22-05-2020, 06:31 AM
अगला दिन, नई सुबह, रेखा आज सुबह बड़ी ताजगी लिए उठी और उठते ही पता नहीं क्यों उसके चेहरे पर एक मुस्कान सी थी| उसके उठने के पहले ही हमेशा की तरह दिनु उठ चुका था और नहाने के लिए जाने की तैयारी कर रहा था| रेखा फटाफट उठी और उठकर चाय नाश्ता बनाकर उसे दिया| किसी मशीन की तरह दिनु के नहा के आने के पहले ही रेखा ने उसके लिए खाना बना दिया और टिफिन भी लगा दिया| और दिनु साहब फिर से अपने घर की घटनाओं और अपनी बीवी की कारस्तानियों से बेखबर अपनी साइकल उठा कर निकलने लगे|
"एक गाड़ी क्यो नहीं ले लेते आप| कितना थक जाते हैं वापस आते हैं तो|" शायद रात के दिनु के व्यवहार के याद आने पर रेखा को भी दिनु की इस मशक्कत पर तरस आ गया| "बस अड्डे तक साइकल मे जाते हैं फिर बस के धक्के खाते शहर आना-जाना| क्यो इतनी मेहनत करते हैं? थोड़ा अपना भी ख्याल रखा करिए|" टिफिन पकड़ाते रेखा बोली|
"अच्छा बाबा, ले लेंगे| पर बहुत दिनो से गाड़ी चलायी नहीं है, तो पहले कोई पुरानी गाड़ी ही लेंगे|" टिफिन लेकर बाहर निकलता दिनु बोला," ओफिस जाकर जाकिर भाई से फोन पे बात करता हूँ, उन्हे जरूर जानकारी होगी| उनसे ज्यादा भरोसे वाला बंदा पूरे गाँव मे नहीं है|"
जाकिर का नाम सुनते ही जैसे रेखा पर कोई बम गिरा| सुबह के काम-धाम मे वो तो भूल ही गयी थी कि अब फिर से जाकिर का सामना करना पड़ेगा उसे| अजीब सा डर, कुछ झिझक, थोड़ी शर्म और बहुत सारे रोमांच से उसके दिल कि धड़कने अपने आप बढ़ गयी। उसके जांघों के बीच कुछ गीला-गीला सा महसूस होने लगा उसे, जो कि पसीना तो कतई नहीं था।
"अरे क्या हुआ? कहाँ ध्यान है तुम्हारा?" घर के बाहर जाने को तैयार खड़ा दिनु चिल्लाया| "दरवाजा बंद कर लो, तीन बार कह चुका हूँ| तबीयत तो ठीक है ना|"
"हं...हं...हं...हाँ, क...कुछ नहीं हुआ। आप जाइए, मै बंद कर लेती हूँ।" हड़बड़ाती रेखा बोली," शाम को जल्दी आइएगा, कल देर कर दी थी आपने।"
"अभी कुछ दिन तो रोज ही देर होगी, मुख्यालय से बड़े साहब लोग आए हैं। अगर मुझे देर हुई, तो फोन कर दूंगा।" कहता हुआ दिनु चल पड़ा और मिनट से भी कम समय मे रेखा के नजरों से ओझल हो गया।
रेखा ने पलटकर जाकिर के घर कि ओर देखा और फिर वापस दिनु के जाने कि दिशा मे देखा और फिर घर मे घुसकर किवाड़ बंद करके उससे टिककर आंखे बंद करके ऐसे गहरी-गहरी साँसे लेने लगी मानो 10 कदम चलकर नहीं 10 किलोमीटर से दौड़कर आई है।
कुछ 5 मिनट खुद को समहालने के बाद ना जाने क्या सोचकर उसके चेहरे पर एक अनोखी नटखट सी मुस्कान आ गयी। उसने अपने हांथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी योनि को कसके मुट्ठी मे भींच लिया," सारी मुसीबत कि जड़ तू ही है कमबख्त। तेरी खातिर क्या-क्या करना पड़ता है। अब जो होगा उसकी जिम्मेदार तू ही होगी कमीनी।" अपने होठो को चबाती रेखा बड़बड़ाई, फिर मुसकुराते हुए अपने कमरे कि तरफ चल पड़ी।
ठंडा पानी पीकर उसे बड़ा सुकून मिला, और वो एक अंगड़ाई लेती हुई नहाने जाने के लिए जैसे ही बाथरूम कि ओर मुड़ी, एक आवाज ने उसके कदम जैसे जमीन से ही चिपका दिये।
[ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...] [ट्रिन.. ट्रिन...]
फोन बजने लगा। फोन बजते-बजते बंद हो गया, पर रेखा कि हिम्मत फोन उठाने कि तो दूर, उसके पास जाने कि भी नहीं हो रही थी। उसके पैर जहां खड़ी थी, वहीं जैसे जम गए थे। फोन बजना बंद होते ही उसने राहत कि साँस ली ही थी, कि तभी फिर से...
"एक गाड़ी क्यो नहीं ले लेते आप| कितना थक जाते हैं वापस आते हैं तो|" शायद रात के दिनु के व्यवहार के याद आने पर रेखा को भी दिनु की इस मशक्कत पर तरस आ गया| "बस अड्डे तक साइकल मे जाते हैं फिर बस के धक्के खाते शहर आना-जाना| क्यो इतनी मेहनत करते हैं? थोड़ा अपना भी ख्याल रखा करिए|" टिफिन पकड़ाते रेखा बोली|
"अच्छा बाबा, ले लेंगे| पर बहुत दिनो से गाड़ी चलायी नहीं है, तो पहले कोई पुरानी गाड़ी ही लेंगे|" टिफिन लेकर बाहर निकलता दिनु बोला," ओफिस जाकर जाकिर भाई से फोन पे बात करता हूँ, उन्हे जरूर जानकारी होगी| उनसे ज्यादा भरोसे वाला बंदा पूरे गाँव मे नहीं है|"
जाकिर का नाम सुनते ही जैसे रेखा पर कोई बम गिरा| सुबह के काम-धाम मे वो तो भूल ही गयी थी कि अब फिर से जाकिर का सामना करना पड़ेगा उसे| अजीब सा डर, कुछ झिझक, थोड़ी शर्म और बहुत सारे रोमांच से उसके दिल कि धड़कने अपने आप बढ़ गयी। उसके जांघों के बीच कुछ गीला-गीला सा महसूस होने लगा उसे, जो कि पसीना तो कतई नहीं था।
"अरे क्या हुआ? कहाँ ध्यान है तुम्हारा?" घर के बाहर जाने को तैयार खड़ा दिनु चिल्लाया| "दरवाजा बंद कर लो, तीन बार कह चुका हूँ| तबीयत तो ठीक है ना|"
"हं...हं...हं...हाँ, क...कुछ नहीं हुआ। आप जाइए, मै बंद कर लेती हूँ।" हड़बड़ाती रेखा बोली," शाम को जल्दी आइएगा, कल देर कर दी थी आपने।"
"अभी कुछ दिन तो रोज ही देर होगी, मुख्यालय से बड़े साहब लोग आए हैं। अगर मुझे देर हुई, तो फोन कर दूंगा।" कहता हुआ दिनु चल पड़ा और मिनट से भी कम समय मे रेखा के नजरों से ओझल हो गया।
रेखा ने पलटकर जाकिर के घर कि ओर देखा और फिर वापस दिनु के जाने कि दिशा मे देखा और फिर घर मे घुसकर किवाड़ बंद करके उससे टिककर आंखे बंद करके ऐसे गहरी-गहरी साँसे लेने लगी मानो 10 कदम चलकर नहीं 10 किलोमीटर से दौड़कर आई है।
कुछ 5 मिनट खुद को समहालने के बाद ना जाने क्या सोचकर उसके चेहरे पर एक अनोखी नटखट सी मुस्कान आ गयी। उसने अपने हांथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी योनि को कसके मुट्ठी मे भींच लिया," सारी मुसीबत कि जड़ तू ही है कमबख्त। तेरी खातिर क्या-क्या करना पड़ता है। अब जो होगा उसकी जिम्मेदार तू ही होगी कमीनी।" अपने होठो को चबाती रेखा बड़बड़ाई, फिर मुसकुराते हुए अपने कमरे कि तरफ चल पड़ी।
ठंडा पानी पीकर उसे बड़ा सुकून मिला, और वो एक अंगड़ाई लेती हुई नहाने जाने के लिए जैसे ही बाथरूम कि ओर मुड़ी, एक आवाज ने उसके कदम जैसे जमीन से ही चिपका दिये।
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फोन बजने लगा। फोन बजते-बजते बंद हो गया, पर रेखा कि हिम्मत फोन उठाने कि तो दूर, उसके पास जाने कि भी नहीं हो रही थी। उसके पैर जहां खड़ी थी, वहीं जैसे जम गए थे। फोन बजना बंद होते ही उसने राहत कि साँस ली ही थी, कि तभी फिर से...