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Adultery JISM by Riya jaan
#80
कुछ सेकण्ड बेहोश रहने के बाद उसकी आंखें खुली, तो उसका शरीर जोर जोर से झटके खा रहा था, जिससे उसे तुरंत अपनी अवस्था का ध्यान आ गया। अब भी वो वैसे ही आधी पलँग से बाहर लटकी हुई दनादन जाकिर के झटके खा रही थी, जिससे उसकी चूत में जाकिर का काला मुश्टंडा लण्ड धड़ाधड़ अंदर बाहर हो रहा था। जाकिर ने अपने कमर में लिपटी उसकी टांगो को दोनों हाथों से पकड़कर V के आकार में फैला लिया था, जिससे उसे टांगो के बीच में ज्यादा जगह मिल सके। रेखा तो बस पड़े पड़े "आह... अम्मममम.. हम्मममम..." की आवाजें निकालती हाथ से कभी चादर को भींचती, तो कभी थपाथप ऊपर नीचे उछलते अपने स्तनों को निचोड़ती, और उनके निप्पलों को उमेठती। कुल मिलाकर कहा जाये तो ऐसा आनंद उसे कभी मिला नहीं था, जो जाकिर पिछले कुछ समय में उसे दे चुका था और अभी क्या क्या होगा, इसका पता किसी को भी नहीं था।



अब जाकिर ने उसकी टांगो को छोड़ा, तो गिरने से बचने के लिए रेखा ने अपनी टाँगे वापस उसकी कमर पर लपेट लीं। थोड़ा रुककर जाकिर ने झुकते हुए रेखा के स्तनों को मसलते हांथो को अपने दोनों हाथों से अपनी ओर खींचा, तो रेखा उठते हुए आगे की ओर आयी। जाकिर ने समय न गंवाते हुए बिना अपना लण्ड निकाले रेखा को किसी नाजुक गुड़िया की तरह गोद में उठा लिया।



इन नए नए पोजिशन से रेखा का मजा कई गुना बढ़े जा रहा था। गोद में रेखा का पूरा शरीर जाकिर के शरीर से बुरी तरह चिपका हुआ था, उसके स्तन दोनों के शरीरों के बीच पिसे जा रहे थे। उसके पैर अब भी जाकिर के कमर के इर्द गिर्द लिपटे हुए थे, और उसकी चूत ठीक जाकिर के गोलियों से चिपकी हुई थी, जिसका मतलब वो पूरा का पूरा जाकिर का लण्ड अपने अंदर लिए हुए थी।



जाकिर ने अब धीरे धीरे अपने कमर को पीछे ले जाकर आगे झटकना शुरू किया, जिससे उसका लण्ड टोपे को छोड़कर पूरा रेखा के बाहर सरसराकर बाहर आता और "थप्प" की आवाज के साथ गहराइयों तक खो जाता, और रेखा की चूत जाकिर के गोलियों को चूम लेती। रेखा से अब बर्दाश्त होना असंभव हो रहा था, तो उसने अपनी बांहे जाकिर के गर्दन के चारो ओर लपेटते हुए उसके होठो को अपने होठों के बीच लेकर बेतहाशा चूसने लगी।



अब जाकिर ने दनादन झटके मारते मारते रेखा के कूल्हों को भींचने शुरू कर दिया।
जिससे आनंदित रेखा लण्ड पर उछलने के साथ साथ जाकिर के छाती पर अपने स्तनों को और जोर जोर से भींचने और रगड़ने लगी। जाकिर ने अब आव देखा ना ताव, और एक बार लण्ड बाहर तक खींच कर जोरदार गति से पूरी गहराई तक उसे रेखा को सौंप दिया, और कूल्हों को मसलते हाथ की सबसे बड़ी अंगुली को भी रेखा के गांड की गहराइयों में इसी झटके के साथ उतार दिया। अपनी चूत में मिले इस झटके से रेखा की ऑंखें बन्द हो गयी। ऐसे ही धड़ाधड़ झटको की अभ्यस्त होकर जब उसे होश आया, तो उसे अपनी कुंवारी गांड में एक अनजान मेहमान के आने की भनक लगी, और जाकिर के लण्ड के साथ ही साथ उसकी ऊँगली भी सटासट गांड में अंदर बाहर हो रही थी। ऐसा दोहरा मजा लेकर रेखा धन्य हो गयी, और उसने हथियार डालते हुए भरभराकर झड़ना शुरू कर दिया। उसके चूत से ऐसा सैलाब बह निकला, कि जाकिर के जांघ से लेकर पूरा पैर भीग गया। झड़ने के बाद उसने अपना सारा शरीर जाकिर की गोद में ही ढीला छोड़ दिया।



अब जाकिर ने भी अपने पैरो को आराम देने का सोचा, और रेखा को लिए लिए ही वो पलंग पर फसर गया। रेखा का बदन जाकिर के बदन पर पेट के बल पड़ा हुआ था, और अब भी उसका लण्ड गहराइयों तक धँसा ही हुआ था। रेखा को कुछ होश आने पर उसने जाकिर के चेहरे की ओर देखा, और दोनों में मुस्कान का आदान प्रदान हुआ, और दोनों एकटक एक दूसरे को देखने लगे। जाकिर ने एक बार अपने लण्ड को झटका दिया, तो "सीसीसीसीसी...." की सित्कार के साथ रेखा ने सर हिलाकर उसे ना करने का इशारा किया।

"अरे... तेरा तो हो गया, अब मेरा क्या होगा।" कहता हुआ जाकिर, फिर से एक झटका मारकर रेखा का रुख जानने की कोशिश करता है।

"उफ्फ्फ.... बस अब जलन हो रही है। रुक जाइये न थोड़ी देर।" कुछ कुछ कराहती आवाज में रेखा का दर्द सा झलक रहा था।

"अच्छा, तो इधर तो हरी झंडी है ना।" कहता जाकिर इस बार अपनी दो उंगलियो को रेखा के गांड में सटाकर उसके कुछ सोचने के पहले ही गांड की गहराइयों में उतार देता है।

"आइईईईईई...." चिल्लाती रेखा के शरीर में करंट जैसा लगता है, और वो अप्रत्याशित से हमले से पूरी जागृत अवस्था में आके जाकिर के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है। "मर जाउंगी... उफ्फ्फ्फ्फ... वहां नहीं प्लीज। आप आगे कर लो कुछ भी पर वहां नहींइईईईईई।"

"अच्छा अच्छा। ठीक है। पर जितना चला गया उसका तो मजा ले रानी।" कहता हुआ जाकिर बेशर्मो की तरह दांत दिखाता दनादन ऊँगली को अंदर बाहर करने लगता है, जिसके प्रभाव से रेखा के चूत में फिर से फुलझड़ियां चलनी शुरू हो जाती है, और उसकी चूत की कुलबुलाहट से जाकिर समझ जाता है, और उसका लण्ड फिर से सटासट अंदर बाहर होना शुरू होने लगता है। जोश में चिल्लाती रेखा अपने ही कूल्हों पर चटाचट मारने लगती है।



अब तक पूरी सचेत हो चुकी रेखा जाकिर के लण्ड पर बैठी अवस्था में आ चुकी थी, और उसके उछलने से ऐसा लग रहा था मानो वो घोड़े की सवारी कर रही हो। उसकी गांड भी अब काफी आसानी से जाकिर की उँगलियों को लील रही थी, जिससे रेखा को अजीब सी उत्तेजना और उमंग का भाव आ रहा था। जाकिर की उंगलियां अनवरत गांड को भी छेदे जा रही थी, जिससे रेखा के किले पर दोहरा आक्रमण हो रहा था, और उसे पता था वो ज्यादा नहीं ठहर पायेगी। पर उससे पहले ही उसकी नशीली "ह्म्फ ह्म्फ ह्म्फ" की आवाज से उत्तेजित और कातिल बलखाती जवानी को भोगता जाकिर अब "आहाहाहाहा" की लंबी सीत्कार के साथ रेखा के चूत की गहराई में ही झड़ने लगा, जिसकी गर्माहट पाकर रेखा भी झड़ते हुए जाकिर की छाती पर ही फसर गयी, और दोनों के मिश्रित प्रेम रस का बहाव दोनों की जांघो के बीच से होता हुआ टप टप टप चादर पर टपकने लगा।

दोनों ना जाने कितने देर ऐसे ही पड़े रहे। जाकिर के ऊपर पेट के बल औंधी पड़ी रेखा के रेशमी बालो पर हाथ फेरते हुए जाकिर और रेखा दोनों को ही एक झपकी आ चुकी थी। इतने देर के घमासान के बाद दोनों का ही बदन टूट रहा था, जिससे आराम के लिए ये झपकी जरुरी भी थी। अचानक कुछ आहट से रेखा की नींद खुली, और कुछ होश आने पर उसे समझ आया कि ये आवाज दरवाजा बजने की है। वो झट से उठी, जिससे जाकिर का लण्ड सरसराता हुआ उसकी चूत से पककक की आवाज से निकल गया। इस घर्षण से रेखा की आँखे फिर से मजे से बंद हुई पर परिस्थिती की गम्भीरता को देखते हुए उसने जाकिर को झँझोड़कर उठाया। हड़बड़ाकर उठते ही जाकिर के सामने रेखा नंगी खड़ी थी।



"उठिये... उठिये... उठिये भी। जल्दी से जाइये, कोई आया है। दरवाजे पर।" झँझोड़कर उसे उठाते हुए रेखा बोली। हड़बड़ाकर होश में आकर जाकिर उठते हुए रेखा के नँगे शरीर को घूरता है और उसके निप्पल को अपने हाथ से मसल देता है। "उफ्फ्फ... अभी नहीं। कहा ना, जल्दी जाइये आप। कोई आया है।" कहती हुई रेखा फटाक से अलमारी खोलकर अपना एक गाउन निकालकर उसे बिना ब्रा पैंटी के ही पहन लेती है।

"कम्बख्त, कौन मरता है हमेशा ऐसे मौके पे। अभी तो मजा लेना शुरू ही हुआ था।" बड़बड़ाता जाकिर उठ खड़े होता है, और अपनी लुंगी को लपेटने लगा। रेखा ने अपने झीनी ब्रा पैंटी को उठाया, और एक दराज के हवाले कर दिया। इतने में जाकिर को कुरता पहनता देख उसने पुरे कमरे पे निगाह दौड़ाई, जो कि अब पहले जैसा ही हो चुका था।

"आप जल्दी से सीढियो से ऊपर जाइये, मैं दरवाजा खोलती हूँ।" कहती हुई रेखा जाकिर को हाँ में सर हिलाता देख, दरवाजे की ओर बढ़ गई, और जाकिर सीढियो की तरफ। कुछ 6-7 सीढी चढ़ने पर जाकिर को याद आया कि उसकी घड़ी तो मेज पर ही खोल कर रखी है उसने। और वो वापस उतरकर रेखा के कमरे में वापस घुसा। इसी समय रेखा ने दरवाजे तक पहुंचकर, सीढियो की ओर मुड़के देखा, जहाँ जाकिर को ना पाकर उसने सोचा वो जा चुका है। एक लंबी साँस लेकर उसने दरवाजा खोल दिया।

"दीनू कितने बजे तक आएगा बहू।" सामने दरवाजा खोलते ही सवाल दागते हुए मदनलाल ने अपनी मुस्कान बिखेरते कहा। उसकी निगाहें रेखा के शरीर का पूरा मुआयना करने में लगी हुई थी। वैसे भी जल्दबाजी में रेखा ने बिना अंतःवस्त्रों के जो गाउन पहना था, वो स्लीवलेस और घुटनों तक का ही था, जो उसकी कातिल जवानी को छुपाने से ज्यादा उभार रहा था।



"जी चाचाजी वो तो आज कुछ देर से आने का बोल गए हैं।" नमस्ते करके रेखा ने जवाब दिया। "अगर आपको कुछ काम हो, तो आप उनके दफ्तर का फोन नम्बर ले लीजिये, बात कर लीजियेगा।"

"हां, हां, ये ठीक रहेगा, और साथ ही घर का भी नम्बर दे दो, ताकि अगली बार फोन करके ही पूछ लूँ, तुम्हे तकलीफ ना दूँ। हे हे हे हे।" कहता हुआ मदन खिसियाई हुई हंसी हंसा।

"जी तकलीफ कैसी, ये आपका ही घर है।" कहती हुई रेखा ने मदन के दिए पेपर पर दीनू के ऑफिस और उसके घर का नम्बर लिखकर पकड़ा दिया और मदन पलटकर जाने लगा। रेखा किवाड़ बन्द करके अंदर चली गयी और उधर मदन अपने घर की ओर चलते हुए मन में बार बार यही बड़बड़ा रहा था।

"जाकिर...!!! जाकिर... और वो भी दीनू के गैरहाजिरी में???? इसका मतलब......!!!"

और इस तरह वो जाते जाते पूरे रास्ते इसी उधेड़ बुन मे लगा रहा और अपने घर के दरवाजे तक पहुँचते पहुँचते उसके चेहरे का प्रश्न चिन्ह बदलकर, मुस्कान बनकर तैर रहा था। उसके दिमाग मे जो खुराफ़त आई थी, उसके लिए वो बार बार अपने ही आप को शाबाशी देता हुआ अपने घर के भीतर चला गया।

उधर रेखा इन सब से अनभिज्ञ अपने घर के भीतर गई और धम्म से अपने पलंग पर अपने टूटते हुए शरीर को पसारकर चैन की सांस लेने का सोचती उसके पहले ही आवाज गूंजी!

"ट्रिन्न... ट्रिन्न... ! ट्रिन्न... ट्रिन्न...!"

"ओफ्फो... इस बंदे को भी चैन नहीं है, अभी अभी तो पेट भर कर खाकर गया है, फिर भी मेरे जिस्म की भूख लग आई। वैसे बेचारा करे भी तो क्या, ये निगोड़ी जवानी है ही ऐसी चटाकेदार। ही...ही...ही...ही...!" बजते फोन की घंटी सुनकर रेखा मन ही मन ऐसा सोचकर खिलखिला उठी।

वैसे ही आधी लेटी अवस्था मे उसने फोन उठाया और अपने हाथ मे लेकर कान से चिपका लिया।

"हैलो...!
अब क्या हुआ!
इतनी जल्दी मेरी याद आ गयी!" ऐसा कहती रेखा अपने आप पर इठलाते हुए, इतराती आवाज मे बोली और उत्तेजना को न सम्हाल पाने के कारण उसका एक हाथ खुद ब खुद ही उसके स्तनो पर पहुँचकर उन्हे भींचने लगा।
 horseride  Cheeta    
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JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:11 PM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:13 PM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:15 PM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:15 PM
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RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:19 PM
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RE: JISM by Riya jaan - by rabiakhan338 - 11-05-2020, 11:55 PM
RE: JISM by Riya jaan - by BHOG LO - 12-05-2020, 12:58 AM
RE: JISM by Riya jaan - by raj500265 - 13-05-2020, 12:06 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Jakir bhai - 13-05-2020, 02:14 PM
RE: JISM by Riya jaan - by vat69addict - 13-05-2020, 02:57 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 13-05-2020, 04:51 PM
RE: JISM by Riya jaan - by yogita9 - 13-05-2020, 11:07 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 14-05-2020, 09:09 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Jakir bhai - 15-05-2020, 12:44 AM
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RE: JISM by Riya jaan - by BHOG LO - 15-05-2020, 04:42 PM
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RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 18-05-2020, 01:54 AM
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RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 20-05-2020, 02:30 AM
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RE: JISM by Riya jaan - by doctor101 - 21-05-2020, 02:55 AM
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RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 22-05-2020, 02:33 AM
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RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:37 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:45 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:47 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:54 AM
RE: JISM by Riya jaan - by prenu4455 - 23-05-2020, 10:36 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 24-05-2020, 02:29 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 24-05-2020, 04:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 25-05-2020, 01:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 27-05-2020, 01:44 AM
RE: JISM by Riya jaan - by playboy131 - 29-05-2020, 12:56 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 29-05-2020, 01:42 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:14 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:05 PM
RE: JISM by Riya jaan - by doctor101 - 03-07-2020, 04:09 PM



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