21-05-2020, 12:22 PM
"जी नमस्ते चाचाजी, वो तो शाम तक ही लौटते हैं, कभी कभी रात 8 भी बजा देते हैं। कुछ कहना था उनसे, आएंगे तो मै बता दूंगी।" रेखा ने भारतीय नारी की तरह सुशीलता का परिचय देते हुए बूढ़े का अभिवादन किया। जिसके जवाब में बूढ़े ने "जीती रहो बहू" कहते हुए आशीर्वाद देने के लिए रेखा के सर पर हाथ रखा जो कि उसके रेशमी बालो के साथ सर से पीठ और कुलहो के बीच के संधि स्थल तक सहलाकर ही रुके।
"कोई बात नहीं, दीनू से मिलने फिर आ जाऊंगा। अब तो आना जाना लगा ही रहेगा।" मदन ने बड़े ही अपनेपन से बात ख़तम की और पलट कर चल दिया। रेखा को भी अन्दर जाने की जल्दी थी वो मुड़ी और दरवाजा बंद करके अपने कमरे में पहुचते ही चैन की साँस लेकर पलंग पर लेट गयी। पर तभी पलंग के किनारे रखी टेबल पर रखा फोन बज उठा।
जैसे ही फोन की घंटी रेखा के कानो में पड़ी वो बडबडाई "ओफ्फो... क्या मुसीबत है।आज क्या सब ने मिलकर मुझे परेशान करने का सोच रक्खा है, एक पल का भी चैन नहीं।" बिस्तर पर पेट के बल लेटते हुए उसने एक एक हाथ बढाकर रिसीवर उठाया और थोड़ी झुंझलाती आवाज में बोली "हेलो....,कौन?"
"सब ठीक तो है न? तूने फोन भी नहीं उठाया तो मै तो डर ही गया था। कहाँ थी तू?" जाकिर ने अपनी आवाज को थोडा चिंताजनक बनाते हुए कहा।"कौन था छत पर और अभी तेरे दरवाजे से भी किसी को जाते देखा।" जाकिर सवाल पर सवाल दागता चला गया।
" अरे सब ठीक है। छत पर तो कबूतरों की आवाज आई थी।" रेखा अपने खामखा डरने की वजह याद करते ही मुस्करा पड़ी। "पर अगर वाकई में कोई होता, तो आज तो मेरा मुह काला हो ही जाता। आप तो कैसे मुझे मुसीबत में अकेला छोड़कर भाग निकले थे। बड़ी बड़ी बाते करते हो, आज देख ली आपकी हिम्मत और दिलेरी।" रेखा ने जाकिर को छेड़ते हुए उसकी मर्दानगी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए।
" कैसी बात करती है तू भी मेरी जान तूने तो मेरा दिल तोड़ दिया। मैंने वहां से खिसककर तेरा ही भला किया था। मुसीबत तो तेरी तब होती न जब हम दोनों को कोई साथ देख लेता।"जाकिर बात सम्हालते हुए बोल पड़ा।" साले उस कबुतर के तो सारे खानदान को तंदुर में भुन के खा जाऊंगा। अच्छे भले मजे की माँ चोद दी साले ने। ऊपर से तू भी मुझे जली कटी सूना रही है।" आगे की ये बाते उसके दिल से डायरेक्ट निकल पड़ी।
"बस बस रहने दो बड़ी बड़ी बाते। आपके मजे के चक्कर में मै बदनाम हो जाउंगी किसी दिन, फिर करते रहना बड़ी बड़ी बाते। आप तो मर्द हो, असली मुसीबत तो औरत की होती है। छुरी खरबूज पे गिरे या खरबूज छुरी पे, कटना खरबूज को ही है।" रेखा ने एक ही साँस में मन की पूरी आशंकाए सामने रख दी।
" हे उपरवाले, येही सुनने के लिए तूने मुझे कान दिए थे। तेरी बदनामी के पहले मै मरना पसंद करूँगा मेरी जान। तुझपे आंच भी आई, तो इस ज़माने की माँ चोद दूंगा कहे देता हूँ। और फिर भी तुझे मुझपर यकिन नहीं, तो मै अज के बाद तुझसे कोई वास्ता नहीं रखूंगा। बस तू खुश रह, येही मेरी ख्वाहिश है।" आवाज में थोडा दुखिपन लाते हुए जाकिर बोल पड़ा, पर असल में बोलते वक़्त उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी। बिलकुल वेसी ही, जैसा फंदे में चारा डालते वक़्त शिकारी की होती है। उसने अपना तुरुप का इक्का फेक दिया और रेखा की चाल का इंतजार करने लगा।
जाकिर की इस बात का रेखा पर कुछ ज्यादा ही असर हो गया। वो ये बात सुनकर अन्दर तक तिलमिला उठी। "बहुत अच्छे, हर वक़्त बस छोड़ने की ही बात किया करो। उस वक़्त छत पर छोड़ गए थे, अब फिर छोड़ने की बात करते हो। मै भी कहा तुम्हारे चक्कर में फस गयी।" झुंझलाते हुए रेखा ने दांत पिसते हुए ये शब्द कहे।
"नहीं नहीं, मै कहाँ तुझे छोड़ रहा हूँ मेरी रानी। वो तो तूने बदनामी वाली बात की,तो मैंने कहा था वो तो। मर भी गया तो भी भूत बनकर तेरे पीछे पडूंगा देख लेना। मुझसे बच नहीं पायेगी मेरी रसभरी।" जाकिर अपने तीर के सही निशाने पर लगने से खुश होता हुआ बोला। "वैसे तूने बताया नहीं कौन आया था तेरे घर?"
"क्यूँ जी.... जलन हो रही है क्या? वैसे, मेरे घर कोई भी आये जाये, आपको इससे क्या?" बड़ी अदा से इतराते हुए लहजे में जाकिर को छेड़ते हुए रेखा चहकी। "था कोई हमारा चाहने वाला, आया था गुलाब का फूल देनेे।"
"कौन हरामखोर था, नाम बता उसका। साले की बीच चौराहे गांड न मारी, तो मेरा नाम भी जाकिर नहीं।" जाकिर गुस्से में आग बबूला होता हुआ दहाडा। "इस गाँव में किसकी मौत आई है। किसको अपनी माँ बहन चुदवाने का इतना शौक आया है।"
"छि.. छि.. छि... कितना गन्दा गन्दा बोलते हो आप। कितनी बार कहा है गालिया न दिया करो। सूरत अच्छी नहीं कम से कम बोली तो अच्छी रखो।" सम्झायिश के लहजे में रेखा बोली।
"अच्छा... बोलने सुनने में गन्दा लगता है, करने में गन्दा नहीं लगता तुझे?"जाकिर ने भी रेखा के नहले पे देहला फेंका। "और मुझे बताती क्यों नहीं दरवाजे पर कौन था?"
"अरे बाबा कोई नहीं था, क्यूँ ऐसे दरोगा जैसे सवाल पूछ रहे हो। ससुर जी के कोई दोस्त आये थे। क्या नाम बताया था उन्होंने अपना? हाँ.....मदनलाल।" रेखा जवाब में बोली।"कह रहे थे, हमारे इनको गोद में खिलाया है। भले आदमी लग रहे थे। बड़े प्यार से सर पे हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया और चले गए।
"मदनलाल? वो सामने गली में रहता है, वो मदनलाल? साला ठरकी बुड्ढ़ा। और कुछ काम नहीं उसको, बस इधर उधर मुह मारता रहता है।" जाकिर ने तो उसकी जन्मकुंडली ही खोल दी। "मै पुरे यकिन से कह सकता हूँ कि आशीर्वाद के बहाने तेरे पुरे बदन की नाप लेकर गया होगा कमीना। बच के रहियो उससे।"
"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आप तो बस, सबको अपने जैसा ही समझते हो। खुद तो अपने दोस्त की बीवी पर बुरी नजर रखते हो और बाकि शरीफों को बदनाम करते हो।" रेखा झेपते हुए बोली, क्युंकी वाकई में मदनलाल रेखा के पुरे पृष्ठ भाग का अपने हाथों से जायजा लेकर गया था। "अच्छा अब मै रखती हूँ, बहुत काम पड़ा है।आपके जैसे निठल्ली बैठी रही, तो मुझे घर से निकाल देंगे आपके दोस्त।" बोलते ही रेखा ने झट से फोन रख दिया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो।
"कोई बात नहीं, दीनू से मिलने फिर आ जाऊंगा। अब तो आना जाना लगा ही रहेगा।" मदन ने बड़े ही अपनेपन से बात ख़तम की और पलट कर चल दिया। रेखा को भी अन्दर जाने की जल्दी थी वो मुड़ी और दरवाजा बंद करके अपने कमरे में पहुचते ही चैन की साँस लेकर पलंग पर लेट गयी। पर तभी पलंग के किनारे रखी टेबल पर रखा फोन बज उठा।
जैसे ही फोन की घंटी रेखा के कानो में पड़ी वो बडबडाई "ओफ्फो... क्या मुसीबत है।आज क्या सब ने मिलकर मुझे परेशान करने का सोच रक्खा है, एक पल का भी चैन नहीं।" बिस्तर पर पेट के बल लेटते हुए उसने एक एक हाथ बढाकर रिसीवर उठाया और थोड़ी झुंझलाती आवाज में बोली "हेलो....,कौन?"
"सब ठीक तो है न? तूने फोन भी नहीं उठाया तो मै तो डर ही गया था। कहाँ थी तू?" जाकिर ने अपनी आवाज को थोडा चिंताजनक बनाते हुए कहा।"कौन था छत पर और अभी तेरे दरवाजे से भी किसी को जाते देखा।" जाकिर सवाल पर सवाल दागता चला गया।
" अरे सब ठीक है। छत पर तो कबूतरों की आवाज आई थी।" रेखा अपने खामखा डरने की वजह याद करते ही मुस्करा पड़ी। "पर अगर वाकई में कोई होता, तो आज तो मेरा मुह काला हो ही जाता। आप तो कैसे मुझे मुसीबत में अकेला छोड़कर भाग निकले थे। बड़ी बड़ी बाते करते हो, आज देख ली आपकी हिम्मत और दिलेरी।" रेखा ने जाकिर को छेड़ते हुए उसकी मर्दानगी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए।
" कैसी बात करती है तू भी मेरी जान तूने तो मेरा दिल तोड़ दिया। मैंने वहां से खिसककर तेरा ही भला किया था। मुसीबत तो तेरी तब होती न जब हम दोनों को कोई साथ देख लेता।"जाकिर बात सम्हालते हुए बोल पड़ा।" साले उस कबुतर के तो सारे खानदान को तंदुर में भुन के खा जाऊंगा। अच्छे भले मजे की माँ चोद दी साले ने। ऊपर से तू भी मुझे जली कटी सूना रही है।" आगे की ये बाते उसके दिल से डायरेक्ट निकल पड़ी।
"बस बस रहने दो बड़ी बड़ी बाते। आपके मजे के चक्कर में मै बदनाम हो जाउंगी किसी दिन, फिर करते रहना बड़ी बड़ी बाते। आप तो मर्द हो, असली मुसीबत तो औरत की होती है। छुरी खरबूज पे गिरे या खरबूज छुरी पे, कटना खरबूज को ही है।" रेखा ने एक ही साँस में मन की पूरी आशंकाए सामने रख दी।
" हे उपरवाले, येही सुनने के लिए तूने मुझे कान दिए थे। तेरी बदनामी के पहले मै मरना पसंद करूँगा मेरी जान। तुझपे आंच भी आई, तो इस ज़माने की माँ चोद दूंगा कहे देता हूँ। और फिर भी तुझे मुझपर यकिन नहीं, तो मै अज के बाद तुझसे कोई वास्ता नहीं रखूंगा। बस तू खुश रह, येही मेरी ख्वाहिश है।" आवाज में थोडा दुखिपन लाते हुए जाकिर बोल पड़ा, पर असल में बोलते वक़्त उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी। बिलकुल वेसी ही, जैसा फंदे में चारा डालते वक़्त शिकारी की होती है। उसने अपना तुरुप का इक्का फेक दिया और रेखा की चाल का इंतजार करने लगा।
जाकिर की इस बात का रेखा पर कुछ ज्यादा ही असर हो गया। वो ये बात सुनकर अन्दर तक तिलमिला उठी। "बहुत अच्छे, हर वक़्त बस छोड़ने की ही बात किया करो। उस वक़्त छत पर छोड़ गए थे, अब फिर छोड़ने की बात करते हो। मै भी कहा तुम्हारे चक्कर में फस गयी।" झुंझलाते हुए रेखा ने दांत पिसते हुए ये शब्द कहे।
"नहीं नहीं, मै कहाँ तुझे छोड़ रहा हूँ मेरी रानी। वो तो तूने बदनामी वाली बात की,तो मैंने कहा था वो तो। मर भी गया तो भी भूत बनकर तेरे पीछे पडूंगा देख लेना। मुझसे बच नहीं पायेगी मेरी रसभरी।" जाकिर अपने तीर के सही निशाने पर लगने से खुश होता हुआ बोला। "वैसे तूने बताया नहीं कौन आया था तेरे घर?"
"क्यूँ जी.... जलन हो रही है क्या? वैसे, मेरे घर कोई भी आये जाये, आपको इससे क्या?" बड़ी अदा से इतराते हुए लहजे में जाकिर को छेड़ते हुए रेखा चहकी। "था कोई हमारा चाहने वाला, आया था गुलाब का फूल देनेे।"
"कौन हरामखोर था, नाम बता उसका। साले की बीच चौराहे गांड न मारी, तो मेरा नाम भी जाकिर नहीं।" जाकिर गुस्से में आग बबूला होता हुआ दहाडा। "इस गाँव में किसकी मौत आई है। किसको अपनी माँ बहन चुदवाने का इतना शौक आया है।"
"छि.. छि.. छि... कितना गन्दा गन्दा बोलते हो आप। कितनी बार कहा है गालिया न दिया करो। सूरत अच्छी नहीं कम से कम बोली तो अच्छी रखो।" सम्झायिश के लहजे में रेखा बोली।
"अच्छा... बोलने सुनने में गन्दा लगता है, करने में गन्दा नहीं लगता तुझे?"जाकिर ने भी रेखा के नहले पे देहला फेंका। "और मुझे बताती क्यों नहीं दरवाजे पर कौन था?"
"अरे बाबा कोई नहीं था, क्यूँ ऐसे दरोगा जैसे सवाल पूछ रहे हो। ससुर जी के कोई दोस्त आये थे। क्या नाम बताया था उन्होंने अपना? हाँ.....मदनलाल।" रेखा जवाब में बोली।"कह रहे थे, हमारे इनको गोद में खिलाया है। भले आदमी लग रहे थे। बड़े प्यार से सर पे हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया और चले गए।
"मदनलाल? वो सामने गली में रहता है, वो मदनलाल? साला ठरकी बुड्ढ़ा। और कुछ काम नहीं उसको, बस इधर उधर मुह मारता रहता है।" जाकिर ने तो उसकी जन्मकुंडली ही खोल दी। "मै पुरे यकिन से कह सकता हूँ कि आशीर्वाद के बहाने तेरे पुरे बदन की नाप लेकर गया होगा कमीना। बच के रहियो उससे।"
"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आप तो बस, सबको अपने जैसा ही समझते हो। खुद तो अपने दोस्त की बीवी पर बुरी नजर रखते हो और बाकि शरीफों को बदनाम करते हो।" रेखा झेपते हुए बोली, क्युंकी वाकई में मदनलाल रेखा के पुरे पृष्ठ भाग का अपने हाथों से जायजा लेकर गया था। "अच्छा अब मै रखती हूँ, बहुत काम पड़ा है।आपके जैसे निठल्ली बैठी रही, तो मुझे घर से निकाल देंगे आपके दोस्त।" बोलते ही रेखा ने झट से फोन रख दिया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो।