21-05-2020, 12:35 PM
अमृतकलशों से जी भर कर आंखे तर करने के बाद उसकी नजरें सपाट चिकने पेट पर फिसलती हुई निचे आने लगी तभी बीच में एक छोटे से छिद्र में अटक सी गयी। सपाट चिकने तने हुए पेट के बीचोबीच इस छोटे से नाभि के कुँए से मानो कई कामचक्षुओं की सौन्दर्य पिपासा शांत करने का सामर्थ्य है।
अपनी नजरों की प्यास बुझते ही नजरों की यात्रा और निचे बढ़ी। नाभि से नीचे कमर आते आते अचानक चौडाई बढ़ सी गयी जो कि भारी नितम्बों का साफ संकेत था। नीचे फिर से एक साधारण सी सफेद पेंटी ने रेखा के सौदर्य केंद्र को ढक रखा था। पर जाकिर वहीँ नजरे गडाए मानो एक्सरे की तरह अन्दर का नजारा भी ले लेना चाहता था।
रेखा ने जब देखा की जाकिर की नजरें केंद्र से हट ही नहीं रही तो वो झिझकते हुए अपनी तितली को छिपाने के लिए पीछे मुड़ गयी पर इससे तो जाकिर के लिए और भी जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो गयी। पीछे मुड़ते ही पेंटी में कैद विशाल नितंबो सहित पृष्ठ भाग सामने आ गया। ऐसा लग रहा था जैसे मध्यम आकार के दो तरबूजों पर पेंटी चढ़ा दी गयी हो। एक बार नितम्बों से लेकर चिकने रेशरहित जांघो से होते हुए उसकी नजर रेखा की एड़ियों तक जाकर वापस नितम्बों पर अटक गयी। अब तो जाकिर का लिंग इतना फुफकारने लगा था मानो उसके शरीर से छूट कर अभी के अभी रेखा की पेंटी में घुस कर अपनी प्रेयसी से मिल जाये। अपनी कसती हुई अंडरवियर से उसे हल्का दर्द सा होने लगा। कुछ इस दर्द से और कुछ इस यौवन के हमले से जाकिर के मुह से एक अह्ह्ह निकल गयी। जिसे सुनते ही रेखा वापस पलती और बोल पड़ी "क्या हुआ? आप ठीक तो हैं न?"
जाकिर की नजरे रेखा से मिली तो उसकी नजरों के नशे ने उसपर और भी नशा चढ़ा दिया। वो और भी गहरी गहरी सांसे लेने लगा और उत्तेजना से उसका पूरा शरीर पसीने से तर बतर हो चूका था। पसीने से उसका कुरता पूरी तरह भीग कर उसके शरीर से चिपका था जिससे अन्दर से काली छाती कुर्ते से ही दिखने लगी थी।
"बाबा रे.....आपको तो कितना पसीना आ रहा है। आप ठीक तो है ना?" उसकी ऐसी हालत देखकर रेखा थोड़ी घबराकर झट से पलंग से निचे उतर आयी बिना इसका ध्यान किये की वो इस वक़्त सिर्फ इतने ही कपड़ों में है जिससे उसका बदन सिर्फ 25% ही ढका हुआ है। और देखा जाये तो किसी शरीर की सुन्दरता पूरी तरह से अनावृत्त होने से या पूरी बेशर्मी से प्रदर्शन से अधिक, कुछ कुछ ढकने छुपाने या कुछ शर्म लिहाज में ज्यादा घातक हो जाती है।
रेखा को पलंग से उतरकर नीचे जाकिर के पास पहुचने में पलक झपकने तक का समय ही लगा पर इतने वक़्त में ही उसके दिमाग में तरह तरह की बाते आ चुकी थी। "कहीं मैंने इस भले इन्सान के साथ कुछ ज्यादती तो नही कर दी। आखिर 50-55 की इस उम्र में इस तरह बांधने का ख्याल मेरे दिमाग में आया ही क्यूँ। कहीं इनका दम तो नहीं घुट रहा। बेचारा।" मन में इन्ही तरह के बातों से घिरी रेखा उसके पास कड़ी हुई और कुछ देर पहले आँखों से खोली पट्टी से उसके माथे का पसीना पोछने लगी जो की उसके लगभग आधे से ज्यादा बालों से साफ सर पर भी चमक रहा था।
"उफ्फ्फ.... आपका तो पूरा कुरता ही भीग गया है। इसे उतार देती हूँ।" इतना बोलते ही रेखा को अपनी हालत का ध्यान आया और उसने सोचा की इस हालत में इसे खोल दिया तो ये मुझे कच्चा चबा जायेगा। तभी कुछ सोचकर वो पीछे टेबल की दराज खोलने लगी। इधर जाकिर तो मानो बादलो की दुनिया में ही सवार था। नशे की हालत से बाहर आने लगता ही था की ऐसा कुछ हो जाता था की उसे दोगुना नशे का डोज मिल जाता था। वो तो बस घटनाओं को घटते हुए देखना चाहता था। जो भी हो रहा था उसके लिए तो कल्पना से परे और उसकी उम्मीद से अलग और बड़ा अच्छा अच्छा ही लग रहा था उसे। इधर रेखा जाकिर के पास वापस पहुची और उसने जाकिर का कुरता निचे से पकड़ा और दराज से निकालकर लायी कैची का उपयोग करने लगी। कच्च कच्च कच्चा कच्च चर्र्र चर्र्र्र्र्र्र्फ़ की आवाजे लगभग 15 सेकण्ड तक कमरे में गूंजती रही और उसके बाद बिना हाथ पैर या मुह खोले जाकिर मिया ऊपर से पूर्ण निर्वस्त्र हो चुके थे। उजले कुर्ते के भीतर से उनका काजल के पहाड़ की तरह का शरीर बाहर आ चूका था जो की आकार में बिलकुल लाफिंग बुद्धा के जैसा थुलथुला ही था।
अब तक रेखा समझ चुकी थी की जाकिर की इस हालत का कारण उत्तेजना है। आखिर 50 के ऊपर के इन्सान के सामने एक 30 साल के एटम बम को रखा जाये तो जो अंजाम होता हो वही जाकिर के साथ हुआ था। समझ में आने के बाद भी रेखा इस अनजान होने के खेल को जारी रखना चाहती थी। "ओफ्फो देखिये तो आपका पूरा बदन पसीने पसीने हो चूका है। च्च.. च्च.. च्च...! मै पोछती हूँ अभी, आप फिकर मत कीजिये, मै हूँ न।"
जाकिर उत्तेजित तो था ही ऊपर से रेखा की ऐसी नशीली आवाज सुनकर उसे और सुरूर चढ़ने लगा आखिर ऐसी स्वप्न सुन्दरी किसी की सेवा अपने हाथ से करना चाहे तो या तो कोई बेवकूफ ही मना करेगा या कोई नामर्द। जाकिर और बेचारा बनने के लिए कुर्सी पर और भी फसर गया जिससे उसकी जांघे कुर्सी से काफी बाहर निकल गयी थी।
रेखा जाकिर के अलग अलग दिशाओं की ओर फैली दोनों जांघो के बीच खड़ी हुई और झुककर उसका बदन पोंछने लगी। अचानक रेखा जाकिर के कन्धों पर हाथ रखकर एक गहरी साँस लेते हुए उसकी बायीं जांघ पर बैठ गयी। उसके नितम्बों का जैसे ही संपर्क जैसे ही जाकिर की जांघों से हुआ तो एक साथ दोनों की आंखे 2 सेकण्ड के लिए बंद हो गयी और ऐसी सनसनी दोनों के बदन में हुई जैसे बर्फ का पानी अचानक डालने पर होती है। आंखे खुलते ही दोनों की निगाहें टकराई तो एक कातिलाना मुस्कराहट रेखा के चेहरे पर आ गयी। इतना आकर्षक और मनोहारी दृश्य वहाँ उपस्थित हो चूका था की सिर्फ पोर्न फिल्मो में ही देखने को मिलता होगा। एक अधेढ़ थुलथुले बदन के काजल जैसे काले आदमी की जांघों पर एक दूध जैसे उजले कमनीय बदन वाली कामिनी सिर्फ अपने अंतर्वस्त्रों में चिपककर बैठी हुई थी जिसे देखकर तो किसी का भी स्खलन हो जाये।
अगले 1 मिनट में जाकिर का बदन अच्छे से पोछ लेने के बाद वो उठने से पहले एक बार अपने कूल्हों को एक बार अच्छे से उसकी जांघों पर रगड़ कर उठी। एक बार उसने ऊपर से नीचे जाकिर को देखा और चहकी "ओफ्फो मै भी बुद्धू हूँ। ऊपर इतना पसीना आया है तो आखिर नीचे भी तो आया ही होगा।" और इतना बोलते ही एक बार फिर कैची रेखा के हाथ में थी।
फिर एक बार वही कैची का स्वर गूंजता रहा और इस बार जाकिर मिया नीचे से भी वस्त्र रहित हो गये थे। बड़ी ही सफाई से रेखा ने सिर्फ जाकिर के पैजामे को काटकर अलग किया था उसकी अंडरवियर को नहीं। अब जाकिर की इज्जत बचाने के लिए बस यही कपडे का टुकड़ा बचा था। अजीब बात थी की जाकिर इस कमरे में आया रेखा के कपडे उतारने था पर उसके खुद का वस्त्र हरण हो चुका था। उसका लिंग तो अब तक पूरी तरह से बगावत पर उतर आया था और उसकी जंग अंडरवियर से चल रही थी। जिसका सबूत अंडरवियर में बने तम्बू से मिल रहा था जो कि कोल्ड ड्रिंक की बोतल जितना बड़ा हो चूका था। कैची रखकर रेखा ने जाकिर की आँखों में देखा और फिर से शरारत से मुस्कुरायी और उसके दोनों जांघों के बीच जमीन पर पैर मोड़कर बैठ गयी।
अपनी नजरों की प्यास बुझते ही नजरों की यात्रा और निचे बढ़ी। नाभि से नीचे कमर आते आते अचानक चौडाई बढ़ सी गयी जो कि भारी नितम्बों का साफ संकेत था। नीचे फिर से एक साधारण सी सफेद पेंटी ने रेखा के सौदर्य केंद्र को ढक रखा था। पर जाकिर वहीँ नजरे गडाए मानो एक्सरे की तरह अन्दर का नजारा भी ले लेना चाहता था।
रेखा ने जब देखा की जाकिर की नजरें केंद्र से हट ही नहीं रही तो वो झिझकते हुए अपनी तितली को छिपाने के लिए पीछे मुड़ गयी पर इससे तो जाकिर के लिए और भी जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो गयी। पीछे मुड़ते ही पेंटी में कैद विशाल नितंबो सहित पृष्ठ भाग सामने आ गया। ऐसा लग रहा था जैसे मध्यम आकार के दो तरबूजों पर पेंटी चढ़ा दी गयी हो। एक बार नितम्बों से लेकर चिकने रेशरहित जांघो से होते हुए उसकी नजर रेखा की एड़ियों तक जाकर वापस नितम्बों पर अटक गयी। अब तो जाकिर का लिंग इतना फुफकारने लगा था मानो उसके शरीर से छूट कर अभी के अभी रेखा की पेंटी में घुस कर अपनी प्रेयसी से मिल जाये। अपनी कसती हुई अंडरवियर से उसे हल्का दर्द सा होने लगा। कुछ इस दर्द से और कुछ इस यौवन के हमले से जाकिर के मुह से एक अह्ह्ह निकल गयी। जिसे सुनते ही रेखा वापस पलती और बोल पड़ी "क्या हुआ? आप ठीक तो हैं न?"
जाकिर की नजरे रेखा से मिली तो उसकी नजरों के नशे ने उसपर और भी नशा चढ़ा दिया। वो और भी गहरी गहरी सांसे लेने लगा और उत्तेजना से उसका पूरा शरीर पसीने से तर बतर हो चूका था। पसीने से उसका कुरता पूरी तरह भीग कर उसके शरीर से चिपका था जिससे अन्दर से काली छाती कुर्ते से ही दिखने लगी थी।
"बाबा रे.....आपको तो कितना पसीना आ रहा है। आप ठीक तो है ना?" उसकी ऐसी हालत देखकर रेखा थोड़ी घबराकर झट से पलंग से निचे उतर आयी बिना इसका ध्यान किये की वो इस वक़्त सिर्फ इतने ही कपड़ों में है जिससे उसका बदन सिर्फ 25% ही ढका हुआ है। और देखा जाये तो किसी शरीर की सुन्दरता पूरी तरह से अनावृत्त होने से या पूरी बेशर्मी से प्रदर्शन से अधिक, कुछ कुछ ढकने छुपाने या कुछ शर्म लिहाज में ज्यादा घातक हो जाती है।
रेखा को पलंग से उतरकर नीचे जाकिर के पास पहुचने में पलक झपकने तक का समय ही लगा पर इतने वक़्त में ही उसके दिमाग में तरह तरह की बाते आ चुकी थी। "कहीं मैंने इस भले इन्सान के साथ कुछ ज्यादती तो नही कर दी। आखिर 50-55 की इस उम्र में इस तरह बांधने का ख्याल मेरे दिमाग में आया ही क्यूँ। कहीं इनका दम तो नहीं घुट रहा। बेचारा।" मन में इन्ही तरह के बातों से घिरी रेखा उसके पास कड़ी हुई और कुछ देर पहले आँखों से खोली पट्टी से उसके माथे का पसीना पोछने लगी जो की उसके लगभग आधे से ज्यादा बालों से साफ सर पर भी चमक रहा था।
"उफ्फ्फ.... आपका तो पूरा कुरता ही भीग गया है। इसे उतार देती हूँ।" इतना बोलते ही रेखा को अपनी हालत का ध्यान आया और उसने सोचा की इस हालत में इसे खोल दिया तो ये मुझे कच्चा चबा जायेगा। तभी कुछ सोचकर वो पीछे टेबल की दराज खोलने लगी। इधर जाकिर तो मानो बादलो की दुनिया में ही सवार था। नशे की हालत से बाहर आने लगता ही था की ऐसा कुछ हो जाता था की उसे दोगुना नशे का डोज मिल जाता था। वो तो बस घटनाओं को घटते हुए देखना चाहता था। जो भी हो रहा था उसके लिए तो कल्पना से परे और उसकी उम्मीद से अलग और बड़ा अच्छा अच्छा ही लग रहा था उसे। इधर रेखा जाकिर के पास वापस पहुची और उसने जाकिर का कुरता निचे से पकड़ा और दराज से निकालकर लायी कैची का उपयोग करने लगी। कच्च कच्च कच्चा कच्च चर्र्र चर्र्र्र्र्र्र्फ़ की आवाजे लगभग 15 सेकण्ड तक कमरे में गूंजती रही और उसके बाद बिना हाथ पैर या मुह खोले जाकिर मिया ऊपर से पूर्ण निर्वस्त्र हो चुके थे। उजले कुर्ते के भीतर से उनका काजल के पहाड़ की तरह का शरीर बाहर आ चूका था जो की आकार में बिलकुल लाफिंग बुद्धा के जैसा थुलथुला ही था।
अब तक रेखा समझ चुकी थी की जाकिर की इस हालत का कारण उत्तेजना है। आखिर 50 के ऊपर के इन्सान के सामने एक 30 साल के एटम बम को रखा जाये तो जो अंजाम होता हो वही जाकिर के साथ हुआ था। समझ में आने के बाद भी रेखा इस अनजान होने के खेल को जारी रखना चाहती थी। "ओफ्फो देखिये तो आपका पूरा बदन पसीने पसीने हो चूका है। च्च.. च्च.. च्च...! मै पोछती हूँ अभी, आप फिकर मत कीजिये, मै हूँ न।"
जाकिर उत्तेजित तो था ही ऊपर से रेखा की ऐसी नशीली आवाज सुनकर उसे और सुरूर चढ़ने लगा आखिर ऐसी स्वप्न सुन्दरी किसी की सेवा अपने हाथ से करना चाहे तो या तो कोई बेवकूफ ही मना करेगा या कोई नामर्द। जाकिर और बेचारा बनने के लिए कुर्सी पर और भी फसर गया जिससे उसकी जांघे कुर्सी से काफी बाहर निकल गयी थी।
रेखा जाकिर के अलग अलग दिशाओं की ओर फैली दोनों जांघो के बीच खड़ी हुई और झुककर उसका बदन पोंछने लगी। अचानक रेखा जाकिर के कन्धों पर हाथ रखकर एक गहरी साँस लेते हुए उसकी बायीं जांघ पर बैठ गयी। उसके नितम्बों का जैसे ही संपर्क जैसे ही जाकिर की जांघों से हुआ तो एक साथ दोनों की आंखे 2 सेकण्ड के लिए बंद हो गयी और ऐसी सनसनी दोनों के बदन में हुई जैसे बर्फ का पानी अचानक डालने पर होती है। आंखे खुलते ही दोनों की निगाहें टकराई तो एक कातिलाना मुस्कराहट रेखा के चेहरे पर आ गयी। इतना आकर्षक और मनोहारी दृश्य वहाँ उपस्थित हो चूका था की सिर्फ पोर्न फिल्मो में ही देखने को मिलता होगा। एक अधेढ़ थुलथुले बदन के काजल जैसे काले आदमी की जांघों पर एक दूध जैसे उजले कमनीय बदन वाली कामिनी सिर्फ अपने अंतर्वस्त्रों में चिपककर बैठी हुई थी जिसे देखकर तो किसी का भी स्खलन हो जाये।
अगले 1 मिनट में जाकिर का बदन अच्छे से पोछ लेने के बाद वो उठने से पहले एक बार अपने कूल्हों को एक बार अच्छे से उसकी जांघों पर रगड़ कर उठी। एक बार उसने ऊपर से नीचे जाकिर को देखा और चहकी "ओफ्फो मै भी बुद्धू हूँ। ऊपर इतना पसीना आया है तो आखिर नीचे भी तो आया ही होगा।" और इतना बोलते ही एक बार फिर कैची रेखा के हाथ में थी।
फिर एक बार वही कैची का स्वर गूंजता रहा और इस बार जाकिर मिया नीचे से भी वस्त्र रहित हो गये थे। बड़ी ही सफाई से रेखा ने सिर्फ जाकिर के पैजामे को काटकर अलग किया था उसकी अंडरवियर को नहीं। अब जाकिर की इज्जत बचाने के लिए बस यही कपडे का टुकड़ा बचा था। अजीब बात थी की जाकिर इस कमरे में आया रेखा के कपडे उतारने था पर उसके खुद का वस्त्र हरण हो चुका था। उसका लिंग तो अब तक पूरी तरह से बगावत पर उतर आया था और उसकी जंग अंडरवियर से चल रही थी। जिसका सबूत अंडरवियर में बने तम्बू से मिल रहा था जो कि कोल्ड ड्रिंक की बोतल जितना बड़ा हो चूका था। कैची रखकर रेखा ने जाकिर की आँखों में देखा और फिर से शरारत से मुस्कुरायी और उसके दोनों जांघों के बीच जमीन पर पैर मोड़कर बैठ गयी।