21-05-2020, 01:15 PM
रेखा- कुछ बढती अन्दर की गर्मी के कारण लहराती आवाज में "लो देख लो जी भर के ऐसा कोई अजूबा नहीं है।
सबके पास होता है सिर्फ मेरे पास ही नहीं है। अब तो हो गयी मन की मुराद या और कुछ भी बचा है।"
जाकिर- स्वप्नलोक या कहें स्तनलोक से बाहर आते हुए "क क क्या? तू नहीं जानती की ये क्या है मेरी नजर से देख मेरी रसभरी। तू मेरी बीवी होती न तो मै तो तुझे खा ही जाता। और ख्वाहिशों का क्या है वो तो जो हो जाये वो ही कम है।"
कहते हुए रेखा की नजरों में देखता जाकिर एक बार नीचे उसकी पेंटी तक नजरे घुमाकर वापस उसकी स्तनों को नजरो से चूमता हुआ रेखा को एकटक देखने लगता है। अब सुरूर रेखा पर भी चढने लगा था और जाकिर का इशारा समझकर एक झटके में ही वो अपने दोनों हाथों की उँगलियों को पेंटी में फसाती है।
जाकिर की नजरों से नजरे बिना हटाये धीरे धीरे वो अपने हाथों को नीचे करती जाती है जिसके साथ साथ उसकी पैंटी घुटनों तक की यात्रा कर लेती है। एक पैर को थोडा झटका देकर वो पेंटी को अपने नए नए आशिक के लिए नतमस्तक कर देती है। अब किसी संगमरमर की मूरत की तरह चिकना मलाई की तरह जिस्म हलके उजाले मे भी जैसे उजाला कर रहा था।
रेखा की पेंटी उसके एक पैर में फसी हुई उसके पैरो से चिपकी पड़ी थी जिसे रेखा ने पैरो से ही जाकिर की तरफ उछाला। पेंटी सीधे जाकर जाकिर के चेहरे से टकरायी जिससे उसकी आंखे एक बार झपकी और जब वापस खुली तो उसे ख्याल आया की वो तो ऊपर की दुल्हनो की मुहदिखायी में ही मगन रहा जबकि नीचे रानी भी जलवाअफरोज हो चुकी है। इस सोच के साथ ही जाकिर का लंड इतना अकड़ने लगा कि अब चड्डी की इलास्टिक के छोर तक जा पहुंचा। जैसे जैसे उसकी नजर रेखा के योनि की तरफ बढ़ने लगी उसके दिल की धड्कन और लन्ड का स्पंदन तेज, और तेज, और तेज, और तेज हो रहा था। तभी अचानक पेट के सपाट मैदानों के अंतिम छोर पर वो स्वर्ण भूमि नजर आई जिसके पीछे सारी दुनिया मरती है। दोनों पैरों के जोड़ो के ठीक बीचोबीच लगभग दो-ढाई इंच की दरार जैसी दिखी जो कि त्वचा से इस तरह दबी हुई थी कि दबाव के कारण वहाँ ठीक वैसा ही उभार बन गया था जैसा बर्गर की बन हो।
ईस दृश्य के देखते ही जाकिर के लिंग ने ऐसा झटका मारा की थोडा सा प्रिकम उसमे से निकलकर चड्डी में एक सिक्के के आकार का दाग बना गया। जाकिर की उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्च स्स्स्स्सीसिसिसिसिसी की गहरी आवाज रेखा के बदन को भी सिहरन दे गयी।
रेखा- कांपते हुए लडखडाती आवाज में "लो हो गयी पूरी नंगी। सिर्फ आपके लिए। अब आप पर भरोसा किया है जाजी। देख लो।"
जाकिर- कभी योनि कभी स्तन कभी रेखा की नजरों में देखते हुए "अरे मेरी जलेबी। फिकर न कर आज से तू जाकिर की जान है। मै हूँ न सब संभाल लूँगा बस अब मुझे खोल दे तू।"
रेखा- शरारत से आंखे नचाते हुए "अच्छा जी, तो आपको छुटना है। छुटकर क्या करेंगे आप।"
जाकिर- "मेरी जान तुझे बाँहों में भरने का दिल कर रहा है।"
रेखा-"ओहोहोहो.... मुझे भी पता है आपका दिल क्या कर रहा है। आपके दिल की बात ये साफ़ साफ़ बता रहा है।"जाकिर की अंडरवियर की ओर इशारा करती है।
जाकिर- थोडा कसमसाकर अपने कसते लिंग को एडजस्ट करने की नाकाम कोशिश करते हुए "अब तेरे जैसी बिजली सामने खड़ी हो तो इसमें तो करेंट दौड़ेगा ही ना।"
रेखा- नजरें नचाते हुए"अच्छा जी। तो इस खम्बे में भी करेंट आता है।"
जाकिर-कमर उचकाकर और उभारकर"अरे एक बार तेरा और मेरा करेंट मिल जाये तो सारी दुनिया रोशन हो जायेगी मेरी जान। उफ्फ्फ अब क्यों बांध रखा है अब खोल तो दे मुझे।"
रेखा-शरारती मुस्कान के साथ उसके उभरे अंग को देखकर"अच्छा क्या करोगे खुलकर ऐसे ही रहो ना। इतनी जल्दी मेरी कैद से छुटना चाहते हो।"
जाकिर-कसमसाकर"जानेमन इस रस्सी के बंधन से छुटने बोल रहा हूँ तेरे इस हुस्न के जाल से तो अब कहीं नहीं जा पाउँगा। खोल दे ना तुझे बाँहों में भरने की बड़ी इच्छा हो रही है।"
रेखा-कुछ पल के लिए कुछ सोचकर"ओफ्फो बस इतनी सी बात। मैंने कहा ना की आप जो बोलोगे वो ही होगा आज।"
इतना कहकर जाकिर के कुछ समझने के पहले ही झट से रेखा निचे उतरकर उसके पास आ कड़ी हुई। एक पल के लिए उसने ऊपर से निचे तक जाकिर को देखा और उसकी कमर के दोनों ओर अपनी दोनों टांगे फैलाकर इस तरह उसकी जांघो पर बैठी जैसे घोड़े की सवारी की जाती है।
कुर्सी के हत्थे के नीचे काफी गैप था जैसे खास इसी काम के लिए डिजाईन की गयी हो कुर्सी। एक पल के लिए जाकिर की नजरो में सीधे देखा और उसके गले में अपनी बाँहों का हार डाल कर उसे कस के भींच लिया अपने बदन से।
सबके पास होता है सिर्फ मेरे पास ही नहीं है। अब तो हो गयी मन की मुराद या और कुछ भी बचा है।"
जाकिर- स्वप्नलोक या कहें स्तनलोक से बाहर आते हुए "क क क्या? तू नहीं जानती की ये क्या है मेरी नजर से देख मेरी रसभरी। तू मेरी बीवी होती न तो मै तो तुझे खा ही जाता। और ख्वाहिशों का क्या है वो तो जो हो जाये वो ही कम है।"
कहते हुए रेखा की नजरों में देखता जाकिर एक बार नीचे उसकी पेंटी तक नजरे घुमाकर वापस उसकी स्तनों को नजरो से चूमता हुआ रेखा को एकटक देखने लगता है। अब सुरूर रेखा पर भी चढने लगा था और जाकिर का इशारा समझकर एक झटके में ही वो अपने दोनों हाथों की उँगलियों को पेंटी में फसाती है।
जाकिर की नजरों से नजरे बिना हटाये धीरे धीरे वो अपने हाथों को नीचे करती जाती है जिसके साथ साथ उसकी पैंटी घुटनों तक की यात्रा कर लेती है। एक पैर को थोडा झटका देकर वो पेंटी को अपने नए नए आशिक के लिए नतमस्तक कर देती है। अब किसी संगमरमर की मूरत की तरह चिकना मलाई की तरह जिस्म हलके उजाले मे भी जैसे उजाला कर रहा था।
रेखा की पेंटी उसके एक पैर में फसी हुई उसके पैरो से चिपकी पड़ी थी जिसे रेखा ने पैरो से ही जाकिर की तरफ उछाला। पेंटी सीधे जाकर जाकिर के चेहरे से टकरायी जिससे उसकी आंखे एक बार झपकी और जब वापस खुली तो उसे ख्याल आया की वो तो ऊपर की दुल्हनो की मुहदिखायी में ही मगन रहा जबकि नीचे रानी भी जलवाअफरोज हो चुकी है। इस सोच के साथ ही जाकिर का लंड इतना अकड़ने लगा कि अब चड्डी की इलास्टिक के छोर तक जा पहुंचा। जैसे जैसे उसकी नजर रेखा के योनि की तरफ बढ़ने लगी उसके दिल की धड्कन और लन्ड का स्पंदन तेज, और तेज, और तेज, और तेज हो रहा था। तभी अचानक पेट के सपाट मैदानों के अंतिम छोर पर वो स्वर्ण भूमि नजर आई जिसके पीछे सारी दुनिया मरती है। दोनों पैरों के जोड़ो के ठीक बीचोबीच लगभग दो-ढाई इंच की दरार जैसी दिखी जो कि त्वचा से इस तरह दबी हुई थी कि दबाव के कारण वहाँ ठीक वैसा ही उभार बन गया था जैसा बर्गर की बन हो।
ईस दृश्य के देखते ही जाकिर के लिंग ने ऐसा झटका मारा की थोडा सा प्रिकम उसमे से निकलकर चड्डी में एक सिक्के के आकार का दाग बना गया। जाकिर की उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्च स्स्स्स्सीसिसिसिसिसी की गहरी आवाज रेखा के बदन को भी सिहरन दे गयी।
रेखा- कांपते हुए लडखडाती आवाज में "लो हो गयी पूरी नंगी। सिर्फ आपके लिए। अब आप पर भरोसा किया है जाजी। देख लो।"
जाकिर- कभी योनि कभी स्तन कभी रेखा की नजरों में देखते हुए "अरे मेरी जलेबी। फिकर न कर आज से तू जाकिर की जान है। मै हूँ न सब संभाल लूँगा बस अब मुझे खोल दे तू।"
रेखा- शरारत से आंखे नचाते हुए "अच्छा जी, तो आपको छुटना है। छुटकर क्या करेंगे आप।"
जाकिर- "मेरी जान तुझे बाँहों में भरने का दिल कर रहा है।"
रेखा-"ओहोहोहो.... मुझे भी पता है आपका दिल क्या कर रहा है। आपके दिल की बात ये साफ़ साफ़ बता रहा है।"जाकिर की अंडरवियर की ओर इशारा करती है।
जाकिर- थोडा कसमसाकर अपने कसते लिंग को एडजस्ट करने की नाकाम कोशिश करते हुए "अब तेरे जैसी बिजली सामने खड़ी हो तो इसमें तो करेंट दौड़ेगा ही ना।"
रेखा- नजरें नचाते हुए"अच्छा जी। तो इस खम्बे में भी करेंट आता है।"
जाकिर-कमर उचकाकर और उभारकर"अरे एक बार तेरा और मेरा करेंट मिल जाये तो सारी दुनिया रोशन हो जायेगी मेरी जान। उफ्फ्फ अब क्यों बांध रखा है अब खोल तो दे मुझे।"
रेखा-शरारती मुस्कान के साथ उसके उभरे अंग को देखकर"अच्छा क्या करोगे खुलकर ऐसे ही रहो ना। इतनी जल्दी मेरी कैद से छुटना चाहते हो।"
जाकिर-कसमसाकर"जानेमन इस रस्सी के बंधन से छुटने बोल रहा हूँ तेरे इस हुस्न के जाल से तो अब कहीं नहीं जा पाउँगा। खोल दे ना तुझे बाँहों में भरने की बड़ी इच्छा हो रही है।"
रेखा-कुछ पल के लिए कुछ सोचकर"ओफ्फो बस इतनी सी बात। मैंने कहा ना की आप जो बोलोगे वो ही होगा आज।"
इतना कहकर जाकिर के कुछ समझने के पहले ही झट से रेखा निचे उतरकर उसके पास आ कड़ी हुई। एक पल के लिए उसने ऊपर से निचे तक जाकिर को देखा और उसकी कमर के दोनों ओर अपनी दोनों टांगे फैलाकर इस तरह उसकी जांघो पर बैठी जैसे घोड़े की सवारी की जाती है।
कुर्सी के हत्थे के नीचे काफी गैप था जैसे खास इसी काम के लिए डिजाईन की गयी हो कुर्सी। एक पल के लिए जाकिर की नजरो में सीधे देखा और उसके गले में अपनी बाँहों का हार डाल कर उसे कस के भींच लिया अपने बदन से।