21-05-2020, 12:30 PM
अपने पति से की गयी सुबह की बातो को ध्यान में आते ही रेखा ने मन ही मन कुछ सोचकर एक सबसे पुरानी सफ़ेद और साधारण सी पेंटी और ब्रा को बहार निकाला और अलमारी बंद की। ब्रा पुरानी होने के कारण उसमे कुछ छोटे छोटे छेद से हो गये थे और पेंटी का हाल तो और भी बुरा था। कुछ छोटे छोटे छेदों के साथ एक थोडा बड़ा सा छेद था, जो पहनने पर ठीक गांड के दाहिने उभार के ऊपर आता, जिस जगह पर रेखा के एक प्यारा सा तिल था।
उसने फटाफट अपने पुरे बदन पर नारियल तेल की मालिश कर उसे चिकना और खुश्की रहित बनाया और फटाफट निकाले हुए कपडे पहन लिए। अब रेखा आइने के सामने बैठकर अपने को निहारने लगी और अपने बालों पर कंघी फेरते हुए गुनगुनाने लगी.....
सजना है मुझे....सजना के लिए....
सजना है मुझे....सजना के लिए..........
और इस गीत के साथ उसके चेहरे पर एक अदा और मुस्कराहट ने उसे और कातिल बना दिया। चेहरे पर थोडा क्रीम और पाउडर, आँखों में गहरा काजल और लबों पर सुर्ख लाल लिपस्टिक लगाकर वो तो मानो मिस वर्ल्ड जाने की ही तयारी कर चुकी थी। पर ये सजना सवरना एक काले, भैंस जैसे छिछोरे इन्सान के लिए जो गाँव की हर औरत के लिए बुरी नजर रखता था और शायद आधी की योनियो को अपना लिंग खिला भी चूका था। पर रेखा तो प्यार में, या सरल भाषा में कहें तो हवस में अंधी होकर उसी से पींगें लडाना चाहती थी।
तैयार होकर उसने एक बार खुद को आइने में देखा। "कसम से अगर मै लड़का होती, तो आज तो तू गयी थी रेखा डार्लिंग!!!! ही... ही .. ही...।" खुद को यूँ छेड़ते हुए उसने आइने में अपने अक्स को आंख मारी, और एक सिक्को की खनक जैसी हंसी कमरे में गूंज गयी।
रेखा कमरे से बाहर निकलकर आंगन के दुसरे छोर पर बने चौके में जाकर खाना थाली में निकाला और अपने कमरे में वापस आकर खाने के लिए हाथ बढाया ही था, कि फोन बज उठा।
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ॊओह्ह्ह्ह्ह........बस इन मर्दों को थोडा सा छूट दो तो साँस लेना मुहाल कर देते हैं।" बड़बडाती हुई रेखा फोन उठाने के लिए बढ़ी। पर उसने छूट तो क्या, शायद जाकिर को चूत भी देने के लिए कदम बढ़ा लिया था।
"हेलो.....कौन!!!" अपनी आवाज को सुरीला बनाकर, सब कुछ जानते हुए भी उसने अनजान बनते हुए पूछा।
"मै हूँ जानेमन, तेरा आशिक। और कितना तड़पाएगी, अब आ भी जा छत पर। कब से तेरी छत पर खड़ा हूँ।" जाकिर की भर्रायी हुई आवाज दुसरी तरफ से आयी।
"ओफ़्फ़ॊओह्ह्ह... जाकिर भाई। खाना तो खाने दो।" रेखा ने और थोडा छेड़ते हुए कहा। "आप घर जाओ, और अगर आप छत पर हो, तो बात कैसे कर रहे हो?"
"कितनी बार कहा की मुझे भाई मत बोला कर।" जाकिर थोडा झल्लाया। "अरे मेरी जान, कल ही शहर से मोबाईल लाया हूँ।"इतराते हुए जाकिर बोला। "कहे तो तेरे लिए भी ले आऊं।"
"न बाबा ना। मेरेे लिए ये फोन ही ठीक है। आप अपना नम्बर मुझे दे दो मै खाना खाके फोन करुँगी।" रेखा ने भूख को थोडा दबाते हुए जल्दी से ये बात कह डाली।
"अच्छा ठीक है। मेरा नंबर लिख ले। और जल्दी फोन कर आज जीभर के बातें करुंगा तुझसे।" जाकिर ने कहा।
"बस बातें ही करोगे या.......!!!" नम्बर लेने के बाद जैसे रेखा ने खुलेआम हरी झंडी दिखा दी जाकिर को।
क..क..क्या मतलब तेरा....... !!!" बस जाकिर के मुह से इतना ही निकल पाया और दूसरी तरफ से फ़ोन कट गया। रेखा ने ऐसा दहकता हुआ सवाल छोड़ा, जिसकी तपिश से जाकिर तो मानो खड़ा खड़ा ही पिघल गया। फिर मन ही मन वो सोचने लगा "साली, कहना क्या चाहती थी समझ ही नहीं आया। कभी तो एकदम बिफर जाती है जरा हाथ भी
लगाओ तो, और कभी तो खुलेआम हरी झंडी दिखाती है। एक तो औरत का मिजाज़ समझना वैसे ही कठिन है, ऊपर से ये वाली मिर्ची तो कुछ ज्यादा ही तीखी है। इसका स्वाद तो धीरे धीरे लेना पड़ेगा, नहीं तो या तो मेरा मुह जल जायेगा, या फिर ये मुझे ही जल डालेगी पूरा का पूरा।"
विचारो में डूबा जाकिर रेखा के छत की दिवार का सहारा लेकर कुछ खो सा गया। "किसके ख्यालों में खोये हो जाकिर भाई।" एक प्यारी सी मखमली आवाज उसके कानो में पड़ी।
"कितनी बार कहा तुझसे मुझे भाई मत....।" झल्लाते हुए जाकिर ने ऊपर सर उठाया, पर उसे कोई दिखाई नहीं दिया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाने पर भी कोई नजर न आया।
"जाकिर भाई। हिः ....हिः ...हिः..... हिः.......!!!" इस आवाज और खनकती हुई हसी से पक्का हो गया कि ये रेखा की ही आवाज थी। पर जाकिर को समझ नहीं आ रहा था, कि ये आवाज किधर से आ रही थी। आवाज की दिशा में ध्यान से देखने पर उसे रेखा के छत से निचे जाने वाली सीढी के दरवाजे के पीछे से साड़ी का पल्लू दिखाई दे गया।
"ठहर.... अभी मजा चखाता हूँ मुझे भाई बोलने का।" कहता हुआ जाकिर तेज कदमो से सीढियों की तरफ बढ़ा। "ही ही ही ही ही" और उससे बचने के लिए रेखा ने हँसते हुए नीचे की तरफ दौड़ लगा दी। दौड़ती हुई रेखा आंगन में पहुची और बीच में बनी क्यारियो के पीछे खड़ी होकर हसने लगी।
जाकिर नीचे पहुचते ही शिकायती लहजे में बोल पड़ा "क्यों अपने दीवाने का खून जलाती है? भाई न कहा कर, सुनते ही छुरिया चल जाती है दिल पर।"
"क्यों न कहूँ!!! अगर भाई नहीं तो क्या हो आप मेरे, हम्म्म!!!" उसे छेड़ते हुए रेखा आंखे नचाती बोली। "सौ बार बोलूंगी, भैया..भैया..भैया..। ऊऊह्हँ।" जीभ दिखाती रेखा मानो उस सांड को लाल कपडा दिखा रही थी
"ठहर अभी।" कहता हुआ जाकिर उसे पकड़ने दौड़ा, जिससे बचने रेखा ने और कही नहीं अपने कमरे की तरफ दौड़ लगा दी।
रेखा के पीछे लगभग दौड़ता हुआ जाकिर कमरे में पंहुचा, तो कमरे में सामान के अलावा उसे कोई नहीं दिखा। वो आश्चर्य से चारो तरफ नजरें दौड़ाने लगा। तभी उसे कमरे में रखा पलंग दिखा, जिसे देख जाकिर को यकीन नहीं हुआ कि उसे वो स्वप्नसुंदरी सीधे बेडरूम तक ले आई है।
उसने फटाफट अपने पुरे बदन पर नारियल तेल की मालिश कर उसे चिकना और खुश्की रहित बनाया और फटाफट निकाले हुए कपडे पहन लिए। अब रेखा आइने के सामने बैठकर अपने को निहारने लगी और अपने बालों पर कंघी फेरते हुए गुनगुनाने लगी.....
सजना है मुझे....सजना के लिए....
सजना है मुझे....सजना के लिए..........
और इस गीत के साथ उसके चेहरे पर एक अदा और मुस्कराहट ने उसे और कातिल बना दिया। चेहरे पर थोडा क्रीम और पाउडर, आँखों में गहरा काजल और लबों पर सुर्ख लाल लिपस्टिक लगाकर वो तो मानो मिस वर्ल्ड जाने की ही तयारी कर चुकी थी। पर ये सजना सवरना एक काले, भैंस जैसे छिछोरे इन्सान के लिए जो गाँव की हर औरत के लिए बुरी नजर रखता था और शायद आधी की योनियो को अपना लिंग खिला भी चूका था। पर रेखा तो प्यार में, या सरल भाषा में कहें तो हवस में अंधी होकर उसी से पींगें लडाना चाहती थी।
तैयार होकर उसने एक बार खुद को आइने में देखा। "कसम से अगर मै लड़का होती, तो आज तो तू गयी थी रेखा डार्लिंग!!!! ही... ही .. ही...।" खुद को यूँ छेड़ते हुए उसने आइने में अपने अक्स को आंख मारी, और एक सिक्को की खनक जैसी हंसी कमरे में गूंज गयी।
रेखा कमरे से बाहर निकलकर आंगन के दुसरे छोर पर बने चौके में जाकर खाना थाली में निकाला और अपने कमरे में वापस आकर खाने के लिए हाथ बढाया ही था, कि फोन बज उठा।
"उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ॊओह्ह्ह्ह्ह........बस इन मर्दों को थोडा सा छूट दो तो साँस लेना मुहाल कर देते हैं।" बड़बडाती हुई रेखा फोन उठाने के लिए बढ़ी। पर उसने छूट तो क्या, शायद जाकिर को चूत भी देने के लिए कदम बढ़ा लिया था।
"हेलो.....कौन!!!" अपनी आवाज को सुरीला बनाकर, सब कुछ जानते हुए भी उसने अनजान बनते हुए पूछा।
"मै हूँ जानेमन, तेरा आशिक। और कितना तड़पाएगी, अब आ भी जा छत पर। कब से तेरी छत पर खड़ा हूँ।" जाकिर की भर्रायी हुई आवाज दुसरी तरफ से आयी।
"ओफ़्फ़ॊओह्ह्ह... जाकिर भाई। खाना तो खाने दो।" रेखा ने और थोडा छेड़ते हुए कहा। "आप घर जाओ, और अगर आप छत पर हो, तो बात कैसे कर रहे हो?"
"कितनी बार कहा की मुझे भाई मत बोला कर।" जाकिर थोडा झल्लाया। "अरे मेरी जान, कल ही शहर से मोबाईल लाया हूँ।"इतराते हुए जाकिर बोला। "कहे तो तेरे लिए भी ले आऊं।"
"न बाबा ना। मेरेे लिए ये फोन ही ठीक है। आप अपना नम्बर मुझे दे दो मै खाना खाके फोन करुँगी।" रेखा ने भूख को थोडा दबाते हुए जल्दी से ये बात कह डाली।
"अच्छा ठीक है। मेरा नंबर लिख ले। और जल्दी फोन कर आज जीभर के बातें करुंगा तुझसे।" जाकिर ने कहा।
"बस बातें ही करोगे या.......!!!" नम्बर लेने के बाद जैसे रेखा ने खुलेआम हरी झंडी दिखा दी जाकिर को।
क..क..क्या मतलब तेरा....... !!!" बस जाकिर के मुह से इतना ही निकल पाया और दूसरी तरफ से फ़ोन कट गया। रेखा ने ऐसा दहकता हुआ सवाल छोड़ा, जिसकी तपिश से जाकिर तो मानो खड़ा खड़ा ही पिघल गया। फिर मन ही मन वो सोचने लगा "साली, कहना क्या चाहती थी समझ ही नहीं आया। कभी तो एकदम बिफर जाती है जरा हाथ भी
लगाओ तो, और कभी तो खुलेआम हरी झंडी दिखाती है। एक तो औरत का मिजाज़ समझना वैसे ही कठिन है, ऊपर से ये वाली मिर्ची तो कुछ ज्यादा ही तीखी है। इसका स्वाद तो धीरे धीरे लेना पड़ेगा, नहीं तो या तो मेरा मुह जल जायेगा, या फिर ये मुझे ही जल डालेगी पूरा का पूरा।"
विचारो में डूबा जाकिर रेखा के छत की दिवार का सहारा लेकर कुछ खो सा गया। "किसके ख्यालों में खोये हो जाकिर भाई।" एक प्यारी सी मखमली आवाज उसके कानो में पड़ी।
"कितनी बार कहा तुझसे मुझे भाई मत....।" झल्लाते हुए जाकिर ने ऊपर सर उठाया, पर उसे कोई दिखाई नहीं दिया। चारो तरफ नज़रे दौड़ाने पर भी कोई नजर न आया।
"जाकिर भाई। हिः ....हिः ...हिः..... हिः.......!!!" इस आवाज और खनकती हुई हसी से पक्का हो गया कि ये रेखा की ही आवाज थी। पर जाकिर को समझ नहीं आ रहा था, कि ये आवाज किधर से आ रही थी। आवाज की दिशा में ध्यान से देखने पर उसे रेखा के छत से निचे जाने वाली सीढी के दरवाजे के पीछे से साड़ी का पल्लू दिखाई दे गया।
"ठहर.... अभी मजा चखाता हूँ मुझे भाई बोलने का।" कहता हुआ जाकिर तेज कदमो से सीढियों की तरफ बढ़ा। "ही ही ही ही ही" और उससे बचने के लिए रेखा ने हँसते हुए नीचे की तरफ दौड़ लगा दी। दौड़ती हुई रेखा आंगन में पहुची और बीच में बनी क्यारियो के पीछे खड़ी होकर हसने लगी।
जाकिर नीचे पहुचते ही शिकायती लहजे में बोल पड़ा "क्यों अपने दीवाने का खून जलाती है? भाई न कहा कर, सुनते ही छुरिया चल जाती है दिल पर।"
"क्यों न कहूँ!!! अगर भाई नहीं तो क्या हो आप मेरे, हम्म्म!!!" उसे छेड़ते हुए रेखा आंखे नचाती बोली। "सौ बार बोलूंगी, भैया..भैया..भैया..। ऊऊह्हँ।" जीभ दिखाती रेखा मानो उस सांड को लाल कपडा दिखा रही थी
"ठहर अभी।" कहता हुआ जाकिर उसे पकड़ने दौड़ा, जिससे बचने रेखा ने और कही नहीं अपने कमरे की तरफ दौड़ लगा दी।
रेखा के पीछे लगभग दौड़ता हुआ जाकिर कमरे में पंहुचा, तो कमरे में सामान के अलावा उसे कोई नहीं दिखा। वो आश्चर्य से चारो तरफ नजरें दौड़ाने लगा। तभी उसे कमरे में रखा पलंग दिखा, जिसे देख जाकिर को यकीन नहीं हुआ कि उसे वो स्वप्नसुंदरी सीधे बेडरूम तक ले आई है।