21-05-2020, 12:21 PM
मन ही मन जाकिर ने सोचा की वादा करने में हर्ज ही क्या है। एक बार इसे काबू में कर लूँ फिर तो इसे ही नचाउंगा अपने इशारो पर। इस ख्याल के साथ जाकिर के चेहरे की मुस्कान और भी शातिर, और भी कमीनी होती चली गयी। रेखा की पीठ जाकिर की तरफ होने के कारण न तो वो उसकी मुस्कान देख पाई और न उसके मंसूबो को। पर देखा जाये तो रेखा खुद भी तो येही चाहती थी की उसे एक कड़क मर्द का साथ मिले या कहें तो कड़क मर्द से "सब कुछ" मिले जो उसे अपने सीधे सादे गौ जैसे पति से नहीं मिल पाया था। "कुछ बोलते क्यों नहीं" रेखा की आवाज ने ख़ामोशी को तोडा और जाकिर अपने मंसूबो और भविष्य में मिलने वाले आनंद की कल्पना को दबाते हुए आवाज में गंभीरता लाते हुए बोला "ठीक है, मैंने पहले भी कहा था कि मै तेरी मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं करूँगा। आज फिर कहता हूँ कि तेरी मर्जी के सामने दुनिया की कोई ताकत को टिकने नहीं दूंगा, चाहे मेरी जान क्यों न चली जाये।" किसी औरत के लिए ये शब्द सुनने पर जो असर होना चाहिए ठीक वेसा ही असर रेखा पर भी हुआ, और उसने मन में अपने को जाकिर को समर्पित कर दिया। पर असल में तो वो थोडा और जाकिर को तडपाना चाहती थी।
"न बाबा ना, मुझे कोई आपकी जान वान नहीं चाहिए।" रेखा की खनकती आवाज गूंजी।
रेखा की खनकती आवाज ने जैसे चुम्बक का काम किया और जाकिर ने उसके कंधो पर रखे अपने हाथो का इस्तेमाल करके उसे अपनी ओर खीच लिया। "उह्ह्ह्ह" रेखा के मुह से निकली आश्चर्य की ये आवाज जाकिर के बदन से चिपकते ही उत्त्तेजना की "उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म" में बदल गयी। जाकिर ने कन्धो पर रखे हाथ को धीरे धीरे सहलाना शुरू किया तो रेखा के हाथ भी सहारा ढून्ढते हुए अपनी पूरी लम्बाई में खुल गए और जाकिर भाई की जांघो से टकरा गए। सहारे के तौर पर रेखा को ये सहारा अच्छा लगा और छुते ही उसने जाकिर की दोनों जांघो को अपने दोनों मुट्ठियो में भर लिया। अब की बार "आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह" जाकिर के मुह से निकली जिसे सुनकर रेखा के चेहरे पर शरारती मुस्कान तैर गई। अब तो उसका ये खेल ही हो गया। वो जाकिर की जांघो को सहलाती और बीच बीच में मुटठी में दबोच लेती जिससे जाकिर सिसक उठता। बदले में जाकिर रेखा के कंधो को सहलाते सहलाते हाथ कब का निचे ले जा चूका था और रेखा के हिम पर्वतों पर अपने हाथो का कब्ज़ा जमा चूका था। रेखा के ताल में ताल मिलाता हुआ वो भी रेखा के जांघ दबोचने का जवाब उसके आम को मसल कर करता जैसे कोई आम चूसने से पहले उसे पिलपिला कर रहा हो। इस उत्तेजक जुगलबंदी में दोनों ही मजे ले रहे थे, और दोनों ही बढ़ चड़कर कोशिश कर रहे थे। इसी कोशिश में रेखा का हाथ ऐसी जगह टकराया की दोनों के मुह से एक साथ निकला "उह्ह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
जाकिर के पैजामे में कुछ उभार महसूस होने पर रेखा के हाथ खुद ही उस ओर बढ़ गए। रेखा उस उभार को देख तो नहीं पा रही थी पर अपने हाथ उस उभार पर फेरने से उसे ये अंदाजा हो गया की इसकी माप कुछ कुछ उसके सिने के उभार जितनी ही थी। मन ही मन वो हैरान रह गयी की उसके सीने के उभार और जाकिर के जांघो के बिच के तम्बू की ऊँचाई लगभग बराबर ही थी बस अंतर इतना ही था कि रेखा के उभार रुई के नरम गोलों को तरह थे हर तरफ से और जाकिर के उभारो में सिर्फ बिच में ही कुछ लकड़ी के मोटे ठूंठ सा था जिसके चारो तरफ पैजामे के कपड़े की तनावट महसूस होने से वो एक तम्बू जैसा दिख रहा था। बीच के ठूठ की मजबूती नापने के इरादे से रेखा ने उसे अपनी एक उगली से दबाने की कोशिश की पर वो तो जिद्दी बच्चे की तरह खड़ा ही रहा। हार न मानते हुए उसने अपनी हथेली फैला कर उस पर दबाव डाला पर जैसे ही उसे वहां नसों की फडकन और थिरकन महसूस हुई रेखा की ऑंखें रोमांच के मारे बंद हो गयी और इस कारण उसकी हथेलियाँ जो पूरी फैली थी भींच गयी जीनके बीच वोही कड़क ठूंठ आ गया। "आअह्ह्ह्ह्ह्ह।।। उम्म्म्म्म्म्म्म्म।" की आवाज के साथ जाकिर के मजे में और इजाफा हो गया और उसका हाथ रेखा के स्तनों का मर्दन और मस्ती से करने लगे। अब दृश्य ऐसा था की 55 साल के जाकिर के 6फिट से ज्यादा ऊँचे 80 किलो वजनी काले पहाड़ के जैसे शरीर से 28 साल की रेखा का 48 किलो वजनी छरहरा परन्तु सुडौल मख्खन के जैसा सफ़ेद बदन सर से लेकर उसकी टांगों तक पीछे की और से चिपका हुआ था। पीछे से चिपके जाकिर के दोनों हाथ रेखा के बाजुओं और बदन के बीच से होते हुए आगे आकार दोनों स्तनों को घोटने में लगे हुए थे और रेखा जाकिर के पेड़ के ताने जैसे हाथो को अपनी बगलों में दबाये निचे हाथ लेजाकर उसके लिंग से अपनी हथेलियों की जोर आजमाइश कर रही थी। देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो एक भैसे के बदन से एक सफ़ेद बकरी चिपके खड़ी हो।
"कैसा लगा मेरा सामान मेरी फुलझड़ी।"जाकिर के इन शब्दों ने एक लम्बी ख़ामोशी को तोड़ते हुए रेखा को हकीकत की जमींन पर ला खड़ा किया। उसे समझ आया की वो भरी दोपहरी में छत पर एक गैर मर्द और वो भी अपने पति के दोस्त के साथ चिपक कर उसके अंगो का नाप ले रही है। शर्म के मारे उसकी आंखे झुक गयी और चेहरा लाल पड़ गया।
"धत्त्त्त्त! आप बड़े बेशरम है। छोडिये मुझे, थोडा तो जगह और समय का लिहाज करिए।"उसके कांपते होठ और लडखडाती जबान बस इतना ही कह पाए। इससे पहले जाकिर कुछ कहता, सीढ़ियो पर कुछ सरसराहट सी महसूस हुई। किसी भी काम को चोरी छुपे करते समय कान बड़े ही तेज हो जाते हैं। दोनों ही आवाज सुनकर सन्न रह गए।
"न बाबा ना, मुझे कोई आपकी जान वान नहीं चाहिए।" रेखा की खनकती आवाज गूंजी।
रेखा की खनकती आवाज ने जैसे चुम्बक का काम किया और जाकिर ने उसके कंधो पर रखे अपने हाथो का इस्तेमाल करके उसे अपनी ओर खीच लिया। "उह्ह्ह्ह" रेखा के मुह से निकली आश्चर्य की ये आवाज जाकिर के बदन से चिपकते ही उत्त्तेजना की "उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म" में बदल गयी। जाकिर ने कन्धो पर रखे हाथ को धीरे धीरे सहलाना शुरू किया तो रेखा के हाथ भी सहारा ढून्ढते हुए अपनी पूरी लम्बाई में खुल गए और जाकिर भाई की जांघो से टकरा गए। सहारे के तौर पर रेखा को ये सहारा अच्छा लगा और छुते ही उसने जाकिर की दोनों जांघो को अपने दोनों मुट्ठियो में भर लिया। अब की बार "आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह" जाकिर के मुह से निकली जिसे सुनकर रेखा के चेहरे पर शरारती मुस्कान तैर गई। अब तो उसका ये खेल ही हो गया। वो जाकिर की जांघो को सहलाती और बीच बीच में मुटठी में दबोच लेती जिससे जाकिर सिसक उठता। बदले में जाकिर रेखा के कंधो को सहलाते सहलाते हाथ कब का निचे ले जा चूका था और रेखा के हिम पर्वतों पर अपने हाथो का कब्ज़ा जमा चूका था। रेखा के ताल में ताल मिलाता हुआ वो भी रेखा के जांघ दबोचने का जवाब उसके आम को मसल कर करता जैसे कोई आम चूसने से पहले उसे पिलपिला कर रहा हो। इस उत्तेजक जुगलबंदी में दोनों ही मजे ले रहे थे, और दोनों ही बढ़ चड़कर कोशिश कर रहे थे। इसी कोशिश में रेखा का हाथ ऐसी जगह टकराया की दोनों के मुह से एक साथ निकला "उह्ह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
जाकिर के पैजामे में कुछ उभार महसूस होने पर रेखा के हाथ खुद ही उस ओर बढ़ गए। रेखा उस उभार को देख तो नहीं पा रही थी पर अपने हाथ उस उभार पर फेरने से उसे ये अंदाजा हो गया की इसकी माप कुछ कुछ उसके सिने के उभार जितनी ही थी। मन ही मन वो हैरान रह गयी की उसके सीने के उभार और जाकिर के जांघो के बिच के तम्बू की ऊँचाई लगभग बराबर ही थी बस अंतर इतना ही था कि रेखा के उभार रुई के नरम गोलों को तरह थे हर तरफ से और जाकिर के उभारो में सिर्फ बिच में ही कुछ लकड़ी के मोटे ठूंठ सा था जिसके चारो तरफ पैजामे के कपड़े की तनावट महसूस होने से वो एक तम्बू जैसा दिख रहा था। बीच के ठूठ की मजबूती नापने के इरादे से रेखा ने उसे अपनी एक उगली से दबाने की कोशिश की पर वो तो जिद्दी बच्चे की तरह खड़ा ही रहा। हार न मानते हुए उसने अपनी हथेली फैला कर उस पर दबाव डाला पर जैसे ही उसे वहां नसों की फडकन और थिरकन महसूस हुई रेखा की ऑंखें रोमांच के मारे बंद हो गयी और इस कारण उसकी हथेलियाँ जो पूरी फैली थी भींच गयी जीनके बीच वोही कड़क ठूंठ आ गया। "आअह्ह्ह्ह्ह्ह।।। उम्म्म्म्म्म्म्म्म।" की आवाज के साथ जाकिर के मजे में और इजाफा हो गया और उसका हाथ रेखा के स्तनों का मर्दन और मस्ती से करने लगे। अब दृश्य ऐसा था की 55 साल के जाकिर के 6फिट से ज्यादा ऊँचे 80 किलो वजनी काले पहाड़ के जैसे शरीर से 28 साल की रेखा का 48 किलो वजनी छरहरा परन्तु सुडौल मख्खन के जैसा सफ़ेद बदन सर से लेकर उसकी टांगों तक पीछे की और से चिपका हुआ था। पीछे से चिपके जाकिर के दोनों हाथ रेखा के बाजुओं और बदन के बीच से होते हुए आगे आकार दोनों स्तनों को घोटने में लगे हुए थे और रेखा जाकिर के पेड़ के ताने जैसे हाथो को अपनी बगलों में दबाये निचे हाथ लेजाकर उसके लिंग से अपनी हथेलियों की जोर आजमाइश कर रही थी। देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो एक भैसे के बदन से एक सफ़ेद बकरी चिपके खड़ी हो।
"कैसा लगा मेरा सामान मेरी फुलझड़ी।"जाकिर के इन शब्दों ने एक लम्बी ख़ामोशी को तोड़ते हुए रेखा को हकीकत की जमींन पर ला खड़ा किया। उसे समझ आया की वो भरी दोपहरी में छत पर एक गैर मर्द और वो भी अपने पति के दोस्त के साथ चिपक कर उसके अंगो का नाप ले रही है। शर्म के मारे उसकी आंखे झुक गयी और चेहरा लाल पड़ गया।
"धत्त्त्त्त! आप बड़े बेशरम है। छोडिये मुझे, थोडा तो जगह और समय का लिहाज करिए।"उसके कांपते होठ और लडखडाती जबान बस इतना ही कह पाए। इससे पहले जाकिर कुछ कहता, सीढ़ियो पर कुछ सरसराहट सी महसूस हुई। किसी भी काम को चोरी छुपे करते समय कान बड़े ही तेज हो जाते हैं। दोनों ही आवाज सुनकर सन्न रह गए।