22-05-2020, 06:32 AM
[ट्रिन.. ट्रिन...] ... खटक... "ह..ह..हैलो!" पता नहीं क्या सोचकर, अपनी जगह पर जमी खड़ी रेखा, झट से जाकर, फोन कि एक घंटी पूरे होने के पहले ही फोन उठा चुकी थी। दूसरी तरफ से एक चिर-परिचित आवाज गूंजी।
जाकिर:- "क्या कर रही थी मेरी रानी। फोन क्यो नहीं उठा रही थी। अभी-अभी तो अंदर आई है और अचानक कहाँ खो गयी।"
रेखा:- जाकिर की आवाज सुनके घबराते हुए "क क क्या? कुछ भी तो नहीं हुआ। वो मै बाथरूम गयी थी।"
जाकिर:- "हा हा हा हा हा । अच्छा हुआ, तैयार हो गयी तू सब कर के, तो मै आ जाऊँ?"
रेखा:- एकदम से सकपका कर "क क क्या...???अभी तो मै नहाई भी नहीं हूँ। अभी क क कैसे? और आपको दिन रात ये ही काम सूझता है क्या?"
जाकिर:- "अरे मेरी जान, तूने दीवाना ही ऐसा बना दिया है मुझे अपना। हर समय तुझे ही देखता हूँ आंखो के सामने। और तो और रात मे सपने मे भी तू ही आती है अब तो।"
रेखा:- अपनी तारीफ सुनके इठलाते हुए "आहा हाहाहा... ऐसे बोल रहे हैं जैसे पहले कोई लड़की देखी नहीं आपने। पता नहीं किस-किस घाट का पानी पिया होगा।"
जाकिर:- "भले ही पिया हो, पर अब तो सिर्फ तेरी चूत का पानी ही पीऊँगा तेरी कसम, हा हा हा हा हा...।
रेखा:- शर्माते हुए "छी छी... कितना गंदा बोलते हो। कुछ तो शरम करो। औरत से कैसे बात करते हैं, नहीं पता क्या?"
जाकिर:- "अच्छा! जब कल मेरे लन्ड को चूस रही थी और अपनी चूत का पानी मुझे पिलाया, तब शर्म नहीं आई। अब शर्मा रही है मेरी रानी।"
रेखा:- जाकिर की बातों से उत्तेजित होकर अपनी चूत को भींचते हुए "हाय दइया, आपसे तो बात करना ही बेकार है।"
जाकिर:- "अच्छा-अच्छा, मत कर बात, बस प्यार करते रह। वैसे तेरी छत पर एक चीज मैंने छोडी है तेरे लिए, जाकर ले आना और बताना कैसी है।"
रेखा:- आश्चर्य से "मेरी छत पर??? ऐसा क्या है? मुझे पता है, फिर से बहाने से बुला रहे हो छत पर मुझे। मै नहीं आने वाली।"
जाकिर:- "अरे नहीं-नहीं। तेरी कसम, सच मे, एकदम शानदार कच्छी-बानियान भेजी है तेरे लिए। पहनना, फिर मै 10 मिनट मे फोन करूंगा, तब बताना मेरी जान। जा, जल्दी से ले आ अब। या मै खुद ला के दूँ।"
रेखा:- एकदम से हड्बड़ाकर " न न न न नहीं...। मै खुद ले आऊँगी जाकर। और आप 10 मिनट नहीं, कम से कम आधे घंटे मे फोन करना, मुझे नहाना भी है। अब रखो फोन।"
जाकिर:- "हा हा हा हा हा। चल ठीक है। देख लेना, तुझे बहुत पसंद आएगी और वो पहने हुए तू मुझे पसंद आएगी। हा हा हा। " "
रेखा:- झेंपते हुए "ओफ्फो... रखती हूँ।" कहकर फोन रख देती है।
पहले दो मिनट तक तो रेखा सोच मे पड़ जाती है कि वो क्या करे, कहीं ये जाकिर का बहाना तो नहीं उसे छत पे बुलाने का। लेकिन फिर आखिर अपने दिल के हाथो मजबूर, या कहें कि अपनी चूत के हांथों मजबूर होकर, वो धड़कते दिल और कांपते पैरो से ऊपर छत की ओर बढ़ती है।
सिर्फ एक मिनट के छत तक के इस सफर मे उसकी चूत का पानी बह-बहकर उसकी जांघों से होता हुआ उसके घुटनो तक आ चुका था। उसने पहले छत के दरवाजे से कनखियों से पूरे छत का मुआयना किया, जिससे उसे पता चला कि छत पूरी खाली पड़ी है, जिससे उसकी जान मे जान आई। छत मे आने पर उसने देखा कि छत पर एक छोटा सा गुलाबी रंग का पैकेट पड़ा है, जिसे उठाकर वो लगभग दौड़ते हुए वापस कमरे मे आ गयी।
कमरे मे आते ही उसने वो पैकेट पलंग पर पटका और धम्म से पलंग पर बैठकर पहले अपनी सांसों को सम्हाला और फिर झट से नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गयी। आज बड़े दिनो के बाद बड़े अच्छे से एक-एक अंग को साफ करके नहाते हुए रेखा गुनगुना भी रही थी। नहाकर अपने बदन को अच्छे से तौलिये से सुखाकर, वो उसी तौलिये को लपेटकर बाहर आई और जाकिर के गुलाबी पैकेट को खोलकर जैसे ही उसने देखा कि उसकी आँखें फटी कि फटी रह गयी। "ये क्या है? ये कैसे..." बस उसके मुह से इतना ही निकल पाया।
रेखा अपनी आंखो पर यकीन नहीं कर पा रही थी कि ऐसी कोई चीज उसे देखने को मिलेगी और वो भी गाँव मे। उसने ये चीजे देखी तो थी पहले भी, पर कॉलेज के समय मे, उसकी कुछ बिगड़ैल सहेलियों के घर पर, अकेले मे, सिर्फ वैसी वाली फिल्मों मे देखा था जिन्हे वो अकसर अपनी गर्मी मिटाने के लिए देखा करती थी। उसने जल्दी-जल्दी कई बार अपनी पलकें झपकाई कि वो यकीन कर सके कि ऐसी कोई चीज वाकई मे उसके सामने चंद इंच दूर पड़ी है। उस चीज को छूना चाहती थी वो, पर डर के मारे उसके हांथ कांप रहे थे। अभी अभी अपने शरीर को ठंडा और तरो ताजा करके आई रेखा की गर्मी का ज्वालामुखी उसके बदन मे फिर से उबाल मारने लगा, जिसका लावा धीरे धीरे उसकी योनि से रिसना शुरू हो चुका था।
जाकिर:- "क्या कर रही थी मेरी रानी। फोन क्यो नहीं उठा रही थी। अभी-अभी तो अंदर आई है और अचानक कहाँ खो गयी।"
रेखा:- जाकिर की आवाज सुनके घबराते हुए "क क क्या? कुछ भी तो नहीं हुआ। वो मै बाथरूम गयी थी।"
जाकिर:- "हा हा हा हा हा । अच्छा हुआ, तैयार हो गयी तू सब कर के, तो मै आ जाऊँ?"
रेखा:- एकदम से सकपका कर "क क क्या...???अभी तो मै नहाई भी नहीं हूँ। अभी क क कैसे? और आपको दिन रात ये ही काम सूझता है क्या?"
जाकिर:- "अरे मेरी जान, तूने दीवाना ही ऐसा बना दिया है मुझे अपना। हर समय तुझे ही देखता हूँ आंखो के सामने। और तो और रात मे सपने मे भी तू ही आती है अब तो।"
रेखा:- अपनी तारीफ सुनके इठलाते हुए "आहा हाहाहा... ऐसे बोल रहे हैं जैसे पहले कोई लड़की देखी नहीं आपने। पता नहीं किस-किस घाट का पानी पिया होगा।"
जाकिर:- "भले ही पिया हो, पर अब तो सिर्फ तेरी चूत का पानी ही पीऊँगा तेरी कसम, हा हा हा हा हा...।
रेखा:- शर्माते हुए "छी छी... कितना गंदा बोलते हो। कुछ तो शरम करो। औरत से कैसे बात करते हैं, नहीं पता क्या?"
जाकिर:- "अच्छा! जब कल मेरे लन्ड को चूस रही थी और अपनी चूत का पानी मुझे पिलाया, तब शर्म नहीं आई। अब शर्मा रही है मेरी रानी।"
रेखा:- जाकिर की बातों से उत्तेजित होकर अपनी चूत को भींचते हुए "हाय दइया, आपसे तो बात करना ही बेकार है।"
जाकिर:- "अच्छा-अच्छा, मत कर बात, बस प्यार करते रह। वैसे तेरी छत पर एक चीज मैंने छोडी है तेरे लिए, जाकर ले आना और बताना कैसी है।"
रेखा:- आश्चर्य से "मेरी छत पर??? ऐसा क्या है? मुझे पता है, फिर से बहाने से बुला रहे हो छत पर मुझे। मै नहीं आने वाली।"
जाकिर:- "अरे नहीं-नहीं। तेरी कसम, सच मे, एकदम शानदार कच्छी-बानियान भेजी है तेरे लिए। पहनना, फिर मै 10 मिनट मे फोन करूंगा, तब बताना मेरी जान। जा, जल्दी से ले आ अब। या मै खुद ला के दूँ।"
रेखा:- एकदम से हड्बड़ाकर " न न न न नहीं...। मै खुद ले आऊँगी जाकर। और आप 10 मिनट नहीं, कम से कम आधे घंटे मे फोन करना, मुझे नहाना भी है। अब रखो फोन।"
जाकिर:- "हा हा हा हा हा। चल ठीक है। देख लेना, तुझे बहुत पसंद आएगी और वो पहने हुए तू मुझे पसंद आएगी। हा हा हा। " "
रेखा:- झेंपते हुए "ओफ्फो... रखती हूँ।" कहकर फोन रख देती है।
पहले दो मिनट तक तो रेखा सोच मे पड़ जाती है कि वो क्या करे, कहीं ये जाकिर का बहाना तो नहीं उसे छत पे बुलाने का। लेकिन फिर आखिर अपने दिल के हाथो मजबूर, या कहें कि अपनी चूत के हांथों मजबूर होकर, वो धड़कते दिल और कांपते पैरो से ऊपर छत की ओर बढ़ती है।
सिर्फ एक मिनट के छत तक के इस सफर मे उसकी चूत का पानी बह-बहकर उसकी जांघों से होता हुआ उसके घुटनो तक आ चुका था। उसने पहले छत के दरवाजे से कनखियों से पूरे छत का मुआयना किया, जिससे उसे पता चला कि छत पूरी खाली पड़ी है, जिससे उसकी जान मे जान आई। छत मे आने पर उसने देखा कि छत पर एक छोटा सा गुलाबी रंग का पैकेट पड़ा है, जिसे उठाकर वो लगभग दौड़ते हुए वापस कमरे मे आ गयी।
कमरे मे आते ही उसने वो पैकेट पलंग पर पटका और धम्म से पलंग पर बैठकर पहले अपनी सांसों को सम्हाला और फिर झट से नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गयी। आज बड़े दिनो के बाद बड़े अच्छे से एक-एक अंग को साफ करके नहाते हुए रेखा गुनगुना भी रही थी। नहाकर अपने बदन को अच्छे से तौलिये से सुखाकर, वो उसी तौलिये को लपेटकर बाहर आई और जाकिर के गुलाबी पैकेट को खोलकर जैसे ही उसने देखा कि उसकी आँखें फटी कि फटी रह गयी। "ये क्या है? ये कैसे..." बस उसके मुह से इतना ही निकल पाया।
रेखा अपनी आंखो पर यकीन नहीं कर पा रही थी कि ऐसी कोई चीज उसे देखने को मिलेगी और वो भी गाँव मे। उसने ये चीजे देखी तो थी पहले भी, पर कॉलेज के समय मे, उसकी कुछ बिगड़ैल सहेलियों के घर पर, अकेले मे, सिर्फ वैसी वाली फिल्मों मे देखा था जिन्हे वो अकसर अपनी गर्मी मिटाने के लिए देखा करती थी। उसने जल्दी-जल्दी कई बार अपनी पलकें झपकाई कि वो यकीन कर सके कि ऐसी कोई चीज वाकई मे उसके सामने चंद इंच दूर पड़ी है। उस चीज को छूना चाहती थी वो, पर डर के मारे उसके हांथ कांप रहे थे। अभी अभी अपने शरीर को ठंडा और तरो ताजा करके आई रेखा की गर्मी का ज्वालामुखी उसके बदन मे फिर से उबाल मारने लगा, जिसका लावा धीरे धीरे उसकी योनि से रिसना शुरू हो चुका था।