
आशा – वाह ! भाई-बेहन अकेले अकेले ही खेल में लगे हो… अरे भाई हमें भी शामिल कर्लो…
रामा – देखो ना दीदी, ये छोटू बहुत तंग करता है मुझे, ऐसा कस कर पकड़ लिया कि छोड़ ही नही रहा था..
मे – अच्छा मेरे गुदगुदी किसने की थी हां ! अब बताओ दीदी को.. खुद शुरू करती है, और दोष मेरे उपर डाल रही है..
आशा – अरे बस करो तुम दोनो और बताओ कोई काम-वाम तो नही है तुम दोनो को..?
दोनो एक साथ – नही ऐसा तो कोई काम नही है..
आशा – तो चलो क्यों ना हम लोग खेतों में चलें, वही बाग़ में बैठ कर खेलते हैं, यहाँ कितनी गर्मी है..
मेने कहा – हां दीदी चलो वहीं चलते हैं…. फिर हम बाबूजी को बता कर तीनों खेतों की तरफ चल दिए, जो बस घर से कोई आधा किमी की दूरी पर ही थे…
हमारी लंबी चौड़ी ज़मीन थी, ज़मीन के लगभग सेंटर में 4 एकर का आम और अमरूद का बाग था, जिसमें और भी आमला, बेर जैसे पेड़ थे, लेकिन मुख्य तौर पर आम और अमरूद ही थे.
बगीचे के चारों तरफ के हिस्से बराबर -2 खेत चारों भाइयों में बँटे हुए थे. गाओं की तरफ का हमारा हिस्सा था, और उसके ठीक ऑपोसिट आशा दीदी के खेत थे, चारों की ज़मीन की सिंचाई हमारे ही टबवेल से होती थी.
ये सीज़न आमों का था, लेकिन कच्चे आम लगे थे, पकने में अभी कम से कम एक महीना और लगनेवाला था.
हम तीनों आम के बगीचे में जहाँ घने पेड़ थे उनके नीचे एक चादर बिछा कर बैठ गये, और कार्ड्स खेलने लगे.
गर्मियों की चिलचिलाती दोपहरी में घर से ज़्यादा यहाँ रहट थी, वैसे तो हवा ज़्यादा नही थी, फिर भी जब भी हवा का झोंका आता, तो बड़ी ठंडक पहुँचती उस तमतमाति गर्मी में.
कार्ड खेलते -2 हमें पूरी दोपहरी निकल गयी, 3 बजे रामा दीदी बोली, यार अब चलो, बोर हो गये खेलते-2…
तभी आशा दीदी बोली चलो ठीक है, लेकिन कुच्छ आम ले लेते हैं, शाम को चटनी बनाने के काम आएँगे..
आशा दीदी बोली – छोटू तू ट्राइ करना कुच्छ आम तोड़ने की.. तो मे उचक कर कुच्छ नीचे की तरफ लटके आमों को तोड़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन काफ़ी कोशिश करने पर भी उन्तक पहुँच नही पाया.
दोनो दीदी मिट्टी के ढेले उठाकर आमों को निशाना लगाकर तोड़ने की कोशिश करने लगी, लेकिन निशाना नही लग पा रहा था और एक-आध लगा भी तो कच्चे आम मिट्टी के ढेलों से नही टूट पाए..
आशा – छोटू यार ! तू घोड़ा बन जाय तो तेरे उपर चढ़ कर मे या रामा पहुँच सकती हैं आमों तक.
मे अपने घुटने टेक कर घोड़ा बन गया, पहले रामा दीदी ने ट्राइ किया लेकिन वो नही पहुँच पाई, फिर आशा दीदी ने भी ट्राइ किया, उनका वजन थोड़ा ज़्यादा था, लेकिन मेने उनको भी सहन कर लिया, लेकिन नतीजा वोही धाक के तीन पात.
आशा दीदी बोली, यार ! ये तो बात नही बन रही, तू पेड़ पर चढ़के नही तोड़ सकता क्या.. अब मे आज तक किसी पेड़ पर नही चढ़ा था, तो मेने मना कर दिया…
फिर वो बोली – तो एक काम कर, मुझे उचका दे… मे तोड़ लूँगी..
मेने रामा दीदी की ओर देखा, तो वो मन ही मन मुस्करा रही थी, लेकिन प्रत्यक्ष में कुच्छ नही बोली, मुझे चुप रहते हुए वो फिर बोली- अरे उचका ना ! बिंदास, सोच क्या रहा है.. तू भी ना… !
मेने आशा दीदी को जैसे ही पीछे से पकड़ने की कोशिश की तो वो पलट गयी और वॉली – आगे से उठा, जिससे तुझे भी दिखे कि और कितना उपर करना है…
मेने थोड़ा झुक कर उनकी जांघों को अपने बाजुओं में लपेटा और उपर को उठाया...इस पोज़िशन में उनका यौनी प्रदेश मेरे कमर से थोड़ा उपर माने पेट पर था और उनके बूब्स मेरे मुँह से थोड़ा सा नीचे थे.
उनकी मोटी-2 मांसल जांघों के एहसास ने मेरे शरीर में झुरजुरी सी दौड़ा दी, भारी-भारी गोल मुलायम चुचियों का उपरी भाग मेरी ठोडी को सहला रहा था.
दो-चार आम तो उनकी हद में आ गये और उन्होने उन्हें तोड़ लिया, लेकिन और भी तोड़ने के लिए अभी भी वो नही पहुँच पा रही थी..
आशा – छोटू ! भाई और थोड़ा उपर कर ना !
मेने उन्हें और 6-8” उपर किया तो मेरा मुँह ठीक उनके बूब्स के बीच में आ गया, मेरे गाल उनकी चुचियों पर थे…
अचानक उनके मुँह से एक हल्की से सिसकी निकल गयी.. ईीीइसस्स्शह…सीईईईईईई.., मेने कहा- क्या हुआ दीदी..? तो वो फ़ौरन बोली – कुच्छ नही तू ऐसे ही पकड़े रह बस मे आम को पकड़ने ही वाली हूँ… अरे हिल मत…ना..!
मेरा मुँह और नाक उनकी मोटी-2 चुचियों में दब रहा था, तो उसको थोड़ा इधर-उधर किया… इससे मेरी नाक उनकी चुचियों पर रगड़ने लगी…
वो तो आम तोड़ना भूल कर अपनी आँखें बंद करके मस्ती में खो गयी…
मेरा भी नीचे तंबू बनता जा रहा था, फिर अचानक रामा दीदी बोली – अरे दीदी ! तोडो ना आम जल्दी उसको प्राब्लम हो रही है, कब तक वो ऐसे उठाए खड़ा रहेगा..?
आशा – अरे तोड़ तो रही हूँ… ! छोटू ! भैया थोडा पीछे को हो ना ! ये चार आम थोड़े तेरे पीछे को हैं..
मे जैसे ही थोड़ा पीछे को हुआ, मुझे पता नही था कि ज़मीन थोड़ा उबड़-खाबड़ है, मेरा पैर एक गड्ढे में चला गया और मे पीछे को गिरने लगा…
छोटूऊऊऊऊऊओ….संभाअल… वो चिल्लाई… लेकिन एक बार बॅलेन्स क्या बिगड़ा कि धडाम से में पीछे को गिर पड़ा… आशा दीदी मेरे उपर… उनकी राम दुलारी मेरे आकड़े हुए पप्पू को किस कर रही थी…
उसके 34” के दोनो उभार मेरे सीने में दबे पड़े थे, उत्तेजना के कारण दीदी के निपल भी कड़े होकर मेरे सीने में चुभन पैदा कर रहे थे.
मेरे दोनो हाथ अभी भी उनकी मस्त गद्देदार गांद पर थे… मुझे पता नही चला कि कही चोट-वोट भी लगी है, मे तो बस उनके मादक शरीर के नीचे पड़ा उनकी आँखों में झाँक रहा था, जिसमें एक निमंत्रण दिखाई दिया…
वो भी ऐसे ही कुच्छ देर मज़े के आलम में खोई रही… रामा दीदी पास में खड़ी खिल-खिला रही थी…
फिर मुझे अपनी पीठ में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ और मेने उनसे कहा- अरे दीदी ! उठो मेरी पीठ टूट गयी..!
वो – तो पहले तू मुझे छोड़ तो सही, तभी तो मे उठुँगी…! तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरे दोनो हाथ उसके चुतड़ों पर कसे हुए हैं.
जब मेने उन्हें छोड़ा, तो अपनी चूत को मेरे पप्पू के उपर ज़ोर से रगड़ा और एक मादक सिसकी भरती हुई वो मेरे उपर से उठ गयी…
मे जैसे ही खड़ा हुआ तब मुझे अपनी पीठ में दर्द का एहसास हुआ.. क्योंकि जहाँ में गिरा था, वहाँ एक छोटा सा ब्रिक (एंट) का टुकड़ा पड़ा हुआ था और उस साले ने मेरी पीठ को चटका दिया था.
मे आहह भरते हुए उठा… तो रामा दीदी बोली – क्या हुआ छोटू..? चोट लग गयी क्या..?
मे – हां दीदी इस पत्थर से मेरी पीठ टूट गई शायद, तो आशा दीडे ने मेरी शर्ट उपर करके अपने हाथ से कुच्छ देर सहलाया और बोली- रामा घर जाकर थोड़ा इयोडीक्स की मालिश कर देना ठीक हो जाएगा..
इसी तरह की चुहल बाज़ियों में समय व्यतीत हो रहा था, मेरी दोनो बहनें मेरे साथ दिनो दिन खुलती जा रही थी.. और मे उनकी हरकतों से बुरी तरह उत्तेजित हो जाता था, लेकिन कुच्छ कर नही पाता…
मेने अभी तक अपने लौडे को हाथ में लेकर सिवाय मुताने के और कोई उसे नही किया था.. मन ही मन सोचता था, कि काश इसके आगे भी कुच्छ कर पाता.. लेकिन क्या ? ये कोई आइडिया नही था..
मेरा कोई ऐसा दोस्त भी नही था जिससे मे इस तरह की बातें शेयर कर पाता.. वो दोनो तो मुझे गरम करके अपना काम निकाल कर अपने रास्ते हो लेती और मे यूँ ही चूतिया बना रह जाता…
अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…
मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे..
मेने एक लंबी सी छलान्ग लगाई और इससे पहले कि वो संभाल कर भाग पाती मेने पीछे से उनकी कमर में लपेटा मार दिया.
वो नीचे को झुकती चली गयी, मे उनके उपर था.. पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी, मेने उनको अपनी बाजुओं में कस कर उठा लिया.. वो खिल-खिला रही थी, और मुझसे छोड़ने के लिए बोलती जा रही थी.
उनके हाथ मेरे हाथों के उपर थे, लेकिन उनसे वो मेरे हाथों पर दबाब डाले थी, उन्हें छुड़ाने का कोई प्रयास नही था.
मेरी हाइट दीदी से कुच्छ ज़्यादा ही थी, उनको उपर उठाते हुए मेरे हाथ उनके पेट से सरक कर थोड़ा उपर को हो गये और उनके अमरूद के निचले हिस्से को टच होने लगे.
दीदी लगातार खिल-खिलाए जा रही थी और अपने हाथों से मेरे हाथों को और उपर को खिसकने की कोशिश कर रही थी, अब उनकी कमर का उपरी हिस्सा मेरे ठीक पप्पू के सामने था जो कमर के दबाब से फूलने लगा था.
दीदी ने अब अपने को छुड़ाने के बहाने अपने को और झुकाया और मेरी बाजुओं पर झूल गयी, अपने दोनो पैर हवा में उठा लिए और उन्हें मेरे घुटनों पर जमा लिया.
उसके बाद उन्होने अपनी कमर को और उपर की ओर उच्छला… अब उनके गोल-मटोल चुतड़ों की दरार ठीक मेरे अकड़ चुके पप्पू के सामने थी, वो लगातार मुझसे छोड़ने के लिए बोल रही थी और साथ ही अपने गांद को मेरे बाबू के उपर रगड़ रही थी.
हम दोनो के ही मुँह लाल पड़ गये थे… अभी कुच्छ और आगे होता उसके पहले बाहर के दरवाजे से एक और खिल-खिलाहट की आवाज़ सुनाई दी…
मेने दीदी को छोड़ दिया और हम दोनो ने ही पीछे मुड़कर देखा, दरवाजे पर आशा दीदी खड़ी ताली बजा-बजा कर हमारा खेल देखते हुए हंस रही थी.
आशा – वाह ! भाई-बेहन अकेले अकेले ही खेल में लगे हो… अरे भाई हमें भी शामिल कर्लो…
रामा – देखो ना दीदी, ये छोटू बहुत तंग करता है मुझे, ऐसा कस कर पकड़ लिया कि छोड़ ही नही रहा था..
मे – अच्छा मेरे गुदगुदी किसने की थी हां ! अब बताओ दीदी को.. खुद शुरू करती है, और दोष मेरे उपर डाल रही है..
आशा – अरे बस करो तुम दोनो और बताओ कोई काम-वाम तो नही है तुम दोनो को..?
दोनो एक साथ – नही ऐसा तो कोई काम नही है..
आशा – तो चलो क्यों ना हम लोग खेतों में चलें, वही बाग़ में बैठ कर खेलते हैं, यहाँ कितनी गर्मी है..
मेने कहा – हां दीदी चलो वहीं चलते हैं…. फिर हम बाबूजी को बता कर तीनों खेतों की तरफ चल दिए, जो बस घर से कोई आधा किमी की दूरी पर ही थे…
हमारी लंबी चौड़ी ज़मीन थी, ज़मीन के लगभग सेंटर में 4 एकर का आम और अमरूद का बाग था, जिसमें और भी आमला, बेर जैसे पेड़ थे, लेकिन मुख्य तौर पर आम और अमरूद ही थे.
बगीचे के चारों तरफ के हिस्से बराबर -2 खेत चारों भाइयों में बँटे हुए थे. गाओं की तरफ का हमारा हिस्सा था, और उसके ठीक ऑपोसिट आशा दीदी के खेत थे, चारों की ज़मीन की सिंचाई हमारे ही टबवेल से होती थी.
ये सीज़न आमों का था, लेकिन कच्चे आम लगे थे, पकने में अभी कम से कम एक महीना और लगनेवाला था.
हम तीनों आम के बगीचे में जहाँ घने पेड़ थे उनके नीचे एक चादर बिछा कर बैठ गये, और कार्ड्स खेलने लगे.
गर्मियों की चिलचिलाती दोपहरी में घर से ज़्यादा यहाँ रहट थी, वैसे तो हवा ज़्यादा नही थी, फिर भी जब भी हवा का झोंका आता, तो बड़ी ठंडक पहुँचती उस तमतमाति गर्मी में.
कार्ड खेलते -2 हमें पूरी दोपहरी निकल गयी, 3 बजे रामा दीदी बोली, यार अब चलो, बोर हो गये खेलते-2…
तभी आशा दीदी बोली चलो ठीक है, लेकिन कुच्छ आम ले लेते हैं, शाम को चटनी बनाने के काम आएँगे..
आशा दीदी बोली – छोटू तू ट्राइ करना कुच्छ आम तोड़ने की.. तो मे उचक कर कुच्छ नीचे की तरफ लटके आमों को तोड़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन काफ़ी कोशिश करने पर भी उन्तक पहुँच नही पाया.
दोनो दीदी मिट्टी के ढेले उठाकर आमों को निशाना लगाकर तोड़ने की कोशिश करने लगी, लेकिन निशाना नही लग पा रहा था और एक-आध लगा भी तो कच्चे आम मिट्टी के ढेलों से नही टूट पाए..
आशा – छोटू यार ! तू घोड़ा बन जाय तो तेरे उपर चढ़ कर मे या रामा पहुँच सकती हैं आमों तक.
मे अपने घुटने टेक कर घोड़ा बन गया, पहले रामा दीदी ने ट्राइ किया लेकिन वो नही पहुँच पाई, फिर आशा दीदी ने भी ट्राइ किया, उनका वजन थोड़ा ज़्यादा था, लेकिन मेने उनको भी सहन कर लिया, लेकिन नतीजा वोही धाक के तीन पात.
आशा दीदी बोली, यार ! ये तो बात नही बन रही, तू पेड़ पर चढ़के नही तोड़ सकता क्या.. अब मे आज तक किसी पेड़ पर नही चढ़ा था, तो मेने मना कर दिया…
फिर वो बोली – तो एक काम कर, मुझे उचका दे… मे तोड़ लूँगी..
मेने रामा दीदी की ओर देखा, तो वो मन ही मन मुस्करा रही थी, लेकिन प्रत्यक्ष में कुच्छ नही बोली, मुझे चुप रहते हुए वो फिर बोली- अरे उचका ना ! बिंदास, सोच क्या रहा है.. तू भी ना… !
मेने आशा दीदी को जैसे ही पीछे से पकड़ने की कोशिश की तो वो पलट गयी और वॉली – आगे से उठा, जिससे तुझे भी दिखे कि और कितना उपर करना है…
मेने थोड़ा झुक कर उनकी जांघों को अपने बाजुओं में लपेटा और उपर को उठाया...इस पोज़िशन में उनका यौनी प्रदेश मेरे कमर से थोड़ा उपर माने पेट पर था और उनके बूब्स मेरे मुँह से थोड़ा सा नीचे थे.
उनकी मोटी-2 मांसल जांघों के एहसास ने मेरे शरीर में झुरजुरी सी दौड़ा दी, भारी-भारी गोल मुलायम चुचियों का उपरी भाग मेरी ठोडी को सहला रहा था.
दो-चार आम तो उनकी हद में आ गये और उन्होने उन्हें तोड़ लिया, लेकिन और भी तोड़ने के लिए अभी भी वो नही पहुँच पा रही थी..
आशा – छोटू ! भाई और थोड़ा उपर कर ना !
मेने उन्हें और 6-8” उपर किया तो मेरा मुँह ठीक उनके बूब्स के बीच में आ गया, मेरे गाल उनकी चुचियों पर थे…
अचानक उनके मुँह से एक हल्की से सिसकी निकल गयी.. ईीीइसस्स्शह…सीईईईईईई.., मेने कहा- क्या हुआ दीदी..? तो वो फ़ौरन बोली – कुच्छ नही तू ऐसे ही पकड़े रह बस मे आम को पकड़ने ही वाली हूँ… अरे हिल मत…ना..!
मेरा मुँह और नाक उनकी मोटी-2 चुचियों में दब रहा था, तो उसको थोड़ा इधर-उधर किया… इससे मेरी नाक उनकी चुचियों पर रगड़ने लगी…
वो तो आम तोड़ना भूल कर अपनी आँखें बंद करके मस्ती में खो गयी…
मेरा भी नीचे तंबू बनता जा रहा था, फिर अचानक रामा दीदी बोली – अरे दीदी ! तोडो ना आम जल्दी उसको प्राब्लम हो रही है, कब तक वो ऐसे उठाए खड़ा रहेगा..?
आशा – अरे तोड़ तो रही हूँ… ! छोटू ! भैया थोडा पीछे को हो ना ! ये चार आम थोड़े तेरे पीछे को हैं..
मे जैसे ही थोड़ा पीछे को हुआ, मुझे पता नही था कि ज़मीन थोड़ा उबड़-खाबड़ है, मेरा पैर एक गड्ढे में चला गया और मे पीछे को गिरने लगा…
छोटूऊऊऊऊऊओ….संभाअल… वो चिल्लाई… लेकिन एक बार बॅलेन्स क्या बिगड़ा कि धडाम से में पीछे को गिर पड़ा… आशा दीदी मेरे उपर… उनकी राम दुलारी मेरे आकड़े हुए पप्पू को किस कर रही थी…
उसके 34” के दोनो उभार मेरे सीने में दबे पड़े थे, उत्तेजना के कारण दीदी के निपल भी कड़े होकर मेरे सीने में चुभन पैदा कर रहे थे.
मेरे दोनो हाथ अभी भी उनकी मस्त गद्देदार गांद पर थे… मुझे पता नही चला कि कही चोट-वोट भी लगी है, मे तो बस उनके मादक शरीर के नीचे पड़ा उनकी आँखों में झाँक रहा था, जिसमें एक निमंत्रण दिखाई दिया…
वो भी ऐसे ही कुच्छ देर मज़े के आलम में खोई रही… रामा दीदी पास में खड़ी खिल-खिला रही थी…
फिर मुझे अपनी पीठ में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ और मेने उनसे कहा- अरे दीदी ! उठो मेरी पीठ टूट गयी..!
वो – तो पहले तू मुझे छोड़ तो सही, तभी तो मे उठुँगी…! तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरे दोनो हाथ उसके चुतड़ों पर कसे हुए हैं.
जब मेने उन्हें छोड़ा, तो अपनी चूत को मेरे पप्पू के उपर ज़ोर से रगड़ा और एक मादक सिसकी भरती हुई वो मेरे उपर से उठ गयी…
मे जैसे ही खड़ा हुआ तब मुझे अपनी पीठ में दर्द का एहसास हुआ.. क्योंकि जहाँ में गिरा था, वहाँ एक छोटा सा ब्रिक (एंट) का टुकड़ा पड़ा हुआ था और उस साले ने मेरी पीठ को चटका दिया था.
मे आहह भरते हुए उठा… तो रामा दीदी बोली – क्या हुआ छोटू..? चोट लग गयी क्या..?
मे – हां दीदी इस पत्थर से मेरी पीठ टूट गई शायद, तो आशा दीडे ने मेरी शर्ट उपर करके अपने हाथ से कुच्छ देर सहलाया और बोली- रामा घर जाकर थोड़ा इयोडीक्स की मालिश कर देना ठीक हो जाएगा..
इसी तरह की चुहल बाज़ियों में समय व्यतीत हो रहा था, मेरी दोनो बहनें मेरे साथ दिनो दिन खुलती जा रही थी.. और मे उनकी हरकतों से बुरी तरह उत्तेजित हो जाता था, लेकिन कुच्छ कर नही पाता…
मेने अभी तक अपने लौडे को हाथ में लेकर सिवाय मुताने के और कोई उसे नही किया था.. मन ही मन सोचता था, कि काश इसके आगे भी कुच्छ कर पाता.. लेकिन क्या ? ये कोई आइडिया नही था..
मेरा कोई ऐसा दोस्त भी नही था जिससे मे इस तरह की बातें शेयर कर पाता.. वो दोनो तो मुझे गरम करके अपना काम निकाल कर अपने रास्ते हो लेती और मे यूँ ही चूतिया बना रह जाता…