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Adultery JISM by Riya jaan
#77
जाकिर का मुह खुला का खुला रह गया, उसकी पलकें झपकना भी बंद हो गयी। रेखा के नंगे बदन को पहले ही देख और भोग चुका जाकिर, अपने सामने प्रस्तुत रेखा के इस नए रूप से मानो जड़वत ही रह गया। सामने रेखा सकुचाती हुई सफ़ेद रंग की एक टॉप नुमा ब्रा और एक सफ़ेद रंग की छोटी सी पैंटी मे खड़ी थी। अपनी इस हालत से वो शर्म के मारे जाकिर से नजरे भी नहीं मिला पा रही थी। उसकी ब्रा सिर्फ इतनी ही थी, कि उसके स्तनो को ढक सके और सिर्फ स्तनो को ढकने के अलावा उसमे जरा भी अतिरिक्त कपड़ा नहीं था। कंधो से सिर्फ पतले-पतले डोरे से वो टिकी हुई थी, और पीठ पर कपड़े की चौड़ाई और पतली होकर सिर्फ दो इंच की थी, जिसमे एक जिप लगी हुई थी। ऐसा ही हाल पैंटी का भी था। कमर से सिर्फ 3 इंच की चौड़ाई वाली उसकी पैंटी, उसके जांघों के जोड़ तक आते-आते इतनी कसी और छोटी हो रही थी, कि उसकी योनि का कटाव और आकार साफ दिख रहा था। सबसे बढ़कर बात तो ये थी कि ब्रा-पैंटी का कपड़ा इतना झीना और पारदर्शक था कि अंदर का सारा खजाना तिजोरी के बाहर से ही नजर आ रहा था।



"आहह, कयामत है तू तो। वो तो अच्छा है कि मेरा दिल मजबूत है, वरना तुझे ऐसे देखकर तो अच्छे-अच्छों का हार्ट अटैक हो जाए मेरी रानी।" अपने खुले मुह से टपकती लार को पोंछता जाकिर बोला, "क्या बेमिसाल हुस्न है तेरा, वाह... जी चाहता है कि ऐसे ही देखता रहूँ तुझे। बड़ी फुर्सत से बनाया है तुझे बनाने वाले ने। बेमिसाल... लाजवाब... वाहह.... आहह...।" अब जाकिर बेशर्मी से रेखा को देखते हुए अपनी लूँगी के ऊपर से ही अपने लिंग को मसलते हुए उसे ऊपर नीचे करने लगा।

"धत्त... आप भी ना, कुछ भी बोलते हो। ऐसा क्या है मुझमे खास? साधारण सी सीधी-सादी हूँ मै तो, ऐसी कोई खूबसूरत तो नहीं, कि आप ऐसी तरीफे कर रहे हो।" अपनी तारीफ सुनकर रेखा इठलाते हुए बोली। इस दुनिया मे महिलाओं के लिए तारीफ वो टॉनिक है, जिसे पीकर महिलाएं बड़े से बड़ी जंग भी जीत जाए। फिर ये तो सिर्फ बिस्तर कि जंग है, जहां औरतें हमेशा मर्दों से बीस ही रहती हैं, उन्नीस नहीं। "और ये गंदा काम क्या कर रहे हो हम्म... शरम नहीं आती ऐसे करते।" रेखा अपनी आंखो से जाकिर के लिंग मसलने को इशारे से बताते हुए बोली।



"ये... ये तो बस तुझे देखकर काबू नहीं रहा मेरा खुद पर, अपने आप ही हाथ चला गया यहाँ।" अपने पीले-पीले दाँतो को दिखाता जाकिर बोला, और बोलते ही अपने हांथ लिंग पर से हटा लिए, जोकि अब भी किसी कडक सिपाही कि तरह सीधा खड़ा था, और बीच बीच मे उचक कर रेखा को सल्युट मार रहा था। "अब वही खड़ी रहेगी क्या? जरा पास से तो देखने दे। इधर तो आ।" माथे पर आए पसीने को पोंछता हुआ वो बोला।

"अच्छा... आपकी आंखे इतनी तो खराब नहीं, कि आपको मै दिखाई नहीं दे रही हूँ। मै और पास नहीं आने वाली।" चेहरे पर मादक मुस्कान लिए रेखा अपनी आंखे नचाते हुए बोली। "देखना था देख लिया ना, अब ऐसी बेकार कि चीजे नही देना मुझे, समझे... जो मै इस्तेमाल ही ना कर पाऊँ। देखो, कितनी छोटी-छोटी है हर जगह से, और इसे पहनने का मतलब ही क्या है, जब सब कुछ दिखता है अंदर का। ऐसी चीजे कोई पहनता है भला। एक काम कर नहीं सकते आप ढंग से, हुंह।" अपने स्तनो और अपनी योनि प्रदेश को बारी बारी से इशारे से दिखाती रेखा, गोल गोल घूम के जाकिर को अपना बदन दिखाते और छेड़ते हुए बोली।




"ढंग का काम तो आज ही हुआ है मेरी जान। अब तो तू ऐसे ही कपड़े पहनेगी, बाकी समय पहनने के लिए भी मै तेरे लिए कपड़े लाया हूँ। पर ऐसे कपड़े तू सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए पहनेगी।" कहकर जाकिर ने अपने कुर्ते कि जेब से एक सफ़ेद रंग कि साधारण सी ब्रा निकाली, उसे चूमा, और रेखा कि तरफ उछाल दिया। ऐसे ही उसने कुल 3 ब्रा रेखा कि तरफ उछाले, जिसे रेखा किसी मंजे हुए फील्डर कि तरह लपकती गयी। फीर कुर्ते कि दूसरी जेब से उसने एक-एक करके तीन साधारण सी पैंटी निकालकर, पहले कि तरह ही चूमते हुए दो को तो फेक दिया, पर तीसरी को अपने तने हुए लिंग पर लूँगी के ऊपर से ही लपेट लिया। "अब इसे तो तुझे आकर ही लेना पड़ेगा। आजा... ले ले इसे, तेरे लिए ही है।" जाकिर ने इशारा किया लिंग पर लिपटी पैंटी कि तरफ, पर वहाँ मौजूद दोनों जानते थे कि उसका इशारा किस ओर है।

रेखा कि आंखो मे शरारत और चेहरे कि मुस्कुराहट मे नटखटपना बढ़ गया, उसने एक बार नीचे जमीन कि ओर देखा, फिर धीरे-धीरे जाकिर कि ओर बढ्ने लगी। हर कदम के साथ उसके दिल कि धड़कने, 5 धड़कन प्रति कदम के हिसाब से बढ़ती जा रही थी। पलंग के कोने पर आकर रेखा ठिठकी, फिर ना जाने क्या सोचकर पलंग पर चढ़कर, अपने घुटनो और हथेलियों के बल चलती हुई, जाकिर के बिलकुल पास आकर रुक गयी। कुछ पाँच सेकंड दोनों कि आंखो ही आंखो मे इशारा हुआ, और अप्रत्याशित रुप से रेखा ने नीचे झुककर, लिंग को पैंटी और लूँगी समेत ही लगभग तीन इंच तक अपने मुह मे भर लिया।



जाकिर के मुह से एक सित्कार सी निकली, जो कि रेखा के मुह से निकलती "उम्म...ग्गग्म्म...अम्मम्म... " कि आवाजों मे दब सी गयी। 5 सेकंड मे ही रेखा ने अपना सर उठाया और जाकिर कि ओर देखा। रेखा ने मुह से लिंग पर लिपटी निकाल ली थी, जिसे अब वो अपने हांथ मे लेकर जाकिर को जीभ दिखाकर चिढ़ाते हुए खिखिलाकर हंसने लगी। "कैसा लगा... मजा आया? ही ही ही ही ही..." शहद मे डूबे रेखा के शब्द जाकिर के कानो को भी मीठा कर गए।



इतने पास से ऐसी खूबसूरत परी को अपने सामने इन उत्तेजक कपड़ो मे देखकर जाकिर का लिंग तो जैसे उचक-उचक कर ऐसे अकड़ रहा था, मानो अभी रॉकेट बनकर उड़ जाएगा, और मंगल गृह कि परिक्रमा कर आएगा। जाकिर ने रेखा के दोनों हाथो को पकड़ कर हल्का सा अपनी ओर खींचा, और रेखा किसी डोर से बंधी पतंग की तरह जाकिर की गोद मे आ गिरी। पीठ टिकाकार, पलंग पर पैर फैलाये जाकिर के ऊपर रेखा ऐसे गिरी, कि उसका बदन ऊपर से जाकिर के बदन से चिपक गया और टांगें जाकिर के एक जांघ पर चढ़ गयी। इस पोजीशन मे जाकिर का लिंग रेखा की नंगी जांघों से रगड़ खा रहा था, बीच मे सिर्फ लूँगी का पतला सा कपड़ा था।



"आऊच... कैसे करते हो जंगली जैसे, मुझे चोट लग जाती तो?" बनावटी गुस्से मे रेखा जाकिर के सीने पर मुक्का मारते हुए बोली, "कितने गंदे हो ऐसे कोई करता है क्या। और जरा ये तो बताओ, ये ऐसे विचित्र कपड़े आपको मिल कहाँ से गए?" जाकिर के सीने पर हाथ फेरती रेखा बोल पड़ी।

"गंदे... कितने मस्त तो हैं ये सब कपड़े। तेरी जवानी कैसी निखार के आ रही है, वाह...। मै तो कहता हूँ अब से तू ऐसे ही कपड़े पहना कर। बाकी समय के लिए जो सिंपल वाले दिये है वो पहन लेना, और मेरे लिए अब से तू ऐसे ही कपड़े पहनेगी।" जाकिर रेखा कि नंगी पीठ पर हाथ फेरता हुआ बोला, " देख तो कैसे तेरा एक-एक अंग निखर के आ रहा है बाहर, जी करता है कि तुझे ऐसे ही रखूँ ज़िंदगी भर अपने से चिपका कर।" कहते हुए जाकिर का पीठ पर घूमता हांथ रेखा की नंगी गांड पर आ गया और उसने कस के अपनी मजबूत हथेलियों से उसे भींच लिया। रेखा के मुह से सिसकारी सी निकली, जिसके बाद वो कुछ कह पाती, उससे पहले ही जाकिर ने दूसरे हाथ से रेखा की ठोड़ी पकड़कर उसका चेहरा ऊपर किया और उसके होठो को झट से अपने होठो कि गिरफ्त मे लेकर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।



गांड कि मसलाई और होठो कि चुसाई से रेखा ने मदमस्त होकर अपनी आंखे बंद कर ली, और उसकी गहरी होती साँसो से उसके स्तन ड्योढे आकार के होकर जाकिर के सीने पर दबाव बढ़ाने लगे। जाकिर के सीने पर रेंगते उसके हाथ अपने आप ही नीचे सरकते-सरकते जाकिर के पेट, नाभि से होते हुए सीधे एक कुतुबमिनार से टकराए, जिसे बिना वक्त गँवाए उसने अपनी मुठ्ठियों मे भींच लिया। इस बार सिसकने कि बारी जाकिर कि थी, पर जैसे ही सिसकने के कारण उसके होठ खुले, रेखा के होठ आजाद हो गए और अब रेखा ने जाकिर के होठो को अपनी गिरफ्त मे लेकर चूसना शुरू कर दिया।



अब जितने ज़ोर से जाकिर रेखा कि गांड दबाता, रेखा कि मुटठिया भी उतनी ही कसके जाकिर के लाँड़ पर कस जाती। जाकिर के दूसरे हाथ ने अब रेखा के एक स्तन पर अपना कब्जा कर लिया और उसे ज़ोर-ज़ोर मसलने और भींचने लगा, जिसके जवाब मे रेखा ने अब जाकिर के लिंग पर अपनी जकड़ बरकरार रखते हुए ही उसे धीरे-धीरे लूँगी के ऊपर से ही मुठियाना शूरु कर दिया।

कुछ देर तक ऐसे ही दोनों अपने अपने मुट्ठियों की जोर आजमाईश करते रहे, फिर अचानक जाकिर ने अपने मुह में खेलती रेखा की जबान को हल्का सा चुभला दिया, जिससे रेखा की हलकी सी चीख निकल गयी, जो जाकिर के मुह में ही दब गयी।

"उफ्फ्फ... कोई मौका छोड़ भी दिया करो मेरी जान निकालने का। मार ही डालोगे क्या?" मुह हटाकर हांफती हुई रेखा शिकायती लहजे में बोली।

"छोड़ कैसे दूँ रानी। अभी छोडूंगा नहीं सिर्फ चोदूँगा।" कहता हुआ जाकिर फिर होठों को चूसने में लग गया।

रेखा ने अपना हाथ लिंग से हटाकर जाकिर के सीने पर दो चार शिकायती मुक्के बरसाए, जिससे जाकिर ने फिर से जबान को चूसना शुरू कर दिया। रेखा को समझ आ चुका था आज उसके बदन की ऐसी तैसी होने वाली है।

जैसे ही रेखा का हाथ वापस अपने प्रिय खिलौने तक पंहुचा, कुछ पलों को उसकी तो साँसे थम गयी ही गयी। दरअसल जाकिर ने रेखा के हाथ हटते ही अपनी लुंगी को झटके से खोल दिया था, जिससे अब वो निचे से नंगा बिस्तर पर बैठा हुआ था और रेखा का हाथ सीधे उसके फड़कते हुए लिंग पर पड़ा था। उसके फड़कते लण्ड के गर्म टोपे का स्पर्श उसे मन्त्रमुग्ध कर गया।
 horseride  Cheeta    
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JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:11 PM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:13 PM
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RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:36 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:37 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:45 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:47 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:54 AM
RE: JISM by Riya jaan - by prenu4455 - 23-05-2020, 10:36 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 24-05-2020, 02:29 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 24-05-2020, 04:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 25-05-2020, 01:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 27-05-2020, 01:44 AM
RE: JISM by Riya jaan - by playboy131 - 29-05-2020, 12:56 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 29-05-2020, 01:42 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:14 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:05 PM
RE: JISM by Riya jaan - by doctor101 - 03-07-2020, 04:09 PM



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