22-05-2020, 06:34 AM
उस पैकेट मे एक छोटी सी सफेट पैकेट और थी, जिसे खोलने पर रेखा को फिर से झटका लगा," पूरा का पूरा ठरकी है ये इंसान तो। या हो सकता है कि रंगीन मिजाज शौकीन हो। पर बेचारा करे भी तो क्या करे अकेला पड़े-पड़े? आखिर शरीर कि जरूरते भी होती हैं, जैसे मुझे जरूरत है। ओहह... ये सब मै क्या सोच रही हूँ। जाकिर... तूने तो मुझे पागल बना दिया है। अब तुझे मैंने पागल ना बनाया, तो मेरा भी नाम रेखा नहीं। जलवे देखना चाहता है ना? अब तुझे तो ऐसे-ऐसे जलवे दिखाऊँगी कि डर है, कहीं तेरा हार्टफेल ना हो जाए। ही ही ही ही ही...।" अपनी रिसती हुई योनि मे दो उँगलियो से अपनी खुजली को शांत करने का असफल प्रयास करती हुई रेखा बड़बड़ाने लगी।
[ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] फोन बजने लगा तो रेखा ने घड़ी देखी, ("समय का पूरा पक्का है ये आदमी तो, एकदम आधे घंटे मे फोन किया है, जैसे फोन के पास एक हाथ मे घड़ी लेकर बैठा हो और दूसरे हाथ मे... हे हे हे हे...।")मन ही मन रेखा ने सोचा, फिर अपने बदन पर अटका एकमात्र तौलीया भी निकाल फेका और फोन का रिसीवर लेकर बिस्तर पर वापस लेट गयी।
रेखा:- अनजान बनते हुए "हैलो, कौन???"
जाकिर:- "अरे मेरी जलेबी, तेरा एक ही तो दीवाना है इस दुनिया मे। तूने खुद ही टाइम दिया था आधे घंटे का, और खुद ही भूल गयी। कैसा लगा मेरा तोहफा मेरी जान को? पसंद आया कि नहीं???"
रेखा:- इठलाते और अदाओं के साथ "ये कैसा तोहफा है? कैसी-कैसी ऊटपटाँग चीजे आती रहती हैं आपके दिमाग मे? मै ये कैसे पहनूँगी? कुछ ढंग का आपको लाने बोला था। इसमे पहनने जैसा कुछ है भी? एक काम ढंग का नहीं कर सकते हो आप, और बड़ा कहते रहते हो कि दीवाने हो।"
जाकिर:- आवाज थोड़ी गंभीर बनाते हुए "अरे पहनने का ही है वो। क्या बुराई है उसमे? तेरे लिए कितने प्यार से भेजा था मैंने, सोचा था कि तू खुश हो जाएगी। पर तुझे तो कदर ही नहीं है अपने इस दीवाने की। रुक मै अभी आता हूँ और देखता हूँ कि ऐसा क्या खराब है मेरा तोहफा?" [खट्ट...]
जाकिर ने फट से फोन रख दिया जो कि रेखा ने सोचा ही नहीं था। उसने तो सोचा था कि वो जाकिर को और थोड़ा तड़पाएगी, पर पिछली बार कि तरह इस बार फिर से रेखा का खेल बीच मे ही बिगड़ चुका था और अब जो होना था वो रेखा के हाथ मे नहीं था। उधर जाकिर मन मे तरह-तरह कि तस्वीरें बनाता हुआ अपने शरीर पर सेंट छिड़क रहा था। अपने भेजे हुए कपड़े पहने खड़ी रेखा की कल्पना करके ही उसका दिल धड़कने और उसका लिंग फड़कने लगा था।
"बस मेरे प्यारे बस, चल ही रहे है अभी। कल जहां घूमने ले गया था, तुझे वो जगह कितनी पसंद है मै जानता हूँ।" बड़बड़ाता हुआ जाकिर मुस्कुराया। अपने लिंग को लूँगी के ऊपर से ही चड्डी मे एडजस्ट करता हुआ वो अपनी गैलरी पर आया। चारो ओर एक बार सरसरी निगाह डालकर अपनी गैलरी मे लगी लोहे कि ग्रिल को पकड़कर वो धिरे से रेखा के छत कि दीवार पर उतरा और वहाँ से होता हुआ रेखा कि सीढ़ियो से उतरकर सीधे रेखा के बेडरूम पर पहुँच चुका था।
बेडरूम मे कोई नहीं था। थोड़ा और अंदर आकर उसने पाया कि बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद है। जाकिर अपने चेहरे पर एक कमीनी मुस्कान लाते हुए हल्के से दरवाजे को बजाकर प्यार से पुकारता है, "क्या कर रही है अंदर।" जिसके जवाब मे अंदर से आवाज आई, "आप बैठिए मै अभी आई।" इतना सुनते ही जाकिर पूर्ण आश्वस्त होकर, वहीं पलंग पर एक राजा की तरह पीछे टिककर, अगल-बगल पड़े तकियों पर हाँथ फैलाकर, मंद मंद मुस्कराता ऐसे बैठा था, जैसे कहीं का नवाब हो और अभी उसके सामने नर्तकियाँ नृत्य प्रस्तुत करने वाली हों।
[खटक] दरवाजा खुलते ही रेखा बाहर आती है, जिसका चेहरा देखकर जाकिर उसकी सुंदरता मे एक बार तो खो ही जाता है। पर जैसे ही उसकी निगाह नीचे जाती है, तो उसके पैरो तले से जमीन निकल जाती है। रेखा तो एक साधारण से गाउन मे उसके सामने खड़ी थी। हालांकि साधारण सा गाउन भी उसके सजीले शरीर पर बिजलीयाँ गिराने को काफी था, पर जो उम्मीदें लगाए जाकिर आया था, वो तो चकनाचूर हो गयी थी।
जाकिर:- "ये क्या है? तुझे तो मेरा तोहफा पहनना था न? क्यों नहीं पहना?"
रेखा:- आंखे नचाते हुए "अरे... वो पहनने लायक ही नहीं था, तो कैसे पहनती।"
जाकिर:- "मै क्या-क्या उम्मीदे लगाकर आया था, तूने सब चौपट कर दिया। एक बार पहन कर देख लेती, तो क्या चला जाता तेरा। मेरा दिल रखने के लिए ही पहन लेती।"
रेखा:- अपने कमर पर हाँथ रखते हुए "आहा-हाहाहा... आपके दिल रखने के लिए मै ऐसे कपड़े पहनू? और क्या क्या करूँ आपका दिल रखने के लिए? वो भी बता दीजिये लगे हाथो।"
जाकिर:- "अच्छा बाबा रहने दे। मै ही कुछ ज्यादा उम्मीद लगा बैठा था शायद। पर मुझे समझना चाहिए था कि आज की दुनिया मे सच्चे प्यार की कोई कदर नहीं है।" कहता हुआ जाकिर उठने को हुआ, तभी रेखा कि आवाज ने उसे वहीं के वहीं रोक दिया।
रेखा:- नशीली आवाज मे "अरे ,मेरे भोंदू बलम, रुक भी जाओ। आपका तोहफा कबुल किया है मैंने, वो भी सिर्फ और सिर्फ आपके लिए। पता नहीं ऐसी चीजे आपको मिली कहाँ से। शायद आप भूल गए हो कि आपका तोहफा अंदर पहनने वाली चीज है। समझे...। ही ही ही ही...।" कहती हुई रेखा खिलखिलाकर हंसने लगी।
जाकिर वापस अपनी पुरानी स्थिति मे बैठ गया और रेखा के भोले चेहरे की चंचल आँखों मे देखकर, उसकी इस अदा पर फिदा हो गया। उसने अपनी आंखो से मिन्नत की, जिसे मानते हुए रेखा पलंग के ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी और एक लंबी सांस भरकर, अपनी भोहें नचाते हुए, अपने ढीले-ढाले गाउन को दोनों हाथो से पकड़ा और एक ही झटके मे अपने सर के ऊपर से निकालकर जाकिर के मुह पर फेक दिया। रेखा के शरीर के गंध से भरा हुआ गाउन जाकिर के लिए वैसा ही था, जैसे शराब के नशे मे झूमते हुए को एक बोतल और पिला दी जाये। इस नशे से उबरकर जाकिर ने जैसे ही अपने चेहरे से गाउन हटाया, तो उसके दिल ने इतनी ज़ोर से धड़कना शुरू कर दिया, कि धड़कने रेखा को भी सुनाई दे रही थी। अपनी लूँगी के ऊपर से ही वो लिंग को मसलने लगा, क्योंकि दृश्य ही कुछ ऐसा उसकी आंखो के सामने था।
[ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] फोन बजने लगा तो रेखा ने घड़ी देखी, ("समय का पूरा पक्का है ये आदमी तो, एकदम आधे घंटे मे फोन किया है, जैसे फोन के पास एक हाथ मे घड़ी लेकर बैठा हो और दूसरे हाथ मे... हे हे हे हे...।")मन ही मन रेखा ने सोचा, फिर अपने बदन पर अटका एकमात्र तौलीया भी निकाल फेका और फोन का रिसीवर लेकर बिस्तर पर वापस लेट गयी।
रेखा:- अनजान बनते हुए "हैलो, कौन???"
जाकिर:- "अरे मेरी जलेबी, तेरा एक ही तो दीवाना है इस दुनिया मे। तूने खुद ही टाइम दिया था आधे घंटे का, और खुद ही भूल गयी। कैसा लगा मेरा तोहफा मेरी जान को? पसंद आया कि नहीं???"
रेखा:- इठलाते और अदाओं के साथ "ये कैसा तोहफा है? कैसी-कैसी ऊटपटाँग चीजे आती रहती हैं आपके दिमाग मे? मै ये कैसे पहनूँगी? कुछ ढंग का आपको लाने बोला था। इसमे पहनने जैसा कुछ है भी? एक काम ढंग का नहीं कर सकते हो आप, और बड़ा कहते रहते हो कि दीवाने हो।"
जाकिर:- आवाज थोड़ी गंभीर बनाते हुए "अरे पहनने का ही है वो। क्या बुराई है उसमे? तेरे लिए कितने प्यार से भेजा था मैंने, सोचा था कि तू खुश हो जाएगी। पर तुझे तो कदर ही नहीं है अपने इस दीवाने की। रुक मै अभी आता हूँ और देखता हूँ कि ऐसा क्या खराब है मेरा तोहफा?" [खट्ट...]
जाकिर ने फट से फोन रख दिया जो कि रेखा ने सोचा ही नहीं था। उसने तो सोचा था कि वो जाकिर को और थोड़ा तड़पाएगी, पर पिछली बार कि तरह इस बार फिर से रेखा का खेल बीच मे ही बिगड़ चुका था और अब जो होना था वो रेखा के हाथ मे नहीं था। उधर जाकिर मन मे तरह-तरह कि तस्वीरें बनाता हुआ अपने शरीर पर सेंट छिड़क रहा था। अपने भेजे हुए कपड़े पहने खड़ी रेखा की कल्पना करके ही उसका दिल धड़कने और उसका लिंग फड़कने लगा था।
"बस मेरे प्यारे बस, चल ही रहे है अभी। कल जहां घूमने ले गया था, तुझे वो जगह कितनी पसंद है मै जानता हूँ।" बड़बड़ाता हुआ जाकिर मुस्कुराया। अपने लिंग को लूँगी के ऊपर से ही चड्डी मे एडजस्ट करता हुआ वो अपनी गैलरी पर आया। चारो ओर एक बार सरसरी निगाह डालकर अपनी गैलरी मे लगी लोहे कि ग्रिल को पकड़कर वो धिरे से रेखा के छत कि दीवार पर उतरा और वहाँ से होता हुआ रेखा कि सीढ़ियो से उतरकर सीधे रेखा के बेडरूम पर पहुँच चुका था।
बेडरूम मे कोई नहीं था। थोड़ा और अंदर आकर उसने पाया कि बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद है। जाकिर अपने चेहरे पर एक कमीनी मुस्कान लाते हुए हल्के से दरवाजे को बजाकर प्यार से पुकारता है, "क्या कर रही है अंदर।" जिसके जवाब मे अंदर से आवाज आई, "आप बैठिए मै अभी आई।" इतना सुनते ही जाकिर पूर्ण आश्वस्त होकर, वहीं पलंग पर एक राजा की तरह पीछे टिककर, अगल-बगल पड़े तकियों पर हाँथ फैलाकर, मंद मंद मुस्कराता ऐसे बैठा था, जैसे कहीं का नवाब हो और अभी उसके सामने नर्तकियाँ नृत्य प्रस्तुत करने वाली हों।
[खटक] दरवाजा खुलते ही रेखा बाहर आती है, जिसका चेहरा देखकर जाकिर उसकी सुंदरता मे एक बार तो खो ही जाता है। पर जैसे ही उसकी निगाह नीचे जाती है, तो उसके पैरो तले से जमीन निकल जाती है। रेखा तो एक साधारण से गाउन मे उसके सामने खड़ी थी। हालांकि साधारण सा गाउन भी उसके सजीले शरीर पर बिजलीयाँ गिराने को काफी था, पर जो उम्मीदें लगाए जाकिर आया था, वो तो चकनाचूर हो गयी थी।
जाकिर:- "ये क्या है? तुझे तो मेरा तोहफा पहनना था न? क्यों नहीं पहना?"
रेखा:- आंखे नचाते हुए "अरे... वो पहनने लायक ही नहीं था, तो कैसे पहनती।"
जाकिर:- "मै क्या-क्या उम्मीदे लगाकर आया था, तूने सब चौपट कर दिया। एक बार पहन कर देख लेती, तो क्या चला जाता तेरा। मेरा दिल रखने के लिए ही पहन लेती।"
रेखा:- अपने कमर पर हाँथ रखते हुए "आहा-हाहाहा... आपके दिल रखने के लिए मै ऐसे कपड़े पहनू? और क्या क्या करूँ आपका दिल रखने के लिए? वो भी बता दीजिये लगे हाथो।"
जाकिर:- "अच्छा बाबा रहने दे। मै ही कुछ ज्यादा उम्मीद लगा बैठा था शायद। पर मुझे समझना चाहिए था कि आज की दुनिया मे सच्चे प्यार की कोई कदर नहीं है।" कहता हुआ जाकिर उठने को हुआ, तभी रेखा कि आवाज ने उसे वहीं के वहीं रोक दिया।
रेखा:- नशीली आवाज मे "अरे ,मेरे भोंदू बलम, रुक भी जाओ। आपका तोहफा कबुल किया है मैंने, वो भी सिर्फ और सिर्फ आपके लिए। पता नहीं ऐसी चीजे आपको मिली कहाँ से। शायद आप भूल गए हो कि आपका तोहफा अंदर पहनने वाली चीज है। समझे...। ही ही ही ही...।" कहती हुई रेखा खिलखिलाकर हंसने लगी।
जाकिर वापस अपनी पुरानी स्थिति मे बैठ गया और रेखा के भोले चेहरे की चंचल आँखों मे देखकर, उसकी इस अदा पर फिदा हो गया। उसने अपनी आंखो से मिन्नत की, जिसे मानते हुए रेखा पलंग के ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी और एक लंबी सांस भरकर, अपनी भोहें नचाते हुए, अपने ढीले-ढाले गाउन को दोनों हाथो से पकड़ा और एक ही झटके मे अपने सर के ऊपर से निकालकर जाकिर के मुह पर फेक दिया। रेखा के शरीर के गंध से भरा हुआ गाउन जाकिर के लिए वैसा ही था, जैसे शराब के नशे मे झूमते हुए को एक बोतल और पिला दी जाये। इस नशे से उबरकर जाकिर ने जैसे ही अपने चेहरे से गाउन हटाया, तो उसके दिल ने इतनी ज़ोर से धड़कना शुरू कर दिया, कि धड़कने रेखा को भी सुनाई दे रही थी। अपनी लूँगी के ऊपर से ही वो लिंग को मसलने लगा, क्योंकि दृश्य ही कुछ ऐसा उसकी आंखो के सामने था।