21-05-2020, 12:32 PM
बिजली की तेजी दिखाते हुए रेखा ने झट से जमीन पर पड़ी साड़ी उठाकर पहनना शुरू कर दिया। साड़ी पहनते हुए उसने जाकिर की तरफ देखा, तो वो अब भी मिट्टी का माधो बनकर वहीँ खड़ा रेखा को देख रहा था। साड़ी पहनते पहनते ही रेखा ने उसे आँखों से ऊपर छत पर जाने का इशारा किया, जिसका अनुसरण करता जाकिर तुरंत सीढियों से जाकर ओझल हो गया।
ये सब कुछ बिलकुल 30 सेकंड में ही हो गया, तब तक रेखा साड़ी बांध चुकी थी। जाकिर के मसले जाने से उसके पेट पर लाल निशान जैसा हो गया था, जिसे उसने पल्लू से छिपा लिया।
-"खट... ख़ट... खट्ट....."-तब तक दरवाजे की दस्तक दोबारा गूंज उठी।
"पता नहीं कौन मरा जा रहा है इतना।"जल्दी से दरवाजे पर पहुच कर रेखा ने बड़बड़ाते हुए कुण्डी खोलकर आगंतुक का चेहरा देखा।
"क्या भाभी, कितनी देर से खड़ी हूँ मै!!! कहाँ थी तुम? एक तो मुझे जल्दी जाना है, ऊपर से तुम और देर करा रही हो!!!" दूधवाली मुनिया की फटे बांस जैसी आवाज पंचम सुर में गूंज उठी। "इतनी देर में तो मै, पुरे गाँव को दूध पिला आती।" अपने गोल चेहरे को थोडा बिगाडते हुए, आंखे नचाती वो बोली।
"आ हा हा हा...., ज्यादा पटर पटर मत मारा कर कलमुही। अच्छी भली नींद लगी थी तूने उठा दिया।" पहले से ही गुस्से में रेखा ने मुनिया की बात सुनकर थोडा और भड़कते हुए कहा। "सारे गाँव को दूध 5 मिनट में पिलाकर, जल्दी कहाँ मरेगी जाकर तू, सब पता है मुझे। उस छोटू को दूध पिलाएगी, अपनी इन टंकियों का।" मुनिया के फ्रॉकनुमा कपडे से फाड़कर बाहर आने को बेताब उसके स्तनों की ओर इशारा करते रेखा बोली।
मुनिया की उम्र कोई 19 होगी, पर उसके 36 साइज़ के स्तन तो जैसे बड़ी बड़ी औरतों को भी मात देते थे।
"ओफ्फो भाभी, तुम भी न, कुछ भी बोलती हो!!! मै कहाँ जाती हूँ छोटू के पास ज्यादा। वो तो ऐसे ही कभी कभी दुःख सुख की दो बाते हो जाती है।" मुनिया शर्माती हुई अपनी नजरें नीचे करके खड़ी हो गयी। "लाओ जल्दी से दूध के लिए पतीला, मुझे आज जल्दी जाना है, घर पर थोडा काम है।"
रेखा झट से पतीला लाकर दुध लेते हुए पूछने लगी। "ऐसा क्या काम है रे घर में तुझे। आज बड़ी जल्दी मची है, मेरा तो दरवाजा ही तोड़ देती तू आज उतावली में।"
"वो भाभी...व.. व.. वो...।" झिझकते हुए मुनिया बोली। "मुझे देखने पड़ोस के गाँव से लड़के वाले आ रहे हैं।"
"आये हाये मेरी बन्नो। तभी तो इतनी जल्दी है तुझे।" आंखे नचाकर रेखा बोल पड़ी। "सुहागरात तो न जाने कितने बार मना चुकी, अब शादी करने चली छिनाल।" रेखा और मुनिया में इस तरह की बातें लगभग रोज की ही बात थी।
"धत्त्त्त.....। तुम भी ना भाभी।" कहती हुई मुनिया दूध देकर बिना पीछे देखे तुरंत चल पड़ी।
उसके जाते ही रेखा के दिमाग में बात आई। "उफ्फ्फ....! इस लड़की की शादी के चक्कर में, मेरी सुहागरात को तो भूल ही गयी मै।" चौके में दूध रखकर, घडी पर नजर डालकर, उसने हिसाब लगा लिया की उसके पास अभी पर्याप्त समय बचा है और सीढ़ियो से ऊपर चढ़ने लगी।
छत पर जाकिर कबाब में हड्डी को कोसता हुआ, दिवार का सहारा लेकर बैठा हुआ था। रेखा वहीँ सीढ़ी के कमरे के दरवाजे का टेक लगाकर कमर पर एक हाथ रखकर खड़ी हुई और अपने पैर को जमीन पर पटक कर अपनी पायल को खनकाया, जिससे जाकिर अपने विचारो से बाहर आकर उसी की तरफ देखने लगा।
"सुनिए ना, मुझे आपसे कुछ काम था।" एक शरारती सी मुस्कान के साथ रेखा बोली।
"हाँ हाँ, बोल ना। तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।" एक आज्ञाकारी बच्चे जैसे गर्दन हिलाकर जाकिर बोला। "पर पहले ये बता निचे कौन हरामी आया था।"
"छी बाबा... आप क्यों इतनी गाली देते हो। मुनिया दूध देने आयी थी। रोज ही आती है इसी समय।" रेखा बोली।
"साली रंडी। उस कमीनी के तो मम्मो में ही नल फिट करके चौराहे में बिठा दूंगा, फिर जो चाहे नल खोलकर दूध ले लेगा।" गुस्से में अनाप शनाप बकता जाकिर गुर्राया।
"ओफ्फो...फिर वोहि बात। मै नहीं बताती आपको काम, जाओ...।" मुह फुलाकर रेखा सीढियों की तरफ पलटी।
"अच्छा बाबा अच्छा, बोल मेरी गुलाबजामुन, क्या काम है?" उसके पीछे आता जाकिर बोला।
"वो यहाँ नहीं बता सकती। मुझे शर्म आती है।"रेखा बोली।
"उम्म्ममम.... तो चल नीचे चले, तेरे घर।"जाकिर ने मस्ती करने का एक और मौका हाथ में लाने के लिए कहा।
"हाँ..., वोही सही रहेगा। चलिए।" रेखा ये कहकर सीढियाँ उतरने लगी जिसके पीछे, उसकी गांड का मोहक नृत्य देखता हुआ जाकिर भी नीचे आने लगा।
नीचे आंगन में पहुचते ही रेखा के मन की बात ताड़ने की इच्छा से जाकिर ने पूछा "हाँ...अब बोल क्या बात है।"
"अरे बाबा, यहाँ नहीं। पहले अन्दर तो चलिए।" अपने हाथ के इशारे से रेखा ने वापस बेडरूम में चलने का इशारा किया। इस इशारे से जाकिर की तो बांछे खिल उठी। आज किस्मत उस पर पहली बार इतने कम अन्तराल में दोबारा मेहरबान हुई थी।
अन्दर आते ही रेखा और जाकिर दोनों के ही दिल मानो फार्मूला वन रेसर कार की तरह फुल स्पीड में भाग रहे थे और एक दुसरे से ज्यादा जोरो से धडकने की जैसे रेस कर रहे थे। कमरे के बीचोबीच पहुचते ही रेखा पलटी और उससे लगभग दो फिट दूर उसका अनुसरण करता जाकिर ठिठक कर वहीँ जड़वत खड़ा रह गया। न जाने रेखा की आँखों में उसे क्या दिखा कि न चाहते हुए भी उसकी निगाहें निचे झुक गयी। आज पहली बार जाकिर की नजरों में एक झिझक सी थी वो भी एक औरत के सामने। किसी ने सच ही कहा है की एक औरत अपने औरतपने पे आ जाये तो अच्छे अच्छे मर्द भी उसके आगे झुक जाते हैं।
ये सब कुछ बिलकुल 30 सेकंड में ही हो गया, तब तक रेखा साड़ी बांध चुकी थी। जाकिर के मसले जाने से उसके पेट पर लाल निशान जैसा हो गया था, जिसे उसने पल्लू से छिपा लिया।
-"खट... ख़ट... खट्ट....."-तब तक दरवाजे की दस्तक दोबारा गूंज उठी।
"पता नहीं कौन मरा जा रहा है इतना।"जल्दी से दरवाजे पर पहुच कर रेखा ने बड़बड़ाते हुए कुण्डी खोलकर आगंतुक का चेहरा देखा।
"क्या भाभी, कितनी देर से खड़ी हूँ मै!!! कहाँ थी तुम? एक तो मुझे जल्दी जाना है, ऊपर से तुम और देर करा रही हो!!!" दूधवाली मुनिया की फटे बांस जैसी आवाज पंचम सुर में गूंज उठी। "इतनी देर में तो मै, पुरे गाँव को दूध पिला आती।" अपने गोल चेहरे को थोडा बिगाडते हुए, आंखे नचाती वो बोली।
"आ हा हा हा...., ज्यादा पटर पटर मत मारा कर कलमुही। अच्छी भली नींद लगी थी तूने उठा दिया।" पहले से ही गुस्से में रेखा ने मुनिया की बात सुनकर थोडा और भड़कते हुए कहा। "सारे गाँव को दूध 5 मिनट में पिलाकर, जल्दी कहाँ मरेगी जाकर तू, सब पता है मुझे। उस छोटू को दूध पिलाएगी, अपनी इन टंकियों का।" मुनिया के फ्रॉकनुमा कपडे से फाड़कर बाहर आने को बेताब उसके स्तनों की ओर इशारा करते रेखा बोली।
मुनिया की उम्र कोई 19 होगी, पर उसके 36 साइज़ के स्तन तो जैसे बड़ी बड़ी औरतों को भी मात देते थे।
"ओफ्फो भाभी, तुम भी न, कुछ भी बोलती हो!!! मै कहाँ जाती हूँ छोटू के पास ज्यादा। वो तो ऐसे ही कभी कभी दुःख सुख की दो बाते हो जाती है।" मुनिया शर्माती हुई अपनी नजरें नीचे करके खड़ी हो गयी। "लाओ जल्दी से दूध के लिए पतीला, मुझे आज जल्दी जाना है, घर पर थोडा काम है।"
रेखा झट से पतीला लाकर दुध लेते हुए पूछने लगी। "ऐसा क्या काम है रे घर में तुझे। आज बड़ी जल्दी मची है, मेरा तो दरवाजा ही तोड़ देती तू आज उतावली में।"
"वो भाभी...व.. व.. वो...।" झिझकते हुए मुनिया बोली। "मुझे देखने पड़ोस के गाँव से लड़के वाले आ रहे हैं।"
"आये हाये मेरी बन्नो। तभी तो इतनी जल्दी है तुझे।" आंखे नचाकर रेखा बोल पड़ी। "सुहागरात तो न जाने कितने बार मना चुकी, अब शादी करने चली छिनाल।" रेखा और मुनिया में इस तरह की बातें लगभग रोज की ही बात थी।
"धत्त्त्त.....। तुम भी ना भाभी।" कहती हुई मुनिया दूध देकर बिना पीछे देखे तुरंत चल पड़ी।
उसके जाते ही रेखा के दिमाग में बात आई। "उफ्फ्फ....! इस लड़की की शादी के चक्कर में, मेरी सुहागरात को तो भूल ही गयी मै।" चौके में दूध रखकर, घडी पर नजर डालकर, उसने हिसाब लगा लिया की उसके पास अभी पर्याप्त समय बचा है और सीढ़ियो से ऊपर चढ़ने लगी।
छत पर जाकिर कबाब में हड्डी को कोसता हुआ, दिवार का सहारा लेकर बैठा हुआ था। रेखा वहीँ सीढ़ी के कमरे के दरवाजे का टेक लगाकर कमर पर एक हाथ रखकर खड़ी हुई और अपने पैर को जमीन पर पटक कर अपनी पायल को खनकाया, जिससे जाकिर अपने विचारो से बाहर आकर उसी की तरफ देखने लगा।
"सुनिए ना, मुझे आपसे कुछ काम था।" एक शरारती सी मुस्कान के साथ रेखा बोली।
"हाँ हाँ, बोल ना। तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।" एक आज्ञाकारी बच्चे जैसे गर्दन हिलाकर जाकिर बोला। "पर पहले ये बता निचे कौन हरामी आया था।"
"छी बाबा... आप क्यों इतनी गाली देते हो। मुनिया दूध देने आयी थी। रोज ही आती है इसी समय।" रेखा बोली।
"साली रंडी। उस कमीनी के तो मम्मो में ही नल फिट करके चौराहे में बिठा दूंगा, फिर जो चाहे नल खोलकर दूध ले लेगा।" गुस्से में अनाप शनाप बकता जाकिर गुर्राया।
"ओफ्फो...फिर वोहि बात। मै नहीं बताती आपको काम, जाओ...।" मुह फुलाकर रेखा सीढियों की तरफ पलटी।
"अच्छा बाबा अच्छा, बोल मेरी गुलाबजामुन, क्या काम है?" उसके पीछे आता जाकिर बोला।
"वो यहाँ नहीं बता सकती। मुझे शर्म आती है।"रेखा बोली।
"उम्म्ममम.... तो चल नीचे चले, तेरे घर।"जाकिर ने मस्ती करने का एक और मौका हाथ में लाने के लिए कहा।
"हाँ..., वोही सही रहेगा। चलिए।" रेखा ये कहकर सीढियाँ उतरने लगी जिसके पीछे, उसकी गांड का मोहक नृत्य देखता हुआ जाकिर भी नीचे आने लगा।
नीचे आंगन में पहुचते ही रेखा के मन की बात ताड़ने की इच्छा से जाकिर ने पूछा "हाँ...अब बोल क्या बात है।"
"अरे बाबा, यहाँ नहीं। पहले अन्दर तो चलिए।" अपने हाथ के इशारे से रेखा ने वापस बेडरूम में चलने का इशारा किया। इस इशारे से जाकिर की तो बांछे खिल उठी। आज किस्मत उस पर पहली बार इतने कम अन्तराल में दोबारा मेहरबान हुई थी।
अन्दर आते ही रेखा और जाकिर दोनों के ही दिल मानो फार्मूला वन रेसर कार की तरह फुल स्पीड में भाग रहे थे और एक दुसरे से ज्यादा जोरो से धडकने की जैसे रेस कर रहे थे। कमरे के बीचोबीच पहुचते ही रेखा पलटी और उससे लगभग दो फिट दूर उसका अनुसरण करता जाकिर ठिठक कर वहीँ जड़वत खड़ा रह गया। न जाने रेखा की आँखों में उसे क्या दिखा कि न चाहते हुए भी उसकी निगाहें निचे झुक गयी। आज पहली बार जाकिर की नजरों में एक झिझक सी थी वो भी एक औरत के सामने। किसी ने सच ही कहा है की एक औरत अपने औरतपने पे आ जाये तो अच्छे अच्छे मर्द भी उसके आगे झुक जाते हैं।