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Adultery JISM by Riya jaan
#50
फोन रखते ही जाकिर की कही बाते रेखा के कान में गूंजने लगी। उसे मदनलाल का आशीर्वाद का हाथ अब वाकई में कुछ अलग ही महसूस हो रहा था। उस समय तो उसने गौर नहीं किया था,पर अब उसे ध्यान आया कि किस तरह मदन का हाथ उसके सर के ऊपर से होता हुआ, उसके रेशमी बालो के हाईवे पर बेरोक टोक चलता हुआ, उसके कमर तक की यात्रा कर चूका था।
"नहीं नहीं, जाकिर की तो आदत ही है बेमतलब बाते करने की। बेचारे अच्छे भले आदमी को अपने जैसे भेड़िये की जमात में खड़ा कर रहे थे। आखिर मै उनकी बेटी की बराबर हूँ।" अपने आप को जैसे तसल्ली सी दी उसने। "पर अगर जाकिर भेड़िया है, तो उसे मास का लालच भी तो मैंने ही दिखाया है। जहाँ गुड़ होगा चींटे तो आएंगे ही। वैसे उसका वो है बड़ा कड़क और जानलेवा। अआहह्ह....कैसे मेरे गोलाइयो को घोट रहा था, जैसे उन्हें और भी गोल कर रहा हो।" रेखा के दिमाग में उत्तेजना और तर्कों का एक अजब ही मिश्रण बन रहा था।
बिस्तर पर लेटे हुए खुद बखुद उसका एक हाथ अपने स्तन पर और दूसरा दोनों टांगो के संधि स्थल को सहलाने लगा। भावनाओ के अतिरेक में बहती रेखा कब निद्रा के टापू पे पहुच गयी, उसे पता ही नहीं चला।

स्वप्नलोक में भी न जाने वो क्या क्या करती रही।अचानक उसे ऐसा लगा, मानो उसके अन्दर से एक प्रवाह सा तेज गति से निकला हो, जिसके आवेश से वो चीख मारते हुए उठ बैठी। तेज दौड़ती सांसो को सम्हालते हुए उसने अपने आप को अपने पलंग पर पाया। जैसे ही उसने अपने लम्बे पैरो को समेटा, उसकी समझ में आ गया की वो प्रवाह कुछ और नहीं, बल्कि उसकी "फूलकुमारी" का मधुरस था जिससे उसकी पेंटी और पेटीकोट सराबोर थे, और बिस्तर पर भी एक गोल गीला धब्बा बना हुआ था। अपने ही आप से शरमाते हुए उसके चेहरे पर एक नटखट सी मुस्कराहट फ़ैल गयी।
"धत्त्त्त्त..... बहुत शरारती हो गयी है तू। बस जब देखो तब, लार टपकती है तेरी। पूरी दुनिया की लॉली पॉप खाकर भी तेरा मन नहीं भरने वाला। जल्दी ही तेरा कुछ करना पड़ेगा।" साड़ी के ऊपर से ही उसने अपनी फूलकुमारी पर एक हलकी सी चपत लगायी।
अचानक उसे ध्यान आया, कि कुछ अँधेरा सा है कमरे में। बड़ी मुश्किल से उसे घडी के दो कांटे दिखे। "ओह बाप रे। साढ़े छः बज गए, आज तो हो गयी छुट्टी तेरे चक्कर में गुलाबो।" अपनी प्यारी सी योनि को प्यार से झिडकते हुए वो बाथरूम जाकर अपने आपको ठीक करके खाना बनाने में जुट गयी।
आठ बजे के बाद दीनदयाल के आने पर खाना खाते हुए उसने मदन के बारे में बताया। दीनदयाल से मदन चाचा के बारे में कहानिया सुनी, कि कैसे बचपन से अब तक मदन ने उसे अपने बेटे जैसा समझा और प्यार किया। जिसे सुनकर रेखा अजीब दुविधा में पड़ गयी कि वो अपने पति की बात माने या अपने ताजातरीन चाहनेवाले की।
रात में थका मांदा दीनदयाल किसी फॉर्मेलिटी की तरह रेखा की गुलाबो को अपनी चार आने की चोकलेट खिलाकर खर्राटे भरने लगा। पर इसने तो रेखा को और उसकी गुलाबो की भूख और भी भड़का दिया था, जो कि एक पांच रूपये वाली लॉलीपॉप से ही बुझने वाली थी। और शायद रेखा को पता था की वो कहाँ मिलेगी।

सुबह की एक खुशनुमा सी हवा की लहर ने रेखा को धीरे से सहलाया, तो उसकी आंखे खुली। घडी पर नजर पड़ते ही पता लगा की 7 बजने वाले थे। दीनदयाल पहले ही उठ कर नहा धोकर पूजा पाठ में लगा हुआ था।
लगभग रोज का येही नियम था कि दीनदयाल लगभग पांच बजे उठ जाया करता था। उठकर रेखा को बिना जगाये गाँव के पास ही छोटा सा जंगल जैसा था वहां सैर पर जाता, जिसमे उसे एक से डेढ़ घंटा लग जाता। वापस आकर नहा धोकर एक घंटे पूजा करता। लगभग रोज ही उसके पूजा करने के समय ही रेखा जगती और चाय नाश्ते का इंतजाम करके खाने का डब्बा बनाकर उसे दे देती। नौ बजे श्रीमान जी अपने कार्यस्थल के लिए शहर रवाना ही जाते, अपनी सायकल से। शहर वहां से लगभग 10 कि मी था, जिसकी यात्रा दीनदयाल जी अपनी द्विचक्रवाहिनी, अर्थात सायकल से एक डेढ़ घंटे में पूरी कर लेते। श्रीमान जी वहां के एक सरकारी कार्यालय में क्लार्क के पद पर थे। शाम को लगभग छः बजे वहां से निकलते, तो गाँव पहुचते 8 बज जाते थे। प्रतिदिन की ये ही दिनचर्या थी दीनदयाल की।

बिस्तर पर हुस्न की देवी ने लेटे लेटे घडी का जायजा लिया कि वो ठीक समय से तो उठी है ना, और पर्याप्त समय होने की निश्चिन्तता से उसने वापस अपनी आंखे बंद कर ली। आंखे बंद करते ही उसे कल छत का दृश्य याद आ गया, और उसके पूरे शरीर में एक करंट सा दौड़ गया। उसकी आंखे तुरंत खुल गयी, जैसे कि उसकी आंखे बंद होने से कल का दृश्य उसके साथ बाकि सबको भी दिख रहा हो। आंखे खुलते ही एक चंचल सी मुस्कराहट उसके होठो पर तैर गयी, और एक अजीब सा रोमांच मन में भर गया। धीरे से रेखा बिस्तर पर उठ बैठी, और दोनों हाथ पूरी लम्बाई में उचे करके अंगडाई लेने लगी। बिस्तर पर बैठी, पल्लू निचे गिरा हुआ, ब्लाउस से आधे बाहर झांकते स्तन, जुल्फों की लटें चेहरे को चूमती हुई, आँखों में नींद का नशा, कुल मिलाकर रेखा अभी दुनिया की सबसे मादक सुन्दरी दिख रही थी। अगर कोई नपुन्सक भी उसे इस हाल में देख लेता, तो वो भी खड़े खड़े ही स्खलित हो जाता।
 horseride  Cheeta    
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JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:11 PM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 11-05-2020, 09:13 PM
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RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:37 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:45 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:47 AM
RE: JISM by Riya jaan - by sarit11 - 22-05-2020, 06:54 AM
RE: JISM by Riya jaan - by prenu4455 - 23-05-2020, 10:36 PM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 24-05-2020, 02:29 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 24-05-2020, 04:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 25-05-2020, 01:39 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 27-05-2020, 01:44 AM
RE: JISM by Riya jaan - by playboy131 - 29-05-2020, 12:56 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Curiousbull - 29-05-2020, 01:42 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:14 AM
RE: JISM by Riya jaan - by Sumit1234 - 30-05-2020, 02:05 PM
RE: JISM by Riya jaan - by doctor101 - 03-07-2020, 04:09 PM



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