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Adultery JISM by Riya jaan
#53
रात को सोने से पहले रेखा अपनी ब्रा उतार ही देती थी ताकि उसके आकार में कुछ ज्यादा ही बड़े कबूतर चैन से रात भर साँस ले सकें। रेखा अब सिर्फ एक सफ़ेद रंग की साधारण सी पेंटी में थी, जिससे निकलते धागे बता रहे थे की वो काफी पुरानी हो चुकी थी। पेंटी पर नजर पड़ते ही रेखा को याद आया, "ओफ्फो....मै तो भूल ही गयी थी। इन्होने तो पेंटी और ब्रा जाकिर के यहाँ से लेने को कहा है। मै भी बुद्धू हूँ, जब सब रस्ते अपने आप ही खुल रहे हैं, तो मुझे क्या सोचना है। बस चलना है तो ऐसे इतराकर, की हर कोई देखता ही रह जाये। इसी सोच के साथ, उसने दोनों हाथों के अंगूठों को नाभि के दोनों और से निचे की और सरकाते हुए पेंटी के अन्दर घुसाया और पेंटी को नीचे सरकाती चली गयी।

पेंटी निचे खसकते ही, चमचमाती योनि का दो इंच का चीरा बेपर्दा हो गया। उसकी आबरू को ढकने के लिए, बस करीब 1 इंच लम्बे, कुछ सुनहरे भूरे रेशमी बालों की फौज ही रह गयी थी, जिन्होंने गुलाबो रानी को घेर रखा था। योनि पे नजर पड़ते ही रेखा को अजीब सा एहसास हुआ। आज से पहले कई बार इसी बाथरूम में वो नग्न हो चुकी थी, पर आज कपडे उतारते हुए अजीब से रोमांच का संचार उसके तन बदन में हो रहा था। उसने अपनी टांगो को एक बार भींच कर थोडा फैलाया, तो उसकी योनि की फांके आपस में चिपक कर थोड़ी खुल गयी और एक हलकी सी पुच्च की आवाज निकली, जैसे की गुलाबो ने अपनी मालकिन को एक प्यारी सी पप्पी दी हो। रेखा को गुलाबो की इस हरकत पर बड़ा प्यार आया और जवाब में उसने भी उसे देखकर अपने कमल के पंखुडियो जैसे होठो को गोल करके एक पप्पी समर्पित कर दी। अपनी इस शरारत पर उसके लबों पर एक कातिल मुस्कान छा गयी। अपने और अपनी गुलाबो में बीच उसे अब ये बाल नहीं सुहा रहे थे। उसने वही ऊपर रखी हेयर रेमुविंग क्रीम निकाली, जो वो खास तौर से अपनी गुलाबो के लिए ही शहर से पिछली बार लायी थी, पर उसे आज पहली बार इस्तमाल कर रही थी।

रेखा ने फटाफट अपनी गुलाबो को चिकनी चमेली बना दिया और साथ ही हाथ पैर पर यहाँ वहाँ उग आए हलके रोओ को भी साफ कर दिया। अब गुलाबो और उसकी मालकिन दोनों ही क़यामत लग रहे थे। रेखा ने अपने आईने के सामने आकर दोनों हाथों और अपनी जांघो पर हाथ फेराया तो उसे ऐसा लगा मानो मखमल पे हाथ फेरा हो। उसके मुह से अनायास ही निकल पड़ा "चिकनी चमेंली... चिकनी चमेली.... पौवा चढ़ा के आई...." और एक अदा के साथ मुस्कुराते हुए शर्माकर नज़रे झुक गयी। जैसे ही रेखा के हाथ गुलाबो का हाल पूछने पहुचे, तो वहां कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ, तब रेखा ने ध्यान से देखा, कि उसकी योनि से शहद बहकर टप टप निचे टपक रहा है। किसी चुम्बक की तरह, उसकी ऊँगली, योनि की फांको को चीरती हुई सीधी गहरायी में उतर गयी। "आआआह्ह्ह्ह्ह्ह....." एक लम्बी सी आवाज निकली जो कि "उम्म्म्म्म्म्म......" की सिसकारी के साथ दब गयी। धीरे धीरे ऊँगली अन्दर बाहर करते हुए उसकी आंखे बंद हो गयी और बंद आँखों में जो चेहरा उसे नजर आया, वो जाकिर का था। "छोडूंगी नहीं मै तुमको....!!! देख लेना....!!! पता नहीं क्या कर दिया है तुमने...!!! इतना तडपा रहे हो...!!!!!" बाएं हाथ से अपनी योनि की सेवा में मग्न, पता नहीं क्या क्या बडबडाते हुए, उसका दायाँ हाथ खुद ही उसके बाये स्तन तक पहुच गया और उसे कस कस कर मसलने लगा। इतने से भी मन न भरने पर उसने अपने स्तनों को ऊपर उठाया और गर्दन निचे करके निप्पल को मुह में भर लिया और उसे जोर जोर से चूसने लगी, जैसे की उसे आज ही ये स्तन मिले हों। पूरा बाथरूम "उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म................
ऊऊऊऊउन्न्नघ्घ्ग्ग्ग्ग्ग्ग............... ऊऊऊउम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म.............." आवाजो से लगभग 5 मिनट गूंजता रहा। अचानक रेखा की आंखे फ़ैल गयी और नथुने फडकने लगे। पूरा शरीर ऐसे कम्पन करने लगा, जैसे तूफान में सुखा पत्ता। रेखा का निप्पल, मुह से छुट गया और उसने अपना चेहरा छ्त की तरफ करते हुए लगभग चीख जैसी एक आह भरी और उसकी योनि के रास्ते आनंद का ज्वालामुखी फट पड़ा, जिससे निकलने वाला रस किसी लावे से कम गरम नहीं था। चेहरे पर पूर्ण तृप्ति का भाव लिए, लगभग 2 मिनट में अपने को सामान्य करते हुए, फिर एक बार प्यारी सी मुस्कान रेखा के चेहरे को रौशन कर गयी। उसके मुह से इतना ही निकला "मुझे इस कदर पागल बनाने की कीमत चुकाओगे जाकिर मियां...!!!अब देखना, मै कैसे बदला लेती हूँ इसका...!!


बाथरूम में लगभग 10 मिनट तक पानी गिरने की और किसी कोयल के जैसे सुरीले महिला स्वर के गुनगुनाने की आवाजे गूंजती रही। फिर और 5 मिनट की शांति के बाद बाथरूम का दरवाजा खुला और जो दृश्य उपस्थित हुआ, वो उस सूने कमरे में ऐसा ही था, जैसे बियाबान जंगल में एक बिजली सी कडकी हो और सब कुछ अचानक उससे चका चौंध हो गया हो। दरवाजा खुलते ही एक हुस्न की मलिका प्रगट हुई। कहते हैं कि बदसूरत से बदसूरत नारी की देह भी भीगने के बाद अत्यंत उत्तेजक हो जाती है, तो फिर ये तो साक्षात् एक अप्सरा का बदन था। सर से पांव तक एकदम सफ़ेद मखमली बदन, जिसपर कहीं कहीं पानी की बुँदे जमी हुई थी, मानो इस रेशमी बदन को छोड़कर जाना ही नहीं चाह रही हों। सर से लेकर कमर से 8 इंच ऊपर तक लम्बे, घने, काले, रेशम जैसे भीगेे, भीने भीने, महकते बाल, जिन से पानी की बुँदे कुछ कुछ टपक रही थीं। रेखा के बदन पर कपड़ो के नाम पर एक गहरे लाल रंग का तौलिया था, जो कि उसके स्तनों से लेकर उसकी आधी जांघो तक के भाग को ढके हुए था। तौलिया इतनी कसके बंधा था, कि रेखा की पूरी आकृति को ढकने की बजाये और उभार रहा था। बाँहों और पैरों की पूरी लम्बाई, बिलकुल बालों के बिना थी, जो की अभी अभी रेखा ने नहाते वक़्त ही किया था। हुस्न की मलिका ने अपने हाथी दाँत जैसे चिकने गोरे पैर आगे बढ़ाये, तो कमरे की फर्श ने मानो उसके कदम चूमकर इस्तकबाल किया। इठलाती, बलखाती रेखा पंजों के बल चलती पलंग के बाजु रखी अलमारी के पास पहुंची। वो एक साधारण सी लोहे की अलमारी थी, जिसमे कपडे वगैरह रखे जाते थे और उसी के दरवाजे पर बाहर की तरफ लगभग 5 फिट का आइना भी लगा था। अलमारी के ठीक बाजु में एक टेबल थी,जिस पर रेखा के सौन्दर्य प्रसाधन और टेबल के नीचे एक दो फुट ऊँचा स्टूल था, जिस पर रेखा आइने के सामने बैठकर अपने रूप को निखारा करती थी। अलमारी के ठीक सामने कमरे से निकलने का दरवाजा था, जो सीधे आंगन में खुलता था।

रेखा पंजो के बल वैसे ही चल रही थी, जैसे आधुनिक महिलाये हाई हील पहनकर चलती है, जिससे उनके पृष्ठ भाग यानि की गांड और उभर जाती है, और चाल में लचक थोड़ी और बढ़ जाती है। अलमारी खोलकर एक और सुखा तौलिया निकाल कर उसने अपने बालों को अच्छे से सुखाया और एक झटके में अपने बदन पर लपेटे तौलिये को खोलकर टेबल पर पटक दिया।
उजला, गोरा बदन, उघडते ही जैसे एक बिजली सी कौंधी, और एक पल के लिए मानो आइने की भी आंखे बंद हो गयी इस चमक से। गोरा चिट्टा, गदराया, चिकना, मखमली बदन वो भी एकदम निर्वस्त्र अवस्था में, किसी कमजोर ह्रदय वाला यदि देख ले, तो उसका दिल ही रुक जाये। खुबसूरत, परियों जैसे चेहरे से निचे सुराहीदार गर्दन पर अपनी किस्मत पर इठ्लाता सुहाग की निशानी मंगलसूत्र था, जो की बार बार उसके स्तनों के उपरी भाग को चूम रहा था, और मन आने पर उसके पर्वतो के बीच की खायी में छुप जाता। अपने बदन को अच्छे से पोछने के बाद ऊसकी चिकनाई इतनी बढ़ गयी थी, कि देखने वालों की नजरें भी फिसल जाये। अलमारी खोलकर रेखा पहनने के लिए कपडे निकालने लगी, उसने आज के लिए एक हलके नारंगी रंग की साड़ी को चुना, जिसके साथ का बिना बाँहों का ब्लाउज था तो साधारण, पर उस असाधारण सुन्दरी के तन पर आते ही लाजवाब ही हो जाता। जैसे ही उसकी नजर अलमारी में रखे अंतर्वस्त्रो पर पड़ी, तो उसके चेहरे की नटखट मुस्कान ने जता दिया कि उसके दिमाग में एक शरारत ने जन्म ले लिया है।
 horseride  Cheeta    
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RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:13 PM
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RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:34 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:34 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:35 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:36 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:37 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:45 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:47 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:54 AM
RE: JISM by Riya jaan - by prenu4455 - 23-05-2020, 10:36 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 24-05-2020, 02:29 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 24-05-2020, 04:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 25-05-2020, 01:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 27-05-2020, 01:44 AM
RE: JISM by Riya jaan - by playboy131 - 29-05-2020, 12:56 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 29-05-2020, 01:42 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:14 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:05 PM
RE: JISM by Riya jaan - by doctor101 - 03-07-2020, 04:09 PM



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