21-05-2020, 01:37 PM
रेखा, रेखा... क्या हुआ तुम्हे?
रेखा, क्या हुआ? ठीक तो हो! डरावना सपना देखा क्या???" उसकी चीख सुनकर उसे झंझोड़कर उठाते हुए दीनू बार बार यही दोहरा रहा था। उसकी ऐसी चीख सुनकर वो भी घबराहट में पसीने पसीने हो चुका था। कुछ चीख के कारण और कुछ दीनू के जगाने से रेखा फट से उठ बैठी तब उसे समझ आया की उसकी कामक्रीड़ा दरअसल सपने में चल रही थी।
पसीने से तरबतर, गहरी सांसो को सम्हालती वो इतना ही बोल पायी," क..क ..क्या हुआ था अभी? आप कब आये?"
"हा... हा... हा... अरे, तुमने कोई सपना देखा है शायद डरावना, इसीलिए डरकर चीख रही थी तुम, तो मैंने जगा दिया तुम्हे। कोई बात नहीं ये लो पानी पी लो। और डरो मत, मैं हूँ तुम्हारे पास। ठीक है।" इतना कहकर उसे पानी का ग्लास पकड़ाकर दीनू ने उसके सर पर हाथ फेरा और गालो को थपथपाकर उसका पसीना पोंछने लगा।
पानी पीकर वापस लेटकर रेखा की आँखों में नींद और दिमाग में चैन दोनों का आभाव हो गया था। सपने की एक एक हरकत और आनंद की एक एक लहर उसे अच्छी तरह अब तक महसूस हो रही थी। पर दीनू का इस तरह अपने प्रति विश्वास और प्रेम देखकर उसे खुद पर ग्लानि भी हो रही थी। अजीब द्वन्द उसके दिमाग में चल रहा था, जिसमे एक ओर आदर्श भारतीय नारी के रूप में साड़ी में लिपटी रेखा थी, तो दूसरी ओर एक वासना की साक्षात् मूर्ति बनी नग्न खड़ी रेखा थी।
"ओह्ह... तो वो सब सपना था। अच्छा ही हुआ, कि ये सपना था। कहीं मेरे मुख से कुछ उल्टा सीधा तो नहीं निकल गया, जो इन्होंने सुन लिया हो। नही नही, सपने में तो इंसान सिर्फ बड़बड़ाता है, साफ़ नही बोलता। पर... ये सब जो हो रहा है, क्या वो सही है। इतना प्यार करते हैं ये मुझे, कितना ख्याल है मेरा। ये सब मैं क्या कर रही हूँ। ओफ़्फ़... कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ।" इसी उधेड़बुन में सोचते-सोचते, न जाने कब उसकी आँख लग गयी।
उधर जाकिर ने आज नई चिड़िया का मांस चख लिया था, और उसका जायका अब भी उसके मुह में चिपका हुआ था। पर उसकी रातें हमेशा की तरह ही रंगीन करती माला, आज भी उसके बिस्तर की शोभा बढ़ा रही थी। जाकिर के घर के एक ओर रेखा का एक मंजिला घर था, जिसके बगल में जाकिर का तीन मंजिला घर था और फिर दूसरी और माला का एक मंजिला घर था, जो कि लगभग रेखा के घर जितना ही बड़ा था।
माला कहने को तो एक 32 साल की ब्याहता थी, जिसका पति गुलाबचन्द, दीनू की ही तरह शहर में नौकरी करता था, पर अच्छा कमाने के बावजूद भी, सेल्स की नौकरी होने के कारण हफ्ते में एक या दो दिन ही घर पर रहता था। उनका एक ही बेटा था, जो कि शहर में माला के माता-पिता के पास रहकर आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था। गाँव में खेत होने की वजह से माला को वहीं रहना पड़ता था। खेती का सारा काम वैसे तो मजदूर करते थे, पर कभी कभी हिसाब-किताब लेने के लिए माला भी खेत जाती थी। खेत के काम के सिलसिले में ही जाकिर की दोस्ती गुलाबचन्द से हुई थी, जिसके कुछ दिन बाद से ही जाकिर ने माला को फसाकर, उसकी जवानी को ठंडा करने का बंदोबस्त किया था, और अब जाकिर माला के जवानी खेत में भी पिछले 4 सालो से हल चला रहा था।
32 साल की उम्र होने के बावजूद भी माला का चेहरा एकदम मासूम कली जैसा था। गोरा रंग, कन्धों तक घने काले बाल, मोटी मोटी कजरारी आँखे, भरे भरे होठ और कचौरी की तरह फुले गाल, उसके चेहरे की खासियत थी। पर उसकी विशेषता तो थी उसका भरा बदन। उसके स्तन और उसके नितम्ब औसत से कुछ ज्यादा ही बड़े थे, जिससे की साड़ी में बंधा उसका शरीर भी ऐसा मादक लगता था, कि मानो बिना बोतल की शराब।
"उम्म्ह्ह्ह्ह...... कितना और निचोड़ोगे, अब तो बस करो जाकिर! आह्ह्ह.... प.. प... पहले ही इन्हें दबा-दबा कर ऊऊईईई.... तुमने इन्हें आम से पपीता बना दिया है। म्मम्मम्मम्म....!!!" पलंग पर पसरे हुए जाकिर के लण्ड पर चढ़कर उछलती माला बोली,"आअह्ह.... और ये तुम्हारा मूसल जब अंदर जाता है, साला ऐसा लगता है, चीर रहा है मुझे, आह्ह्ह्ह.....।"
"साली... 4 साल से इसे खा रही है, अब भी ऐसा बोलती है, जैसे अभी नथ उतरी है तेरी। अब तक तो तेरे तीनो छेद को मेरे पप्पू की आदत हो जानी चाहिए।" धक्के लगाते जाकिर बोला।
अब्बब्ब.... बस, मैं थक गयी! मुझसे नहीं उछला जाता। अह्ह्ह...." इतना कहकर, धीरे से अपने नितम्ब को ऊपर करके माला ने मूसल को अपने अंदर से सरकाया, तब समझ आया कि माला के गांड के अंदर जाकिर का लण्ड तूफान मचाये हुए था। अभी अभी गांड खाली हुई थी, पर जाकीर के लण्ड की चौड़ाई में अब भी फैली हुई थी।
माला जाकिर के ठीक बगल में पीठ के बल फसर गयी, और जाकिर का लण्ड अब भी सीधा खड़ा झटके खा रहा था। "साली, इतनी जल्दी थक गयी आज। अभी तो बस 2 बार ही मारी है तेरी। चल, तू लेटी रह, मैं ही बजा लेता हूँ तुझे। पर पहले, इसे थोडा गिला तो कर।" कहता हुआ जाकीर, माला के स्तनों के ठीक ऊपर घुटनो के बल खड़ा हो गया। उसने माला पर वजन नहीं डाला था, पर फिर भी माला के बड़े बड़े स्तन, जाकिर के काली मोटी गांड से रगड़ खा रहे थे।
"थोडा तो सुस्ताने दो... म्मम्मम्मम..... गग्ग्गुनगुंगु.....।"
माला वाक्य पूरा कर पाती, उसके पहले ही जाकिर का लिंग उसके मुह में आधा घुस चूका था, और गले की दीवारो पर ठोकर लगती पाकर माला ने अपने गर्दन को हिलाकर उसे आगे जाने का रास्ता दिया, और जाकिर का लिंग पूरी लम्बाई में माला के गले तक उतर गया, जिससे उसके ठोड़ी पर जाकिर की गोटियां टकराने लगी।
"उम्म्म्म.... गम्म्मम्म.... ह्म्म्म्म्म्म.... अम्मम्मम्म...." बस यही आवाजे माला के मुह से निकल रही थी। शुरू-शुरू के 5-7 झटकों में दिक्कत हुई, पर उसके बाद माला का मुह और गला अभ्यस्त होकर जाकिर के लिंग की पूरी लम्बाई को मालिश देने लगा।
वैसे भी मिलने के 3 महीने के भीतर ही माला को जाकिर ल्ंड चूसने का विशेषज्ञ बना चुका था, और लगभग 6 महीनो मे सारी काम्कृड़ाओ मे माला पारंगत हो चुकी थी! कुछ 5 मिनट की घनघोर चुसाई के बाद, जाकिर ने लिंग को बाहर खिंचा, तो लम्बी-लम्बी साँस लेती माला "जान ले लो मेरी, एक बार में ही, बार-बार मारने से अच्छा।" इतना ही बोल पायी थी, कि उसकी फिर से चीख निकल गयी, क्योंकि जाकिर ने चित्त लेटी माला के योनि को अपने मुह में भरके चूसना शुरू कर दिया।
जल्दी ही उसकी योनि को अच्छे से चिकना करके जाकिर पलंग से उतरा, और माला के जांघो को पकड़कर पलंग के किनारे तक लाकर, एक ही झटके में पूरा लिंग उसकी गहराई में उतार दिया, इस झटके से एक बार तो माला की जान निकल गयी और उसकी आँखे फट के बाहर आ गयीं।
फिर धीरे धीरे उसे आनंद की अनुभूति होने लगी जिससे माला की आँख एक पल को बन्द हुई और फिर आँखे बन्द किये हुए ही वो इस आनंद के घोड़े पर सवार बादलों की सैर करने लगी। "आह्ह्ह... कितना सुकून देता है ये कमीना, अंदर जाते ही। सारी प्यास, सारी कसर निकल जाती है एक बार में ही।" अपने पैर जाकीर के गांड के चारो ओर लपेटकर, दोनो हाथो को उसके गले में डालकर, उसने जाकिर के होठो को चूमा, चूसा।
और जोर से करने का इशारा करती माला बोली। "पर तुमको तो जबसे मेरे पिछवाड़े का चस्का लगा है, बेचारे मेरे इस पुराने छेद को तो भूल ही जाते हो। उईईईईई......। आज कोई नई चिड़िया फसी है लगता है, तभी उसकी याद में आज मेरी चूत पे मेहरबानी हुई है इतनी। ह्म्म्म्म्म्म..."
"तू भी, कुछ भी बोलती है। हफ़्फ़्फ़्.... हफ़्फ़्फ़्फ़्..।" धकके मारता जाकिर एक पल को ऐसी बाते सुनकर रूका, और फिर दनादन दुगुने ताकत से धकके मारने लगा। नयी चिड़िया की बात सुनकर, उसे रेखा के साथ हुई दिन की जोरदार चुदाई याद आ गयी। "वो तो तेरी गांड, है ही इतनी मस्त की मेरे सामने आती है तो मेरा तो मन करता है कि अपने पहलवान को सारी जिंदगी वहीं कुश्ती करने दूँ।" कहता हुआ जाकिर उसके मोटे-मोटे स्तनों पर टूट पड़ा और बेदर्दी से निप्पलो को मसलने लगा और स्तनों का मर्दन करने लगा।
"वो तो तुम्हारे जोश को देखकर ही पता चल रहा है। हम्मम... हम्म्फ... हम्ममम....." जाकीर जैसे सांड के धक्के को झेलती माला से, जाकिर के चेहरे की मुस्कान छिप ना सकी। "कौन नयी मुर्गी हलाल हुई है आज। इस कमीने मुस्टंडे को झेलने कौन तैयार हो गयी। आअह्हह...... कहीं वो छम्मक छल्लो रेखा तो नहीं सो गयी तूम्हारे निचे।
उईईईई......." इतना सुनते ही जाकिर के चेहरे की मुस्कान और चौड़ी हो गयी, जिसे देख माला को समझते देर नहीं लगी। जाकीर के धक्के और तेज और तेज होते गए, और कमरे का माहौल गर्म से गर्म होता गया।
न जाने कितने बार जाकिर का भुजंग, माला के सारे बिलों की सवारी करके अब आराम करने चला था| दोनों के शरीर थककर चूर थे, पर अब भी गुत्थम-गुत्था होकर लिपटे पड़े थे, और दोनों के दिल और दिमाग मे एक ही नाम गूंज रहा था "रेखा........"
रेखा, क्या हुआ? ठीक तो हो! डरावना सपना देखा क्या???" उसकी चीख सुनकर उसे झंझोड़कर उठाते हुए दीनू बार बार यही दोहरा रहा था। उसकी ऐसी चीख सुनकर वो भी घबराहट में पसीने पसीने हो चुका था। कुछ चीख के कारण और कुछ दीनू के जगाने से रेखा फट से उठ बैठी तब उसे समझ आया की उसकी कामक्रीड़ा दरअसल सपने में चल रही थी।
पसीने से तरबतर, गहरी सांसो को सम्हालती वो इतना ही बोल पायी," क..क ..क्या हुआ था अभी? आप कब आये?"
"हा... हा... हा... अरे, तुमने कोई सपना देखा है शायद डरावना, इसीलिए डरकर चीख रही थी तुम, तो मैंने जगा दिया तुम्हे। कोई बात नहीं ये लो पानी पी लो। और डरो मत, मैं हूँ तुम्हारे पास। ठीक है।" इतना कहकर उसे पानी का ग्लास पकड़ाकर दीनू ने उसके सर पर हाथ फेरा और गालो को थपथपाकर उसका पसीना पोंछने लगा।
पानी पीकर वापस लेटकर रेखा की आँखों में नींद और दिमाग में चैन दोनों का आभाव हो गया था। सपने की एक एक हरकत और आनंद की एक एक लहर उसे अच्छी तरह अब तक महसूस हो रही थी। पर दीनू का इस तरह अपने प्रति विश्वास और प्रेम देखकर उसे खुद पर ग्लानि भी हो रही थी। अजीब द्वन्द उसके दिमाग में चल रहा था, जिसमे एक ओर आदर्श भारतीय नारी के रूप में साड़ी में लिपटी रेखा थी, तो दूसरी ओर एक वासना की साक्षात् मूर्ति बनी नग्न खड़ी रेखा थी।
"ओह्ह... तो वो सब सपना था। अच्छा ही हुआ, कि ये सपना था। कहीं मेरे मुख से कुछ उल्टा सीधा तो नहीं निकल गया, जो इन्होंने सुन लिया हो। नही नही, सपने में तो इंसान सिर्फ बड़बड़ाता है, साफ़ नही बोलता। पर... ये सब जो हो रहा है, क्या वो सही है। इतना प्यार करते हैं ये मुझे, कितना ख्याल है मेरा। ये सब मैं क्या कर रही हूँ। ओफ़्फ़... कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ।" इसी उधेड़बुन में सोचते-सोचते, न जाने कब उसकी आँख लग गयी।
उधर जाकिर ने आज नई चिड़िया का मांस चख लिया था, और उसका जायका अब भी उसके मुह में चिपका हुआ था। पर उसकी रातें हमेशा की तरह ही रंगीन करती माला, आज भी उसके बिस्तर की शोभा बढ़ा रही थी। जाकिर के घर के एक ओर रेखा का एक मंजिला घर था, जिसके बगल में जाकिर का तीन मंजिला घर था और फिर दूसरी और माला का एक मंजिला घर था, जो कि लगभग रेखा के घर जितना ही बड़ा था।
माला कहने को तो एक 32 साल की ब्याहता थी, जिसका पति गुलाबचन्द, दीनू की ही तरह शहर में नौकरी करता था, पर अच्छा कमाने के बावजूद भी, सेल्स की नौकरी होने के कारण हफ्ते में एक या दो दिन ही घर पर रहता था। उनका एक ही बेटा था, जो कि शहर में माला के माता-पिता के पास रहकर आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था। गाँव में खेत होने की वजह से माला को वहीं रहना पड़ता था। खेती का सारा काम वैसे तो मजदूर करते थे, पर कभी कभी हिसाब-किताब लेने के लिए माला भी खेत जाती थी। खेत के काम के सिलसिले में ही जाकिर की दोस्ती गुलाबचन्द से हुई थी, जिसके कुछ दिन बाद से ही जाकिर ने माला को फसाकर, उसकी जवानी को ठंडा करने का बंदोबस्त किया था, और अब जाकिर माला के जवानी खेत में भी पिछले 4 सालो से हल चला रहा था।
32 साल की उम्र होने के बावजूद भी माला का चेहरा एकदम मासूम कली जैसा था। गोरा रंग, कन्धों तक घने काले बाल, मोटी मोटी कजरारी आँखे, भरे भरे होठ और कचौरी की तरह फुले गाल, उसके चेहरे की खासियत थी। पर उसकी विशेषता तो थी उसका भरा बदन। उसके स्तन और उसके नितम्ब औसत से कुछ ज्यादा ही बड़े थे, जिससे की साड़ी में बंधा उसका शरीर भी ऐसा मादक लगता था, कि मानो बिना बोतल की शराब।
"उम्म्ह्ह्ह्ह...... कितना और निचोड़ोगे, अब तो बस करो जाकिर! आह्ह्ह.... प.. प... पहले ही इन्हें दबा-दबा कर ऊऊईईई.... तुमने इन्हें आम से पपीता बना दिया है। म्मम्मम्मम्म....!!!" पलंग पर पसरे हुए जाकिर के लण्ड पर चढ़कर उछलती माला बोली,"आअह्ह.... और ये तुम्हारा मूसल जब अंदर जाता है, साला ऐसा लगता है, चीर रहा है मुझे, आह्ह्ह्ह.....।"
"साली... 4 साल से इसे खा रही है, अब भी ऐसा बोलती है, जैसे अभी नथ उतरी है तेरी। अब तक तो तेरे तीनो छेद को मेरे पप्पू की आदत हो जानी चाहिए।" धक्के लगाते जाकिर बोला।
अब्बब्ब.... बस, मैं थक गयी! मुझसे नहीं उछला जाता। अह्ह्ह...." इतना कहकर, धीरे से अपने नितम्ब को ऊपर करके माला ने मूसल को अपने अंदर से सरकाया, तब समझ आया कि माला के गांड के अंदर जाकिर का लण्ड तूफान मचाये हुए था। अभी अभी गांड खाली हुई थी, पर जाकीर के लण्ड की चौड़ाई में अब भी फैली हुई थी।
माला जाकिर के ठीक बगल में पीठ के बल फसर गयी, और जाकिर का लण्ड अब भी सीधा खड़ा झटके खा रहा था। "साली, इतनी जल्दी थक गयी आज। अभी तो बस 2 बार ही मारी है तेरी। चल, तू लेटी रह, मैं ही बजा लेता हूँ तुझे। पर पहले, इसे थोडा गिला तो कर।" कहता हुआ जाकीर, माला के स्तनों के ठीक ऊपर घुटनो के बल खड़ा हो गया। उसने माला पर वजन नहीं डाला था, पर फिर भी माला के बड़े बड़े स्तन, जाकिर के काली मोटी गांड से रगड़ खा रहे थे।
"थोडा तो सुस्ताने दो... म्मम्मम्मम..... गग्ग्गुनगुंगु.....।"
माला वाक्य पूरा कर पाती, उसके पहले ही जाकिर का लिंग उसके मुह में आधा घुस चूका था, और गले की दीवारो पर ठोकर लगती पाकर माला ने अपने गर्दन को हिलाकर उसे आगे जाने का रास्ता दिया, और जाकिर का लिंग पूरी लम्बाई में माला के गले तक उतर गया, जिससे उसके ठोड़ी पर जाकिर की गोटियां टकराने लगी।
"उम्म्म्म.... गम्म्मम्म.... ह्म्म्म्म्म्म.... अम्मम्मम्म...." बस यही आवाजे माला के मुह से निकल रही थी। शुरू-शुरू के 5-7 झटकों में दिक्कत हुई, पर उसके बाद माला का मुह और गला अभ्यस्त होकर जाकिर के लिंग की पूरी लम्बाई को मालिश देने लगा।
वैसे भी मिलने के 3 महीने के भीतर ही माला को जाकिर ल्ंड चूसने का विशेषज्ञ बना चुका था, और लगभग 6 महीनो मे सारी काम्कृड़ाओ मे माला पारंगत हो चुकी थी! कुछ 5 मिनट की घनघोर चुसाई के बाद, जाकिर ने लिंग को बाहर खिंचा, तो लम्बी-लम्बी साँस लेती माला "जान ले लो मेरी, एक बार में ही, बार-बार मारने से अच्छा।" इतना ही बोल पायी थी, कि उसकी फिर से चीख निकल गयी, क्योंकि जाकिर ने चित्त लेटी माला के योनि को अपने मुह में भरके चूसना शुरू कर दिया।
जल्दी ही उसकी योनि को अच्छे से चिकना करके जाकिर पलंग से उतरा, और माला के जांघो को पकड़कर पलंग के किनारे तक लाकर, एक ही झटके में पूरा लिंग उसकी गहराई में उतार दिया, इस झटके से एक बार तो माला की जान निकल गयी और उसकी आँखे फट के बाहर आ गयीं।
फिर धीरे धीरे उसे आनंद की अनुभूति होने लगी जिससे माला की आँख एक पल को बन्द हुई और फिर आँखे बन्द किये हुए ही वो इस आनंद के घोड़े पर सवार बादलों की सैर करने लगी। "आह्ह्ह... कितना सुकून देता है ये कमीना, अंदर जाते ही। सारी प्यास, सारी कसर निकल जाती है एक बार में ही।" अपने पैर जाकीर के गांड के चारो ओर लपेटकर, दोनो हाथो को उसके गले में डालकर, उसने जाकिर के होठो को चूमा, चूसा।
और जोर से करने का इशारा करती माला बोली। "पर तुमको तो जबसे मेरे पिछवाड़े का चस्का लगा है, बेचारे मेरे इस पुराने छेद को तो भूल ही जाते हो। उईईईईई......। आज कोई नई चिड़िया फसी है लगता है, तभी उसकी याद में आज मेरी चूत पे मेहरबानी हुई है इतनी। ह्म्म्म्म्म्म..."
"तू भी, कुछ भी बोलती है। हफ़्फ़्फ़्.... हफ़्फ़्फ़्फ़्..।" धकके मारता जाकिर एक पल को ऐसी बाते सुनकर रूका, और फिर दनादन दुगुने ताकत से धकके मारने लगा। नयी चिड़िया की बात सुनकर, उसे रेखा के साथ हुई दिन की जोरदार चुदाई याद आ गयी। "वो तो तेरी गांड, है ही इतनी मस्त की मेरे सामने आती है तो मेरा तो मन करता है कि अपने पहलवान को सारी जिंदगी वहीं कुश्ती करने दूँ।" कहता हुआ जाकिर उसके मोटे-मोटे स्तनों पर टूट पड़ा और बेदर्दी से निप्पलो को मसलने लगा और स्तनों का मर्दन करने लगा।
"वो तो तुम्हारे जोश को देखकर ही पता चल रहा है। हम्मम... हम्म्फ... हम्ममम....." जाकीर जैसे सांड के धक्के को झेलती माला से, जाकिर के चेहरे की मुस्कान छिप ना सकी। "कौन नयी मुर्गी हलाल हुई है आज। इस कमीने मुस्टंडे को झेलने कौन तैयार हो गयी। आअह्हह...... कहीं वो छम्मक छल्लो रेखा तो नहीं सो गयी तूम्हारे निचे।
उईईईई......." इतना सुनते ही जाकिर के चेहरे की मुस्कान और चौड़ी हो गयी, जिसे देख माला को समझते देर नहीं लगी। जाकीर के धक्के और तेज और तेज होते गए, और कमरे का माहौल गर्म से गर्म होता गया।
न जाने कितने बार जाकिर का भुजंग, माला के सारे बिलों की सवारी करके अब आराम करने चला था| दोनों के शरीर थककर चूर थे, पर अब भी गुत्थम-गुत्था होकर लिपटे पड़े थे, और दोनों के दिल और दिमाग मे एक ही नाम गूंज रहा था "रेखा........"