21-05-2020, 12:26 PM
जाकिर- "तू सुबह की बात कर रही है। अरे हर समय मेरे दिमाग में तेरी बाते, मेरी आँखों में तेरी सूरत, मेरी सांसो में तेरी महक और दिल में तू और बस तू ही घूम रही है। मुझे तो बस हर जगह, तू ही तू दिख रही है। अब तू ही बता, मै करू तो क्या करू?" जाकिर फ़िल्मी डायलौग मारते हुए, क्या क्या बोल गया, ये शायद उसे खुद भी समझ नहीं आया। पर इन बातों का रेखा पर जादुई असर हुआ, और ये बाते उसके कान से सीधे दिल में छप गई।
रेखा- "उफ्फ्फ.... ये सब बोलते हुए, ये याद कर लो की मै शादीशुदा हूँ और वो भी तुम्हारे दोस्त के साथ। बोलो क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा?" रेखा ने आखिर मुद्दे का सवाल खड़ा कर ही दिया।
जाकिर- "मै तुझे शादी को दांव पे लगाने नहीं केह रहा हूँ। हम दुनिया के सामने अनजाने ही बने रहेंगे। पर सिर्फ हम दोनों के लिए मै तेरा दीवाना और तू मेरी माशुका, बस येही रिश्ता होगा हमारा।" जाकिर ने ये बोल के जता दिया कि चोरी छिपे का ही सम्बन्ध वो कायम करना चाहता है और शायद रेखा भी येही चाहती थी।
रेखा- "बस बस..., छोड़ो ये सब बातें, बोलो फोन कयूँ किया? मुझे नहाने जाना है, और फिर काम भी पड़े है।"
जाकिर- "आये हाये, नहाती तो तू रोज ही है, कहे तो आज मै नहला दूँ तुझे। एक बार मौका देके देख, कसम से रोज मुझे ही बुलाएगी नहलाने, हे हे हे हे।"
रेखा- "धत्त्त... कितने गंदे हो आप, कैसी कैसी बाते करते हो। मुझे ठीक नहीं लगता ऐसी बाते करना। किसी ने सुन लिया तो मेरी मुसीबत हो जाएगी। थोडा तो कण्ट्रोल किया करो खुद पर।"
जाकिर- "अरे मेरी बुलबुल, कोई नहीं सुनेगा। अभी तो कोई नहीं है न तेरे घर पे, जो चाहे बाते कर सकते है अभी तो।"
रेखा- "मेरे घर पे तो कोई नही है, पर आप तो दुकान में है न। आपको किसीने सुन लिया,तो क्या सोचेगा?"
जाकिर- "अच्छा ठीक है, तो मै आ जाता हूँ तेरे घर। फिर तो कोई तकलीफ नहीं है न तुझे।"
रेखा- "ना बाबा ना... रहने ही दो आप तो। छत पे तो छोड़ नहीं रहे थे, घर आओगे तो क्या करोगे पता नहीं। अच्छा सुनिए... मै नहा के आती हूँ, फिर बात करेंगे... ठीक है।"
जाकिर- "जैसा आपका हुक्म महारानी जी। मै 10 मिनट में फोन करूँ फिर???"
रेखा- "ओफ्फो... क्या है आपको भी? चैन नहीं है क्या? नहाने धोने के बाद खाना भी खाऊँगी। और अभी वो दूधवाली मुनिया भी आयेगी, कम से कम एक घंटा तो लगेगा न। उसके बाद फोन करना, अब जाती हूँ।"कहते हुए रेखा ने फोन रख दिया।
औरतो को ये अच्छे से पता होता है कि अपने दीवाने को जितना तडपाओ, उसका दीवानापन और भी बढ़ता जाता है। देखें, ये दीवाना क्या गुल खिलाता है।
फोन रखते ही जाकिर के मन में तो लड्डू ही फूटने लगे। उसका मन किया, वो सारी दुनिया को चीख चीख कर बताये कि पुरे गाँव के मर्द जिस बिजली का नाम ले लेकर आहें भरते है और याद करने भर से स्खलित हो जाते हैं, वो बिजली कुछ ही दिनों में उसकी "ट्यूबलाइट" को रोशन करेगी। चिरयौवना से लेकर बुढ्ढीयों तक और कवारियों से लेकर ब्याहता तक हर तरह की महिला को पटा चुके और अपने निचे लेटा चुके जाकिर को इतना तो समझ आ चूका था कि बहुत जल्द उसका कड़क सिपाही, रेखा के गुफा प्रदेश को फ़तेह कर लेगा। इस ख़ुशी से उसके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे। ख्वाबो में खोया, वो वही बिस्तर पर लेटा आगे की योजना में डूब गया और उसे झपकी सी आ गयी।
उधर रेखा का हाल कुछ अलग ही था। शादी के पहले लडको को उंगलियों पर नचाने का काम उसने चार पांच बार किया था और अपने चाचा चाची से पूरी ना होने वाली फरमायिशे उन लडको से पूरी करवाई थी। पर उसे अच्छी तरह पता था कि इसके एवज में मर्दों को क्या चाहिए होता है। एक गहरी साँस लेकर, मन ही मन उसने एक बार फिर वोही खेल खेलने का फैसला कर लिया, पर इस बार जरुरत उसे भी अपने शारीरिक सुख की थी।
ऐसा नहीं है की वो अपने पति का सम्मान नहीं करती थी, या उसे प्यार नहीं करती थी। संसार में उसके लिए सबसे आदरणीय और प्रेम योग्य पुरुष अगर कोई था, तो वो उसका पति दीनदयाल ही था। परन्तु जैसे घर का खाना परमप्रिय होने पर भी, बाहर मिलने वाली चाट पकोडियो का एक अलग ही आकर्षण होता है, वैसे ही रेखा का मन भी अब जाकिर की चॉकोबार खाने को मचल रहा था। पर मन ही मन उसने जाकिर को अपना शरीर सौंपने से पहले तरसाने का ठान लिया और एक शरारत भरी मुस्कान के साथ वो नहाने चली गयी।
रेखा अपने पति द्वारा विशेषरूप से उसीके लिए बनवाए बाथरूम में घुस गयी। गाँव में बाथरूम और टॉयलेट सबके घर नहीं होता। दीनदयाल ने भी रेखा के साथ सगाई होने के बाद रसोई के ठीक सामने एक बाथरूम विथ टॉयलेट अटेच बनवा दिया था, ताकि शादी के बाद घर की इज्ज़त को बाहर जाकर अपनी इज्ज़त ना धोनी और पोंछनी पड़े।
अन्दर घुसते ही रेखा ने दरवाजे के ठीक पीछे लगे आदमकद शीशे में अपने आप को देखा। गहरे लाल रंग का गाउन, जुड़े में बंधे उसके बाल, कुछ लटें गाल और गले को चूमती हुई, कुछ नींद और कुछ उत्तेजना से डूबी उसकी नशीली आंखे, कुल मिलाकर वो शरीर में कैद क़यामत ही लग रही थी। अपने इस रूप को देखकर, एक बार तो शर्म से खुद उसकी ही आंखे झुक गयी, फिर नज़रे उठाकर उसने खुद को निहारा और ऐसे सीटी बजाई, जैसे मवाली सुन्दर लडकियों को देखकर बजाते हैं। अपनी ही शरारतो से उसके लब मुस्कराए बिना नहीं रह सके। धीरे धीरे उसने अपने फ्रंट ओपन गाउन के बटन खोलना शुरू किया ही था कि उसें एक फिल्म में देखा दृश्य याद आ गया, जिसमे एक लड़की नाचते हुए अपने कपडे उतारती है। अब उसने भी शीशे के सामने अपने बदन को लहराना शुरू कर दिया और लहराते हुए अपने गाउन के बटन खोलने लगी। हर बटन के साथ उसके दिल की धड़कन और बढती जा रही थी। और आखिरी बटन के खुलते ही उसका गाउन, ऊपर से निचे तक लगभग छः इंच की जगह बनाता हुआ उसके कंधो से उसके स्तनों पर होता हुआ झूल गया। उस बीच की जगह से झांकता सुनहरा गोरा जिस्म बिलकुल वैसा दिख रहा था, जैसे खजाने से भरी सन्दूक का ढक्कन थोडा सा खुलने पर अन्दर सोने की मुहरे चमकती हैं। बड़ी ही अदा से रेखा गाउन के ऊपर से ही अपने स्तनों को सहलाने लगी और मस्ती में अपने होठो को दांतों में भींच लिया। फिर उसने मुड़कर अपने गाउन को धीरे धीरे अपने बदन से ढलकाया। जैसे सुबह की नारंगी धुप धीरे धीरे पूरे संसार को जगमगा देती है, वैसे ही गाउन के धीरे धीरे उतरने से, शीशे पर दिख रही रेखा की पूर्ण नग्न पीठ से आइना और पूरा बाथरूम मानो जगमगा उठा। जैसे ही वो अदा से पलटी, तो उसके सपाट पेट के ऊपर स्थित दो वनिला आईसक्रीम जैसी सफ़ेद गोलाइयाँ, उसकी हर पल तेज होती साँस के साथ एक लयबद्ध नृत्य सा करने लगी, जिन्हें देखकर रेखा का मन खुद ही ललचा गया और उसने अपने दोनों हाथ उन पहाडियों की चोटी पर जैसे ही रखे, एक करंट सा उसके बदन में दौड़ गया और एक सिसकारी उसके मुह से फुट पड़ी।
रेखा- "उफ्फ्फ.... ये सब बोलते हुए, ये याद कर लो की मै शादीशुदा हूँ और वो भी तुम्हारे दोस्त के साथ। बोलो क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा?" रेखा ने आखिर मुद्दे का सवाल खड़ा कर ही दिया।
जाकिर- "मै तुझे शादी को दांव पे लगाने नहीं केह रहा हूँ। हम दुनिया के सामने अनजाने ही बने रहेंगे। पर सिर्फ हम दोनों के लिए मै तेरा दीवाना और तू मेरी माशुका, बस येही रिश्ता होगा हमारा।" जाकिर ने ये बोल के जता दिया कि चोरी छिपे का ही सम्बन्ध वो कायम करना चाहता है और शायद रेखा भी येही चाहती थी।
रेखा- "बस बस..., छोड़ो ये सब बातें, बोलो फोन कयूँ किया? मुझे नहाने जाना है, और फिर काम भी पड़े है।"
जाकिर- "आये हाये, नहाती तो तू रोज ही है, कहे तो आज मै नहला दूँ तुझे। एक बार मौका देके देख, कसम से रोज मुझे ही बुलाएगी नहलाने, हे हे हे हे।"
रेखा- "धत्त्त... कितने गंदे हो आप, कैसी कैसी बाते करते हो। मुझे ठीक नहीं लगता ऐसी बाते करना। किसी ने सुन लिया तो मेरी मुसीबत हो जाएगी। थोडा तो कण्ट्रोल किया करो खुद पर।"
जाकिर- "अरे मेरी बुलबुल, कोई नहीं सुनेगा। अभी तो कोई नहीं है न तेरे घर पे, जो चाहे बाते कर सकते है अभी तो।"
रेखा- "मेरे घर पे तो कोई नही है, पर आप तो दुकान में है न। आपको किसीने सुन लिया,तो क्या सोचेगा?"
जाकिर- "अच्छा ठीक है, तो मै आ जाता हूँ तेरे घर। फिर तो कोई तकलीफ नहीं है न तुझे।"
रेखा- "ना बाबा ना... रहने ही दो आप तो। छत पे तो छोड़ नहीं रहे थे, घर आओगे तो क्या करोगे पता नहीं। अच्छा सुनिए... मै नहा के आती हूँ, फिर बात करेंगे... ठीक है।"
जाकिर- "जैसा आपका हुक्म महारानी जी। मै 10 मिनट में फोन करूँ फिर???"
रेखा- "ओफ्फो... क्या है आपको भी? चैन नहीं है क्या? नहाने धोने के बाद खाना भी खाऊँगी। और अभी वो दूधवाली मुनिया भी आयेगी, कम से कम एक घंटा तो लगेगा न। उसके बाद फोन करना, अब जाती हूँ।"कहते हुए रेखा ने फोन रख दिया।
औरतो को ये अच्छे से पता होता है कि अपने दीवाने को जितना तडपाओ, उसका दीवानापन और भी बढ़ता जाता है। देखें, ये दीवाना क्या गुल खिलाता है।
फोन रखते ही जाकिर के मन में तो लड्डू ही फूटने लगे। उसका मन किया, वो सारी दुनिया को चीख चीख कर बताये कि पुरे गाँव के मर्द जिस बिजली का नाम ले लेकर आहें भरते है और याद करने भर से स्खलित हो जाते हैं, वो बिजली कुछ ही दिनों में उसकी "ट्यूबलाइट" को रोशन करेगी। चिरयौवना से लेकर बुढ्ढीयों तक और कवारियों से लेकर ब्याहता तक हर तरह की महिला को पटा चुके और अपने निचे लेटा चुके जाकिर को इतना तो समझ आ चूका था कि बहुत जल्द उसका कड़क सिपाही, रेखा के गुफा प्रदेश को फ़तेह कर लेगा। इस ख़ुशी से उसके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे। ख्वाबो में खोया, वो वही बिस्तर पर लेटा आगे की योजना में डूब गया और उसे झपकी सी आ गयी।
उधर रेखा का हाल कुछ अलग ही था। शादी के पहले लडको को उंगलियों पर नचाने का काम उसने चार पांच बार किया था और अपने चाचा चाची से पूरी ना होने वाली फरमायिशे उन लडको से पूरी करवाई थी। पर उसे अच्छी तरह पता था कि इसके एवज में मर्दों को क्या चाहिए होता है। एक गहरी साँस लेकर, मन ही मन उसने एक बार फिर वोही खेल खेलने का फैसला कर लिया, पर इस बार जरुरत उसे भी अपने शारीरिक सुख की थी।
ऐसा नहीं है की वो अपने पति का सम्मान नहीं करती थी, या उसे प्यार नहीं करती थी। संसार में उसके लिए सबसे आदरणीय और प्रेम योग्य पुरुष अगर कोई था, तो वो उसका पति दीनदयाल ही था। परन्तु जैसे घर का खाना परमप्रिय होने पर भी, बाहर मिलने वाली चाट पकोडियो का एक अलग ही आकर्षण होता है, वैसे ही रेखा का मन भी अब जाकिर की चॉकोबार खाने को मचल रहा था। पर मन ही मन उसने जाकिर को अपना शरीर सौंपने से पहले तरसाने का ठान लिया और एक शरारत भरी मुस्कान के साथ वो नहाने चली गयी।
रेखा अपने पति द्वारा विशेषरूप से उसीके लिए बनवाए बाथरूम में घुस गयी। गाँव में बाथरूम और टॉयलेट सबके घर नहीं होता। दीनदयाल ने भी रेखा के साथ सगाई होने के बाद रसोई के ठीक सामने एक बाथरूम विथ टॉयलेट अटेच बनवा दिया था, ताकि शादी के बाद घर की इज्ज़त को बाहर जाकर अपनी इज्ज़त ना धोनी और पोंछनी पड़े।
अन्दर घुसते ही रेखा ने दरवाजे के ठीक पीछे लगे आदमकद शीशे में अपने आप को देखा। गहरे लाल रंग का गाउन, जुड़े में बंधे उसके बाल, कुछ लटें गाल और गले को चूमती हुई, कुछ नींद और कुछ उत्तेजना से डूबी उसकी नशीली आंखे, कुल मिलाकर वो शरीर में कैद क़यामत ही लग रही थी। अपने इस रूप को देखकर, एक बार तो शर्म से खुद उसकी ही आंखे झुक गयी, फिर नज़रे उठाकर उसने खुद को निहारा और ऐसे सीटी बजाई, जैसे मवाली सुन्दर लडकियों को देखकर बजाते हैं। अपनी ही शरारतो से उसके लब मुस्कराए बिना नहीं रह सके। धीरे धीरे उसने अपने फ्रंट ओपन गाउन के बटन खोलना शुरू किया ही था कि उसें एक फिल्म में देखा दृश्य याद आ गया, जिसमे एक लड़की नाचते हुए अपने कपडे उतारती है। अब उसने भी शीशे के सामने अपने बदन को लहराना शुरू कर दिया और लहराते हुए अपने गाउन के बटन खोलने लगी। हर बटन के साथ उसके दिल की धड़कन और बढती जा रही थी। और आखिरी बटन के खुलते ही उसका गाउन, ऊपर से निचे तक लगभग छः इंच की जगह बनाता हुआ उसके कंधो से उसके स्तनों पर होता हुआ झूल गया। उस बीच की जगह से झांकता सुनहरा गोरा जिस्म बिलकुल वैसा दिख रहा था, जैसे खजाने से भरी सन्दूक का ढक्कन थोडा सा खुलने पर अन्दर सोने की मुहरे चमकती हैं। बड़ी ही अदा से रेखा गाउन के ऊपर से ही अपने स्तनों को सहलाने लगी और मस्ती में अपने होठो को दांतों में भींच लिया। फिर उसने मुड़कर अपने गाउन को धीरे धीरे अपने बदन से ढलकाया। जैसे सुबह की नारंगी धुप धीरे धीरे पूरे संसार को जगमगा देती है, वैसे ही गाउन के धीरे धीरे उतरने से, शीशे पर दिख रही रेखा की पूर्ण नग्न पीठ से आइना और पूरा बाथरूम मानो जगमगा उठा। जैसे ही वो अदा से पलटी, तो उसके सपाट पेट के ऊपर स्थित दो वनिला आईसक्रीम जैसी सफ़ेद गोलाइयाँ, उसकी हर पल तेज होती साँस के साथ एक लयबद्ध नृत्य सा करने लगी, जिन्हें देखकर रेखा का मन खुद ही ललचा गया और उसने अपने दोनों हाथ उन पहाडियों की चोटी पर जैसे ही रखे, एक करंट सा उसके बदन में दौड़ गया और एक सिसकारी उसके मुह से फुट पड़ी।