21-05-2020, 12:20 PM
जाकिर के कानो में ये बाते ऐसी लगी जैसे किसी ने चाशनी में डुबाकर चप्पल मारी हो। अगर किसी और ने ये बातें उससे कही होती तो वो अब तक खून में सराबोर उसके सामने चारो खाने चित्त पड़ा होता। पर कहते है न की हुस्न वालों के सौ गुनाह भी माफ़, यही सोचकर जाकिर उन शब्दों को अनसुना करने की कोशिश करने लगा पर अब आगे की कारवाही उसे समझ नहीं आ रही थी की किया क्या जाये। उसने जैसे ही रेखा की तरफ हाथ बढ़ाना चाहा, एक और झटके ने उसे हिला के रख दिया।"ख़बरदार, जो मुझे हाथ भी लगाया। या तो तुम्हे मार डालूंगी या खुद को।" जाकिर को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हो रहा है। पिछले कई दिनों से वो जिस मुर्गी को दाना डाल रहा था, आज वोही मुर्गी चोंच मार मारकर उसकी मर्दानगी को लहूलुहान कर रही थी।
"जानेमन, आखिर बात क्या हुई ये तो बताओ।" उसकी मिमियाती आवाज बस इतना ही कह पाई। अब तक उत्पन्न उत्तेजना और घबराहट के मिश्रण की जगह उसके दिल में ग्लानी और गुस्से के भाव दस्तक देने लगे।
"क्या मै कोई खिलौना हूँ? तुम्हारा जब मन आये तुम तब मुझे बुलाओगे और जैसा चाहो वैसा करोगे मेरे साथ?" इतना कहते कहते रेखा की सीप जैसी आँखों से मोती बिखरने लगे।
"अरे नहीं मेरी जान। तुम तो मेरी जानेतमंन्ना, जानेजिगर हो। भला जाकिर भाई की जान खिलौना हो सकती है। " खुशामद भरे शब्दों में जाकिर बिगड़ी बात सँभालने की कोशिश करने लगा। "वो क्या है न, तुम्हारी याद बर्दाश्त नहीं हुई इसलिए बुलाया तुमको, पर तुम्हारे आते ही तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे पागल ही कर दिया और मै खुद पर काबू न रख सका।" जाकिर ने खुशामद के साथ तारीफ को भी घोल लिया बातों में, क्यूंकि तारीफ औरतों की कमजोरी होती है।
"अच्छा अच्छा, ज्यादा बाते न बनाइये आप। कैसे जंगलियों की तरह बर्ताव करते है, मेरी जान ही निकाल दी।" तारीफ और खुशामद के असर से रेखा बच न सकी और उसकी आँखों में फिर वोही शरारत की चमक आ गयी। "बोलिए, क्यों बुलाया था मुझे? मेरा सारा काम पड़ा है घर में और उनका फोन भी आने वाला है।" रेखा ने ये बोलते हुए जता दिया की जो करना हो जल्दी कर लो।
रेखा के मुह से निकले शब्द और आँखों में बढती चमक से जाकिर के साँस में साँस आई और उसके मुह से सुकून की उफ्फ्फ निकल पड़ी मानो उसकी जान ही जाते जाते बची हो। मन ही मन जाकिर सोच रहा था,"साली को मारने दे नखरे, मैंने भी चुन चुन के बदले न लिए तो जाकिर मेरा नाम नहीं।"
"अब बोलेंगे भी या ऐसे ही बुत बनकर खड़े रहना है। आप तो मुझे आज देर करवाएंगे जाकिर भैया।" रेखा की सुरीली आवाज से मानो जाकिर के ताजा ताजा मिले घाव पर मरहम लगा पर अंत में बोले गए भैया ने उसी घाव पे डेटॉल की पूरी बोतल ही उड़ेल दी।
"कितनी बार कहा है तुझसे मुझे भैया या भाई न कहा कर मेरी जलेबी" जाकिर कुछ कुछ झुंझलाहट में बोल गया पर फिर अपने आवाज थोड़ी नरम बनाने की कोशिश करने लगा।"मैंने तो बस तेरी सूरत देखने के लिए बुलाया था, बहुत याद आ रही थी। कमबख्त ऐसी दिल में बस गयी है की लगता है दिल तेरी सूरत के साथ ही पैदा हुआ था।"
"आहा हा हा हा हा, कितना झूट बोलते हो आप जाकिर भा.... जी" रेखा ने इस बार जाकिर को भाई बोलने से खुद को बचाया जिसको सुनकर जाकिर की तो बांछे ही खिल उठी और एक मुस्कान चेहरे के पर फ़ैल गयी। मुस्कराहट से जाकिर और भी मक्कार दिख रहा था पर रेखा तो उत्तेजना के पहाड़ पर बैठी थी जिसकी उचाई से तो भेडिया भी भेड़ दिखता है। "और आपको भैया क्यूँ न बोलूं? आप मेरे पति के दोस्त हैं और उनसे भी बड़े है तो मै आपको भैया न कहूँ तो क्या सैयां कहूँ।"रेखा ने जाकिर को छेड़ते हुए कहा।
"मेरी रानी, एक बार सैयां कह के तो देख, कसम से पूरी दुनिया तेरे कदमो में न बिछा दी तो कहना।"जाकिर ने इस सोनमछरिया को फ़साने के लिए और भी लम्बा जाल फेंकते हुए कहा। कहने के साथ ही साथ वो धीरे धीरे बढ़ता हुआ रेखा के ठीक पीछे आ गया और फिर से लगा मछली फ़साने " तूने तो जान ही निकल दी थी मेरी, तुझसे एक ही गुजारिश है मेरी, बस तू रोया मत कर। तेरे आंसू मेरे दिल में पिघले लोहे की तरह टपकते है।" कहते हुए जाकिर ने अपने हाथ धीरे से रेखा के कंधो पर रख दिए, पर पिछली बातों को याद करते हुए अपने हाथो को हरकत करने से रोक लिया।
"अच्छा जी, तो अपनी हरकतों पर थोडा काबू रखा करें। मै आपसे साफ साफ कह देना चाहती हूँ, मेरी मर्जी के खिलाफ अगर कोई काम होता है तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। इसलिए मै जब तक आपको संपर्क न करूँ आप न तो मुझे फोन करेंगे और न ही मिलने की कोशिश ही करेंगे। अगर मेरी थोड़ी भी एहमियत है आपकी नजर में तो मुझे वादा कीजिये।"
"जानेमन, आखिर बात क्या हुई ये तो बताओ।" उसकी मिमियाती आवाज बस इतना ही कह पाई। अब तक उत्पन्न उत्तेजना और घबराहट के मिश्रण की जगह उसके दिल में ग्लानी और गुस्से के भाव दस्तक देने लगे।
"क्या मै कोई खिलौना हूँ? तुम्हारा जब मन आये तुम तब मुझे बुलाओगे और जैसा चाहो वैसा करोगे मेरे साथ?" इतना कहते कहते रेखा की सीप जैसी आँखों से मोती बिखरने लगे।
"अरे नहीं मेरी जान। तुम तो मेरी जानेतमंन्ना, जानेजिगर हो। भला जाकिर भाई की जान खिलौना हो सकती है। " खुशामद भरे शब्दों में जाकिर बिगड़ी बात सँभालने की कोशिश करने लगा। "वो क्या है न, तुम्हारी याद बर्दाश्त नहीं हुई इसलिए बुलाया तुमको, पर तुम्हारे आते ही तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे पागल ही कर दिया और मै खुद पर काबू न रख सका।" जाकिर ने खुशामद के साथ तारीफ को भी घोल लिया बातों में, क्यूंकि तारीफ औरतों की कमजोरी होती है।
"अच्छा अच्छा, ज्यादा बाते न बनाइये आप। कैसे जंगलियों की तरह बर्ताव करते है, मेरी जान ही निकाल दी।" तारीफ और खुशामद के असर से रेखा बच न सकी और उसकी आँखों में फिर वोही शरारत की चमक आ गयी। "बोलिए, क्यों बुलाया था मुझे? मेरा सारा काम पड़ा है घर में और उनका फोन भी आने वाला है।" रेखा ने ये बोलते हुए जता दिया की जो करना हो जल्दी कर लो।
रेखा के मुह से निकले शब्द और आँखों में बढती चमक से जाकिर के साँस में साँस आई और उसके मुह से सुकून की उफ्फ्फ निकल पड़ी मानो उसकी जान ही जाते जाते बची हो। मन ही मन जाकिर सोच रहा था,"साली को मारने दे नखरे, मैंने भी चुन चुन के बदले न लिए तो जाकिर मेरा नाम नहीं।"
"अब बोलेंगे भी या ऐसे ही बुत बनकर खड़े रहना है। आप तो मुझे आज देर करवाएंगे जाकिर भैया।" रेखा की सुरीली आवाज से मानो जाकिर के ताजा ताजा मिले घाव पर मरहम लगा पर अंत में बोले गए भैया ने उसी घाव पे डेटॉल की पूरी बोतल ही उड़ेल दी।
"कितनी बार कहा है तुझसे मुझे भैया या भाई न कहा कर मेरी जलेबी" जाकिर कुछ कुछ झुंझलाहट में बोल गया पर फिर अपने आवाज थोड़ी नरम बनाने की कोशिश करने लगा।"मैंने तो बस तेरी सूरत देखने के लिए बुलाया था, बहुत याद आ रही थी। कमबख्त ऐसी दिल में बस गयी है की लगता है दिल तेरी सूरत के साथ ही पैदा हुआ था।"
"आहा हा हा हा हा, कितना झूट बोलते हो आप जाकिर भा.... जी" रेखा ने इस बार जाकिर को भाई बोलने से खुद को बचाया जिसको सुनकर जाकिर की तो बांछे ही खिल उठी और एक मुस्कान चेहरे के पर फ़ैल गयी। मुस्कराहट से जाकिर और भी मक्कार दिख रहा था पर रेखा तो उत्तेजना के पहाड़ पर बैठी थी जिसकी उचाई से तो भेडिया भी भेड़ दिखता है। "और आपको भैया क्यूँ न बोलूं? आप मेरे पति के दोस्त हैं और उनसे भी बड़े है तो मै आपको भैया न कहूँ तो क्या सैयां कहूँ।"रेखा ने जाकिर को छेड़ते हुए कहा।
"मेरी रानी, एक बार सैयां कह के तो देख, कसम से पूरी दुनिया तेरे कदमो में न बिछा दी तो कहना।"जाकिर ने इस सोनमछरिया को फ़साने के लिए और भी लम्बा जाल फेंकते हुए कहा। कहने के साथ ही साथ वो धीरे धीरे बढ़ता हुआ रेखा के ठीक पीछे आ गया और फिर से लगा मछली फ़साने " तूने तो जान ही निकल दी थी मेरी, तुझसे एक ही गुजारिश है मेरी, बस तू रोया मत कर। तेरे आंसू मेरे दिल में पिघले लोहे की तरह टपकते है।" कहते हुए जाकिर ने अपने हाथ धीरे से रेखा के कंधो पर रख दिए, पर पिछली बातों को याद करते हुए अपने हाथो को हरकत करने से रोक लिया।
"अच्छा जी, तो अपनी हरकतों पर थोडा काबू रखा करें। मै आपसे साफ साफ कह देना चाहती हूँ, मेरी मर्जी के खिलाफ अगर कोई काम होता है तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। इसलिए मै जब तक आपको संपर्क न करूँ आप न तो मुझे फोन करेंगे और न ही मिलने की कोशिश ही करेंगे। अगर मेरी थोड़ी भी एहमियत है आपकी नजर में तो मुझे वादा कीजिये।"