22-05-2020, 06:35 AM
ये दूसरी बार था जब जाकिर के लिंग का स्पर्श सीधे उसकी हथेलियों से हुआ था। उसका हाथ जड़वत वैसा ही लिंग पर पड़ा देख जाकिर ने गांड को मसलते हाथ को सीधा पैंटी के अंदर डालकर उसकी गांड को मसलना शुरू कर दिया, जिससे उत्तेजित रेखा की आँखे बन्द हुई और उसका हाथ लिंग पर कस गया, और खुद बखुद मुठियाने लगा।
आनंद के समुन्दर में हिचकोले खाती दोनों कश्ती अब उत्तेजना के तूफान में वासना की लहरो से थरथराने गई थी। जाकिर का दूसरा हाथ अब रेखा की झीनी सी ब्रा के अंदर घुसकर उसके दोनों स्तनों को बारी बारी निचोड़ और मसल रहा था। अब तो रेखा की उत्तेजना का पार नहीं था और उसके हाथ जाकिर के लिंग पर इतने तेज चलने लगे थे कि तूफान मेल भी फेल हो जाये। इस तूफान मेल की गति से कहीं झड़ ना जाऊं इस डर से जाकिर ने अपने होठ अलग किए पर उत्तेजित रेखा इससे भूखे शेरनी की तरह जाकिर के चेहरे गर्दन और कंधो को चूमने और चाटने लगी।
लोहा गर्म देखकर जाकिर ने एक झटके में अपने ऊपर अटखेलियां करती हुस्नपरी को नीचे लिटाया और ताबड़तोड़ उसके चेहरे पर चुम्बनो की बारिश करने लगा। रेखा इससे आनंदित होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर कभी नीचे बिछी चादर को मुट्ठी में कसती, कभी अपने स्तनो को भींचती तो कभी जाकिर के सर के बचे खुचे बालो को नोचती। समय ना गंवाते हुए पलक झपकते ही रेखा के नाममात्र के कपडे जमीन पर पड़े हुए थे और जाकिर के कपडे उनके ऊपर। एक स्वप्नलोक की अप्सरा एक दुःस्वप्नलोक के भैंसे जैसे शरीरधारी इंसान के साथ बिस्तर पर नंगी हालत में गुत्थमगुत्था हुए पड़ी थी।
कमरे में बस उम्म्म्म्म...अह्ह्ह्ह्ह... आआह्हह्हह... अम्म्मम्मम्म... पुच्च्च्च्च्च्च्च...हम्मम्मम्मम्मम्मम... बस ऐसी ही आवाजे गूंज रही थी। कुछ मिनटों तक ऐसे ही एक दूसरे के शरीर को सहलाने, चूमने, चाटने और चूसने के बाद जाकिर घुटनो के बल बिस्तर पर खड़ा हुआ, और तेज सांसे लेती अपने आवेग को सम्हालती रेखा के छाती के दोनों ओर पैर करके अपना लण्ड रेखा के दोनो स्तनों के बीच की दरार में फंसाकर घिसने लगा, जिससे उत्तेजित रेखा ने अपने हाथो से अपने दोनों स्तनों को ऐसे भींचा कि जाकिर के लण्ड को चारो ओर से स्तनों ने जकड़ लिया।
ऐसे नरम और गर्म मुलायम एहसास से जाकिर के मजे की सीमा नही रही और वो ज्यादा जोश और ज्यादा जोर जोर से धक्के मारता हुआ उसके स्तनों को चोदने लगा। रेखा के लिए ये नया एहसास था और जाकिर के झटके और उसके रगड़ से स्तनों की झनझनाहट उसके दिल से होती हुई उसके चूत तक पहुच रही थी। इतना मजा तो कभी उसे चुदाई में भी नहीं मिला था, जितना उसे इस ऊपरी खेल में मिल रहा था। जाकिर का लण्ड रेखा के स्तनों की गिरफ्त में एकदम गायब हो जाता और अगले पल 2 इंच बाहर निकलकर रेखा की ठोड़ी पर चोट करता। उत्तेजित रेखा ने अपना चेहरा कुछ नीचे करके ठोड़ी की जगह पर अपनी जीभ निकाल दी, जिससे अब जाकिर के लिंग का टोपा उसके जीभ पर रगड़ खाने लगा।
जाकिर को दोगुना मजा मिलने लगा। रेखा के नरम और गरम गुब्बारे ही क्या कम थे, जो उसकी लिजलिजी कोमल जीभ लिंग के सबसे सम्वेदनशील हिस्से को ना केवल सहला रही थी, बल्कि उसकी जीभ की नोक ठीक लिंग के छेद पर चुभ रही थी। कुछ झटको बाद रेखा अपना चेहरा और नीचे लाकर लण्ड के स्वागत में अपना मुह खोलकर जितना हिस्सा आ पाता उसे चूस भी लेती। इस आनंद से जाकिर सहन नहीं कर पाया और कुछ 7-8 मिनट के इस सम्मिलित खेल से उसका गाढ़ा वीर्य रेखा के छाती और चेहरे पर फ़ैल गया, जिसकी गरमाहट से पहले ही एक बार झड़ चुकी रेखा भी झड़ गयी।
ये उसके जीवन का पहला अवसर था जब वो इतनी जोरदार तरीके से झड़ी थी, नहीं तो दीनू की चुदाई से तो उसे ठीक से एहसास भी नहीं होता था, झड़ना तो दूर की बात है। जाकिर और रेखा दोनो ही एक एक गोल करके बराबरी पर चल रहे थे। रेखा का पहले एक बार का झड़ना तो चूमा चाटी के दौरान ही हो गया था, जिसे मैच शुरू होने के पहले का माना जा सकता है।
कुछ पांच मिनट बाद जाकिर ने रेखा के चेहरे को पोंछा, तो आँखे मींचे पड़ी रेखा को होश आया। आँख खोलते ही जाकिर के नंग धड़ंग काले पहाड़ जैसे शरीर को अपने से कुछ दुरी पर बिस्तर पर घुटनो के बल खड़ा पाया, तो उसकी नजरे शर्म से झुक गयी। मन ही मन रेखा सोचने लगी, "मेरे जिस कोमल, गदराये, गोरे बदन को पाने का सपना देखने भर से ही सारे के सारे मर्दों के लण्ड टपकने लगते हैं, वो आज लेटा भी है तो, किस राक्षस के नीचे। पर सच ही है कि आखिर मीठे सफेद बताशों पर काले, मोटे चींटे ही चिपकते हैं। ही.. ही... ही.." और ऐसी सोच से उसके चेहरे पर एक अलग सी शरारती मुस्कान आ गयी, जिसे पढ़कर जाकिर के मन में लड्डू फूटने लगे।
आनंद के समुन्दर में हिचकोले खाती दोनों कश्ती अब उत्तेजना के तूफान में वासना की लहरो से थरथराने गई थी। जाकिर का दूसरा हाथ अब रेखा की झीनी सी ब्रा के अंदर घुसकर उसके दोनों स्तनों को बारी बारी निचोड़ और मसल रहा था। अब तो रेखा की उत्तेजना का पार नहीं था और उसके हाथ जाकिर के लिंग पर इतने तेज चलने लगे थे कि तूफान मेल भी फेल हो जाये। इस तूफान मेल की गति से कहीं झड़ ना जाऊं इस डर से जाकिर ने अपने होठ अलग किए पर उत्तेजित रेखा इससे भूखे शेरनी की तरह जाकिर के चेहरे गर्दन और कंधो को चूमने और चाटने लगी।
लोहा गर्म देखकर जाकिर ने एक झटके में अपने ऊपर अटखेलियां करती हुस्नपरी को नीचे लिटाया और ताबड़तोड़ उसके चेहरे पर चुम्बनो की बारिश करने लगा। रेखा इससे आनंदित होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर कभी नीचे बिछी चादर को मुट्ठी में कसती, कभी अपने स्तनो को भींचती तो कभी जाकिर के सर के बचे खुचे बालो को नोचती। समय ना गंवाते हुए पलक झपकते ही रेखा के नाममात्र के कपडे जमीन पर पड़े हुए थे और जाकिर के कपडे उनके ऊपर। एक स्वप्नलोक की अप्सरा एक दुःस्वप्नलोक के भैंसे जैसे शरीरधारी इंसान के साथ बिस्तर पर नंगी हालत में गुत्थमगुत्था हुए पड़ी थी।
कमरे में बस उम्म्म्म्म...अह्ह्ह्ह्ह... आआह्हह्हह... अम्म्मम्मम्म... पुच्च्च्च्च्च्च्च...हम्मम्मम्मम्मम्मम... बस ऐसी ही आवाजे गूंज रही थी। कुछ मिनटों तक ऐसे ही एक दूसरे के शरीर को सहलाने, चूमने, चाटने और चूसने के बाद जाकिर घुटनो के बल बिस्तर पर खड़ा हुआ, और तेज सांसे लेती अपने आवेग को सम्हालती रेखा के छाती के दोनों ओर पैर करके अपना लण्ड रेखा के दोनो स्तनों के बीच की दरार में फंसाकर घिसने लगा, जिससे उत्तेजित रेखा ने अपने हाथो से अपने दोनों स्तनों को ऐसे भींचा कि जाकिर के लण्ड को चारो ओर से स्तनों ने जकड़ लिया।
ऐसे नरम और गर्म मुलायम एहसास से जाकिर के मजे की सीमा नही रही और वो ज्यादा जोश और ज्यादा जोर जोर से धक्के मारता हुआ उसके स्तनों को चोदने लगा। रेखा के लिए ये नया एहसास था और जाकिर के झटके और उसके रगड़ से स्तनों की झनझनाहट उसके दिल से होती हुई उसके चूत तक पहुच रही थी। इतना मजा तो कभी उसे चुदाई में भी नहीं मिला था, जितना उसे इस ऊपरी खेल में मिल रहा था। जाकिर का लण्ड रेखा के स्तनों की गिरफ्त में एकदम गायब हो जाता और अगले पल 2 इंच बाहर निकलकर रेखा की ठोड़ी पर चोट करता। उत्तेजित रेखा ने अपना चेहरा कुछ नीचे करके ठोड़ी की जगह पर अपनी जीभ निकाल दी, जिससे अब जाकिर के लिंग का टोपा उसके जीभ पर रगड़ खाने लगा।
जाकिर को दोगुना मजा मिलने लगा। रेखा के नरम और गरम गुब्बारे ही क्या कम थे, जो उसकी लिजलिजी कोमल जीभ लिंग के सबसे सम्वेदनशील हिस्से को ना केवल सहला रही थी, बल्कि उसकी जीभ की नोक ठीक लिंग के छेद पर चुभ रही थी। कुछ झटको बाद रेखा अपना चेहरा और नीचे लाकर लण्ड के स्वागत में अपना मुह खोलकर जितना हिस्सा आ पाता उसे चूस भी लेती। इस आनंद से जाकिर सहन नहीं कर पाया और कुछ 7-8 मिनट के इस सम्मिलित खेल से उसका गाढ़ा वीर्य रेखा के छाती और चेहरे पर फ़ैल गया, जिसकी गरमाहट से पहले ही एक बार झड़ चुकी रेखा भी झड़ गयी।
ये उसके जीवन का पहला अवसर था जब वो इतनी जोरदार तरीके से झड़ी थी, नहीं तो दीनू की चुदाई से तो उसे ठीक से एहसास भी नहीं होता था, झड़ना तो दूर की बात है। जाकिर और रेखा दोनो ही एक एक गोल करके बराबरी पर चल रहे थे। रेखा का पहले एक बार का झड़ना तो चूमा चाटी के दौरान ही हो गया था, जिसे मैच शुरू होने के पहले का माना जा सकता है।
कुछ पांच मिनट बाद जाकिर ने रेखा के चेहरे को पोंछा, तो आँखे मींचे पड़ी रेखा को होश आया। आँख खोलते ही जाकिर के नंग धड़ंग काले पहाड़ जैसे शरीर को अपने से कुछ दुरी पर बिस्तर पर घुटनो के बल खड़ा पाया, तो उसकी नजरे शर्म से झुक गयी। मन ही मन रेखा सोचने लगी, "मेरे जिस कोमल, गदराये, गोरे बदन को पाने का सपना देखने भर से ही सारे के सारे मर्दों के लण्ड टपकने लगते हैं, वो आज लेटा भी है तो, किस राक्षस के नीचे। पर सच ही है कि आखिर मीठे सफेद बताशों पर काले, मोटे चींटे ही चिपकते हैं। ही.. ही... ही.." और ऐसी सोच से उसके चेहरे पर एक अलग सी शरारती मुस्कान आ गयी, जिसे पढ़कर जाकिर के मन में लड्डू फूटने लगे।