22-05-2020, 03:39 AM
अध्याय 33
नाज़िया की आपबीती सुनकर विजयराज को उससे ना सिर्फ हमदर्दी या लगाव हुआ बल्कि उसके शातिर दिमाग में नए नए खुराफाती मंसूबे पनपने लगे….
“नाज़िया जी! अब आप अपनी स्तिथि तो समझ ही रही होंगी... में आपको इन सब से बाहर निकालने के लिए अपनी पूरी कोशिशें करूंगा... लेकिन इसके लिए आपको भी कुछ करना होगा....”
“विजयराज जी! अब में जो कुछ और जैसा कर सकती हूँ... हमेशा तैयार हूँ... आप कुछ कर सकें या नहीं.... लेकिन आपने मेरे लिए कुछ करने का सोचा और कोशिश की यही बहुत है मेरे लिए.... आज मेरे जिस्म की कोई कदर नहीं... फिर भी अगर आपके काम आ सके तो .....” नाज़िया ने अपना प्रस्ताव खुलकर देते हुये भी बात को अधूरा ही छोड़ दिया
“मुझे भी कामिनी के जाने के बाद एक औरत की जरूरत है... लेकिन सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी.... जिससे में हर बात कह सकूँ और कर भी सकूँ... और तुमने अपनी ज़िंदगी में जो ठोकरें खाईं हैं.... और उनसे जो सीखा है.... मुझे लगता है... तुम मेरे लिए वो भी कर सकती हो जो कामिनी कभी नहीं कर सकती थी... या यू कहो की कभी नहीं करती.... ऐसे ही में भी तुम्हारे लिए वो कर सकता हूँ जो तुम्हारा पति तुम्हारे लिए नहीं कर सका और शायद कर भी नहीं सकता था.... वास्तव में हम दोनों मिलकर ना सिर्फ घर चला सकते हैं बल्कि दुनिया को चला सकते हैं” कहते हुये विजयराज ने नाज़िया को बाहों में भरे उसकी आँखों में झाँका और अपने होठों को उसके होठों से मिला दिया....... और फिर दोनों के बीच जिस्म, दिल और दिमाग मिलने का सिलसिला शुरू हो गया ....3 दिन तक कर्फ़्यू रहा... इन 3 दिनों में विजयराज और नाज़िया के बीच ना सिर्फ हवस बल्कि प्यार और अपनापन का भी वो बंधन जुड़ा कि विजयराज ने नाज़िया के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया... और उसे वापस उस घर में लौटने के लिए मना कर दिया... जिस पर नाज़िया ने कहा की वो ऐसे अचानक कैसे सबकुछ छोड़ देगी... अभी तक तो जो हुआ उसके पति के साथ हुआ लेकिन उसके ऐसे गायब होने से तो वो लोग उसके घरवालों को लाहौर में परेशान करेंगे... और हो सकता है पटियाला में उसके ससुराल वालों के लिए भी मुश्किलें पैदा करने लगें।
“तुम अगर ये सोचती हो की किसी तरीके से तुम उनके चंगुल से हमेशा के लिए बच सकती हो... तो वो मौका अभी तुम्हारे पास है... बाद में हो सकता है हमारी कोशिश कामयाब ना हो या वो किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता कर लें” विजयराज ने कहा
“लेकिन ऐसे कैसे ... मेरे एकदम से गायब होने से तो वो मुझे ढूँढने लग जाएंगे और उनके कहने पर ही मेंने आपसे संपर्क किया था तो वो आपसे पता करने या आप पर नज़र रखने की भी कोशिश करेंगे, तो भी मुझ तक पहुँच जाएंगे” नाज़िया ने चिंता भरे स्वर में कहा
“देखो... परसों सुबह तुम मेरे पास आयीं और उसके बाद पूरे दिन दिल्ली, नोएडा में बहुत बड़ा दंगा हुआ... जिसमें हजारों लोग लापता हो गए या मारे गए... जिनमें से एक तुम भी हो... मेरे घर में आस-पड़ोस के लोगों या तुम्हारे उन साथियों ने अगर नज़र राखी होगी तो, तुम्हें आते हुये देखा...और वापस जाते हुये भी.... जब तुम्हें मैं रोड से वापस लेकर आया था तब तक सिक्युरिटी सबकुछ बंद करा चुकी थी और ज़्यादातर लोग अपने घरों में वापस छुप गए थे.... तो मुझे लगता है कि किसी ने शायद ही तुम्हें यहाँ वापस लौटते हुये देखा होगा... और इन 3 दिनों से पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ है... अगर कर्फ़्यू से पहले भी किसी ने इस घर पर नज़र रखी होगी तो उन्होने मुझे यहाँ से अकेले जाते और अकेले आते ही देखा होगा... तुम तो इस घर से बाहर निकली ही नहीं हो... 1-2 दिन में ही तुम्हारे घर के एरिया में रहनेवाला मेरा कोई जानकार तुम्हारे घर के कई दिन से बंद होने की रिपोर्ट सिक्युरिटी को देगा... या शायद सिक्युरिटी ही दंगे के बाद वहाँ के बंद घरों कि छानबीन करे.... मतलब दोनों हालात में तुम और नाज़िया दंगे में लापता दर्ज हो जाओगी... और ये इतना बड़ा मामला है कि सारी दुनिया को पता है कि इस दिन हजारों बल्कि देश भर में लाखों लोग, मकान, दुकान, फैक्ट्रियाँ खत्म कर दीं गईं... जिनमें से एक नाज़िया भी हो सकती है” विजयराज ने मुसकुराते हुये कहा
“चलो इस बात को मान भी लूँ तो कहीं तो रहूँगी.... अगर यहाँ रही तो पकड़ में आ ही जाऊँगी या कहीं भी आपके साथ रही तो हो सकता है वो लोग आप पर नज़र रखें” नाज़िया ने कहा
“मानता हूँ कि तुम जासूस हो.... लेकिन में भी इतने कारनामे करता हूँ... तो कुछ पैंतरे मुझे भी आते होंगे...आज ही में यहाँ किसी को यहाँ लेकर आऊँगा और अपने बच्चों को भी... और इस घर से न सिर्फ बच्चे बल्कि एक औरत का आना जाना भी सबके सामने बना रहेगा...बस तुम देखती जाओ.... अब जब तुमने मुझ पर भरोसा किया है तो उसे बनाए रखो और चुपचाप जैसे में कहता हूँ करती जाओ” विजयराज ने कहा तो नाज़िया ने भी सोचा कि जितना बुरा उसके साथ हो चुका है... अब उससे ज्यादा तो होना ही क्या है.... घर, परिवार यहाँ तक कि खुद की पहचान भी खत्म हो चुकी... और अभी जिन हालातों में फांसी हुई है... आज वो खुद वेश्यावृत्ति का धंधा चला रही है... कल को बेटी भी उसी दलदल में झोंक दी जाएगी...और वो कुछ नहीं कर पाएगी। हो सकता है विजयराज की योजना काम कर जाए तो कम से कम उसकी अपनी ना सही बेटी कि ज़िंदगी तो सुधार सकती है.... बस यही सोचकर नाज़िया भी विजयराज के कहे अनुसार चलने लगी।
विजयराज उसी दिन कहीं गया और शाम को एक औरत और उसके साथ 3 बच्चों को लेकर घर आया... जिनमें से एक लड़का रागिनी की उम्र का दीपक, एक लड़की लगभग नीलोफर की उम्र की हेमा और 1 लड़की ज्योति जो छोटी थी। उसने नाज़िया से मिलवाया कि ये उसकी बहन विमला और उसके बच्चे हैं और ये अब कुछ दिन यहीं रहेंगी कल वो अपने बेटे बेटी को भी बड़े भाई जयराज के यहाँ से ले आयेगा। अगले दिन वो रागिनी और विक्रम को भी ले आया और साथ में एक और औरत भी अपनी 2 बेटियों के साथ आयी जो कि वहीं पास में ही रहती थी और इनकी रिश्तेदार होने के साथ-साथ विमला की बचपन की सहेली भी थी... उसका नाम मुन्नी था, मुन्नी की बड़ी बेटी का नाम ममता था जो लगभग रागिनी की उम्र की थी और दूसरी बेटी का नाम शांति था जो नीलोफर की उम्र की थी....
इन सब के आने के बाद खाना वगैरह विमला, मुन्नी और नाज़िया ने मिलकर बनाया...फिर सबने खाना खाया और रात को मुन्नी अपने बच्चों को लेकर वापस अपने घर चली गयी... और वो सब बिना किसी खास घटना के विजय के घर ही सो गए....
दूसरे दिन भी मुन्नी दोबारा अपनी बड़ी बेटी के साथ उनके घर आयी और उनके घर मौजूद अपनी छोटी बेटी शांति को भी साथ लेकर विमला के साथ बाज़ार गयी... ऐसे ही 2-3 दिन विमला और मुन्नी का एक दूसरे के साथ घूमना होता रहा....और इसी उलटफेर, दिन रात के आने जाने बाज़ार घूमने के चक्रव्युह में पहले नीलोफर और फिर नाज़िया विजयराज के घर से मुन्नी के घर पहुँच चुकी थी... बिना किसी की नज़र में आए.... सबको यही लगता कि ये विमला-मुन्नी और उनके बच्चे ही आपस में एक दूसरे के घर आते जाते रहते हैं।
इसके बाद विमला जो अपने गाँव से यहाँ भाइयों के पास घूमने आयी हुई थी उसने अपने पति विजय सिंह को भी यहीं दिल्ली में काम धंधा शुरू करने के लिए बुलवा लिया और वो लोग दिल्ली नजफ़गढ़ में रहने लगे... लेकिन विजयराज नोएडा में ही अपने बच्चों को लेकर रहता रहा.... नाज़िया और नीलोफर को मुन्नी ने चुपचाप विमला के यहाँ नजफ़गढ़ पहुंचा दिया जहां वो विमला के साथ रहने लगी... इस तरह नाज़िया बिना किसी कि जानकारी के नोएडा से गायब भी हो गयी और विजयराज पर नज़र रखनेवालों के अंदाजे से भी बाहर हो गयी....
विजयराज भी बच्चों की वजह से अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहा था.... नाज़िया से तो उसके संबंध दोबारा बन नहीं पाये इस भागदौड़ की वजह से लेकिन... विमला के दिल्ली चले जाने के बाद विजयरज़ ने मुन्नी के यहाँ आना जाना शुरू कर दिया था, एक बार खुद नाज़िया ने अपने तरीके से मुन्नी से मिलकर ऐसा मौका बनाया कि नाज़िया और विजयराज के बीच चुदाई हो सकी... लेकिन ऐसे बार-बार विजयराज का वहाँ आना नाज़िया के लिए खतरा बन सकता था जिसकी वजह से दोबारा ऐसा मौका नहीं लगा।
जब नाज़िया विमला के पास दिल्ली पहुँच गयी तो मुन्नी ने अक्सर शाम को या दिन में भी विजयराज के घर आना जाना शुरू कर दिया और फिर उनके बीच खुलकर संबंध बन गए... मुन्नी ने जब बच्चों को लेकर विजयराज की परेशानी देखी तो उसने विजयराज को कहा कि वो बच्चों को साथ लेकर उसके साथ ही रहे... वो भी बिना पति के बच्चों को पाल रही है......... वो दोनों पति पत्नी की तरह तो रहेंगे लेकिन शादी कभी नहीं करेंगे....... क्योंकि मुन्नी के पति की मौत के बाद भी उसे या उसके बच्चों को जायदाद में हिस्सा नहीं मिला, जायदाद मुन्नी के ससुर के नाम पर थी और वो जिंदा थे......... मुन्नी के दूसरी शादी कर लेने से जायदाद में हिस्सा हासिल करना और भी मुश्किल हो जाता।
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“अब इन सबके बारे में तो मुझसे बेहतर रवि भैया जानते हैं... या फिर विक्रम.... में अब फिर से सिर्फ अपने बारे में बताती हूँ...” नीलोफर ने रणविजय की आँखों में देखते हुये कहा... और सभी की नजरें नीलम पर गाड़ी हुई थीं तो किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि रणविजय ने इशारा करके नीलम को आगे ना बोलने का इशारा किया.... लेकिन रागिनी कि नजरें नीलम कि नजरों पर ही थीं तो उसने रणविजय और नीलम के बीच कि इशारेबाजी देख ली...पर वो बोली कुछ नहीं
“ठीक है…. में और प्रबल भी सिर्फ ये जानना चाहते हैं कि तुमने अपने बेटे को खुद से अलग क्यों किया और इतने साल तुम उससे क्यों नहीं मिली” रागिनी ने कहा
“में उसी बात पर आ रही हूँ दीदी :-
समय बीतता रहा... माँ, विजयराज अंकल, मुन्नी आंटी, विमला आंटी इन लोगों के बीच कुछ समय बिताने के बाद 1990 से में बाहर हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी और 1997 में दोबारा घर रहने आ गयी जब माँ ने मेरा एड्मिशन कॉलेज में कराया। जब मेंने कॉलेज आना जाना शुरू किया तो उसी कॉलेज में मुझे रागिनी दीदी, विक्रम, दीपक और ममता भी मिले.... लेकिन अजीब बात थी कि रागिनी-विक्रम सगे भाई-बहन होकर भी कॉलेज में कभी एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे ना ही किसी को ये पता था कि रागिनी विक्रम की बहन है.... उससे भी अजीब बात ये थी कि वहाँ रागिनी को दीपक कि बहन कहा जाता था और वो दीपक के घर ही रहती थी....और दीपक ममता के बीच इश्क़ परवान चढ़ रहा था... मुझे बहुत कुछ अजीब लगा लेकिन जैसे इन सब ने मुझे जानते हुये भी नजरंदाज कर दिया ऐसे ही मेंने भी किसी से कोई मतलब नहीं रखा....
कुछ समय बाद दीपक-ममता ने अपनी पढ़ाई छोडकर शादी कर ली, और तब मेंने विजयराज अंकल को उनके यहाँ देखा... जो विमला आंटी के पति के रूप में उनके साथ किशनगंज में रह रहे थे
इधर घर में रहते हुये मुझे माँ के द्वारा चलाये जा रहे वेश्यावृत्ति के कारोबार की जानकारी हो गयी थी... लेकिन बचपन से उनकी परिस्थितियाँ देखती आयी थी में... इसलिए नजरंदाज कर दिया.... माँ ने भी मुझे साफ-साफ कह दिया था कि मुझे पढ़ा-लिखकर इस गंदगी से बाहर एक साफ सुथरी ज़िंदगी देने के लिए वो ये सबकुछ करती आयी हैं... लेकिन मुझे इन सबसे बहुत दूर रहना है...हालांकि में उनसे छुप कर थोड़ा बहुत इन सब मामलों पर नज़र रखती थी लेकिन मुझे भी इन सब कामों से नफरत सी थी... और एक दिन माँ को भी इन सब से बाहर निकालना चाहती थी....
ऐसे ही चलता रहा और एक दिन मेरे कॉलेज में सुबह बड़ा हँगामा मचा हुआ था.... एक लड़की थी नेहा... नेहा कक्कड़ .... नेहा के माँ –बाप सिक्युरिटी लेकर कॉलेज आए हुये थे... पता चला कि नेहा कई दिन से घर से गायब है... जब उसके माँ-बाप ने सिक्युरिटी में कम्प्लेंट की तो उन्होने उसके बारे में जांच करने घर पर उसके कमरे की तलाशी ली जिसमें ड्रग्स मिले... इस बारे में जब छानबीन की गयी तो पता चला कि वो ड्रग्स उसे कॉलेज में ही कोई देता था.... इसीलिए सिक्युरिटी कॉलेज में आकर उसके ड्रग्स लेने और लापता होने की छानबीन में लगी हुई थी। इस मामले की छानबीन और ड्रग के कारोबारियों को पकड़वाने में विक्रम का बहुत बड़ा हाथ रहा... लेकिन नेहा को ड्रूग देने वाले लड़के और नेहा...दोनों का ही कुछ पता नहीं चला।
फिर एक दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी, आम तौर पर सुबह में अपने कॉलेज चली जाती थी और शाम को अपने काम की वजह से माँ देर से ही आती थी.... हमारी आपसी मुलाक़ात सुबह नाश्ते और रात के खा.....ने पर ही होती थी... माँ के काम के सिलसिले में कोई भी मेरे मौजूद रहते घर नहीं आया कभी.... हमेशा माँ ही बाहर जाती थी...उस दिन माँ ने मुझे सुबह जगाया और बोला की उसे कोई जरूरी काम है इसलिए वो बाहर जा रही है... में तैयार होकर कॉलेज चली जाऊँ .... नाश्ता उन्होने बनाकर रख दिया है.... लेकिन माँ के जाते ही में दोबारा सो गयी और जब उठी तब तक कॉलेज जाने का समय निकाल चुका था तो मेंने फ्रेश होकर नाश्ता किया फिर अपने कमर में लेटकर पढ़ती रही.... लगभग 11 बजे मुझे नीचे हाल में आवाज सी सुनाई दी तो मेंने सोचा की माँ आ गयी हैं में भी उनके साथ ही बैठती हूँ कुछ देर। तभी मुझे लगा की माँ के साथ कोई और भी है... तो मुझे लगा कि मुन्नी आंटी, विजयराज अंकल और विमला आंटी होंगे क्योंकि इस घर में इन तीनों के अलावा माँ के संपर्क का कोई और नहीं आता था और शायद किसी को इस घर का पता भी नहीं होगा.... माँ ने मुझे बताया था कि इन तीन लोगों के अलावा ना तो किसी को इस घर का पता है और ना ही मेरे बारे में.... बाकी सबके लिए माँ ने एक अलग घर लिया हुआ था जहां से वो अपना काम देखती थी... और सबको यही पता था कि वही उनका घर है.... इस घर में कोई नौकर भी कभी नहीं रखा था उन्होने और ना ही कभी मेरे साथ कहीं आती जाती थी... यानि इस घर के आस-पड़ोस में भी कोई मेरी माँ को नहीं जानता था...बस सबको ये पता था कि में अपनी माँ के साथ रहती हूँ और मेरी माँ कहीं नौकरी करती हैं....नहीं ही किसी आस-पड़ोस वाले का हमारे घर आना जाना था
जब मेंने नीचे झाँका तो वहाँ माँ और मुन्नी आंटी के साथ एक लड़का और एक लड़की भी थे जिनको देखकर में चोंक गयी और पीछे को हटकर खड़ी हो गयी... क्योंकि वो दोनों भी मुझे जानते थे, मुझे आश्चर्य हुआ कि ये दोनों माँ के साथ कैसे और माँ इन्हें अपने इस घर में क्यों लेकर आयी....
शेष अगले भाग में.....
नाज़िया की आपबीती सुनकर विजयराज को उससे ना सिर्फ हमदर्दी या लगाव हुआ बल्कि उसके शातिर दिमाग में नए नए खुराफाती मंसूबे पनपने लगे….
“नाज़िया जी! अब आप अपनी स्तिथि तो समझ ही रही होंगी... में आपको इन सब से बाहर निकालने के लिए अपनी पूरी कोशिशें करूंगा... लेकिन इसके लिए आपको भी कुछ करना होगा....”
“विजयराज जी! अब में जो कुछ और जैसा कर सकती हूँ... हमेशा तैयार हूँ... आप कुछ कर सकें या नहीं.... लेकिन आपने मेरे लिए कुछ करने का सोचा और कोशिश की यही बहुत है मेरे लिए.... आज मेरे जिस्म की कोई कदर नहीं... फिर भी अगर आपके काम आ सके तो .....” नाज़िया ने अपना प्रस्ताव खुलकर देते हुये भी बात को अधूरा ही छोड़ दिया
“मुझे भी कामिनी के जाने के बाद एक औरत की जरूरत है... लेकिन सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी.... जिससे में हर बात कह सकूँ और कर भी सकूँ... और तुमने अपनी ज़िंदगी में जो ठोकरें खाईं हैं.... और उनसे जो सीखा है.... मुझे लगता है... तुम मेरे लिए वो भी कर सकती हो जो कामिनी कभी नहीं कर सकती थी... या यू कहो की कभी नहीं करती.... ऐसे ही में भी तुम्हारे लिए वो कर सकता हूँ जो तुम्हारा पति तुम्हारे लिए नहीं कर सका और शायद कर भी नहीं सकता था.... वास्तव में हम दोनों मिलकर ना सिर्फ घर चला सकते हैं बल्कि दुनिया को चला सकते हैं” कहते हुये विजयराज ने नाज़िया को बाहों में भरे उसकी आँखों में झाँका और अपने होठों को उसके होठों से मिला दिया....... और फिर दोनों के बीच जिस्म, दिल और दिमाग मिलने का सिलसिला शुरू हो गया ....3 दिन तक कर्फ़्यू रहा... इन 3 दिनों में विजयराज और नाज़िया के बीच ना सिर्फ हवस बल्कि प्यार और अपनापन का भी वो बंधन जुड़ा कि विजयराज ने नाज़िया के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया... और उसे वापस उस घर में लौटने के लिए मना कर दिया... जिस पर नाज़िया ने कहा की वो ऐसे अचानक कैसे सबकुछ छोड़ देगी... अभी तक तो जो हुआ उसके पति के साथ हुआ लेकिन उसके ऐसे गायब होने से तो वो लोग उसके घरवालों को लाहौर में परेशान करेंगे... और हो सकता है पटियाला में उसके ससुराल वालों के लिए भी मुश्किलें पैदा करने लगें।
“तुम अगर ये सोचती हो की किसी तरीके से तुम उनके चंगुल से हमेशा के लिए बच सकती हो... तो वो मौका अभी तुम्हारे पास है... बाद में हो सकता है हमारी कोशिश कामयाब ना हो या वो किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता कर लें” विजयराज ने कहा
“लेकिन ऐसे कैसे ... मेरे एकदम से गायब होने से तो वो मुझे ढूँढने लग जाएंगे और उनके कहने पर ही मेंने आपसे संपर्क किया था तो वो आपसे पता करने या आप पर नज़र रखने की भी कोशिश करेंगे, तो भी मुझ तक पहुँच जाएंगे” नाज़िया ने चिंता भरे स्वर में कहा
“देखो... परसों सुबह तुम मेरे पास आयीं और उसके बाद पूरे दिन दिल्ली, नोएडा में बहुत बड़ा दंगा हुआ... जिसमें हजारों लोग लापता हो गए या मारे गए... जिनमें से एक तुम भी हो... मेरे घर में आस-पड़ोस के लोगों या तुम्हारे उन साथियों ने अगर नज़र राखी होगी तो, तुम्हें आते हुये देखा...और वापस जाते हुये भी.... जब तुम्हें मैं रोड से वापस लेकर आया था तब तक सिक्युरिटी सबकुछ बंद करा चुकी थी और ज़्यादातर लोग अपने घरों में वापस छुप गए थे.... तो मुझे लगता है कि किसी ने शायद ही तुम्हें यहाँ वापस लौटते हुये देखा होगा... और इन 3 दिनों से पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ है... अगर कर्फ़्यू से पहले भी किसी ने इस घर पर नज़र रखी होगी तो उन्होने मुझे यहाँ से अकेले जाते और अकेले आते ही देखा होगा... तुम तो इस घर से बाहर निकली ही नहीं हो... 1-2 दिन में ही तुम्हारे घर के एरिया में रहनेवाला मेरा कोई जानकार तुम्हारे घर के कई दिन से बंद होने की रिपोर्ट सिक्युरिटी को देगा... या शायद सिक्युरिटी ही दंगे के बाद वहाँ के बंद घरों कि छानबीन करे.... मतलब दोनों हालात में तुम और नाज़िया दंगे में लापता दर्ज हो जाओगी... और ये इतना बड़ा मामला है कि सारी दुनिया को पता है कि इस दिन हजारों बल्कि देश भर में लाखों लोग, मकान, दुकान, फैक्ट्रियाँ खत्म कर दीं गईं... जिनमें से एक नाज़िया भी हो सकती है” विजयराज ने मुसकुराते हुये कहा
“चलो इस बात को मान भी लूँ तो कहीं तो रहूँगी.... अगर यहाँ रही तो पकड़ में आ ही जाऊँगी या कहीं भी आपके साथ रही तो हो सकता है वो लोग आप पर नज़र रखें” नाज़िया ने कहा
“मानता हूँ कि तुम जासूस हो.... लेकिन में भी इतने कारनामे करता हूँ... तो कुछ पैंतरे मुझे भी आते होंगे...आज ही में यहाँ किसी को यहाँ लेकर आऊँगा और अपने बच्चों को भी... और इस घर से न सिर्फ बच्चे बल्कि एक औरत का आना जाना भी सबके सामने बना रहेगा...बस तुम देखती जाओ.... अब जब तुमने मुझ पर भरोसा किया है तो उसे बनाए रखो और चुपचाप जैसे में कहता हूँ करती जाओ” विजयराज ने कहा तो नाज़िया ने भी सोचा कि जितना बुरा उसके साथ हो चुका है... अब उससे ज्यादा तो होना ही क्या है.... घर, परिवार यहाँ तक कि खुद की पहचान भी खत्म हो चुकी... और अभी जिन हालातों में फांसी हुई है... आज वो खुद वेश्यावृत्ति का धंधा चला रही है... कल को बेटी भी उसी दलदल में झोंक दी जाएगी...और वो कुछ नहीं कर पाएगी। हो सकता है विजयराज की योजना काम कर जाए तो कम से कम उसकी अपनी ना सही बेटी कि ज़िंदगी तो सुधार सकती है.... बस यही सोचकर नाज़िया भी विजयराज के कहे अनुसार चलने लगी।
विजयराज उसी दिन कहीं गया और शाम को एक औरत और उसके साथ 3 बच्चों को लेकर घर आया... जिनमें से एक लड़का रागिनी की उम्र का दीपक, एक लड़की लगभग नीलोफर की उम्र की हेमा और 1 लड़की ज्योति जो छोटी थी। उसने नाज़िया से मिलवाया कि ये उसकी बहन विमला और उसके बच्चे हैं और ये अब कुछ दिन यहीं रहेंगी कल वो अपने बेटे बेटी को भी बड़े भाई जयराज के यहाँ से ले आयेगा। अगले दिन वो रागिनी और विक्रम को भी ले आया और साथ में एक और औरत भी अपनी 2 बेटियों के साथ आयी जो कि वहीं पास में ही रहती थी और इनकी रिश्तेदार होने के साथ-साथ विमला की बचपन की सहेली भी थी... उसका नाम मुन्नी था, मुन्नी की बड़ी बेटी का नाम ममता था जो लगभग रागिनी की उम्र की थी और दूसरी बेटी का नाम शांति था जो नीलोफर की उम्र की थी....
इन सब के आने के बाद खाना वगैरह विमला, मुन्नी और नाज़िया ने मिलकर बनाया...फिर सबने खाना खाया और रात को मुन्नी अपने बच्चों को लेकर वापस अपने घर चली गयी... और वो सब बिना किसी खास घटना के विजय के घर ही सो गए....
दूसरे दिन भी मुन्नी दोबारा अपनी बड़ी बेटी के साथ उनके घर आयी और उनके घर मौजूद अपनी छोटी बेटी शांति को भी साथ लेकर विमला के साथ बाज़ार गयी... ऐसे ही 2-3 दिन विमला और मुन्नी का एक दूसरे के साथ घूमना होता रहा....और इसी उलटफेर, दिन रात के आने जाने बाज़ार घूमने के चक्रव्युह में पहले नीलोफर और फिर नाज़िया विजयराज के घर से मुन्नी के घर पहुँच चुकी थी... बिना किसी की नज़र में आए.... सबको यही लगता कि ये विमला-मुन्नी और उनके बच्चे ही आपस में एक दूसरे के घर आते जाते रहते हैं।
इसके बाद विमला जो अपने गाँव से यहाँ भाइयों के पास घूमने आयी हुई थी उसने अपने पति विजय सिंह को भी यहीं दिल्ली में काम धंधा शुरू करने के लिए बुलवा लिया और वो लोग दिल्ली नजफ़गढ़ में रहने लगे... लेकिन विजयराज नोएडा में ही अपने बच्चों को लेकर रहता रहा.... नाज़िया और नीलोफर को मुन्नी ने चुपचाप विमला के यहाँ नजफ़गढ़ पहुंचा दिया जहां वो विमला के साथ रहने लगी... इस तरह नाज़िया बिना किसी कि जानकारी के नोएडा से गायब भी हो गयी और विजयराज पर नज़र रखनेवालों के अंदाजे से भी बाहर हो गयी....
विजयराज भी बच्चों की वजह से अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहा था.... नाज़िया से तो उसके संबंध दोबारा बन नहीं पाये इस भागदौड़ की वजह से लेकिन... विमला के दिल्ली चले जाने के बाद विजयरज़ ने मुन्नी के यहाँ आना जाना शुरू कर दिया था, एक बार खुद नाज़िया ने अपने तरीके से मुन्नी से मिलकर ऐसा मौका बनाया कि नाज़िया और विजयराज के बीच चुदाई हो सकी... लेकिन ऐसे बार-बार विजयराज का वहाँ आना नाज़िया के लिए खतरा बन सकता था जिसकी वजह से दोबारा ऐसा मौका नहीं लगा।
जब नाज़िया विमला के पास दिल्ली पहुँच गयी तो मुन्नी ने अक्सर शाम को या दिन में भी विजयराज के घर आना जाना शुरू कर दिया और फिर उनके बीच खुलकर संबंध बन गए... मुन्नी ने जब बच्चों को लेकर विजयराज की परेशानी देखी तो उसने विजयराज को कहा कि वो बच्चों को साथ लेकर उसके साथ ही रहे... वो भी बिना पति के बच्चों को पाल रही है......... वो दोनों पति पत्नी की तरह तो रहेंगे लेकिन शादी कभी नहीं करेंगे....... क्योंकि मुन्नी के पति की मौत के बाद भी उसे या उसके बच्चों को जायदाद में हिस्सा नहीं मिला, जायदाद मुन्नी के ससुर के नाम पर थी और वो जिंदा थे......... मुन्नी के दूसरी शादी कर लेने से जायदाद में हिस्सा हासिल करना और भी मुश्किल हो जाता।
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“अब इन सबके बारे में तो मुझसे बेहतर रवि भैया जानते हैं... या फिर विक्रम.... में अब फिर से सिर्फ अपने बारे में बताती हूँ...” नीलोफर ने रणविजय की आँखों में देखते हुये कहा... और सभी की नजरें नीलम पर गाड़ी हुई थीं तो किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि रणविजय ने इशारा करके नीलम को आगे ना बोलने का इशारा किया.... लेकिन रागिनी कि नजरें नीलम कि नजरों पर ही थीं तो उसने रणविजय और नीलम के बीच कि इशारेबाजी देख ली...पर वो बोली कुछ नहीं
“ठीक है…. में और प्रबल भी सिर्फ ये जानना चाहते हैं कि तुमने अपने बेटे को खुद से अलग क्यों किया और इतने साल तुम उससे क्यों नहीं मिली” रागिनी ने कहा
“में उसी बात पर आ रही हूँ दीदी :-
समय बीतता रहा... माँ, विजयराज अंकल, मुन्नी आंटी, विमला आंटी इन लोगों के बीच कुछ समय बिताने के बाद 1990 से में बाहर हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी और 1997 में दोबारा घर रहने आ गयी जब माँ ने मेरा एड्मिशन कॉलेज में कराया। जब मेंने कॉलेज आना जाना शुरू किया तो उसी कॉलेज में मुझे रागिनी दीदी, विक्रम, दीपक और ममता भी मिले.... लेकिन अजीब बात थी कि रागिनी-विक्रम सगे भाई-बहन होकर भी कॉलेज में कभी एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे ना ही किसी को ये पता था कि रागिनी विक्रम की बहन है.... उससे भी अजीब बात ये थी कि वहाँ रागिनी को दीपक कि बहन कहा जाता था और वो दीपक के घर ही रहती थी....और दीपक ममता के बीच इश्क़ परवान चढ़ रहा था... मुझे बहुत कुछ अजीब लगा लेकिन जैसे इन सब ने मुझे जानते हुये भी नजरंदाज कर दिया ऐसे ही मेंने भी किसी से कोई मतलब नहीं रखा....
कुछ समय बाद दीपक-ममता ने अपनी पढ़ाई छोडकर शादी कर ली, और तब मेंने विजयराज अंकल को उनके यहाँ देखा... जो विमला आंटी के पति के रूप में उनके साथ किशनगंज में रह रहे थे
इधर घर में रहते हुये मुझे माँ के द्वारा चलाये जा रहे वेश्यावृत्ति के कारोबार की जानकारी हो गयी थी... लेकिन बचपन से उनकी परिस्थितियाँ देखती आयी थी में... इसलिए नजरंदाज कर दिया.... माँ ने भी मुझे साफ-साफ कह दिया था कि मुझे पढ़ा-लिखकर इस गंदगी से बाहर एक साफ सुथरी ज़िंदगी देने के लिए वो ये सबकुछ करती आयी हैं... लेकिन मुझे इन सबसे बहुत दूर रहना है...हालांकि में उनसे छुप कर थोड़ा बहुत इन सब मामलों पर नज़र रखती थी लेकिन मुझे भी इन सब कामों से नफरत सी थी... और एक दिन माँ को भी इन सब से बाहर निकालना चाहती थी....
ऐसे ही चलता रहा और एक दिन मेरे कॉलेज में सुबह बड़ा हँगामा मचा हुआ था.... एक लड़की थी नेहा... नेहा कक्कड़ .... नेहा के माँ –बाप सिक्युरिटी लेकर कॉलेज आए हुये थे... पता चला कि नेहा कई दिन से घर से गायब है... जब उसके माँ-बाप ने सिक्युरिटी में कम्प्लेंट की तो उन्होने उसके बारे में जांच करने घर पर उसके कमरे की तलाशी ली जिसमें ड्रग्स मिले... इस बारे में जब छानबीन की गयी तो पता चला कि वो ड्रग्स उसे कॉलेज में ही कोई देता था.... इसीलिए सिक्युरिटी कॉलेज में आकर उसके ड्रग्स लेने और लापता होने की छानबीन में लगी हुई थी। इस मामले की छानबीन और ड्रग के कारोबारियों को पकड़वाने में विक्रम का बहुत बड़ा हाथ रहा... लेकिन नेहा को ड्रूग देने वाले लड़के और नेहा...दोनों का ही कुछ पता नहीं चला।
फिर एक दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी, आम तौर पर सुबह में अपने कॉलेज चली जाती थी और शाम को अपने काम की वजह से माँ देर से ही आती थी.... हमारी आपसी मुलाक़ात सुबह नाश्ते और रात के खा.....ने पर ही होती थी... माँ के काम के सिलसिले में कोई भी मेरे मौजूद रहते घर नहीं आया कभी.... हमेशा माँ ही बाहर जाती थी...उस दिन माँ ने मुझे सुबह जगाया और बोला की उसे कोई जरूरी काम है इसलिए वो बाहर जा रही है... में तैयार होकर कॉलेज चली जाऊँ .... नाश्ता उन्होने बनाकर रख दिया है.... लेकिन माँ के जाते ही में दोबारा सो गयी और जब उठी तब तक कॉलेज जाने का समय निकाल चुका था तो मेंने फ्रेश होकर नाश्ता किया फिर अपने कमर में लेटकर पढ़ती रही.... लगभग 11 बजे मुझे नीचे हाल में आवाज सी सुनाई दी तो मेंने सोचा की माँ आ गयी हैं में भी उनके साथ ही बैठती हूँ कुछ देर। तभी मुझे लगा की माँ के साथ कोई और भी है... तो मुझे लगा कि मुन्नी आंटी, विजयराज अंकल और विमला आंटी होंगे क्योंकि इस घर में इन तीनों के अलावा माँ के संपर्क का कोई और नहीं आता था और शायद किसी को इस घर का पता भी नहीं होगा.... माँ ने मुझे बताया था कि इन तीन लोगों के अलावा ना तो किसी को इस घर का पता है और ना ही मेरे बारे में.... बाकी सबके लिए माँ ने एक अलग घर लिया हुआ था जहां से वो अपना काम देखती थी... और सबको यही पता था कि वही उनका घर है.... इस घर में कोई नौकर भी कभी नहीं रखा था उन्होने और ना ही कभी मेरे साथ कहीं आती जाती थी... यानि इस घर के आस-पड़ोस में भी कोई मेरी माँ को नहीं जानता था...बस सबको ये पता था कि में अपनी माँ के साथ रहती हूँ और मेरी माँ कहीं नौकरी करती हैं....नहीं ही किसी आस-पड़ोस वाले का हमारे घर आना जाना था
जब मेंने नीचे झाँका तो वहाँ माँ और मुन्नी आंटी के साथ एक लड़का और एक लड़की भी थे जिनको देखकर में चोंक गयी और पीछे को हटकर खड़ी हो गयी... क्योंकि वो दोनों भी मुझे जानते थे, मुझे आश्चर्य हुआ कि ये दोनों माँ के साथ कैसे और माँ इन्हें अपने इस घर में क्यों लेकर आयी....
शेष अगले भाग में.....